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दुख-सुख

राहुल बाबा और बावरे कांग्रेसी

कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी महू से अपना दलित एजेंडा देश को आज बता रहे हैं. लोकसभा से लेकर तमाम विधानसभा के चुनावों में इन्हीं राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को अपने इतिहास की सबसे शर्मनाक पराजयों का सामना करना पड़ा है. कांग्रेस को लेकिन नेहरू और गांधी परिवार का ही कोई चेहरा चाहिए ताकि वह एकजुटता का प्रदर्शन तो कर ही सके, वहीं बिखरने से भी बच सके.  दरअसल कांग्रेस के साथ दिक्कत यह है कि उसका कभी भी पार्टी और संगठन में भरोसा नहीं रहा.  भाजपा जहां कैडर बेस पार्टी रही है, वहीं उस पर संघ का भी जबरदस्त नियंत्रण और निर्देशन रहा है.मगर कांग्रेस में सब कुछ आलाकमान के ईर्द-गिर्द ही सिमटा रहा और ये आलाकमान भी नेहरू-गांधी वंश का ही होना चाहिए. कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में श्रीमती सोनिया गांधी का कार्यकाल भी ठिकठाक ही रहा है मगर दूसरी बार सरकारबनाने के बाद मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस ने अब तक का सबसे बदतर प्रदर्शन किया और तमाम घोटालों में अलग घिरी रही. लोकसभा से लेकर अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस को इसीलिए हार का मुंह देखना पड़ा, क्योंकि उसके पास भाजपा केमुकाबले में कोई भी सशक्त नेतृत्व  नहीं था और आज भी यह संकट कायम है.

<p style="text-align: left;">कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी महू से अपना दलित एजेंडा देश को आज बता रहे हैं. लोकसभा से लेकर तमाम विधानसभा के चुनावों में इन्हीं राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को अपने इतिहास की सबसे शर्मनाक पराजयों का सामना करना पड़ा है. कांग्रेस को लेकिन नेहरू और गांधी परिवार का ही कोई चेहरा चाहिए ताकि वह एकजुटता का प्रदर्शन तो कर ही सके, वहीं बिखरने से भी बच सके.  दरअसल कांग्रेस के साथ दिक्कत यह है कि उसका कभी भी पार्टी और संगठन में भरोसा नहीं रहा.  भाजपा जहां कैडर बेस पार्टी रही है, वहीं उस पर संघ का भी जबरदस्त नियंत्रण और निर्देशन रहा है.मगर कांग्रेस में सब कुछ आलाकमान के ईर्द-गिर्द ही सिमटा रहा और ये आलाकमान भी नेहरू-गांधी वंश का ही होना चाहिए. कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में श्रीमती सोनिया गांधी का कार्यकाल भी ठिकठाक ही रहा है मगर दूसरी बार सरकारबनाने के बाद मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस ने अब तक का सबसे बदतर प्रदर्शन किया और तमाम घोटालों में अलग घिरी रही. लोकसभा से लेकर अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस को इसीलिए हार का मुंह देखना पड़ा, क्योंकि उसके पास भाजपा केमुकाबले में कोई भी सशक्त नेतृत्व  नहीं था और आज भी यह संकट कायम है.</p>

कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी महू से अपना दलित एजेंडा देश को आज बता रहे हैं. लोकसभा से लेकर तमाम विधानसभा के चुनावों में इन्हीं राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को अपने इतिहास की सबसे शर्मनाक पराजयों का सामना करना पड़ा है. कांग्रेस को लेकिन नेहरू और गांधी परिवार का ही कोई चेहरा चाहिए ताकि वह एकजुटता का प्रदर्शन तो कर ही सके, वहीं बिखरने से भी बच सके.  दरअसल कांग्रेस के साथ दिक्कत यह है कि उसका कभी भी पार्टी और संगठन में भरोसा नहीं रहा.  भाजपा जहां कैडर बेस पार्टी रही है, वहीं उस पर संघ का भी जबरदस्त नियंत्रण और निर्देशन रहा है.मगर कांग्रेस में सब कुछ आलाकमान के ईर्द-गिर्द ही सिमटा रहा और ये आलाकमान भी नेहरू-गांधी वंश का ही होना चाहिए. कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में श्रीमती सोनिया गांधी का कार्यकाल भी ठिकठाक ही रहा है मगर दूसरी बार सरकारबनाने के बाद मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस ने अब तक का सबसे बदतर प्रदर्शन किया और तमाम घोटालों में अलग घिरी रही. लोकसभा से लेकर अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस को इसीलिए हार का मुंह देखना पड़ा, क्योंकि उसके पास भाजपा केमुकाबले में कोई भी सशक्त नेतृत्व  नहीं था और आज भी यह संकट कायम है.

