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बनारस के सरस्वती फाटक के नीचे सरस्वती कुंड दबा है? उत्खनन प्रारंभ, मेयर ने चलाया पहला फावड़ा

बनारस का प्राचीन मोहल्ला सरस्वती फाटक, जिसका नया नाम विश्वनाथ मंदिर गेट नंबर दो हो गया है, यहीं मैं जन्मा-पला-बढ़ा ही नहीं, आधी सदी से ज्यादा समय से यहां मौजूद उद्यान का बैडमिंटन कोर्ट मेरी फिटनेस स्थली भी रहा है. लंबी कहानी है सरस्वती उद्यान और बैडमिंटन की. उसकी फिर कभी चर्चा करूंगा. विक्रम संवत 2073 का आरंभ एक घबराई सी फोन काल के साथ सुबह हुआ, ‘ जल्दी आइए, विकास प्राधिकरण वाले आए हैं और कोर्ट तोड़ने जा रहे हैं.’ घर से सौ मीटर होगा उद्यान सेकेंडों में पहुंच गया. देखता हूं कि कुछ पुरुष – महिला श्रमिकों के साथ लोग वहां वाकई कुदाल फावड़े के साथ मौजूद थे. स्थानीय निवासियों के अलावा वे भी थे जो पिछले पचपन वर्षों से यहां बैडमिंटन खेल रहे हैं.

<p>बनारस का प्राचीन मोहल्ला सरस्वती फाटक, जिसका नया नाम विश्वनाथ मंदिर गेट नंबर दो हो गया है, यहीं मैं जन्मा-पला-बढ़ा ही नहीं, आधी सदी से ज्यादा समय से यहां मौजूद उद्यान का बैडमिंटन कोर्ट मेरी फिटनेस स्थली भी रहा है. लंबी कहानी है सरस्वती उद्यान और बैडमिंटन की. उसकी फिर कभी चर्चा करूंगा. विक्रम संवत 2073 का आरंभ एक घबराई सी फोन काल के साथ सुबह हुआ, ' जल्दी आइए, विकास प्राधिकरण वाले आए हैं और कोर्ट तोड़ने जा रहे हैं.' घर से सौ मीटर होगा उद्यान सेकेंडों में पहुंच गया. देखता हूं कि कुछ पुरुष - महिला श्रमिकों के साथ लोग वहां वाकई कुदाल फावड़े के साथ मौजूद थे. स्थानीय निवासियों के अलावा वे भी थे जो पिछले पचपन वर्षों से यहां बैडमिंटन खेल रहे हैं.</p>

बनारस का प्राचीन मोहल्ला सरस्वती फाटक, जिसका नया नाम विश्वनाथ मंदिर गेट नंबर दो हो गया है, यहीं मैं जन्मा-पला-बढ़ा ही नहीं, आधी सदी से ज्यादा समय से यहां मौजूद उद्यान का बैडमिंटन कोर्ट मेरी फिटनेस स्थली भी रहा है. लंबी कहानी है सरस्वती उद्यान और बैडमिंटन की. उसकी फिर कभी चर्चा करूंगा. विक्रम संवत 2073 का आरंभ एक घबराई सी फोन काल के साथ सुबह हुआ, ‘ जल्दी आइए, विकास प्राधिकरण वाले आए हैं और कोर्ट तोड़ने जा रहे हैं.’ घर से सौ मीटर होगा उद्यान सेकेंडों में पहुंच गया. देखता हूं कि कुछ पुरुष – महिला श्रमिकों के साथ लोग वहां वाकई कुदाल फावड़े के साथ मौजूद थे. स्थानीय निवासियों के अलावा वे भी थे जो पिछले पचपन वर्षों से यहां बैडमिंटन खेल रहे हैं.

