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रीटा टेम्पलटन अपने बच्चों के सामने नग्न रहना चाहती हैं!

: मेरी मर्जी और नीले जहर का अंर्तद्वन्द : “मैं चाहे ये करूं मैं चाहे वो करूं…मेरी मर्जी ” 1997 की गैम्बलर फिल्म का यह गाना 21 वीं सदी के इस दौर के भारत के लिए कई मायनों में उपयुक्त लगता है तो कई मायनों में हास्यास्पद, विवेक शून्य और हतप्रभ कर देने वाला भी। हम नेट निरपेक्षता की बात करते हैं और सीना ठोंककर कहते हैं, इण्टरनेट के उपयोग का अधिकार हवा के उपयोग जैसा हो यानी वायुमण्डल में मौजूद हवा सबके उपयोग के लिए समान है फिर चाहे वो पशु हो या मानव या फिर वनस्पति। लेकिन यहीं हम भूल जाते हैं कि हवा भी दो तरह की होती है एक जो हम लेते हैं और दूसरी जिसे हम छोड़ते हैं। सीधा मतलब यह हुआ है कि ऑक्सीजन जीव जन्तु ग्रहण करते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड वनस्पतियां।

<p>: <strong>मेरी मर्जी और नीले जहर का अंर्तद्वन्द</strong> : “मैं चाहे ये करूं मैं चाहे वो करूं...मेरी मर्जी ” 1997 की गैम्बलर फिल्म का यह गाना 21 वीं सदी के इस दौर के भारत के लिए कई मायनों में उपयुक्त लगता है तो कई मायनों में हास्यास्पद, विवेक शून्य और हतप्रभ कर देने वाला भी। हम नेट निरपेक्षता की बात करते हैं और सीना ठोंककर कहते हैं, इण्टरनेट के उपयोग का अधिकार हवा के उपयोग जैसा हो यानी वायुमण्डल में मौजूद हवा सबके उपयोग के लिए समान है फिर चाहे वो पशु हो या मानव या फिर वनस्पति। लेकिन यहीं हम भूल जाते हैं कि हवा भी दो तरह की होती है एक जो हम लेते हैं और दूसरी जिसे हम छोड़ते हैं। सीधा मतलब यह हुआ है कि ऑक्सीजन जीव जन्तु ग्रहण करते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड वनस्पतियां।</p>

: मेरी मर्जी और नीले जहर का अंर्तद्वन्द : “मैं चाहे ये करूं मैं चाहे वो करूं…मेरी मर्जी ” 1997 की गैम्बलर फिल्म का यह गाना 21 वीं सदी के इस दौर के भारत के लिए कई मायनों में उपयुक्त लगता है तो कई मायनों में हास्यास्पद, विवेक शून्य और हतप्रभ कर देने वाला भी। हम नेट निरपेक्षता की बात करते हैं और सीना ठोंककर कहते हैं, इण्टरनेट के उपयोग का अधिकार हवा के उपयोग जैसा हो यानी वायुमण्डल में मौजूद हवा सबके उपयोग के लिए समान है फिर चाहे वो पशु हो या मानव या फिर वनस्पति। लेकिन यहीं हम भूल जाते हैं कि हवा भी दो तरह की होती है एक जो हम लेते हैं और दूसरी जिसे हम छोड़ते हैं। सीधा मतलब यह हुआ है कि ऑक्सीजन जीव जन्तु ग्रहण करते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड वनस्पतियां।

कुछ इसी तरह इन दिनों पोर्न वेबसाइट्स को लेकर पकपक जारी है। इसमें भी तर्क कम कुतर्क ज्यादा हैं। बहस तेज है जिसमें अभिजात्य, सुसंस्कृत, समाज के कथित ठीकेदार, मूर्धन्य और स्वनामधन्य अपने-अपने तरीके से पक्ष-विपक्ष में राय दे रहे हैं। तार्किक रूप से ऐसी बातों को चुनौती देना समय गवाने जैसा है, लेकिन कुछ सवाल समाज से ही ऐसे भी उठे हैं जो बेहद कचोटते हैं, टीसते हैं। पता नहीं उसका जवाब कब मिलेगा या कभी नहीं ? हां, कुछ यक्ष प्रश्न जरूर हैं जो बेहद संवेदनशील हैं, सामाजिक सरोकारों से जुड़े हुए हैं, जवाबदेहों के लिए जवाबदेही हैं फिर भी अनुत्तरित हैं।

सवाल 1 – विकसित और मॉडर्न देश अमेरिका से है जिसकी पाश्चात्य संस्कृति के चलते भी दुनिया में अलग पहचान है। अक्सर लिबास की तरह रिश्तों को भी बदलने में कोई गुरेज़ नहीं। वहीं एक 4 मासूम बच्चों की मां भी है वह मिसीसिपी नदी के किनारे सबसे बड़े शहर डेवनपोर्ट के लोवा में रहती है, जानी-मानी लेखिका हैं, नाम है रीटा टेम्पलटन। रीटा इण्टरनेट के पोर्न बाजार से इस कदर भयभीत हैं कि वो पोर्न के बीज को कुचलने के लिए, सुनने में अजीब लेकिन तार्किक रूप से सटीक अनुमति चाहती हैं। रीटा टेम्पलटन अपने बच्चों के सामने नग्न रहना चाहती हैं। उन्हें नग्न देखकर बड़े होते बच्चों में नारी देह के प्रति विकृत आकर्षण कमेगा और मां के रूप में नारी शरीर के परिचय से पोर्न बाजार के छलावे से बच्चों को बचाने में मदद मिलेगी। सच में स्वस्थ सोच के लिए बहुत बड़ा साहस है और तथाकथित आधुनिक, अभिजात्य समाज पर करारा तमाचा भी, वह भी अमेरिका जैसे आधुनिक सोच वाले देश में।

