देश की जनता की याददाश्त नेताओं से तो बेहतर ही है, क्योंकि हमारे नेताओं की याददाश्त तो ‘गजनी’ की तरह शॉर्ट टर्म मेमोरी लॉस नामक असाध्य बीमारी से ग्रसित रही है। विपक्ष में रहते हुए जिन मुद्दों पर हल्ला मचाते हैं सत्ता में आते ही उन्हें भूल जाते हैं या उन पर मानवीय आधार जैसे बेतुके तर्क देने लग जाते हैं। ज्यादा दिन नहीं हुए, जब देश की जनता ने यह भी खूब देखा कि भ्रष्टाचार से लेकर विदेशों में जमा काले धन के साथ आतंकवाद और महंगाई पर किस कदर भारतीय जनता पार्टी छाती-माथा कूटते संसद से सड़क तक नजर आती थी, वह अब मनमोहन सिंह से भी अधिक मौन धारण करके बैठी है। प्याज या दाल पहली बार महंगी नहीं हुई है, यह सिलसिला सालों से जारी है, मगर जब केन्द्र में कांग्रेस सत्ता में थी तब भाजपा के लोग रोजाना महंगे प्याज पर आंसू बहाते नजर आते थे।
भाजपा का एक भी ऐसा बड़ा नेता नहीं बचा जो प्याज की माला गले में टांगकर विरोध की नौटंकी करता तब ना दिखा हो। यहां तक कि पहली बार जब प्याज की कीमतें राजनीतिक मुद्दा बनीं, तो केन्द्र में काबिज तत्कालीन अटल सरकार को जाना पड़ा था। अब एक बार फिर प्याज के दाम आसमान पर हैं, मगर भाजपाई सहित उनके तमाम सहयोगी दल आंखों पर पट्टी बांधकर मौन धारण किए बैठे हैं। अब कहां गया उनका विरोध और सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन करना? कांग्रेस को तो कभी भी दमदारी से विपक्ष की भूमिका अदा करना आई ही नहीं, जिसके चलते अभी प्याज और दाल के साथ-साथ तमाम उपभोक्ता वस्तुओं के दाम बढ़ गए, लेकिन पप्पू कांग्रेस खामोश ही बैठी है। इसकी जगह अगर भाजपा होती तो देश भर में पुतले फूंकने से लेकर सड़कों पर जबरदस्त प्रदर्शन नजर आते।
56 इंच का सीना भी अब ऐसे तमाम मुद्दों पर सिकुड़ गया है। पाकिस्तान के मामले में तो मोदी सरकार लगभग एक्सपोज ही हो चुकी है और रोजाना जवानों की मौतें हो रही हैं। सीमाओं के साथ-साथ देश के भीतर भी सारी समस्याएं बदस्तूर कायम हैं, जिनको चंद दिनों में ही दूर करने के दावे किए गए थे। बहुत हुई महंगाई की मार… से लेकर महिला अत्याचार और ये शीश नहीं झुकने दूंगा जैसे जोशीले नारे और गाने पता नहीं कहां दफन हो गए? उस दौरान भाजपा ने डॉलर के लगातार मजबूत होने और रुपए के अवमूल्यन पर भी कम शोर नहीं मचाया था। अब डॉलर तब की तुलना में और अधिक महंगा हो रहा है और उतनी ही तेजी से रुपया धड़ाम से गिर रहा है, लेकिन मोदीजी सहित पूरी भाजपा चुप है, जबकि भाजपा के पास तो जेटली जैसे प्रकांड विद्वान हैं, जो चुटकियां बजाते ऐसी तमाम समस्याओं का समाधान करने में पारंगत बताए और प्रचारित किए जाते रहे हैं। शेयर बाजार भी आज धड़ाम से गिर गया है और देश की अर्थव्यवस्था डांवाडोल बताई जा रही है। ऐसा लगता है बयानों और दांवों के ये सारे शेर कागजी ही थे, जो सिर्फ सत्ता पाने के लिए ही विपक्ष में रहते हुए दहाड़ते रहे और अब जमीनी हालात बकरी की तरह मिमियाने के भी नजर नहीं आ रहे। धन्यवाद देना चाहिए नई दिल्ली की केजरीवाल सरकार को जो कम से कम सस्ते प्याज तो बंटवा रही है।
लेखक राजेश ज्वेल हिन्दी पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक हैं. सम्पर्क- 098270-20830 Email : [email protected]