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दुख-सुख

समान अवसर के लिये समान शिक्षा की जरुरत

लोक कल्याण ही लोकतंत्र का मुख्य उद्देश्य है ! संविधान की प्रस्तावना में भी स्पस्ट किया गया है कि भारत एक सोशलिस्ट सेक्युलर डेमोक्रेटिक रिपब्लिक है ! सरकार का मुख्य कर्तब्य है कि वह संविधान की प्रस्तावना में वर्णित उदेश्य – सामाजिक-आर्थिक न्याय, सामजिक-आर्थिक समानता और सबको समान अवसर सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक कदम उठाये ! आज शिक्षा का व्यापारीकरण हो गया है ! परिवार के  आर्थिक हालत के अनुसार  स्कूल की पांच केटेगरी बन गयी है ! लोअर इनकम ग्रुप, मिडिल इनकम ग्रुप, हायर इनकम ग्रुप और इलीट ग्रुप और सरकारी स्कूल, जहाँ गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीने वाले परिवारों के बच्चे पढ़ते है ! इन सभी स्कूलों की किताबें अलग-2 होती हैं!

<p>लोक कल्याण ही लोकतंत्र का मुख्य उद्देश्य है ! संविधान की प्रस्तावना में भी स्पस्ट किया गया है कि भारत एक सोशलिस्ट सेक्युलर डेमोक्रेटिक रिपब्लिक है ! सरकार का मुख्य कर्तब्य है कि वह संविधान की प्रस्तावना में वर्णित उदेश्य – सामाजिक-आर्थिक न्याय, सामजिक-आर्थिक समानता और सबको समान अवसर सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक कदम उठाये ! आज शिक्षा का व्यापारीकरण हो गया है ! परिवार के  आर्थिक हालत के अनुसार  स्कूल की पांच केटेगरी बन गयी है ! लोअर इनकम ग्रुप, मिडिल इनकम ग्रुप, हायर इनकम ग्रुप और इलीट ग्रुप और सरकारी स्कूल, जहाँ गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीने वाले परिवारों के बच्चे पढ़ते है ! इन सभी स्कूलों की किताबें अलग-2 होती हैं!</p>

लोक कल्याण ही लोकतंत्र का मुख्य उद्देश्य है ! संविधान की प्रस्तावना में भी स्पस्ट किया गया है कि भारत एक सोशलिस्ट सेक्युलर डेमोक्रेटिक रिपब्लिक है ! सरकार का मुख्य कर्तब्य है कि वह संविधान की प्रस्तावना में वर्णित उदेश्य – सामाजिक-आर्थिक न्याय, सामजिक-आर्थिक समानता और सबको समान अवसर सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक कदम उठाये ! आज शिक्षा का व्यापारीकरण हो गया है ! परिवार के  आर्थिक हालत के अनुसार  स्कूल की पांच केटेगरी बन गयी है ! लोअर इनकम ग्रुप, मिडिल इनकम ग्रुप, हायर इनकम ग्रुप और इलीट ग्रुप और सरकारी स्कूल, जहाँ गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीने वाले परिवारों के बच्चे पढ़ते है ! इन सभी स्कूलों की किताबें अलग-2 होती हैं!

स्कूल का इंफ्रास्ट्रक्टर अलग-2 हो, बच्चों का स्कूल ड्रेस अलग-2 हो, यह बात तो समझ आती है लेकिन किताब अलग-2 हो जिसके कारण बच्चों को प्रतियोगी परीक्षाओं में समान अवसर नहीं मिलता है, यह तो संविधान की भावना के खिलाफ है! ऐसी असमान शिक्षा व्यवस्था से आपसी भाईचारा मजबूत नहीं हो सकता है और यह  देश की एकता और अखंडता के लिये भी अच्छा नहीं है ! हमारा संविधान भी समान अवसर और समान शिक्षा की बात करता है लेकिन सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि बाबा साहब के नाम पर वोट मांगने वाले नेता और तथाकथित दलित चिंतक भी संविधान को शत-प्रतिशत लागू करने की मांग कभी नहीं करते हैं ! आज जरुरत है कि देश में 6-14 वर्ष के सभी बच्चों का पाठ्यक्रम एक किया जाये ! आखिर क्या कारण है कि देश की शीर्ष शिक्षण संस्थाओं में भारत विरोधी नारे लग रहे हैं? पहले जवाहर लाल यूनिवर्सिटी फिर हैदराबाद यूनिवर्सिटी उसके बाद जाधवपुर यूनिवर्सिटी और अब कश्मीर स्थित नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी ! आखिर क्या कारण है कि एक पढ़ा लिखा इंजीनियर बाद में यादव सिंह बन जाता है और एक प्रोफेशर भारत विरोधी गतिविधियों में पकड़ा जाता है?  भारत के क्रिकेट मैच हारने पर कई स्थानों पर जश्न क्यों  मनाया जाता है?