सवाल 2 – विकासशील देशों की पंक्ति से विकसित देशों में स्थान बनाने के लिए तत्पर भारत और बालीवुड अभिनेत्री दीपिका पादुकोण का वीडियो ‘माई चॉइस’। उन्मुक्त जीवन शैली दर्शाता वीडियो जिसमें दीपिका कहती है बदन भी उनका, सोच भी उनकी और फैसला भी उनका। किससे शादी करें, किससे यौन संबंध बनाए और किसके बच्चे की मां बने। पुरुष से प्यार करें या महिला से या दोनों से। एक अजीब सा संदेश प्राकृतिक और अप्राकतिक का अंर्तद्वन्द पैदा करता है ! सिरहन, उत्तेजना और सवाल सब कुछ छोड़ता जिसे जैसा महसूस करना है, वैसा करे। आजादी अधूरी है या पूरी या फिर विकृतियों से भरी ? जो समझ आए समझें लेकिन सार्वजनिक अश्लीलता का सवाल जरूर है यह वीडियो।

सवाल 3 – छत्तीसगढ़ का बस्तर, अबूझमाड़, उत्तर पूर्व का अंडमान, देश के सुदूर जंगली इलाकों के कई निरा आदिवासी क्षेत्र, अफ्रीका के कबीलाई इलाके जहां महिलाएं आज भी पूरे वस्त्र नहीं पहनती हैं। कोई पर्दा नहीं युवा बेटे से भी, पिता से भी और ससुर से भी। ऊपरी हिस्सा खुला रहता है। अश्लीलता का भाव तक नहीं नतीजा यौन अपराध नहीं के बराबर।

सवाल – 4  दक्षिण फिल्मों की अभिनेत्री विशाखा सिंह को उनके फेसबुक पर आया एक अश्लील कमेण्ट और लिखने वाले को उनका जवाब “ मुझे पता है, मैं एक महिला हूं, तुम्हारी जानकारी के लिए बात दूं कि हर महिला के ब्रेस्ट होते हैं। तुम्हारी मां, पत्नी, बहन, दादी, आन्टी, दोस्त सभी शामिल हैं। क्या तुम यह बात उनसे भी जाकर कहोगे ? मुझसे ही यह कहने की हिम्मत है तुम्हें?”

भारत की समृध्द धरोहरों में एक उन आचार्य वात्स्यायन जिन्हें खुद ब्रम्हचारी माना जाता है की संस्कृत में लिखी अति प्राचीन पुस्तक ‘कामसूत्र’। यह किताब सभ्य समाज में स्त्री-पुरुष के सुन्दरतम संबंधों पर है। विवाह के बाद जीवन को कैसे खुश रखा जाए। निश्चित रूप से एक मनोचिकित्सक की सलाह जैसी हकीकत से रू-ब-रू कराती पुस्तक जिसमें विवाहेत्तर संबंधों पर पूर्वाग्रह रहित वर्णन भी है। इसमें 64 कलाओं का वर्णन और आचार्य वात्स्यायन का मत भी कि इनमें पारंगत नारी पति वियोग में भी रहना सीख जाती है। पति उसके गुणों पर मोहित रहता है और अन्य स्त्रियों से संबंध नहीं बनाता है और ऐसे स्त्री-पुरुष का दांपत्य जीवन सदा सफल रहता है।

सवाल तो बहुत हैं पर उत्तर इन्हीं 4 में खोजते हैं। क्या रीटा टेम्पलटन की सोच अमेरिका में बदलाव का आगाज तो नहीं ? दीपिका पादुकोण की सोच समृध्द और सभ्य समाज से विकृत और विघटनवादी प्रवृत्ति की ओर जाने का इशारा तो नहीं ? दक्षिण की अभिनेत्री विशाखा सिंह का जवाब अश्लील मानसिकता वालों को अनजाने ही सही, थोड़े मे करारा जवाब तो नहीं?  क्या ‘कामसूत्र’ कामशास्त्र का बेहतर ज्ञान और पोर्न साइट्स बैन को निजता पर हमला बताने वालों को सधा, शालीन और ज्ञान चक्षु खोलती वर्षों पहले लिखित प्रेरणा नहीं हो सकती?

जगजाहिर है, जहर का इलाज जहर होता है। क्यों न इस नीले जहर का इलाज भी इसी में खोजा जाए। ऐसे कंटेंटों का समावेश किया जाए जो प्रेरक हों, उपयोगी हों लाभ-हानि का खाता-बही हों तथा निजता के नाम पर निर्लज्जता के प्रवाह को जहर से जहर के रूप में कम कर सकें। असंभव कुछ नहीं है बस जरूरत है कारगर सोच व उचित दशा और दिशा की। वह दिन भी आया जब एड्स जैसे गंभीर रोग पर कुछ ही दशकों में काबू पा लिया गया। क्या नीले जहर के फैलाव पर भी काबू नहीं पाया जा सकता ? जरूरत है दृढ़ इच्छा शक्ति की, प्रयोग की और निरंतर जूझते रहने की तैयारी की।  इसे हुक्मरान ही बेहतर कर सकेंगे और इससे यौन विकृतियां भी घटेंगी और ऐसे अपराध भी स्वयंमेव नियंत्रित होंगे।

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ऋतुपर्ण दवे पत्रकार एवं टिप्पणीकार हैं. उनसे संपर्क (मो.) 08989446288 या (मेल) [email protected] के जरिए किया जा सकता है.

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