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प्रदेश

आरक्षण विवाद पर हरियाणा के मुख्यमंत्री को योगेन्द्र यादव का एक रचनात्मक सुझाव

25 मार्च 2016
 
श्री मनोहर लाल
मुख्यमंत्री, हरियाणा सरकार
चंडीगढ़

विषय : “जाट आरक्षण” के सवाल पर एक रचनात्मक सुझाव

आदरणीय मनोहर लाल जी,

1. इस पत्र के माध्यम से मैं आपको प्रदेश के एक महत्वपूर्ण, कठिन और नाजुक सवाल पर अपना सुझाव दे रहा हूं। पिछले दिनों सद्भाव मंच के साथियों के साथ मैंने प्रदेश के सभी हिंसा प्रभावित इलाकों की यात्रा की, सभी पक्षों से बात की। इस यात्रा के अनुभव से मुझे लगता है कि “जाट आरक्षण” के पक्ष और विपक्ष में खड़े लोगों का आग्रह अभी बहुत तीखा है। इस सवाल पर जातीय गोलबंदी हो रही है। प्रदेश में पहले ही बहुत जातीय तनाव है। मुझे चिंता है कि यदि इस मुद्दे को सही तरीके से न सुलझाया गया तो प्रदेश में सामाजिक द्वेष बढ़ सकता है। इसलिए मैं आपके सामने एक रचनात्मक प्रस्ताव रखना चाहता हूं जो तर्कसंगत और न्यायसंगत है और जो सभी पक्षों को मान्य हो सकता है। प्रस्ताव का मूल विचार नीचे बिंदु 8 में है, पहले उसका तर्क और बाद में उसका विस्तृत निरूपण है। 

<p>25 मार्च 2016 <br /> <br />श्री मनोहर लाल<br />मुख्यमंत्री, हरियाणा सरकार<br />चंडीगढ़</p> <p>विषय : "जाट आरक्षण" के सवाल पर एक रचनात्मक सुझाव</p> <p>आदरणीय मनोहर लाल जी,</p> <p>1. इस पत्र के माध्यम से मैं आपको प्रदेश के एक महत्वपूर्ण, कठिन और नाजुक सवाल पर अपना सुझाव दे रहा हूं। पिछले दिनों सद्भाव मंच के साथियों के साथ मैंने प्रदेश के सभी हिंसा प्रभावित इलाकों की यात्रा की, सभी पक्षों से बात की। इस यात्रा के अनुभव से मुझे लगता है कि "जाट आरक्षण" के पक्ष और विपक्ष में खड़े लोगों का आग्रह अभी बहुत तीखा है। इस सवाल पर जातीय गोलबंदी हो रही है। प्रदेश में पहले ही बहुत जातीय तनाव है। मुझे चिंता है कि यदि इस मुद्दे को सही तरीके से न सुलझाया गया तो प्रदेश में सामाजिक द्वेष बढ़ सकता है। इसलिए मैं आपके सामने एक रचनात्मक प्रस्ताव रखना चाहता हूं जो तर्कसंगत और न्यायसंगत है और जो सभी पक्षों को मान्य हो सकता है। प्रस्ताव का मूल विचार नीचे बिंदु 8 में है, पहले उसका तर्क और बाद में उसका विस्तृत निरूपण है। </p>

