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दुख-सुख

जनकवि विद्रोही को कब्जाने का दौर चल पड़ा

Ajay Prakash : अब जनकवि विद्रोही को कब्जाने का दौर चल पड़ा है। विद्रोही ये थे विद्रोही वो थे, विद्रोही इधर से महान थे उधर से महान थे। दाहिने से निराला थे तो बाएं से नागार्जुन। अरे विद्रोही घंटा थे। दांत चियार के मर गए टेंट में। दिल्ली के आइटीओ पर। ये जो उनके होने का दावा कर रहे हैं, उनमें से किसी एक के यहां भी ऐसे कोई दांत चियार कर लावारिस मरा है क्या। दवा के अभाव में। कोई मरते अपनों को छोड़कर प्रदर्शन करने जाता है क्या?

उधर आप यूजीसी के खिलाफ प्रदर्शन में गए और इधर बुढ़वा चल निकला। विद्रोही बोले कि आपलोग प्रदर्शन कीजिए मेरा मन नहीं है जाने का, तबीयत ठीक नहीं लग रही। जो आदमी पग—पग पर आपके साथ रहा, जो जनांदोलनों का जीवनभर अघोषित होलटाइमर रहा, उसकी जिंदगी को जाते देख आपलोग प्रदर्शन करने चल निकले।

अब विद्रोही सबके बाप हुए पड़े हैं, लेकिन उस समय आप में से एक बेटा—बेटी, क्रांतिधर्मी उनकी तबीयत के लिए नहीं रूक सका। जब आपलोग प्रदर्शन कर लौटकर आए तब भी आपलोगों का ध्यान नहीं रहा। देर हो गयी तो किसी ने उन्हें जगाने की कोशिश की, तबतक वह प्यारे हो चुके थे।

सुबह से उनकी तबीयत ठीक नहीं थी। आप में से कइयों को मालूम था। जेएनयू में ही उन्होंने कहा कि जाने की इच्छा नहीं, फिर इसलिए साथ आ गए कि अकेले रहकर वहां क्या करेंगे। अगर आप में से एक भी समय रहते उनके मर्ज को समझ पाया होता और हॉस्पीटल ले गया होता तो आज ‘या विद्रोही वा विद्रोही’ नहीं करना पड़ता। पर डॉक्टर के यहां कोई नहीं ले जा सका।

यही सच है न। या इसके लिए मार्क्स की किताब पढ़नी पढ़ेगी। जबतक जिया तुम्हारें लिए बेमतलब था, अब मर गया तो उसकी झांट भी महान नजर आने लगी है।

भूख से मरे व्यक्ति के लिए यह परंपरावादी समाज में चंदा लगाके ढोल—नगाड़े की व्यस्था करा देता है, तेरवीं में पूड़ी—बुनिया बंटवा देता है तो आपलोग कौन सा महान काम कर रहे हो। विद्रोही अब संपत्ति बन गया है और अब बंटवारे की लड़ाई है। अब उनकी विरासत संभालने वाले उतने लोग बिलों से निकल आए हैं, जितने उनके अंतिम संस्कार में भी मौजूद नहीं रहे।

प्रखर पत्रकार अजय प्रकाश के फेसबुक वॉल से.

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