उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश की गिनती देश के पिछड़े राज्यों में होती है। इसका यह मतलब नहीं है कि प्रदेश की जनता को विकास की चिंता नहीं है। यह तो प्रदेशवासियों का दुर्भाग्य है जो यहां के तमाम सियासतदारों ने अपनी राजनैतिक रोटिंया सेंकने के लिये प्रदेश को जातिवादी की राजनीति में ढकेल दिया। इससे नेताओं का तो बेड़ा पार हो गया लेकिन प्रदेश विकास की दौड़ में पीछे चला गया। लगता है कि अब हालात बदल रहे हैं। अब प्रदेश की जनता भी जातिवादी राजनीति को ठेंगा दिखाते हुए विकास के बारे मे सोचने लगी है। अगर ऐसा न होता तो अपने शहर को स्मार्ट सिटी का दर्जा दिलाने के लिये लोग सड़क पर नहीं आ जाते, जैसा की मेरठ में हुआ। यहां के लोग इस लिये सड़क पर उतर आये क्योंकि वह यह नहीं चाहते थे कि उनकी चुप्पी की वजह से स्मार्ट सिटी का दर्जा उनके शहर के बजाये किसी और शहर को मिल जाये। दरअसल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पूरे देश में सौ स्मार्ट सिटी विकसित करने की योजना में उत्तर प्रदेश से भी 13 शहरों का चयन किया गया था। इसके लिये 12 शहरों का तो नाम आसनी से तय हो गया, लेकिन 13 वीं स्मार्ट सिटी के चयन के सवाल पर रायबरेली और मेरठ बराबर के अंक लेकर दावेदार बने हुए थे।
इसी के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शहर मेरठ को स्मार्ट सिटी का हक मिल जाये इसको लेकर वहां की जनता आंदोलन पर उतर आई। मेरठ को स्मार्ट सिटी की सूची में शामिल करने की मांग पर 15 सितंबर 2015 को शहर के कारोबारी सड़क पर उतर आए। बंद के एलान का असर सभी प्रमुख बाजारों पर दिखा। बंद में पार्टी लाइन से ऊपर उठकर भाजपा सांसद राजेंद्र अग्रवाल, मेयर हरिकांत अहलूवालिया और संयुक्त व्यापार संघ के अध्यक्ष नवीन गुप्त समेत अन्य पदाधिकारियों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। सभी ने एक सुर में बस यही कहा कि उनकी लड़ाई किसी से नहीं है उन्हें बस स्मार्ट सिटी चाहिए। यह मेरठ का हक है और वह उसे लेकर रहेंगे। एक तरफ स्मार्ट सिटी को लेकर मेरठ बंद था तो उसी समय विभिन्न परियोजनाओं का उद्घाटन करने के लिए मेरठ पहुंचे लोक निर्माण विभाग के मंत्री शिवपाल यादव सर्किट हाउस में रुके थे। अपनी मांग को लेकर संयुक्त व्यापार संघ अध्यक्ष नवीन गुप्ता उन्हें ज्ञापन देने पहुंचे। शिवपाल ने ज्ञापन तो स्वीकार कर लिये लेकिन इसके साथ ही उन्होंने ने दो टूक शब्दों में कह दिया, ‘सपा में आ जाओ, आपके मेरठ को हम स्मार्ट सिटी बना देंगे।’ वहां मौजूद एमएलसी डा.सरोजिनी अग्रवाल ने भी शिवपाल की बातों का समर्थन किया। व्यापारी नेता तब कुछ नहीं बोले, बाहर आकर उन्होंने कहा कि वह स्मार्ट सिटी के लिए कोई भी लड़ाई लड़ने को तैयार हैं।
दरअसल, उत्तर प्रदेश से 13 शहरों को स्मार्ट सिटी के लिये चुना जाना। 12 शहरों का तो चुनाव आसानी से हो गया। स्मार्ट सिटी के लिये जिन 12 नामों पर सहमति बनी उसमें मुरादाबाद, अलीगढ़, सहारनपुर, बरेली, झांसी, कानपुर, इलाहाबाद, लखनऊ, वाराणसी, गाजियाबाद, आगरा, रामपुर थे, लेकिन 13 वें शहर के लिये रायबरेली और मेरठ के बीच पेंच फंस गया। दोनों ही जिले 75-75 अंक लेकर बराबरी पर रहे थे। बीजेपी मेरठ को 13वां स्मार्ट शहर बनाने और कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के रायबरेली संसदीय निर्वाचन क्षेत्र को यह दर्जा देने की मांग कर रही थी। केन्द्र सरकार ने विवाद बढ़ता देख कूटनीतिक तरीके से 13 वें शहर के चयन का अधिकार अखिलेश सरकार को दे दिया। केन्द्र की मंशा भांपने में अखिलेश सरकार को देर नहीं लगी। उसने भी केन्द्र के ‘नहले पर दहला’ चलते हुए दोनों ही शहरों को इस योजना में शामिल किए जाने की सिफारिश के साथ एक प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेज दिया। अखिलेश सरकार ने केन्द्र से मांग की है कि राज्य में स्मार्ट शहरों की संख्या 13 से बढ़ाकर 14 कर दी जाये है। यह पत्र प्रदेश के मुख्य सचिव आलोक रंजन केंद्रीय योजना के माध्यम से भेजा गया है जो राज्य के शहरों के चयन के लिए गठित उच्च स्तरीय समिति के अध्यक्ष हैं।