25 मार्च 2016
 
श्री मनोहर लाल
मुख्यमंत्री, हरियाणा सरकार
चंडीगढ़

विषय : “जाट आरक्षण” के सवाल पर एक रचनात्मक सुझाव

आदरणीय मनोहर लाल जी,

1. इस पत्र के माध्यम से मैं आपको प्रदेश के एक महत्वपूर्ण, कठिन और नाजुक सवाल पर अपना सुझाव दे रहा हूं। पिछले दिनों सद्भाव मंच के साथियों के साथ मैंने प्रदेश के सभी हिंसा प्रभावित इलाकों की यात्रा की, सभी पक्षों से बात की। इस यात्रा के अनुभव से मुझे लगता है कि “जाट आरक्षण” के पक्ष और विपक्ष में खड़े लोगों का आग्रह अभी बहुत तीखा है। इस सवाल पर जातीय गोलबंदी हो रही है। प्रदेश में पहले ही बहुत जातीय तनाव है। मुझे चिंता है कि यदि इस मुद्दे को सही तरीके से न सुलझाया गया तो प्रदेश में सामाजिक द्वेष बढ़ सकता है। इसलिए मैं आपके सामने एक रचनात्मक प्रस्ताव रखना चाहता हूं जो तर्कसंगत और न्यायसंगत है और जो सभी पक्षों को मान्य हो सकता है। प्रस्ताव का मूल विचार नीचे बिंदु 8 में है, पहले उसका तर्क और बाद में उसका विस्तृत निरूपण है। 

2. पिछले महीने जाट आरक्षण की मांग को लेकर हुए आंदोलन और व्यापक हिंसा के बाद आपकी सरकार ने यह घोषणा की थी कि जाट आरक्षण की मांग को स्वीकार कर लिया गया है। मीडिया में जो रिपोर्ट आ रही है, उसके अनुसार आपकी सरकार जाट समुदाय को आरक्षण देने के अलग-अलग फॉर्मूलों पर विचार कर रही है। एक फॉर्मूला राज्य की पिछड़े वर्ग “बी” सूची में जाट सहित पांच जातियों को शामिल करना है। दूसरा फॉर्मूला 2013 की तरह एक विशेष पिछड़ा वर्ग “सी” सूची बनाकर पांचो जातियों को शामिल करना है। तीसरा फॉर्मूला आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग के आरक्षण में जाट समुदाय के लिए कुछ हिस्सा सुनिश्चित करना है।
 
3. जैसा कि आप जानते हैं, ऐसे फैसले पहले भी हो चुके हैं।  लेकिन यह बार-बार न्यायपालिका द्वारा रद्द किए गए हैं। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट का नवीनतम फैसला  (राम सिंह और अन्य बनाम भारत सरकार, 274/2014, दिनांक 17 मार्च 2015) सबसे महत्त्वपूर्ण है। इसका सीधा संबंध हरियाणा में जाट समुदाय को आरक्षण देने के केंद्र सरकार के निर्णय से है। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार की 4-3-2014 की उस अधिसूचना को अवैध घोषित कर दिया, जिसमें जाट समुदाय को हरियाणा सहित कई राज्यों में सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़े वर्ग की केंद्रीय सूची में शामिल किया गया था। इस फैसले का सीधा संबंध हरियाणा सरकार की  24 जनवरी 2013 की उस अधिसूचना से भी है, जिसमें जाट और अन्य चार जातियों को विशेष पिछड़ा वर्ग का दर्जा देकर सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में हरियाणा सरकार की गुप्ता आयोग की 2012 की रिपोर्ट को खारिज कर दिया गया है (पैरा-52)। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के इस निष्कर्ष को स्वीकार किया है कि हरियाणा में गुप्ता आयोग के निष्कर्ष और कसौटियां और सांगवान समिति के आंकड़े अधूरे, अप्रासंगिक या संदेहास्पद हैं (पैरा-30, 33, 34 और 52)। सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले के बाद पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने भी हरियाणा सरकार के 24-1-2013 के आदेश पर रोक लगा दी थी।  अगर अब हरियाणा सरकार बिना किसी नए प्रमाण के जाट समुदाय को आरक्षण देती है तो पूरी सम्भावना है कि यह आदेश भी कोर्ट द्वारा रद्द कर दिया जाएगा। स्वाभाविक है कि ऐसे में जाट आरक्षण के समर्थकों को लगेगा कि उनके साथ एक बार फिर धोखा हुआ है।
 
