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ढेर सारी नसीहत और हिदायत देते हुए हाईकोर्ट की पीठ ने अंग्रेजी दैनिक के पत्रकार के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही को रद्द कर दिया

शिमला । हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय की एक पीठ ने कहा कि पत्रकारों को अदालतों की कार्यवाही की रिपोर्ट पेश करने के मामले में अतिरिक्त सावधानियां रखनी चाहिए। न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति सुरेश्वर ठाकुर की एक पीठ ने अपने आदेश को गलत ढंग से पेश करने के लिए एक अंग्रेजी दैनिक के पत्रकार के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही को रद्द कर दिया है। पीठ ने यह कहते हुए कि ‘कलम की ताकत, तलवार की ताकत से अधिक होती है’, आगे कहा कि रिपोर्टिंग त्रुटि रहित, वास्तविक और तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए।

बुधवार को दिए गए 63 पन्नों के फैसले में कहा गया, “सच्चाई और महत्वपूर्ण तथ्यों तक पहुंचने के लिए यह वस्तुनिष्ठ और व्याख्यात्मक होनी चाहिए। पत्रकार के विचार बिना किसी पूर्वाग्रह के होने चाहिए और अभिव्यक्ति में स्पष्टता होनी चाहिए।” अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि कार्यवाही को गलत ढंग से पेश करने से बचने के लिए जरूरी है कि अदालती कार्यवाही की रिपोर्टिग केवल कानूनी पृष्ठभूमि वाले पत्रकारों ही करें। पीठ ने एक समाचार रिपोर्ट पर स्वत: संज्ञान लिया, जिसमें कहा गया था कि न्यायाधीश राज्य की राजधानी की सील्ड सड़कों का उपयोग करने के हकदार थे। न्यायधीशों ने मीडिया को प्रजातंत्र की चौथा स्तंभ बताया।

अदालत ने कानून के मानवीय पहलू को भी दर्शाते हुए पत्रकारों की सेवा स्थिति में सुधार के लिए राज्य सरकार से एक कल्याणकारी योजना तैयार करने की सिफारिश की और सक्रिय पत्रकारिता के क्षेत्र में 20-25 साल बिता चुके पत्रकारों को पेंशन का भुगतान करने के लिए एक कोष स्थापित करने को भी कहा। आंध्र प्रदेश, ओडिशा और उत्तर प्रदेश सरकारों द्वारा शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं का उद्धरण देते हुए न्यायधीशों ने कहा कि इस राज्य में एक सेवानिवृत्त पत्रकार को पेंशन के रूप में केवल 4,000 से 5,000 रुपये की अल्प राशि ही मिलती है। न्यायधीशों ने कहा, “हम राज्य को काम करे पत्रकारों के लिए तीन महीनों के भीतर ही निधि नियम बनाने की सलाह देते हैं।”

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