उधर, उत्तर प्रदेश के 13 शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए कंसल्टेंट के नाम तय कर लिये गये है। लखनऊ और मुरादाबाद के प्लान तैयार करने के लिए इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड को कंसल्टेंट बनाया गया है। वहीं कानपुर और रामपुर के प्लान बनाने के लिए डास होल्डिंग्स, रायबरेली या मेरठ और सहारनपुर के लिए सॉसटेक, आगरा व बरेली के लिए इंटरनैशनल सिटी मैनेजमेंट असोसिएशन का नाम तय किया गया है। अलीगढ़ व इलाहाबाद के लिए आरबी असोसिएट्स और गाजियाबाद के लिए डाटा वर्ल्ड को कंसल्टेंट तय किया गया है। कंसल्टेंट के नामों पर अंतिम मुहर लगाने के लिए उनके नाम शासन द्वारा बनाई गई निगोसिएशन कमिटी को भेज दिया गया है। निगोसिएशन कमिटी में सचिव नगर विकास एसपी सिंह, आरसीयूईएस के निदेशक प्रो. निशीथ राय, निदेशक स्थानीय निकाय अजय कुमार शुक्ला शामिल हैं। कंसल्टेंट स्मार्ट सिटी प्लान बनाकर सरकार को देंगे। इसके बाद इन शहरों में विकास कार्य शुरू किए जाएंगे। मेरठ व रायबरेली का मामला टाई होने के चलते दोनों ही शहरों के लिए कंसल्टेंट तय कर लिये गये है। रायबरेली व मेरठ पर सरकार को फैसला करना है।
गौरतलब हो, केंद्र सरकार ने यूपी व उत्तराखंड में स्मार्ट सिटी डिवेलपमेंट प्लान के लिए 10 फर्मों के नाम तय किए थे। इन्हीं में से कंसल्टेंट का चुनाव किया जाना था। सभी फर्मों से शासन ने फाइनेंशल बिड मंगाई थी। सभी फर्मों के प्रस्तावों का परीक्षण किया गया। सर्वाधिक 13 प्रस्ताव एनके बिल्डकॉम ने दिए थे। इसके सभी प्रस्ताव सबसे कम रेट पर थे। नियमों के तहत एक फर्म को केवल दो ही शहरों के प्लान के लिए चुना जा सकता था। इसलिए बनारस और झांसी के लिए एनके बिल्डकॉम का नाम तय हुआ।
उत्तर प्रदेश के प्रभावशाली सपा नेता और नगर विकास एवं संसदीय कार्य मंत्री मो.आजम खान ने स्मार्ट सिटी की बजाये ‘स्मार्ट गांवों’ के विकास पर ज्यादा जोर देने की जरूरत बताते हुए कहा कि स्मार्ट शहर परियोजना से गांवों से नगरों की तरफ लोगों का पलायन बढ़ेगा। इससे कानून-व्यवस्था खराब होने, बिजली की किल्लत के साथ-साथ सम्पत्ति की कीमतें और किराये की दरें में बेइंतहा बढ़ोत्तरी जैसी दिक्कतें पैदा होंगी।’ ’हो सकता है अब आजम की नाराजगी दूर हो जाये। क्योंकि मोदी मंत्रिमंडल ने स्मार्ट गांव बनाने के लिये भी कदम आगे बढ़ाते हुए इसके लिये धनराशि भी आवंटित कर दी है।
वहीं स्मार्ट सिटी के लिए चार तरह की प्लानिंग है। इसमें नंबर एक में पांच सौ एकड़ व पहाड़ी क्षेत्र में 250 एकड़ क्षेत्र को नए सिरे से विकसित करना। नंबर दो पर री-डेवलपमेंट के तहत पूरे पुराने शहर के भवनों को हटाकर नए सिरे से निर्माण करना। तीसरा ग्रीन फील्ड में सिटी निर्माण। चौथा स्मार्ट सिटी के तौर पर पूरे शहर व आसपास के लिए चल रही योजनाओं को बेहतर बनाना शामिल है। इन चार में से कोई भी योजना को चुना जा सकता है। स्मार्ट सिटी में वर्ष 2019-20 तक पांच साल में 1000 करोड़ रुपये मिलेंगे। इस दौरान विभिन्न सुविधाओं व सेवाओं को लेकर पब्लिक प्राइवेट निवेश को आमंत्रित किया जाएगा।