4. अगर हरियाणा सरकार जाट व अन्य समुदायों के लिए एक नई सूची बनाकर उन्हें वर्तमान आरक्षण से ऊपर आरक्षण देती है तो उससे सुप्रीम कोर्ट द्वारा हर किस्म के आरक्षण पर लगाई 50 प्रतिशत की सीमा (इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार, 1992, पैरा 94A ) का उल्लंघन होगा। पहले तमिलनाडु जैसे राज्यों ने आरक्षण के कानून को नौवीं अनुसूची में डालकर इस सीमा से ज्यादा आरक्षण था, लेकिन 1992 के निर्णय के बाद यह संभव नहीं होगा। तमिलनाडु का मामला भी फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के सामने है।
 
5.  केवल एक या कुछेक जातियों के बारे में अलग से कोई भी निर्णय लेने से यह मामला नहीं सुलझेगा। जाट आरक्षण आंदोलन ने बार-बार यह प्रश्न उठाया है कि अन्य समकक्ष खेतिहर जातियों को राज्य में आरक्षण का लाभ मिल रहा है, तो उन्हें वंचित क्यों किया जा रहा है? इस प्रश्न का तर्कसंगत उत्तर मिलना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के नवीनतम फैसले ने भी राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की इस दलील को स्वीकार किया है कि गुप्ता आयोग ने अन्य समतुल्य जातियों (जैसे अहीर, कुर्मी, गुर्जर) से संबंधित आंकड़े प्रस्तुत नहीं किए। यानि कि राज्य सरकार को जाट आरक्षण संबंधी कोई भी फैसला लेते वक्त अन्य समतुल्य जातियों संबंधित आंकड़े और प्रमाण भी जुटाने होंगे। यूं भी इंदिरा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट यह निर्देश दे चुका है कि आरक्षण का लाभ पाने वाले पिछड़े वर्गों की सूची की हर दस साल बाद पूरी समीक्षा होनी चाहिए। बीस साल बाद भी यह समीक्षा केंद्र और राज्य स्तर पर होनी बाकी है।
 
6. अगर कानूनी पेंच को छोड़ भी दें तो भी राज्य सरकार के लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि उसके निर्णय से पूरे प्रदेश में एक गलत संदेश न जाए। पिछले महीने इस सवाल पर हुए उग्र आंदोलन और उसके बाद पूरे राज्य में व्यापक हिंसा के एकदम बाद यदि सरकार यह फैसला लेती है तो यह न्यायपरक निर्णय नहीं बल्कि राजनीति के गणित और मजबूरी का निर्णय माना जाएगा। इससे राज्य में जातीय तनाव और गहरा होगा। यह सन्देश भी जायेगा कि भविष्य में हर वर्ग और समुदाय को अपनी मांग मनवाने के लिए यही रास्ता अपनाना पड़ेगा। इससे केवल आपकी सरकार का ही नहीं, आने वाली हर सरकार का काम कठिन होगा। 
 
7. इसलिए यह जरूरी है कि इस संवेदनशील और महत्वपूर्ण सवाल पर जल्दबाजी और तात्कालिक दबाव में ऐसा निर्णय न लिया जाए जो न तो कोर्ट में टिक सकेगा और सामाजिक सौहार्द को भी बिगाड़ेगा। इस मुद्दे पर एक ऐसा दूरगामी निर्णय लेने की जरूरत है जो वस्तुनिष्ट और पारदर्शी होने के साथ-साथ कोर्ट द्वारा तय की गई मर्यादा के अनुरूप हो। यह तभी हो सकता है अगर यह निर्णय :-
(क) राज्य सरकार द्वारा अब तक के आदेशों में इस्तेमाल किए गए प्रमाण (गुरनाम सिंह आयोग, गुप्ता आयोग, सांगवान समिति) से इतर किसी नए और प्रमाणिक आंकड़ों पर आधारित हो।
(ख) यह आंकड़े केवल आरक्षण के लिए प्रस्तावित जातियों के बारे में ही नहीं बल्कि अन्य समतुल्य जातियों के बारे में भी पेश किए जाएं।
(ग) यह आंकड़े सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन की निर्धारित कसौटियों के अनुरूप हों।
्(घ) आरक्षण की प्रस्तावित व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन न करे।
 