मेरा स्पष्ट मानना है कि कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी में अभी भी राजनीति की समझ कम है और मुद्दों को उठाने और उन्हें दमदारी से जनता तक पहुंचाने का वैसा माद्दा नहीं है जो भाजपा के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर उनके अन्य आला नेताओं में नजर आता है. दरअसल भाजपा पूरी ताकत और रणनीति के साथ चुनाव लड़ती रही है, जिसमें उसकी आक्रामक मार्केटिंग खास रही. यही कारण है कि अभी साल भर पूरा करने वाली मोदी सरकार ने पब्लिसिटी के मोर्चे पर कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी और अच्छे दिन भले ही ना आए हों मगर इसका एहसास करवाने में मोदी सरकार ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है, जबकि तमाम मोर्चों और मुद्दों पर मोदी सरकार को बेहतर तरीके से घेरा जा सकता था, मगर कांग्रेस के पास उस चातुर्य का ही अभाव है. सिर्फ भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर ही कांग्रेस आंदोलन चला रही है और उसे यह मुगालता है कि भाजपा को वह गरीब और किसान विरोधी बताकर अगले चुनावों में वापसी कर लेगी. लम्बी छुट्टियों के बाद जब राहुल गांधी लौटे तो उन्होंने भी भूमि अधिग्रहण के मामले में ही संसद से सड़क तक सबसे ज्यादा हमले बोले. मगर महंगाई सहित अन्य तमाम मुद्दों पर उनकी दमदारी से बात जनता तक नहीं पहुंच सकी है.

ऐसा लगता है कि राहुल गांधी उस खिलौने की तरह हैं जिसमें जितनी चाबी भरी जाए वह उतना ही चलता है. छुट्टियों के बीच उन्होंने जितना अध्ययन किया या विशेषज्ञों ने समझाया, उतना ही प्रदर्शन उनका सामने आया है, लेकिन अन्य तमाम मुद्दों पर वे अभी तक खामोश ही हैं और बीच-बीच में नदारद भी हो जाते हैं. जबकि मोदी सहित पूरी भाजपा लगातार और सिर्फ और सिर्फ बोल ही रही है… भले ही भाषणों और प्रचारों का ओवरडोज हो गया हो, मगर किसी भी मामले में भाजपाई प्रचार-प्रसार के मामले में पीछे नहीं रहते. गरीब किसान के साथ कांग्रेस का जो दलित प्रेम जागा है उसके राजनीतिक फायदे क्या मिलेंगे यह तो चुनावों में ही पता चलेगा. अभी तो सामने सबसे पहले बिहार का चुनाव है, जिसमें मोदी सरकार के साथ-साथ राहुल और उनकी पार्टी कांग्रेस का भी एसिड टेस्ट होना है. फिलहाल तो सारे कांग्रेसी बावरे हो गए हैं और सिर्फ राहुल बाबा की ही माला जप रहे हैं. लेकिन जब तक राहुल गांधी खुद अपने आपको तैयार नहीं करते और हर मुद्दों पर बेबाकी से नहीं बोलते तब तक वे हाशिए पर पड़ी कांग्रेस को मुख्य धारा में नहीं ला सकते. शिवसेना का यह कहना सही भी लगता है कि 100 राहुल गांधी भी मिलकर मोदी का मुकाबला नहीं कर सकते. राहुल गांधी से तो कई गुना अधिक मुद्दों की समझ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल में है. यह बात अलग है कि बाजारू मीडिया जो सालों तक कांग्रेस की भटैती करता रहा और अब भाजपा की करने में जुटा है, उसने केजरीवाल के खिलाफ षड्यंत्रपूर्वक अभियान चलाया हुआ है और राजनीति की कम समझ वाले राहुल गांधी को इसी मीडिया, खासकर न्यूज चैनलों ने इस तरह प्रस्तुत किया मानों कांग्रेस को ऐसा अवतार मिल गया हो, जो उसके सारे दुर्दिन दूर कर देगा. नितिन गडकरी का इस मामले में एक बयान काबिल-ए-गौर भी है, जिसमें उन्होंने कहा कि मीडिया को मोदीजी का विरोध दिखाना है इसलिए वे राहुल गांधी को तवज्जो दे रहे हैं और कांग्रेसियों की हालत तो ऐसी है जैसे हम घर-परिवार में किसी छोटे बच्चे के पहले घुटनों पर और फिर पैरों पर चलने के वक्त खुश होकर कहते हैं कि बाबा चला, बाबा बैठा या बाबा मुस्कुराया. ठीक यही स्थिति इन दिनों राहुल का गुणगान कर रहे कांग्रेसियों की भी है. अब देखना यह है कि राहुल गांधी क्या वाकई कांग्रेस का कायाकल्प कर सकते हैं या फिर हर बार की तरह वे राजनीति की अखिल भारतीय फिल्म में मेहमान कलाकार की तरह भूमिका में ही नजर आते रहेंगे?

लेखक राजेश ज्वेल इंदौर के हिंदी सांध्य दैनिक अग्निबाण में विशेष संवादाता के पद पर कार्यरत हैं. उनसे संपर्क उनके मोबाइल नंबर +919827020830 के जरिए किया जा सकता है.

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