Samarendra Singh : बिहार की लड़ाई अब बराबरी पर आ गई है. यह मुमकिन है कि बीजेपी की अगुवाई वाला धड़ा नीतीश और लालू के गठजोड़ को हरा दे. दो-तीन महीने पहले यह संभव नहीं लग रहा था. लेकिन आज ऐसा होने के आसार हैं. जब लालू और नीतीश ने हाथ मिलाया तो उन्हें अपनी मजबूरी का अहसास था. उनके साथ आने से मुकाबला अचानक एक तरफा हो गया था. लगा कि वो आसानी से बीजेपी को हरा देंगे. लेकिन मांझी फैक्टर ने उनकी बढ़त घटा दी. पप्पू यादव ने कोशी-सीमांचल की कुछ सीटों पर मुकाबला और कठोर बना दिया. रही सही कसर ओवैसी साहब ने पूरी कर दी. अब कोशी-सीमांचल की सीटों पर हिंदू पोलराइज होगा. ओवैसी का असर अन्य इलाकों में भी होगा. जो काम बीजेपी चाह कर भी नहीं कर पा रही थी. उसे ओवैसी ने एक झटके में कर दिया है.
यही नहीं. यादव-कुर्मी के साथ आने से अति पिछड़ी जातियों में बीजेपी को बढ़त मिलेगी. यह एक बड़ा वोट बैंक है. राम विलास पासवान और जीतन राम मांझी के साथ आने से दलित-महादलित का झुकाव एनडीए की तरफ होगा. अगर अति पिछड़ा का एक बड़ा तबका बीजेपी के साथ गया तो लालू-नीतीश का चुनावी समीकरण गड़बड़ा जाएगा. बिहार में इस बार मुकाबला कई स्तर पर होगा. नरेंद्र मोदी विकास की बात करेंगे. नीतीश धर्मनिरपेक्षता और विकास की बात करेंगे. लालू धर्मनिरपेक्षता और जाति की बात करेंगे. पिछड़ों के सम्मान की बात करेंगे. लेकिन लालू राज के दौर का पिछड़ा समुदाय अब जातियों में बंट चुका है. नीतीश ने अपने लाभ के लिए उन्हें बांटा था, आज नीतीश के उस फैसले से और पिछड़ों के बंटवारे से बीजेपी को मजबूती मिलेगी. और ओवैसी का मैदान में उतरना तो बीजेपी के लिए वरदान है. ओवैसी जिन सीटों पर लड़ेंगे वहां थोड़े बहुत वोट काटेंगे मगर उन वोटों से बीजेपी की सेहत पर बहुत फर्क नहीं पड़ेगा. ओवैसी के उतरने से हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण होगा. बहुत तेज ध्रुवीकरण होगा. यह बीजेपी के लिए बड़ी बात है. बंगाल के प्रभाव को ओवैसी धो देंगे. किशनगंज, पूर्णिया, मधेपुरा, अररिया, कटिहार, सुपौल, भागलपुर और बांका… लोकसभा की इन आठ सीटों को बीजेपी एक साथ हार गई थी. वह अब इन जगहों पर भी मुकाबले में है. नीतीश, लालू और कांग्रेस का वह किला ढहा तो बिहार बचाना मुश्किल होगा. कुल मिला कर राजनीति पर नजर रखने वालों को इस चुनाव में कुछ दिनों के लिए ही सही बिहार जरूर जाना चाहिए.
वरिष्ठ पत्रकार समरेंद्र सिंह के फेसबुक वॉल से.