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वृंदावन या बंदरावन?

वृंदावन हम पहले भी एक बार आ चुके हैं लेकिन उस समय मुश्किल से यहां तीन-चार घंटे रुके थे। उस वक्त क्या देखा और क्या सुना ज्यादा याद नहीं है। लेकिन इस बार की यह 24 घंटे की यात्रा काफी सार्थक रही। कई मंदिर, कई देवालय, कई स्मारक, कई बाग-तड़ाग देखे। इस बार हमारे पुराने मित्र और नामी-गिरामी पत्रकार विनीत नारायण का आग्रह था कि उनके ब्रज फांउडेशन के एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का उद्घाटन किया जाए।

<p>वृंदावन हम पहले भी एक बार आ चुके हैं लेकिन उस समय मुश्किल से यहां तीन-चार घंटे रुके थे। उस वक्त क्या देखा और क्या सुना ज्यादा याद नहीं है। लेकिन इस बार की यह 24 घंटे की यात्रा काफी सार्थक रही। कई मंदिर, कई देवालय, कई स्मारक, कई बाग-तड़ाग देखे। इस बार हमारे पुराने मित्र और नामी-गिरामी पत्रकार विनीत नारायण का आग्रह था कि उनके ब्रज फांउडेशन के एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का उद्घाटन किया जाए।</p>

वृंदावन हम पहले भी एक बार आ चुके हैं लेकिन उस समय मुश्किल से यहां तीन-चार घंटे रुके थे। उस वक्त क्या देखा और क्या सुना ज्यादा याद नहीं है। लेकिन इस बार की यह 24 घंटे की यात्रा काफी सार्थक रही। कई मंदिर, कई देवालय, कई स्मारक, कई बाग-तड़ाग देखे। इस बार हमारे पुराने मित्र और नामी-गिरामी पत्रकार विनीत नारायण का आग्रह था कि उनके ब्रज फांउडेशन के एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का उद्घाटन किया जाए।

बांके बिहारी जी का मंदिर तो प्रसिद्ध है ही! नाचते-गाते सैकड़ों भक्तों के बीच खड़े होने का सुख तो विलक्षण होता ही है। कृपालु महाराज के प्रेम मंदिर की छवि के क्या कहने? रात में मंदिर पर बिखरनेवाले रंगों का क्या समा बंधता है और उस पर फव्वारों की बौछारें! इस्कोन का मंदिर तो सब देखते ही हैं। वहां प्रभुपाद के गोरे शिष्यों की वेशभूषा और भक्ति भी देखने लायक होती है। चैतन्य महाप्रभु के मंदिरों की अलग ही छटा है। वहां बंगाली पुरोहितों और भक्तों का समर्पण भाव देखते ही बनता है। इन सब स्थानों पर राधा और कृष्ण के बारे में इतनी और ऐसी-ऐसी किंवंदतियां सुनने को मिलती हैं कि हंसी आ जाती है। मैं सोचने लगता हूं कि अंधविश्वास भी मानव जीवन में कितनी बड़ी भूमिका अदा करता है। अंधविश्वास मनुष्य को सांत्वना देता है, सतत प्रेम में डुबोए रखता है, सतत आशावान बनाए रखता है, निरंतर सक्रिय बनाए रखता है और बहुत-से मनोरोगों से मुक्त रखता है। मुझे अच्छा लगा कि यहां सर्वत्र लोग ‘राधे-राधे’ पुकारते रहते हैं। राधा पहले है, कृष्ण पीछे हैं। जगह-जगह रसखान की ये पंक्तियां साकार होती लगती हैं कि कृष्ण को जब खोजा जाने लगा तो वे किसी लता-कुंज में बैठकर ‘राधिका पांव पलोटत हैं।’
वृंदावन को देखने लाखों लोग यहां आते हैं और हजारों यहां बस गए हैं लेकिन यहां गंदगी का साम्राज्य है। कूड़ा और बदबू मंदिरों के अंदर भी है और बाहर तो सर्वत्र है। जिस यमुना पर कभी कृष्ण विहार करते थे, वह तो बस एक नाला भर है। उसके कई तट डूब चुके हैं। इन सबका उद्धार करनेवाला कोई नेता नहीं है। विनीत नारायण का ‘ब्रज फाउंडेशन’ इस दिशा में गजब का काम कर रहा है। उसने कई विलुप्त स्मारकों के जीर्णोधार का बीड़ा उठा रखा है। प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान की ज्यादा जरुरत यहीं हैं। हिंदुत्व का दम भरनेवालों के लिए यह बड़ी चुनौती है। बंदरों ने वृदांवन का बेहाल कर रखा है। भक्तों के चश्में, बटुए और मोबाइल छीनने में ये बंदर प्रवीण हैं। कई भक्तों और पुरोहितों ने इन बंदरों के हमलों से लगी चोटें भी मुझे दिखाईं। राज्य सरकार क्या कर रही है? बंदरों और जमीन माफिया ने वृंदावन को बंदरावन बना दिया है।

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