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दुख-सुख

वीरेन दा के गुजर जाने के करीब महीने भर बाद एक रात फूट फूट कर रोया…

Yashwant Singh : मुझे जाने क्यों ऐसा नहीं लगता कि वीरेन दा नहीं हैं. उनको मैं अलग अलग व्यक्तियों में अलग अलग गुणों के रूप में देखता हूं. वीरेन दा का मेरे जीवन पर कितना एहसान, कितना योगदान है, ये मैं केवल फील कर सकता हूं. इसको बता पाना, समझा पाना मुश्किल है. भाई Pankaj Chaturvedi ने गुरुवर वीरेन दा की स्मृति में 111 कड़ियां जो लिखी हैं, उसे पढ़-पढ़ कर ऐसा लगता रहा जैसे मैं खुद लिख रहा होउं या खुद पूरे घटनाक्रम का गवाह रहा होउं… आप लोग भी पढ़िए. एक अदभुत व्यक्ति के जीवन, सोच और जनपक्षधरता के बारे में.

और, पंकज चतुर्वेदी भाई, आपने कितना बड़ा काम किया है, इसका एहसास अभी आपको न होगा. आपने इतिहास रचा है. और, ये काम सिर्फ आपने अकेले नहीं किया है, वीरेन दा के हजारों लाखों चाहने वालों का मूक समर्थन व उर्जा लेकर किया है आपने. बहुत बहुत दिल से बधाई दोस्त इस शानदार काम के लिए. मैं तो अब तक अपना एक अनुभव संस्मरण न लिख पाया. सोच ही नहीं पा रहा कि कहां से शुरू करूं. मैं वीरेन दा के गुजर जाने के करीब महीने भर बाद एक रात फूट फूट कर रोया. उसी तरह किसी दिन कलम भी चल पड़ेगी.

भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह के फेसबुक वॉल से.

मूल पोस्ट>

पंकज चतुर्वेदी ने ‘वीरेन डंगवाल स्मरण’ 111 कड़ियों के साथ पूरा किया, पढ़ें आखिरी कुछ कड़ियां

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