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बचाव के लिये धर्म-जाति की बिसात बिछाता “रंगा कामरेड”

असली कामरेड का जाति-धर्म तो हक और इन्साफ दिलाने की लड़ाई होती है लेकिन “रंगे सियार” की तरह “रंगा कामरेड” हो तो उसे अपने बचाव के लिये धर्म जाति की सियासत का हथियार चलाने मे भी कोई गुरेज नहीं। इन दिनों लखनऊ बेस्ड तथाकथित राष्ट्रीय स्तर की पत्रकारों की एक ट्रेड यूनियन के मुखिया की तानाशाही को चुनौती देने वालों के सामने एक बड़ी चनौती खड़ी कर दी गयी है। कान्तिकारी पत्रकारों की “फिदायन जोड़ी” कहे जाने वाले इन पत्रकारों के समर्थन में आने वालों को रोकने के लिये कोई भी कसर नहीं छोड़ी जा रही है। पत्रकारों की ट्रेड यूनियन की अनियमितताओ, तानाशाही, बंदरबाट और यहाँ के वन मैन शो के रंग मे भंग डालने वाली इस जोड़ी के इन्कलाबी तेवरो की धार को कुन्द करने के लिये यूपी का सियासी फार्मूला इस्तेमाल किया गया है।

<p>असली कामरेड का जाति-धर्म तो हक और इन्साफ दिलाने की लड़ाई होती है लेकिन "रंगे सियार'' की तरह "रंगा कामरेड" हो तो उसे अपने बचाव के लिये धर्म जाति की सियासत का हथियार चलाने मे भी कोई गुरेज नहीं। इन दिनों लखनऊ बेस्ड तथाकथित राष्ट्रीय स्तर की पत्रकारों की एक ट्रेड यूनियन के मुखिया की तानाशाही को चुनौती देने वालों के सामने एक बड़ी चनौती खड़ी कर दी गयी है। कान्तिकारी पत्रकारों की "फिदायन जोड़ी" कहे जाने वाले इन पत्रकारों के समर्थन में आने वालों को रोकने के लिये कोई भी कसर नहीं छोड़ी जा रही है। पत्रकारों की ट्रेड यूनियन की अनियमितताओ, तानाशाही, बंदरबाट और यहाँ के वन मैन शो के रंग मे भंग डालने वाली इस जोड़ी के इन्कलाबी तेवरो की धार को कुन्द करने के लिये यूपी का सियासी फार्मूला इस्तेमाल किया गया है।</p>

असली कामरेड का जाति-धर्म तो हक और इन्साफ दिलाने की लड़ाई होती है लेकिन “रंगे सियार” की तरह “रंगा कामरेड” हो तो उसे अपने बचाव के लिये धर्म जाति की सियासत का हथियार चलाने मे भी कोई गुरेज नहीं। इन दिनों लखनऊ बेस्ड तथाकथित राष्ट्रीय स्तर की पत्रकारों की एक ट्रेड यूनियन के मुखिया की तानाशाही को चुनौती देने वालों के सामने एक बड़ी चनौती खड़ी कर दी गयी है। कान्तिकारी पत्रकारों की “फिदायन जोड़ी” कहे जाने वाले इन पत्रकारों के समर्थन में आने वालों को रोकने के लिये कोई भी कसर नहीं छोड़ी जा रही है। पत्रकारों की ट्रेड यूनियन की अनियमितताओ, तानाशाही, बंदरबाट और यहाँ के वन मैन शो के रंग मे भंग डालने वाली इस जोड़ी के इन्कलाबी तेवरो की धार को कुन्द करने के लिये यूपी का सियासी फार्मूला इस्तेमाल किया गया है।

 

नकली कामरेड के पास जब कोई रास्ता नही बचा तो उसने अपने सियासी आकाओ की तर्ज पर धर्म और राजनीति की सियासत की गोटे बिछा डाली। इत्तेफाक भी कुछ ऐसा रहा कि क्रान्ति रथ के दोनो पहियों का ताल्लुक अकलियत से है इसलिये इसे पंचर करने के लिये जाति-धर्म के कील-काटा जो मिला उसे इस्तेमाल करने की कोशिश कर डाली। यूनियन की दो फाड़ पर आमादा कभी कामरेड के दोस्त और आज जानी दुश्मन बन चुके एक पत्रकार नेता का मोहरा बताकर इन दोनो विद्रोहियों का प्रभाव कम करने की कोशिश की गयी। इसी चाल के सहारे उस पत्रकार नेता की प्रतिद्वंद्वी समिति को अपने बचाव और समर्थन मे लाकर खडा कर दिया। समिति के पदाधिकारियो को बेईमानी के चुनाव से ओहदे दे दिये। भविष्य मे यूपी की कमान देने की झापक भी दे दी। कामरेड को डर था कि ये दो चिंगारिया दो से चार, चार से सोलह बनकर आग का शोला न बन जाये, इसलिये इसे धर्म और जाति की रेत मे दबा  देने की कोशिश की गयी।

