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रेस कोर्स का मामला सिर्फ घुड़दौड़ की आड़ में सट्टेबाज़ी तक सीमित नहीं

देश के प्रधानमंत्री के घर के ठीक सामने एक रेस कोर्स है। आप सोचते होंगे कि वहाँ घोड़े दौड़ते होंगे और लोग घुड़दौड़ का लुत्फ़ उठाते होंगे। नहीं। इस रेस क्लब में मुख्यतः सट्टेबाज़ी होती है, जुआ खेला जाता है। गैरकानूनी ढंग से लाखों, करोड़ों का धंधा होता है। और जी हाँ, ये सब हमारे प्रधानसेवक, हमारे चौकीदार की नाक के नीचे। मई से लेकर जुलाई तक यहाँ कोई रेस नहीं होती। और जब अगस्त महीने से रेस शुरू भी होती है तो सप्ताह में सिर्फ एक दिन यहाँ रेस होती है। लेकिन जुआ रोज़ खेला जाता है।

<p>देश के प्रधानमंत्री के घर के ठीक सामने एक रेस कोर्स है। आप सोचते होंगे कि वहाँ घोड़े दौड़ते होंगे और लोग घुड़दौड़ का लुत्फ़ उठाते होंगे। नहीं। इस रेस क्लब में मुख्यतः सट्टेबाज़ी होती है, जुआ खेला जाता है। गैरकानूनी ढंग से लाखों, करोड़ों का धंधा होता है। और जी हाँ, ये सब हमारे प्रधानसेवक, हमारे चौकीदार की नाक के नीचे। मई से लेकर जुलाई तक यहाँ कोई रेस नहीं होती। और जब अगस्त महीने से रेस शुरू भी होती है तो सप्ताह में सिर्फ एक दिन यहाँ रेस होती है। लेकिन जुआ रोज़ खेला जाता है।</p>

देश के प्रधानमंत्री के घर के ठीक सामने एक रेस कोर्स है। आप सोचते होंगे कि वहाँ घोड़े दौड़ते होंगे और लोग घुड़दौड़ का लुत्फ़ उठाते होंगे। नहीं। इस रेस क्लब में मुख्यतः सट्टेबाज़ी होती है, जुआ खेला जाता है। गैरकानूनी ढंग से लाखों, करोड़ों का धंधा होता है। और जी हाँ, ये सब हमारे प्रधानसेवक, हमारे चौकीदार की नाक के नीचे। मई से लेकर जुलाई तक यहाँ कोई रेस नहीं होती। और जब अगस्त महीने से रेस शुरू भी होती है तो सप्ताह में सिर्फ एक दिन यहाँ रेस होती है। लेकिन जुआ रोज़ खेला जाता है।

वैसे, ये मामला सिर्फ घुड़दौड़ की आड़ में सट्टेबाज़ी तक सीमित नहीं है। मामला इससे कहीं ज़्यादा गंभीर है। 1911 में जब अंग्रेजों ने दिल्ली को अपनी नयी राजधानी बनाने का निर्णय किया तो दो गाँव चिन्हित किये – मालचा और रायसीन्हा। इन्ही दोनों गाँव को ख़त्म करके आज की नयी दिल्ली या ल्यूटीयंस ज़ोन बनायी गयी है। मालचा के लोगों ने जब अधिग्रहण का विरोध किया तो उन्हें मार पीट कर भगा दिया गया। ये वही गाँव है जहां के 33 लोगों को अंग्रेजों ने स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में मौत के घाट उतार दिया। मालचा गाँव से विस्थापित हुए लोग सोनीपत के पास रहने लगे। आज उस जगह को मालचा-पट्टी कहते हैं।

गाँववालों को कहा गया कि मात्र 24 रूपये प्रति एकड़ मुवावजा दिया जायेगा लेकिन ज़्यादातर लोगों को ये भी नहीं मिला। ज़मीन यह कह कर छीनी गयी थी कि यहां कोई सार्वजनिक हित का काम होगा। लेकिन अधिग्रहण के बाद यह दिल्ली जिमखाना क्लब को दे दिया गया। दिल्ली जिमखाना क्लब आगे चलकर दिल्ली रेस क्लब बन गया। वही दिल्ली रेस क्लब जो राष्ट्रीय राजधानी के ठीक बीच, प्रधानमंत्री के घर के ठीक सामने जुवे का अड्डा चलाता है। दिली रेस क्लब एक प्राइवेट कंपनी है जिसको मालचा गाँव की सरकारी ज़मीन लीज़ पर दी गयी थी। मज़ेदार बात है कि ये लीज़ भी 1998 में ख़त्म हो चुकी है। मतलब कि पिछले 17 सालों से ज़मीन का अवैध कब्ज़ा करके यहाँ ये गोरखधंधा चल रहा है। इनको कोई रोकने टोकने वाला नहीं है क्योंकि इनकी सांठगांठ देश के बड़े से बड़े नेताओं के साथ है।

रेस क्लब में जाने के लिए 60 रूपये का टिकट लगता है लेकिन अगर आप मोबाइल फोन लेकर जायेंगे तो टिकट की कीमत 4000 रूपये हो जाती है। हर दिन यहाँ लाखों का मुनाफा होता है और जमके टैक्स चोरी होती है। बड़ी रकम का जुआ कोरे कागज़ पर खेला जाता है। ये सारा पैसा देश का कालाधन है जिसको लाने की बात मोदी जी रोज़ करते हैं। 1991 से लगातार एक ही व्यक्ति इस रेस क्लब के अध्यक्ष चुने जा रहे हैं। हर सदस्य और क्लब का हर कर्मचारी उनको गालियां देता है लेकिन चुनाव हर साल पी एस बेदी ही जीतते हैं। धांधली और भ्रष्टाचार के जरिये प्रॉक्सी इलेक्शन करवाये जाते हैं। यही बेदी साब दिल्ली के चेम्सफोर्ड क्लब जैसे अन्य कई क्लबों के भी प्रेसिडेंट हैं।

कर्मचारियों का शोषण ऐसा होता है कि जिन मज़दूरों की रोज़ी रोटी सीधे तौर पर इस रेस क्लब से जुडी है, वो भी भगवान से मानते हैं कि ये अड्डा ख़त्म हो जाए। स्वराज अभियान ने इन गंभीर सवालों को उठाते हुए रेस कोर्स पर प्रदर्शन किया। आज हमारे देश में सार्वजनिक हित के नाम पर ज़मीन अधिग्रहण करने के लिए नए नए कानून बनाने की कोशिश हो रही है। अपने आँखों के सामने की ज़मीन जिस प्रधानमंत्री को नहीं दिखती वो किसानों की उपजाऊ ज़मीन छीनने का कार्यक्रम बना रहा है।

रेस कोर्स का ये क्षेत्र बहुत ही हाई सेक्यूरिटी ज़ोन है। पुलिस और प्रशासन को हमने कोई खबर नहीं लगने दी और एक फ़्लैश-मॉब की तरफ वहां इक्कट्ठे हो गए। ये तस्वीर उस वक़्त की है, जब हम शान्तिपूर्वक प्रदर्शन ख़त्म कर वापस आ रहे थे। 10 अगस्त को देश भर से जय किसान रैली के लिए लोग इक्कट्ठा हो रहे हैं। हमने सरकार को 9 अगस्त की शाम तक का समय दिया है। देखते हैं हमारी सरकार क्या करती है।

अनुपम के एफबी वाल से.

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