इससे एक बात तो स्पस्ट है कि वर्तमान शिक्षा व्यवस्था संविधान की भावनाओं को पूरा करने और भ्रष्टाचार-अपराध-जातिवाद-साम्प्रदायिकता-अलगाववाद को रोकने में असफल साबित हुई है ! अब भारत में भी नैतिक मूल्यों पर आधारित समान शिक्षा प्रणाली लागू करना आवश्यक है ! 2010 में तमिलनाडु यूनिफार्म एजुकेशन एक्ट पास हुआ और 2011 से तमिलनाडु के सभी प्राइवेट और सरकारी स्कूलों में 6-14 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिये यूनिफार्म एजुकेशन सिस्टम लागू है अर्थात बच्चा गरीब हो या अमीर, हिंदू हो या मुसलमान, सिख हो या ईसाई, प्राइवेट स्कूल में पढ़ता हो या सरकारी स्कूल में, सभी बच्चों को समान स्लेबस पढ़ाया जाता है ! कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से कामरूप तक देश के सभी केंद्रीय विद्यालय और नवोदय विद्यालय में यूनिफार्म एजुकेशन (समान शिक्षा) लागू है और सभी बच्चों को समान स्लेबस पढ़ाया जाता है ! केंद्रीय विद्यालय और नवोदय विद्यालय में तो स्कूल ड्रेस भी कॉमन होती है ! रिसर्च के अनुसार 14 वर्ष की उम्र तक बच्चा सबसे अधिक सीखता है इसीलिये चीन-जापान-फ्रांस सहित दुनिया के कई देशों में 6-14 वर्ष के बच्चों को नैतिक मूल्यों पर आधारित यूनिफार्म एजुकेशन (समान शिक्षा) दी जाती है अर्थात 6-14 वर्ष तक के सभी बच्चों का स्लेबस समान होता है ! भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (अ) के अनुसार शिक्षा का अधिकार 6-14 वर्ष तक के सभी बच्चों का फंडामेंटल राईट है और फंडामेंटल राईट सबके लिये समान होता है इसलिये देश में यूनिफार्म एजुकेशन (वन नेशन वन एजुकेशन) लागू होना चाहिये ! यूनिफार्म एजुकेशन अर्थात समान शिक्षा लागू होने से सभी बच्चों को समान अवसर मिलेगा,
जातिवाद-सम्प्रदायवाद-अलगाववाद-क्षेत्रवाद-भाषावाद कम होगा, ऊंच-नीच की भावना कम होगी, आपसी भाईचारा बढ़ेगा तथा देश मजबूत होगा !  बाबा साहब अम्बेडकर, दीनदयाल उपाध्याय, राम मनोहर लोहिया और महात्मा गांधी भारत में समता-युक्त, शोषण-मुक्त, एकीकृत समाज की स्थापना करना चाहते थे ! हमारे संविधान की मूल भावना भी यही है ! इसको और अधिक  स्पस्ट करने के लिये संविधान में संशोधन किया गया और संविधान की प्रस्तावना में तीन नये शब्द जोड़े गये – सोशलिस्ट, सेक्युलर और इंटीग्रिटी ! संविधान की प्रस्तावना में स्पस्ट किया गया है कि सबको समान अवसर मिलना चाहिये ! क्या भारत में सभी बच्चों को समान अवसर मिलता है? क्या असमान  शिक्षा के द्वारा समान अवसर उपलब्ध कराना संभव है? समता मूलक समाज की स्थापना के लिये यह आवश्यक है कि सभी बच्चों को समान अवसर मिले और सभी बच्चों को समान अवसर उपलब्ध कराने के लिये स्कूल का पाठ्यक्रम समान होना चाहिये ! शिक्षा का अधिकार 6-14 वर्ष के बच्चों का मूलभूत अधिकार है ! मूलभूत अधिकार देश के सभी बच्चों के लिए समान होता है, चाहे वह गरीब हो या अमीर, हिंदू हो या मुसलमान, सिख हो या ईसाई, सरकारी स्कूल में पढ़ता हो या प्राइवेट स्कूल में ! यदि हम संविधान के अनुच्छेद 21(अ) को अनुच्छेद 14 और 15 के साथ पढ़े तो यह बिलकुल स्पस्ट है कि 6-14 वर्ष के बच्चों का स्कूल पाठ्यक्रम समान होना चाहिये लेकिन तमिलनाडु को छोड़कर किसी अन्य राज्य ने इसे आजतक लागू नहीं किया !

