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मीडिया के खुद के क्लब के चुनाव में आखिर पत्रकारों को विकल्प क्यों नहीं मिल सका

Harshvardhan Tripathi : प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के चुनाव संपन्न हो गए। राहुल जलाली-नदीम अहमद काजमी पैनल मजे से चुनाव जीत गया। लोकतांत्रिक तरीके से जीता। एक लाख रुपये की जमानत राशि जमा करके चुनाव जीता। लोकतांत्रिक चुनाव के लिए DIN यानी डायरेक्टर्स आईडेंटिफिकेशन नंबर की आवश्यक शर्त पूरी करके जीता। लोकतंत्र के चौथे खंभे पत्रकारों के देश की राजधानी के सबसे महत्वपूर्ण संगठन प्रेस क्लब ऑफ इंडिया का पंजीकरण कंपनीज एक्ट के अंतर्गत है, ये महत्वपूर्ण बात भी लोगों को पता लगनी चाहिए। लोकतांत्रिक तरीके से जीता, इसलिए क्योंकि, इस पैनल के विरोध में एक दूसरा पैनल भी लड़ा था। विरोध स्वरूप बहुतों ने उस पैनल को भी अच्छा खासा मत दिया।

<p>Harshvardhan Tripathi : प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के चुनाव संपन्न हो गए। राहुल जलाली-नदीम अहमद काजमी पैनल मजे से चुनाव जीत गया। लोकतांत्रिक तरीके से जीता। एक लाख रुपये की जमानत राशि जमा करके चुनाव जीता। लोकतांत्रिक चुनाव के लिए DIN यानी डायरेक्टर्स आईडेंटिफिकेशन नंबर की आवश्यक शर्त पूरी करके जीता। लोकतंत्र के चौथे खंभे पत्रकारों के देश की राजधानी के सबसे महत्वपूर्ण संगठन प्रेस क्लब ऑफ इंडिया का पंजीकरण कंपनीज एक्ट के अंतर्गत है, ये महत्वपूर्ण बात भी लोगों को पता लगनी चाहिए। लोकतांत्रिक तरीके से जीता, इसलिए क्योंकि, इस पैनल के विरोध में एक दूसरा पैनल भी लड़ा था। विरोध स्वरूप बहुतों ने उस पैनल को भी अच्छा खासा मत दिया।</p>

Harshvardhan Tripathi : प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के चुनाव संपन्न हो गए। राहुल जलाली-नदीम अहमद काजमी पैनल मजे से चुनाव जीत गया। लोकतांत्रिक तरीके से जीता। एक लाख रुपये की जमानत राशि जमा करके चुनाव जीता। लोकतांत्रिक चुनाव के लिए DIN यानी डायरेक्टर्स आईडेंटिफिकेशन नंबर की आवश्यक शर्त पूरी करके जीता। लोकतंत्र के चौथे खंभे पत्रकारों के देश की राजधानी के सबसे महत्वपूर्ण संगठन प्रेस क्लब ऑफ इंडिया का पंजीकरण कंपनीज एक्ट के अंतर्गत है, ये महत्वपूर्ण बात भी लोगों को पता लगनी चाहिए। लोकतांत्रिक तरीके से जीता, इसलिए क्योंकि, इस पैनल के विरोध में एक दूसरा पैनल भी लड़ा था। विरोध स्वरूप बहुतों ने उस पैनल को भी अच्छा खासा मत दिया।

 

लेकिन, ये कोई बताएगा कि लोकतांत्रिक पद्धति के इस चुनाव में दूसरे पैनल को पूरे 21 प्रत्याशी भी क्यों नहीं मिल सके। विरोध के स्वर, आवाज को मुख्यधारा की राजनीति में बढ़ाने वाली मीडिया के खुद के क्लब के चुनाव में आखिर पत्रकारों को विकल्प क्यों नहीं मिल सका। इसी प्रेस क्लब के प्रांगण में वैकल्पिक राजनीति को लेकर कितनी चिंता व्यक्त की गई थी। आखिर कौन लोग हैं जो प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के चुनाव को पूर्ण सहमति का चुनाव बना चुके हैं। उस कोठरी के खिलाफ असहमति के स्वर को क्यों प्रेस क्लब की बेहतरी के खिलाफ साबित कर दिया जाता है। खैर, अब तो जो जीता वही सिकंदर। जय हो लोकतंत्र के पहरेदारों के खुद के लोकतांत्रिक तरीके से हुए चुनाव की। जीते को बधाई। हारे को कौन पूछता है। नेताओं से भी खूबसूरती से लोकतंत्र चला रहे हैं प्रेस क्लब के पत्रकार नेता।

टीवी जर्नलिस्ट हर्षवर्द्धन त्रिपाठी के फेसबुक वॉल से.

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