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क्या युवा अपने ठगे जाने का प्रतिरोध करेगा ?

क्या युवा अपने ठगे जाने का प्रतिरोध करेगा ? अपने साथ हुए छलावे के खिलाफ उठ खड़ा होगा ? विकास और रोज़गार के नाम पर वाय- फाय के झुन्झने को फैंककर, अपने खिलाफ हुई साजिश का पर्दाफाश करने के लिए संघर्ष के रास्ते को स्वीकार करेगा  या व्हाट्स अप्प और ट्विटर में उलझकर आत्महत्या का इंतज़ार करेगा ?

<p>क्या युवा अपने ठगे जाने का प्रतिरोध करेगा ? अपने साथ हुए छलावे के खिलाफ उठ खड़ा होगा ? विकास और रोज़गार के नाम पर वाय- फाय के झुन्झने को फैंककर, अपने खिलाफ हुई साजिश का पर्दाफाश करने के लिए संघर्ष के रास्ते को स्वीकार करेगा  या व्हाट्स अप्प और ट्विटर में उलझकर आत्महत्या का इंतज़ार करेगा ?</p>

क्या युवा अपने ठगे जाने का प्रतिरोध करेगा ? अपने साथ हुए छलावे के खिलाफ उठ खड़ा होगा ? विकास और रोज़गार के नाम पर वाय- फाय के झुन्झने को फैंककर, अपने खिलाफ हुई साजिश का पर्दाफाश करने के लिए संघर्ष के रास्ते को स्वीकार करेगा  या व्हाट्स अप्प और ट्विटर में उलझकर आत्महत्या का इंतज़ार करेगा ?

२०१४ के लोकसभा चुनाव ने एक छद्म राष्ट्रवादी परिवार के एक ५६ इंच के जुमलेबाज़ प्रचारक को भारतीय लोकतंत्र का मसीहा बना दिया। एक सतही , फूहड़ व्यक्ति के हाथ में देश की बागडोर आ गयी …फिरका परस्त विद्धवान,  साम्राज्यवादी लेखक उसके नेतृत्व के गुणगान करने लगे … चाय वाले की सफलता को शब्द बद्ध करके सुख सुविधा की आस लगाये मध्यमवर्गीय तबके के लिए हवाई अड्डों पर ये कशीदे सजा दिए गए,  देश में जुमलेबाज़ युग की शुरुआत हो गयी,  बड़े बड़े बैनर लगा दिया गए!
 पूंजीपतियों ने विदेशों में सर्कस कार्यक्रम आयोजित किए भीड़ जुटाई गयी,  ५६ इंच वाला करामाती सीना दिखाया गया,  तालियाँ बजी,  दलाल मीडिया ने लाइव कवर किया,  देश की प्रजा का सीना गर्व से चौड़ा हो गया,  वाह यह होता है.. होना.. और इसी का फायदा साम्राज्यवादी और पूंजीवादी ताकतें उठा रही हैं… हर विदेशी सर्कस के तमाशे के शोर में ये मुनाफाखोर इस ५६ इंच का अंगूठा लगवाते हैं मुनाफाखोरी के सहमति पत्र पर,  और उजागर तौर पर दिए ३० हजार करोड़ के चंदे को वापस लेने का इंतज़ाम करते हैं.. दलाल मीडिया दलाली की दलदल में स्नान कर रहा है और जनता इन विदेशी सर्कस के तमाशों से अनजान है की इन दौरों में पूंजीवादी किसी हिंदी फिल्म के बनिया की तरह सम्पति पर अंगूठा लगवा रहे हैं और मजे की बात ये हैं बिल्कुल फ़िल्मी की एक भी करार जनता के सामने उजागर नहीं होता,  यही मजबूत ५६ इंच के नेतृत्व का सच है और यही भारतीय लोकतंत्र की त्रासदी है ! और इस त्रासदी के नायक हैं १९९२ के बाबरी