सारा देश जानता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अर्थात् आरएसएस भारत के अनार्य-वंचित दलित-आदिवासी-पिछडें और अल्पसंख्यक मोस (MOSS=Minority+OBC+SC+ST) वर्गों को किसी भी सूरत में सबल नहीं होने देना चाहता है। संघ की ओर से लगातार इस देश को आर्य-अनार्य में विभाजित करने के लिये नये-नये रास्ते खोजे जाते रहे हैं। अनार्यों को कमजोर करने के लिये मुसलमानों के खिलाफ कट्टर हिन्दुत्व की आग सुलगाने के पीछे भी वंचित वर्गों को हमेशा के लिये मनुवादी व्यवस्था का अनुगामी और गुलाम बनाये रखने की खतरनाक नीति है।
खुशी की बात है कि शिक्षित-दलितों को संघ की इस अनार्य-विरोधी-सुनियोजित-योजनाओं का अहसास होता जा रहा है। वनवासी, गिरवासी एवं वनबन्धु की गाली झेलते-झेलते आदिवासी भी धीरे-धीरे अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिये संघ की दिखावटी योजनाओं के पीछे छिपे जहरीले इरादों को समझने लगे हैं।
देशभर की ओबीसी जातियां और मीणा आदिवासी जाति के लोग संघ के वास्तविक किन्तु छिपे हुए ऐजेण्डे को समझने को अभी भी तैयार नहीं हैं। जबकि-
1. संघ द्वारा संचालित पार्टी के निर्णयों के मार्फत ओबीसी गुर्जरों को (राजस्थान में) संघ और उनकी राजनैतिक पार्टी की छद्म नीति ज्ञात हो चुकी हैं।
2. मनुवादी वर्चस्व वाली न्यायिक व्यवस्था बिना असंदिग्ध आंकड़ों और सूचनाओं के जाटों को ओबीसी से निष्कासित करने का फरमान जारी कर चुकी है।
3. मनुवादी शक्तियां ओबीसी को विधायिका और सरकारी नौकरियों एवं शिक्षण संस्थानों में पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने हेतु संविधान संशोधन करने के विरुद्ध हैं।
4. राजस्थान की मीणा जनजाति को जनजातियों की सूची से बाहर करने का मुनवादी षड़यंत्र जारी है।
संघ की पाठशाला के शिष्य को राजस्थान सरकार में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री बना रखा है। जो अजा एवं अजजा वर्गों को सामाजिक न्याय उपलब्ध करवाने के स्थान पर, हाई कोर्ट परिसर में आयोजित सामाजिक न्याय विषयक एक सेमीनार में सार्वजनिक रूप से आरक्षण को आर्थिक आधार पर लागू करने की हिमायत कर चुके हैं। राजस्थान सरकार के कथित मौखिक आदेशों के आधार पर मीणा जनजाति को जनजाति प्रमाण-पत्र पर रोक लगा चुके हैं। दलित, आदिवासी और ओबीसी विरोधी खबरों को प्रमुखता से प्रकाशित करने के लिये प्रतिबद्ध तथा संघ और संघ संचालित भारतीय जनता पार्टी की कट्टर हिन्दुत्व एवं मनुवादी विचारधारा को राजस्थान सहित देशभर में जबरदस्त तरीके से स्थापित करने वाली राजस्थान पत्रिका और संघ प्रमुख मोहन भागवत द्वारा आरक्षण को समाप्त करने पर भारतीय लोकतंत्र में मंत्रणा करना दु:खद और आश्चर्यजनक घटना है।
मोहन भागवत और राजस्थान पत्रिका के गुलाब कोठारी दोनों ही किसी संवैधानिक पद पर नहीं हैं। दोनों को संविधान के विरुद्ध बयान जारी करने का कोई हक नहीं है। इसके उपरान्त भी मोहन भागवत तथा गुलाब कोठारी संविधान सम्मत आरक्षण व्यवस्था को तहस-नहस करने पर चर्चा कर बयान जारी करते हैं और इस बारे में पत्रिका के मुखपृष्ठ पर असंवैधानिक तथा आम जन को उकसाने और भड़काने वाली शब्दावली में खबर प्रकाशित की जा रही है। समाज में इस प्रकार का माहौल निर्मित करने का प्रयास किया जा रहा है, जैसे कि संविधान के प्रावधानों के तहत प्रदान किया गया आरक्षण इस देश की सबसे बड़ी समस्या हो। दु:खद आश्चर्य तो इस बात का है कि इसके उपरान्त भी पत्रिका का बहुसंख्यक ओबीसी-दलित और आदिवासी पाठक वर्ग यह सब चुपचाप देख रहा है। ऐसा सन्नाटा पसरा हुआ है, जैसे पत्रिका और संघ के खिलाफ आवाज उठाना देश के संविधान के विरुद्ध आवाज उठाने जैसा दुरूह और अवैधानिक कार्य हो!