प्रश्न यह है कि यदि तमिलनाडु में समान शिक्षा पद्धति सफलता पूर्वक लागू हो सकती है तो पूरे देश में क्यों नहीं? जनसंघ के संस्थापक श्यामाप्रसाद मुखर्जी और बाबासाहब अम्बेडकर में कई समानता  है ! दोनों ने विदेश में कानून की पढाई किया था, दोनों संविधान सभा में थे और भारतीय संविधान के निर्माण में अतुलनीय योगदान दिया, दोनों आजाद भारत की पहली सरकार में केंद्रीय मंत्री थे, दोनों ही देश में “वन नेशन, वन एजुकेशन और वन कांस्टीट्यूशन” के समर्थक थे और नेहरू से वैचारिक भिन्नता के कारण दोनों ने मंत्रिपद से इस्तीफा दे दिया था ! यदि आप बाबासाहब अम्बेडकर और दीनदयाल उपाध्याय का गहन अध्ययन करें तो पायेंगे कि दोनों ही महापुरुष की विचारधारा एक समान थी, दोनों ही महापुरुष भारत में जातिवाद और शोषण मुक्त तथा समता और समरसता युक्त समाज की स्थापना करना चाहते थे ! इस वर्ष हम बाबासाहब अम्बेडकर की 125वीं जयंती और दीनदयाल उपाध्याय जी की 100वीं जयंती धूमधाम से मनायेंगे ! आशा है कि संसद के आगामी शत्र में देश के 6-14 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिये समान शिक्षा पर चर्चा होगी और इसे पूरे देश में लागू किया जायेगा ! बाबा साहब अम्बेडकर, दीनदयाल उपाध्याय, राम मनोहर लोहिया और महात्मा गांधी को यह सबसे अच्छी श्रद्धांजली होगी !

दुनिया के कई देशों में यूनिफार्म एजुकेशन सिस्टम लागू है ! अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने तो 1953 में समान शिक्षा लागू करने का आदेश दिया था ! भारत में भी केंद्रीय विद्यालय और नवोदय विद्यालय में यूनिफार्म एजुकेशन सिस्टम लागू है ! तमिलनाडु सरकार ने 2010 में तमिलनाडु यूनिफार्म सिस्टम ऑफ़ स्कूल एजुकेशन एक्ट -2010 लागू किया और तमिलनाडु के सभी स्कूलों में समान पाठ्यक्रम लागू है ! भारत के  6-14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा का अधिकार नहीं बल्कि समान शिक्षा का अधिकार चाहिये, इसके लिए भारत सरकार को कानून में बदलाव करना चाहिए ! इसके साथ ही टेलीफोन रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया की तरह ही एक स्वतंत्र एजुकेशन रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया की भी जरुरत है जो प्राइवेट स्कूलों की क्वालिटी और फीस को नियंत्रित करे ! वैदिक स्कूल और मदरसा अभी भी शिक्षा अधिकार कानून के दायरे से बाहर हैं इसके लिए भी कानून में संशोधन करने की आवश्यकता है ! शिक्षा के क्षेत्र में सुधार नहीं बल्कि ओवरहॉलिंग की जरुरत है, आशा है कि भारत सरकार जल्दी ही देश में वन नेशन, वन एजुकेशन, वन कांस्टीट्यूशन लागू कर बाबा साहब अम्बेडकर, श्यामाप्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय और राममनोहर लोहिया जी के सपने को साकार करेगी!

(लेखक अश्विनी उपाध्याय भाजपा-दिल्ली के प्रवक्ता और सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता हैं)

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