कांग्रेस के शिखर नेतृत्व को कल 19 दिसंबर को अदालत में हाज़िर होना है। नेशनल हेराल्ड केस में अब तक संसद में हंगामे के बाद कल के दिन को भुनाने की भरपूर कोशिश कांग्रेस पार्टी करने वाली है यह तय है। नेशनल हेराल्ड केस तमाम जांच पड़ताल के बाद ई डी ने दाखिल खारिज कर दिया था।बाद में ये केस दुबारा खोला गया। बीजेपी नेता प्रो सुब्रमण्यम स्वामी इसे अदालत तक ले गए और अब पटियाला हाउस कोर्ट में मादाम सोनिया गांधी और राहुल गांधी की पेशी है। इस मामले को कांग्रेस पार्टी ने मोदी सरकार की बदले की सियासत बात कर हंगामा बरपा दिया। संसद कई दिन से नारेबाजी की भेंट चढ़ी हुई है। इसके चलते जी एस टी बिल भी वापस बिल में पहुँच गया है।
कुछ बातें साफ़ समझना होंगीं।
एक- इस केस पर अदालती पहल का सीधे सरकार से लेना देना नहीं दिखता। मुमकिन है कि प्रो स्वामी को सत्ता का वरद हस्त इस मामले को कोर्ट तक ले जाने में हो । होगा तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। विरोधी को संकट में डाले रखना राजनीति में कोई इत्ती बुरी बात नहीं है।
दो- कुछ लोग बहुत किलकिला रहे हैं कि कांग्रेस संसद नहीं चलने दे रही। विकास में आड़े आ रही है ।आदि आदि..। जैसे बीते दस बरस आपने राई से पहाड़ तक के मुद्दों पर संसद की खटिया खड़ी करके रखी थी वैसे ही ये कर रहे हैं।
तब अरुण जैटली कहते थे कि सदन न चलने देना भी रणनीति का हिस्सा होता है तो आज मल्लिकार्जुन खड़गे भी ऐसा ही तर्क दें तो सुनना ही पड़ेगा ना।
तब न आप दूध के धुले थे और न अब ये हैं।
तीन- किसी भी मुद्दे को भुनाने का अधिकार दोनों पार्टियों को बराबर है।बीजेपी देश को यह बता जता कर ठीक ही कर रही है कि कांग्रेस देश के विकास में रोड़ा बनी हुयी है। ठीक वैसे ही कांग्रेस को भी इसे सरकार का बदला बताने से कोई कैसे रोक सकता है।
चार- सोनिया गांधी और राहुल गांधी कानून से ऊपर नहीं है और न कोई हो सकता है। नेशनल हेराल्ड मामले में कानून को अपना काम करने दीजिये।
कानून की पोथियों में से निकलने के रास्ते ढूँढिये।न मिले रास्ता तो जाइये जेल।
राजनीति में हैं तो आजमाइए राजनीति का हर हथकंडा । इसके नियम सबके लिए एक ही हैं।किसी भी मुद्दे को भुनाना कोई पाप नहीं है राजनीति की बिसात पर। अब तक वे यही करते आये हैं अब आप कीजिये। देश की चिंता कब किसे थी..? न आपको न उन्हें। देश तो सर्कस देखने को अभिशप्त है ही।
कल 19 दिसंबर को जाइये पटियाला हाउस अदालत में और जो हुक्म वहां से हो उसे सर माथे लीजिये। उसके बाद जनता की अदालत तो है ही। भूलिए मत जन अदालत के कटघरे से ही सत्ता का रास्ता खुलता है। राजनीति वालों का असल फैसला उसी अदालत में होता है। होना भी चाहिए।
मादाम सोनिया गांधी … भूलिए मत कि न ये सन् 1980 है और न आप इंदिरा गांधी।
लेखक डॉ. राकेश पाठक डेटलाइन इंडिया वेब पोर्टल के प्रधान संपादक हैं.