मोहन भागवत सार्वजनिक रूप से जोधुपर में घोषणा करते हैं कि-‘‘आरक्षण के खिलाफ प्रत्येक समाज खड़ा हो रहा है।’’ संघ अपने लोगों को प्रायोजित तरीके से आरक्षण के खिलाफ खड़ा करता है, जिनके बारे पत्रिका जैसे अखबारों में प्रचार-प्रसार करवाया जाता है और इसके बाद खुद संघ प्रमुख देश-विदेश की जनता को भ्रमित करने वाला बयान देते हैं कि-‘‘आरक्षण के खिलाफ प्रत्येक समाज खड़ा हो रहा है।’’ आखिर भागवत का प्रत्येक समाज से आशय क्या है? क्या केवल विदेशी आर्यों के वंशज ही प्रत्येक समाज हैं। इस देश के नब्बे फीसदी अनार्य-मोस वर्ग अर्थात-मुस्लिम, ओबीसी, दलित और आदिवासियों को आरक्षण की सख्त दरकार है। जिसके दो मायने हैं- पहला नब्बे फीसदी अनार्य-मोस वर्गों का आरक्षण को लेकर किसी प्रकार को विरोध नहीं है। दूसरे शेष बचे आरक्षण विरोधी दस फीसदी आर्य सम्पूर्ण समाज नहीं हो सकते हैं। ऐसे में संघ प्रमुख मोहन भागवत को इस बारे में भी तो मुख खोलना चाहिये कि आखिर आरक्षण की जरूरत ही क्यों पड़ी? उन कारणों के बारे में विचार मंथन क्यों न किया जाये, जिनकी वजह से संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की गयी है।
राजस्थान के डांगावास में दलितों की सार्वजनिक हत्याओं एवं मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ, राजस्थान, झारखंड, उड़ीसा आदि प्रदेशों में आदिवासी स्त्री-पुरुषों के ऊपर किये जाने वाने अत्याचारों और अमानवीय व्यवहारों के बारे में संघ प्रमुख-कभी गुलाब कोठारी से मंत्राणा क्यों नहीं करते हैं? गुलाब कोठारी की कलम आरक्षण को समाप्त किये जाने के लिये तो चलती है, लेकिन कभी भी शोषक, अत्याचारी और सामन्ती व्यवस्था के खिलाफ लिखने में क्या उनके हाथ कांपने लगते हैं? संघ और संघप्रिय मीडिया ने संविधान को मजाक बना रखा है। केन्द्र सरकार ने अमानवीय मनुवादी व्यवस्था को बढावा देने के लिये संघ प्रमुख एवं संघ समर्थक कथित योगगुरू बाबा रामदेव को राष्ट्रीय खजाने के विशेष सुरक्षा मुहैया करवा रखी है। इससे इन लोगों को अपनी असंवैधानिक और अवैज्ञानिक विचारधारा को फैलाने में सुविधा मिल रही है। राजस्थान पत्रिका सहित कुछ समाचार-पत्र इनके रुग्ण विचारों का प्रचार-प्रसार करने में लगे हुए हैं। कुल मिलाकर किसी भी सूरत में देश को आर्यों के सम्पूर्ण कब्जे में लाकर मुस्लिम, ओबीसी, दलित और आदिवासी वर्गों को अधिकार विहीन-गुलाम बनाने के सुनियोजित षड़यंत्र पर काम चल रहा है। अत: अब संघ एवं पत्रिका द्वारा मिलकर मोस वर्गों के खिलाफ चलाये जा रहे संविधानेत्तर क्रियाकलापों की खिलाफत करने की सख्त जरूरत है। अब वंचित मोस वर्ग के जागने का वक्त आ गया है। अब संविधान द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों को बचाने का वक्त आ गया है।
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’-राष्ट्रीय प्रमुख
हक रक्षक दल सामाजिक संगठन-9875066111