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अब की बार… यू-टर्न सरकार… नहीं लग सका सोशल मीडिया पर

इसमें कोई शक नहीं कि मेन स्ट्रीम यानि मुख्य धारा के मीडिया में तमाम बुराइयां आ चुकी हैं। इसमें भी प्रिंट मीडिया की तुलना में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने अपनी फुहड़ता के कई नमूने प्रदर्शित किए हैं। नई दिल्ली की केजरीवाल सरकार के मामले में तो इन न्यूज चैनलों की रिपोर्टिंग एक तरफा नजर आती है, वहीं कई महत्वपूर्ण देश हित के मुद्दे दरकिनार कर दिए जाते हैं। अब धीरे-धीरे इनकी टक्कर में सोशल मीडिया खड़ा होने लगा और मुख्य धारा के मीडिया को भी कई मर्तबा सोशल मीडिया में उठने वाले मुद्दों को अपनी खबरों और बहसों में शामिल करना पड़ता है।

<p>इसमें कोई शक नहीं कि मेन स्ट्रीम यानि मुख्य धारा के मीडिया में तमाम बुराइयां आ चुकी हैं। इसमें भी प्रिंट मीडिया की तुलना में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने अपनी फुहड़ता के कई नमूने प्रदर्शित किए हैं। नई दिल्ली की केजरीवाल सरकार के मामले में तो इन न्यूज चैनलों की रिपोर्टिंग एक तरफा नजर आती है, वहीं कई महत्वपूर्ण देश हित के मुद्दे दरकिनार कर दिए जाते हैं। अब धीरे-धीरे इनकी टक्कर में सोशल मीडिया खड़ा होने लगा और मुख्य धारा के मीडिया को भी कई मर्तबा सोशल मीडिया में उठने वाले मुद्दों को अपनी खबरों और बहसों में शामिल करना पड़ता है।</p>

इसमें कोई शक नहीं कि मेन स्ट्रीम यानि मुख्य धारा के मीडिया में तमाम बुराइयां आ चुकी हैं। इसमें भी प्रिंट मीडिया की तुलना में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने अपनी फुहड़ता के कई नमूने प्रदर्शित किए हैं। नई दिल्ली की केजरीवाल सरकार के मामले में तो इन न्यूज चैनलों की रिपोर्टिंग एक तरफा नजर आती है, वहीं कई महत्वपूर्ण देश हित के मुद्दे दरकिनार कर दिए जाते हैं। अब धीरे-धीरे इनकी टक्कर में सोशल मीडिया खड़ा होने लगा और मुख्य धारा के मीडिया को भी कई मर्तबा सोशल मीडिया में उठने वाले मुद्दों को अपनी खबरों और बहसों में शामिल करना पड़ता है।

 दरअसल सोशल मीडिया के जरिए अब हर व्यक्ति आजाद है, जो खुलकर अपनी बात रख सकता है। हालांकि सोशल मीडिया का भी जबरदस्त दुरुपयोग होने लगा है। उस पर भी संगठित गिरोह काम करने लगे हैं, जो किसी राजनीतिक पार्टी या दल का समर्थन करते हुए किसी को भी देशद्रोही करार दे देते हैं। चुटकुलों से लेकर निजी प्रसंगों के फोटो, अश्लील वीडिया और अन्य तमाम बकवास जानकारियां सोशल मीडिया पर परोसी जाती है। बावजूद इसके कई गंभीर लोग हैं, जो इस मीडिया का बेहतर इस्तेमाल कर रहे हैं। इनमें विद्वानों से लेकर मीडिया के भी गंभीर साथी शामिल हैं, लेकिन केन्द्र की मोदी सरकार ने अभी सोशल मीडिया पर अंकुश लगाने और पहरा बैठाने के लिए नेशनल इनक्रिप्शन पॉलिसी का ड्रॉफ्ट तैयार करवाया, जो लीक भी हो गया। इस ड्रॉफ्ट में ऐसी कई बे सिर-पैर की बातों को शामिल किया गया जिसमें एक मुद्दा व्हाट्सएप्प का भी था, जिसमें 90 दिनों तक किसी भी संदेश को सुरक्षित रखा जाना था, जो अत्यंत ही अव्यवहारिक और मूर्खतापूर्ण बात है। हालांकि जब इस पर बवाल सोशल मीडिया में ही जमकर मचा और उसके बाद प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी खबरें आईं, तब घबराई मोदी सरकार ने ताबड़तोड़ पलटी मारते हुए यू-टर्न ले लिया और उसके मंत्रियों से लेकर प्रवक्ता के बयान आए कि हमारा इरादा सोशल मीडिया पर इस तरह से पहरा लगाने का नहीं है और यह विवादित ड्राफ्ट तुरंत वापस लिया जाता है। हालांकि कांग्रेस को विरोध करने का एक और मौका मिला और उसने भी केन्द्र की मोदी सरकार को फासीवादी सरकार करार दे डाला। इसके पूर्व मोदी सरकार भूमि अधिग्रहण बिल पर भी इसी तरह यू-टर्न मार चुकी है। विदेशों में जमा कालेधन से लेकर राम मंदिर, समान नागरिक संहिता और धारा 370 के मामले पर भी सरकार का यू-टर्न साफ नजर आता है। महंगाई, भ्रष्टाचार की बातें भी सिर्फ भाषणों में ही दिखती है। क्योंकि मोदी गेट से लेकर व्यापमं घोटाले पर प्रधानमंत्री एक शब्द भी नहीं बोले। अब तो लोग भी कहने लगे कि अबकी बार ऐसा लगता है यू-टर्न सरकार चुनी है, जो हर मुद्दे से या तो कन्नी काटती नजर आती है या मौन धारण कर लेती है।

(लेखक – जाने-माने हिन्दी पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक हैं)

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