मस्जिद विध्वंश के बाद पैदा हुए युवा जो २०१४ में अपने वोट देने के संवैधानिक अधिकार के अधिकारी हो गए और अपनी आँखों में सुनहरे अपने लिए,  स्मार्ट फ़ोन और सोशल मीडिया से लैस,  इंस्टेंट सपनों की पूर्ति के लिए विकास की जुमलेबाजी में फंस गए… और एक निहायत ही मुनाफाखोर पार्टी को लोकसभा में बहुत दे दिया.. बिना संघर्ष के… जिसे कहते हैं ना हल्दी लगे ना फिटकड़ी और रंग आये चोखा.. जीत का मन्त्र बना.. विकास का जुमला,  नव पूंजीवादी सपनों से भरा युवा वोटर,  सोशल मीडिया और पूंजीवादियों के हवाई उड़ान पर हवाबाजी करतब और जुमलेबाजी…
देश को भूमंडलीकरण के नव पूंजीवादी विकास के जाल में फंसा कर कांग्रेस के एक प्रधान मन्त्री जन्नत पहुंच गए और तबके वित्त मंत्री और आज के निवर्तमान प्रधान मन्त्री देश में कांग्रेस के सफाये के सूत्रधार बन गए। दरअसल यह पूंजीवादी अजगर है ही ऐसा की किसी को नहीं छोड़ता। इसके जनक और इसके फायदों की मोटी मलाई खाने वाले खुद इसका शिकार हैं… इन देशों की हालत देखिये,  इनकी अर्थ व्यवस्था के दिवालियेपन की खबरें हर समय सुर्ख़ियों में रहती हैं और इस व्यवस्था के पितामह और दुनिया की सुपर पॉवर अधर्म के महाभारतों के कुरुक्षेत्र में मानवी रक्त से मानवीयता और धरती को लहूलुहान कर रहे हैं… जिसका परिणाम,  युद्ध.. युद्ध.. हथियारों की बिक्री से अपनी अर्थ व्यवस्था को बचाये रखना.. और अपने बनाए भस्मासुरों यानि विश्व बैंक और आई ऍम एफ के ज़रिये दुसरे देशों की अर्थ सम्पन्नता का विध्वंश करना,  झूठे विकास के लिए क़र्ज़ के नाम पर उस देश की सम्प्रभुता को नष्ट कर उससे अपने उपर आश्रित बनाकर शोषण करना इनकी अर्थ व्यवस्था को जिंदा रखने के सूत्र हैं। हमारे “ साम्यवादी” पडोसी ने तो “साम्यवाद” के सारे सूत्र बाज़ार में बेचकर अपने को ताकतवर और धनवान बनाने की लाख कोशिश की पर अब उसकी आर्थिक विकास की गति का टायर पंचर हो रहा है।
भारत में भी ये पूंजीवाद का अजगर उस समय नियन्त्रण में था जब यूपीए-१ की सरकार को वाम दलों का समर्थन था उस समय देश की संसद ने ४ ऐतिहासिक जनसरोकारी विधयेक पारित किए और पूंजीवादी व्यवस्था वाले लोकतंत्र में जन सहभागिता को मजबूत किया। इस जनसरोकारी प्रतिबद्धता को तोड़ने के लिए अमेरिका ने विशेष रणनीति बनाई और वो रणनीति है “ परमाणु संधि यानी एटॉमिक डील”।