8. इन सब बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए मैं आपके सामने एक वैकल्पिक प्रस्ताव रखना चाहता हूं। मेरा सुझाव है कि हरियाणा सरकार 2011 की सामाजिक-आर्थिक और जातीय जनगणना के आंकड़ों के आधार पर पिछड़े वर्ग की सभी सूचियों की समीक्षा करे। इस समीक्षा के आधार पर पिछड़े वर्ग की दोनों सूचियों “ए” और “बी” को नए सिरे से बनाया जाए। इस तरह नए और विश्वसनीय आंकड़ों तथा कानून सम्मत कसौटियों के आधार पर केवल जाट ही नहीं सभी गैर-अनुसूचित जाति-समुदायों के पिछड़े वर्ग के तहत आरक्षण के दावों का एक ही बार में निपटारा कर दिया जाय।
 
9. सन् 2011 की जनगणना के साथ-साथ एक विशेष सामाजिक-आर्थिक और जातीय जनगणना भी हुई थी, जिसके आंकड़े आने शुरू हो चुके हैं। इस जनगणना के फलस्वरूप केंद्र सरकार के पास पहली बार हर जाति की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति के बारे में प्रमाणिक आंकड़े उपलब्ध हैं। यह आंकड़े प्रमाणिक हैं और इन्हे स्वीकार करने में कोर्ट को भी कोई एतराज़ नहीं हो सकता। इसके आधार पर लिए गए निर्णय को हर पक्ष स्वीकार कर सकता है। अगर राज्य सरकार चाहे तो वह इस जनगणना से प्रदेश में हर जाति-समुदाय के बारे में निम्नलिखित आंकड़े प्राप्त कर सकती है:
(i) किसी जाति के कितने प्रतिशत परिवार शारीरिक श्रम (खेती और मजदूरी) से आजीविका कमाते हैं?
(ii) किसी जाति के कितने प्रतिशत परिवार भीख मांगने जैसे हेय समझे जाने वाले काम करते हैं?
(iii) किसी जाति में कितने प्रतिशत महिलाओं की शादी 18 वर्ष से पहले हो जाती है?
(iv) किसी जाति के कितने प्रतिशत बच्चे (5 से 15 वर्ष) स्कूल से बाहर हैं या पढाई छोड़ रहे है?
(v) किसी जाति के कितने प्रतिशत व्यक्ति दसवीं पास और स्नातक या उससे अधिक पढ़े हैं?
(vi) किसी जाति के परिवारों की औसत चल-अचल संपत्ति (मकान, जमीन, वाहन आदि) कितनी है?
(vii ) किसी जाति के कितने प्रतिशत परिवारों में कम से कम एक व्यक्ति को सरकारी/सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरी मिली है?
इन आंकड़ों के आधार पर राज्य सरकार पिछड़ेपन का एक समग्र सूचकांक (कंप्रीहेंसिव इंडेक्स) बना सकती है। इस इंडेक्स के द्वारा हर जाति समुदाय के पिछड़ेपन को एक वस्तुनिष्ट तरीके से मापा जा सकता है।
 