पता चला कि यहां माजरा ही कुछ और है. ये तो भारतीय पुरातत्व विभाग नयी दिल्ली व स्थानीय ग्यानप्रभा की संयुक्त टीम है जो विश्व की इस प्राचीनतम जीवित नगरी काशी की उम्र का पता लगाने निकली है एक प्रोजेक्ट के तहत. दो राय नहीं कि काशी के घाटों की विकास यात्रा में, जो मुश्किल से छह सौ साल पुरानी है और जिसकी शुरुआत चौसट्टी घाट से हुई थी और उसके बाद दूसरा नंबर ललिता घाट का है जो सीधे सरस्वती फाटक होता हुआ काशी विश्वनाथ मंदिर की ओर निकल जाता है. निस्संदेह यह नगर के प्राचीनतम क्षेत्रों में एक है ही. सरस्वती उद्यान असल में नगर की छत है या शिखर अथवा इसे मुकुट भी कह सकते हैं. यह विश्वेश्वर पहाड़ी का शिखर अंग है न, ( काशी तीन पहाड़ियो केदारेश्वर, विश्वेश्वर और ओंकारेश्वर की चोटी पर स्थित है ) आप देखिए कि सरस्वती फाटक के दायीं ओर चौक की ढाल और बांयीं ओर बांसफाटक की ढाल हैं इसलिए यदि उद्यान के नीचे कौन जाने सरस्वती कूप या कुंड दबा हो. इससे यह भी प्रमाणित हो जाएगा कि सरस्वती की मूर्ति कितनी प्राचीन है और क्या जनश्रुतिनुसार इसकी प्राण प्रतिष्ठा आदि शंकराचार्य अर्थात आचार्य शंकर के हाथों हुई थी?

तय हुआ कि कोर्ट को छोड़ कर खुदाई की जाएगी और उससे निकली मिट्टी तय करेगी त्रिशूल पर बसी इस बम भोले की नगरी की आयु. बहुत कुछ सामने आएगा और इसकी प्रणेता प्रोजेक्ट की निदेशक प्रख्यात एंट्रोपालिजिस्ट प्रो. सुश्री विदुला जायसवाल ने जब यहां उद्देश्य का विवेचन किया और यह भी कि इसे एक बार फिर उद्यान के रूप में विकसित किया जाएगा तब वहां सभी ने सहर्ष सहयोग का आश्वासन दिया. मेयर राम गोपाल मोहले ने, जो स्वयं यहां हम लोगों के साथ बचपन में बैडमिंटन खेल चुके हैं, कार्यारंभ के पहले निगम की ओर से भी उद्यान को सजाने- संवारने का वादा किया. बटुकों के मंत्रोच्चार के बीच चलाया उन्होंने पहला फावड़ा चिन्हित स्थान पर.

अगले दिन से विदुलाजी के नेतृत्व में लगेगी टीम उत्खनन में. काशी के चतुर्दिक इसी तरह उत्खनन से यह तो सिद्ध हो चुका है कि रामायण और महाभारत दोनों में वर्णित यह नगर 3800 वर्ष प्राचीन तो है ही. टीम अब और आगे बढ़ेगी…कौन जाने देवाधिदेव महादेव की तरह उनका यह नगर भी अजन्मा हो, शायद समय इसका जवाब देगा. सरस्वती उद्यान से क्या निकला, क्षेत्र कितना प्राचीन है, नीचे क्या दबा है, इसके लिए हम सभी को सवा महीने इंतजार करना पड़ेगा. इस अवसर पर ग्यान-प्रभा की निदेशिका विदुषि प्रो. कमल गिरि के साथ भाल शास्त्री की मौजूदगी उल्लेखनीय रही तो क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डा. सुभाष चंद यादव ने आसपास के पुरातात्विक स्थानों के बारे काफी उत्सुकता दिखायी. प्रो. विदुला जी अप्रैल में ही चलने लगी लू के थपेड़ों और तपन के बीच सहयोगियों डा. मीरा शर्मा, मनोज यादव और अजय चक्रवात के साथ उत्खनन कार्य के समय मौजूद रहेंगी. परमात्मा उन्हें सफल बनाएं और शिव नगरी अपनी लंबी उम्र पर और भी इतराए.

लेखक पदमपति शर्मा बनारस के निवासी हैं और देश के वरिष्ठ खेल पत्रकार व स्तंभकार हैं.

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