घोर पूंजीवादी समर्थक प्रधानमंत्री ने इस डील को अपनी नाक का बाल बनाया.. खैर उनकी राजनैतिक मुर्खता समझ में आती है लेकिन अमेरिका का खेल हमारे वाम दल नहीं समझ पाए की दरअसल ये “ परमाणु संधि यानी एटॉमिक डील” ऐसा षड्यंत्र था। जिससे पूंजीवादी नीति मज़बूत हों और भारत की सत्ता में वामपंथ का दखल ख़त्म हो पर वामपंथ का राजनैतिक दिवालियापन ले डूबा देश को ..प्रतिरोध के अंधेपन में देश के राजनैतिक भविष्य को नहीं देख पाए वामपंथी। बावजूद इसके की देश की जनता उनकी राजनैतिक मज़बूरी को समझ रही थी क्योंकि कांग्रेस की नीतियों से असहमति के बावजूद ‘धर्म निरपेक्षता’ के लिए उसका साथ दे रही थी जिसका उन्हें सीधा फायदा हुआ क्योंकि छद्म राष्ट्रवादी शक्तियां प्रमुख विपक्षी दल होते हुए भी सार्वजनिक उपस्थिति दर्ज करने में नाकाम थीं और वामपंथी देश के आज़ाद होने के बाद पहली बार ऐसी अवस्था में थे की पक्ष भी उनका और विपक्ष भी.. यानि दोनों हाथों में लडडू… उपर से पूंजीवादी अजगर पर नियन्त्रण… पर अपनी राजनैतिक मुर्खता की वजह से वो दूरगामी राजनैतिक प्रभावों को नहीं समझ पाए जिसके फल स्वरूप देश पूंजीवादी और छद्म राष्ट्रवादी ताकतों के कब्ज़े में हैं आज।
इस क्रम में और एक घटना है छद्म राष्ट्रवादी सरकार के 6 साल वाले दौर में एक पूंजीवादियों के दलाल हुआ करते थे जो संचार मंत्री भी थे और पूंजीपति गैर कांग्रेसी भारत सरकार को इस दलाल के माध्यम से पैसा मुहैया करा रहे थे। उसी समय भारतीय मध्यम वर्ग संचार क्रांति की प्रतीक्षारत था। इसलिए बिना कोई नीति बनाये “यानी पहले आओ, पहले पाओ” के आधार पर स्पेक्ट्रम नीलाम हए… इंडिया शाइनिंग यानि भारत उदय वाले फरेबी नारे को जनता ने अस्वीकार किया और यूपीए-१ की सरकार बनी।
“परमाणु संधि  यानी एटॉमिक डील” के विरोध में जब  वामपंथियों ने यूपीए-१ से अपना समर्थन वापस लिया तो राजनैतिक विरोधियों ने वामपंथियों को विकास विरोधी करार दिया और मध्यम वर्ग ने उस पर मुहर लगा कर एक बार फिर कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए-२ की सरकार बनी जिसमें छद्म राष्ट्रवादी सरकार की अनीतियों को राजनैतिक पक्षों ने खूब भुनाया और देश की धरोहर को खूब लुटा और लुटवाया!
विज्ञान के महान वैज्ञानिकों ने सारी खोज,  अन्वेषण पूंजीवाद की गोद में बैठकर की और उसके लिए की यानी पूंजीवाद के लिए की और इंसानियत के मसीहा बन गए सबको कहा विज्ञान को अपनाइए.. विज्ञान को अपनाइए.. और पूंजीवादियों ने विज्ञान के नाम पर तकनीक का बाज़ार खड़ा कर दिया। जहाँ उपभोगता विज्ञान के नाम पर कंप्यूटर का उपयोग भगवान की फोटो लगाकर करते हैं क्योंकि तकनीक से जब ‘विज्ञान’ गायब हो जाए तब वो ब्राहमणवादी कर्मकाण्ड बन जाती है! और यही प्रथा शोषण की जननी है। इसलिए विज्ञान के नाम पर तकनीक का ब्राह्मणवादी,  पूंजीवादी बाज़ार खूब उफान पर है और जनता को आधुनिकता के नाम पर छल रहा है जिसका उदाहरण है आधुनिकता के नाम पर नंगा बदन यानि देह प्रदर्शन और दक्षिणपंथी विचार का बाज़ार.. जिस बाज़ार का एक ही मन्त्र है मुनाफा.. मुनाफा और सिर्फ मुनाफा!