10. इस सूचकांक के आधार पर राज्य की सभी गैर-अनुसूचित जातियां को चार वर्गों में विभक्त कर उनके लिए अलग-अलग लाभ तय किए जा सकते हैं। (चूंकि अनुसूचित जाति का मामला बिलकुल अलग है इसलिए उसे इस समीक्षा से बाहर रखा जाये)  :-
(क) जो जातियां राज्य की गैर-अनुसूचित जातियों के औसत स्कोर से आधे से भी नीचे हों, उन्हें पिछड़ा वर्ग “ए” श्रेणी के तहत आरक्षण के वर्त्तमान लाभ दिए जायें दिया जाए (क्रीमीलेयर को बाहर रखकर)।
(ख) जो जातियां राज्य की गैर-अनुसूचित जातियों के औसत स्कोर के आधे और तीन चौथाई के बीच में हों (50 प्रतिशत से 74 प्रतिशत के बीच) उन्हें पिछड़ा वर्ग “बी” श्रेणी के तहत आरक्षण  वर्त्तमान लाभ दिए जाए (क्रीमीलेयर को बाहर रखकर)।
(ग) जो जातियां राज्य की गैर-अनुसूचित जातियों के औसत स्कोर से नीचे पर तीन चौथाई से ऊपर (75 प्रतिशत से 99 प्रतिशत तक) हों उन्हें सामान्य “ए” श्रेणी में रखा जाए। उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा, लेकिन सरकार उनके पिछड़ेपन को दूर करने के लिए छात्रवृत्ति, फीसमाफी, लोन और प्रतियोगताओं के लिए ट्रेनिंग जैसी योजनाए बनाएगी।
(घ) जो जातियां राज्य की गैर-अनुसूचित जातियों के औसत स्कोर के बराबर या उससे ऊपर हों, उन्हें सामान्य “बी” वर्ग में रखा जाए। उन्हें पिछड़ेपन का कोई लाभ नहीं मिलेगा, लेकिन उनमें से गरीब परिवारों को आर्थिक पिछड़ेपन संबंधी योजनाओं का लाभ मिलेगा।
उदाहरण: मान लीजिए उपरोक्त आंकड़ों के आधार पर अधिकतम 100 अंक का सूचकांक बनता है। मान ले कि इस आधार पर अनुसूचित जाति के परिवारों को छोड़कर राज्य के बाकी परिवारों का औसत स्कोर 52 बनता है। ऐसे में जिस जाति के सभी परिवारों का औसत सूचकांक 25 या उससे कम है उसे पिछड़ा वर्ग “ए” में, जिस जाति के सभी परिवारों का औसत सूचकांक 26 से 38 है उसे पिछड़ा वर्ग “बी” में, जिस जाति के सभी परिवारों का औसत सूचकांक 39 से 51 है उसे सामान्य वर्ग “ए” में और जिस जाति के सभी परिवारों का औसत सूचकांक 52 या उससे अधिक है उसे सामान्य वर्ग “बी” में रखा जायेगा।
 
11. आंकड़ों के विश्लेषण, सूचकांक निर्माण और वर्गीकरण का काम राज्य के बाहर के संस्थान (जैसे-भारतीय समाज विज्ञान शोध संस्थान) को सुपुर्द किया जा सकता है ताकि इस प्रक्रिया की विश्वसनीयता बनी रहे। इन सारे आंकड़ों और पूरी प्रक्रिया को सार्वजनिक करने से इस बारे में संदेह नहीं बचेगा।
 
12. आशा करता हूं कि आप मेरे इस रचनात्मक सुझाव को अनाधिकार चेष्टा न मानेंगे और इस पर गौर करेंगे। हरियाणा बहुत नाजुक दौर से गुजर रहा है। पिछले महीने की हिंसा में जान-माल के साथ-साथ प्रदेश की छवि और सौहार्द को बहुत नुकसान हुआ है। सरकार और राजनेताओं की विश्वसनीयता बहुत गिरी है। पूरे प्रदेश को पैंतीस-एक में बांटने की कोशिश हो रही है। ऐसे में आरक्षण के सवाल पर नासमझी या जल्दबाजी में लिया गया कोई भी फैसला पूरे प्रदेश को दूरगामी नुकसान कर सकता है। आशा है आपकी सरकार ऐसे मोड़ पर पूरे राज्य के हित में ऐसा फैसला लेगी जो न्यायसंगत हो और जिसे जाट आरक्षण के समर्थक और विरोधी दोनों एक निष्पक्ष फैसले की तरह स्वीकार करें।
 
ऐसे किसी भी प्रयासों में मैं आपका सहयोग करने को तत्पर रहूंगा।
 
सादर
आपका
योगेन्द्र यादव

Swaraj Abhiyan
A-189, Sec-43, Noida UP
swarajabhiyan.org
[email protected] / +91-7210222333

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