ये इत्तेफाक ही था कि ये दोनो ही क्रान्तिकारी अल्पसंख्यक समुदाय से हैं और इनके सभर्थन की आँधी में आने वाले प्रत्येक धर्म-जाति के पत्रकार शामिल हो रहे थे। इसमें दो चर्चित अल्पसंख्यक पत्रकार इन दोनों के साथ रणनीतिकारों मे शामिल हो गये। इसमें एक तो यूनियन का पदाधिकारी ही था और दूसरा प्रभावशाली किस्म का पत्रकार है।

जिस इत्तेफाक का फायदा उठाते हुए नकली कामरेड ने अपनी “चमचा कैबिनेट” बुलाकर हर किसी धर्म-जाति से जुडे चमचो को अपने अपने धर्म-जाति से जुड़े पत्रकारों को विद्रोहियों का साथ न देने की गुजारिश करने का हुक्म दिया गया। इस बे सिर पैर के मुद्दे को फैलाया गया कि अपर कास्ट के गैर मुस्लिम पत्रकारो के आगे  अल्पसंख्यक व्रग के पत्रकार कोई आह्वान करने की जुर्ररत कैसे कर सकते है।

इब्तेदा भट्टी की तरह गरम इस मद्दे से ही हो चुकी थी। इसके बाद पत्रकार यूनियन के खिलाफ  मुस्लिम पत्रकारों को आगे आने से रोकने की कोशिशे शुरु हुय।  इसके लिये “चिन्दी चोर” कहे जाने वाले एक मस्लिम पत्रकार को काम दिया गया कि वो मुसलमान पत्रकारों के बीच पैगाम दे कि ये जोड़ी एक मुस्लिम विरोधी ब्राह्मण पत्रकार के लिये गंदी सियासत कर रहे है इसलिये कोई मुस्लिम पत्रकार इनके समर्थन मे न आये।

इसके बाद कामरेड ने अपने करीबी क्षत्रिय पत्रकार के जरिये एक दूसरे क्षत्रिय पत्रकार को राष्ट्रीय पार्षद बनाकर और विदेशी दौरो का प्रलोभन देकर अपने पाले मे कर लिया। इसके अलावा एक और नाटिया पत्रकार (जिसका पत्रकारिता मे कोई वजूद नही है। कुबेर में आउट स्कर्ट एरिये का संवादसूत्र रहा और फिर उसके बाद उसने एक अखबार मे  20-22 सौ रुपये पर नौकरी की। फोटोग्राफर के कोटे से मान्यता करवायी) की मदद से  क्षत्रिय पत्रकारों को यूनियन के खिलाफ आन्दोलन से दूर रहने का फरमान चलाया। इसी तरह कायस्थो और ब्राह्मण पत्रकारों मे जाति और हिन्दू-मुस्लिम का मीटर मिलाते हुए  इस बात का एहसास कराने की कोशिश की गयी कि ट्रेड यूनियन के अतिरिक्त अधिकाश पत्रकार संगठनों/समितियों की  असलियत बयाँ करने पत्रकारों को एकजुट करने की क्रान्ति लाने वाले ये पत्रकार मुसलमान है। और लीडरशिप पाने के लिये पत्रकारों का हक दिलवाने का ढोग कर रहे हैं। क्या ब्राह्मण-क्षत्रिय एवं अन्य जातियो के पत्रकार इनके फालोवर/ समर्थक बनने के लिये ही है?

अपनी कुर्सी बचाने के लिये धर्म-जाति की सियासत की गोटे बिछाने वाला ये कामरेड भी इस हद तक चला जायेगा? हक व इन्साफ के हक में और धर्म-जातिवाद के खिलाफ रास्ते पर ही एक सच्चा कामरेड चलता है, फिर तुमने अपना रास्ता क्यो बदल दिया? कामरेड के जवाब की कल्पना को बयाँ करने वाला एक शेर और बात खत्म-

हमारी राह मे काँटे बिछाने वाले क्या जाने।
हमे मंजिल पे जाना है, भले रस्ते बदल डालें।।

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नवेद शिकोह
naved shikoh
[email protected]

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