विज्ञान से उत्पन्न तकनीक का एक सिरा परमाणु बम से जुड़ा है और दूसरा स्मार्ट फ़ोन के वह्ट्स अप्प और ट्विटर से और इसे बेचने के लिए पूंजीवाद ने जन आवाज़ के नुमाइन्दों को यानी मीडिया में अपना अकूत धन लगाकर मीडिया को अपना दलाल बनाया रुपर्ट मर्डोक इसका सबसे उत्तम उदाहरण है, जिसने पत्रकारिता को मंडी और पत्रकारों को सेल्समैन में बदल दिया। औपनिवैशिक देशों में पत्रकारिता का अंतिम सत्य मानने वाले बीबीसी और सीएनएन की पोल खाड़ी देशों में अस्थिरता फैलाने और इन देशों के प्राकृतिक संसाधनों पर कब्ज़े वाले षड्यंत्र के लिए गढ़े गए झूठ “नरसंहार के हथियारों” के प्रोपोगेन्डा से खुल गयी।
इस पूंजीवादी मंडी में मीडिया रोज़ जन सरोकारों की बोली लगाकर अपना मुनाफा कमाता है.. झूठ,  फरेब,  अर्धसत्य,  सनसनी और बेमानी के मानदंडों वाली ये मीडिया रोज़ “नेशन वांट टू नो” के नाम से अदालत लगाते हैं जहाँ पत्रकारिता की स्वतंत्रता और जन के प्रति जवाबदेही के फार्मूलों का उपयोग करके महा व्यक्तिवादी न्यूज़ एंकर यानी न्यूज़ सेल्समेन राजनेता को धमकाते हैं,  संसद की तौहीन करते हैं,  उद्योगपति स्वयं उस अदालत में बेशर्मी से जन संसाधनों को हथियाने की बेशर्म पैरवी करते हुए सरकार को विकास के छलावे के साथ उनके आदेश को मानने के लिए फरमान देते हैं। मजे की बात यह या निर्ल्लज्जता है की इस भों भों वाली अदालत को लोकतंत्र का रक्षाकवच मानते हुए अपनी तारीफ़ में टीआरपी के गोलमाल से स्वयं की तारीफ़ में कशीदे पढ़ते हैं और  निर्ल्लज्जता का शान से डंका पीटते है हम हैं ७ साल से सबसे निर्ल्लज्ज! और आज के युवा को इस खेल में बड़ी चालाकी से शामिल करते हैं,  मुनादी करते हैं हमसे जुड़िये .. ऐप डाउन लोड करके अपना सन्देश भेजिए .. ट्विटर पर ट्रेंड से जुड़िये और इस चेहरा दिखाओ और इंस्टेंट पब्लिसिटी के दौर में हमारा युवा सहर्ष इस षड्यंत्र का हिस्सा बनता है और हर रोज़ हर पल ठगा जाता है क्योंकि रूप और विचार के फर्क को नहीं समझ पाता। ये नहीं जान पाता की ये विकास और पारदर्शिता के खेवनहार हर पल उसे अपने फायदे के लिए उपयोग कर रहे हैं।
आज “युवा” को अपने जन सरोकारी विचारों से इनके चक्रव्यूह को तोड़ने की ज़रूरत है। युवाओं को जल्द यह  विचार और विवेक सम्मत पहल करने की आवश्यकता है क्योंकि सत्ता के सरमायेदारों ने जैसे गरीब और किसान को एक दुसरे का पर्याय बना दिया और वर्षों से षड्यंत्र पूर्वक उनकी अनदेखी करके उनको आज आत्महत्या पर मजबूर किया है वैसा ही षड्यंत्र रोज़गार के उपलब्ध ना करवाकर ये सत्ता के सरमायेदार ‘युवाओं’ को एक ऐसी परिस्थिति में डाल रहे हैं जहाँ आत्महत्या ही एक मात्र पर्याय होगा। अपनी हालत देखिये ऍमबीए,इंजीनियर की पढाई करने के बाद आप चपरासी की भर्ती की लाइन में लगें या शिक्षामित्र बनकर नौकरी करें और कोर्ट आपको बर्खास्त करे यह कहकर की आप की नियुक्ति गैर क़ानूनी है दरअसल ये पूंजीवाद का घिनौना ब्यूटी कांटेस्ट हैं जहाँ ब्यूटी का प्रसाधन बेचने के लिए एक मिस इंडिया बनाने से काम चल जाता है उसी तरह एक गूगल सीईओ की नियुक्ति से भारत के सारे युवाओं को रोज़गार मिल जाता है! कल्पना कीजिये इस देश की सबसे बड़ी ताकत उसके युवाओं की फांसी पर लटकी हुई, किसानो की तरह तस्वीरें! भयावह और भयानक होने के साथ वीभत्स! मेरे मित्रों इस आत्म मुग्ध सेल्फी के दौर से निकलो क्योंकि यह सेल्फी खीचने वाला एक खतरनाक यमराज है जो अपने इस कदम से भी स्मार्ट फोन का विज्ञापन कर झूठे सपने बेच रहा है जहाँ आप निजी स्कूल,  कॉलेज,  या शिक्षण संस्थाओं में लाखों खर्च कर अपने सुनहरे भविष्य के सपने संजोय हैं और दूसरी तरफ बेरोजगार युवक को स्मार्ट फ़ोन से सेल्फी खीचने में बिजी किया जा रहा है अभी १५ महीने हुए हैं पुरानी सरकार के पाप धो रहे हैं कृपया हमारे एक करोड़ हर वर्ष रोज़गार देने के पापी वायदे के बारे में मत पूछिए बस अच्छे दिनों और विकास का इंतज़ार कीजिये। जैसे ही विदेश में सर्कस के तमाशे से कालाधन वापस आएगा वैसे ही जन धन योजना के खाताधारकों के खाते में जमा हो जाएगा।
युवाओं को अपने राजनैतिक इस्तेमाल से भी बचना होगा,  उस पर पर ध्यान देना होगा नहीं तो राजनीति को एनजीओ समझने वाले तथा कथित गांधीवादी नेता भ्रष्टाचार मुक्त भारत के ढकोसले में फंसकर सत्ता लोलुपों की मदद करेंगें। ना भारत भ्रष्टाचार मुक्त होगा ना ही लोकपाल बनेगा बस कुछ अहंकारी और व्यक्तिवादी आम आदमी की आड़ में लोकतंत्र की कमजोरी का मखौल उड़ाते हुए सत्ता पर काबिज़ हो जायेगें और जनता की सेवा करने की बजाये देश के शिखर पर पहुँचने का जुगाड़ करने में लग जायेगें।
दोस्तों इनका खेल देखिये छद्म राष्ट्रवादी परिवार का षड्यंत्र,  मध्यम वर्ग की त्रस्ता का उपयोग करने की चतुराई भरा प्रयोग। भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के लिए प्रशासन के त्रस्त महत्वाकांक्षी बाबुओं की जमात को जोड़कर एक खुद को आत्म घोषित गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता को आन्दोलन का सिरमोर बनाकर मीडिया को परोस दिया और मीडिया ने अपनी देश भक्ति निभाई और दिन रात उसकी सेवा में जुट गए… लेकिन हुआ क्या यह आपके सामने है.. बात बहुत सरल है गांधी के नाम का उपयोग आसान हैं लेकिन उनकी राजनैतिक समझ किसी के पास नहीं! लेकिन भारत में सत्ता चलानी है तो उनके नाम का जाप ज़रूरी है इसलिए ५६ इंच का सीना भी बापू.. बापू पुकारता है विदेशी सर्कसों में… जिसके लाइव प्रसारण से ‘राष्ट्रवाद’ का नारा बुलंद करेगें भूखे पेट.. और सत्ताधीश राष्ट्रवाद.. राष्ट्रवाद का नारा लगाते हुए,  देश से सांस्कृतिक प्रदूषण खत्म करने की मांग करेंगें,  और इसको खत्म करने के लिए पहला कदम- सभी युवाओं से कहा गया है १०-१० बच्चे पैदा करो.. देश की जनसंख्या बढाओ और ५६ इंच के सपने पूरा करो,  विज्ञान की जगह तंत्र, मन्त्र सीखो,  देश के निर्मातों को गालियाँ दो,  विद्यालयों में गीता और रामायण पढ़ाये जाएँ जिससे ये शिक्षा दी जाए की नारी एक वस्तु है उसको जुए में लगाया जाए… नारी को हमेशा अग्नि परीक्षा देनी होगी और देश निकाले के लिए भी महिला तैयार रहे… रास लीलाओं से देश प्रेम मय हो जाएगा और ना हो तो धर्म की रक्षा के लिए हिंसा का उपयोग जायज है अपना हो या पराया उसका वध करो.. नरसंहार करो और भगवान कहलाओ यानी राष्ट्रवाद मतलब पूरी तरह से ब्राह्मणवाद की वापसी! और इस पर सवाल पूछा तो देशद्रोही करार दिए जाओगे,  भक्तों की फ़ौज धमकायेगी,  पार्टी के प्रवक्ता खुले आम चेतावनी और धमकी देगें दुनिया भर के कुतर्कों से अपना ज्ञान बघारेंगें…
दरअसल १९९२ की ‘रथ यात्रा’ का आज बैठे बिठाये एक पार्टी को उसका लाभ मिल रहा है वो भी सूद समेत यानी पूर्ण बहुमत। कांग्रेस की नव उदार नीति ने एक निश्चित समय तक एक जादुई असर दिखाया। कम्प्यूटर क्रांति हो गयी,  युवाओं को रोज़गार मिला,  मिलियन एयर हुआ एक तबका,  थोड़े दिन देश की जीडीपी ९-१० प्रतिशत रही… पर पूंजीवाद को स्थायीतत्व कहाँ रास आता है वो तो विकास की गाजर दिखाकर देश के सभी संसाधनों पर कब्जा करना चाहता हैं और उसने सरकारी सम्पतियों को विनिवेश के ज़रीये अपने नाम करा लिया।  नीलामी से देश के प्राकृतिक संसाधनों यानि खनिज , जल,  जंगल और जमीन की लूट जारी है। बिजली,  सड़क इत्यादि पहले से पूंजीपतियों के हाथ है,  इतना करने पर भी पूंजीवादी संतुष्ट नहीं हुए,  उनकी मुनाफाखोरी और देश के बाबुओं, राजनेताओं की कालाबाजारी ने विकास की हवा निकाल दी.. अचानक रोज़गार की आई बाढ़ सुख गयी,  कालेधन की  वापसी और भ्रष्टाचार खत्म करने का अभियान चला,  घोटाला.. घोटाला देश में गूंजने लगा,  छद्म राष्ट्रवादी ताकतों ने संवैधानिक संस्थाओं में घुसपेट कर सरकार के खिलाफ़ आकडे और बयानबाज़ी करवाई,  उसके निमित संसद नहीं चलने दी और संसद नहीं चलने देना भी लोकतंत्र है के जुमले को जमकर आजमाया और क्रियान्वित किया। संसद की बजाये ‘सर्वोच्चय न्यायलय’ ने राजनैतिक दिशा निर्देश देना शुरू किया। विदेशी पत्र पत्रिकाओं को भारत की चिंता होने लगी उन्होंने अपने मुख पत्र के प्रथम पृष्ठ पर भारत के पालिसी पैरालिसिस पर लेख लिखे। उसी समय पूंजीवादी देश के राज्य की अस्मिता के नाम का व्यापारिक दोहन कर रहे थे उसको वाइब्रेंट राज्य का नाम दिया गया.. असल में पूंजीवादी अपनी मुनाफाखोरी में राष्ट्रवाद,  राष्ट्रीय अस्मिता का तड़का लगाना चाहते थे और उनका ये प्रयोग ५६ इंच का सीना लेकर राष्ट्रीय पटल पर अवतरित हुआ।  
असल में विदेशी ताकतों को पालिसी पैरालिसिस से क्यों तकलीफ हो रही थी उसकी वजह थी.. हथियारों की खरीद फरोक पर रोक। जिससे इन विदेशियों की अर्थ व्यवस्था चरमरा रही थी.. जिन देशों की इकॉनमी हथियारों की बिक्री पर आधारित हो वो देश इस पालिसी पैरालिसिस से दुखी थे और इसके निवारण के लिए उन्होंने भारत के विकास रुकने का हवाला दिया,  प्रधान मंत्री की निर्णय क्षमता पर सवाल खड़े किए,  छद्म राष्ट्रवादीयों के माध्यम से सेना के अधिकारियों से बयान दिलवाए की सेना के पास सिर्फ २१ दिन का आयुध भंडार है। जनता में देश की सुरक्षा के संदर्भ में भय निर्माण किया गया। अब इस खेल को समझें,  जिस देश की नीति आत्म रक्षा हो, उसके पास परमाणु बम हों उसे ३६५ दिन लड़ने का आयुध या अस्त्र क्यों चाहिए?  आत्म रक्षा नीति वाली १० लाख की फ़ौज के लिए २१ दिन का आयुध भंडार और परमाणु बम किसी भी दुश्मन को धुल चटाने के लिए काफी हैं। असल में जिन देशों की इकॉनमी हथियारों की बिक्री पर आधारित है उन्होंने अपने फायदे के लिए ये कुप्रचार किया और करवाया और उसका प्रतिफल देखिये ५६ इंच के सीने वाली सरकार ने शपथ ग्रहण के बाद सबसे पहला निर्णय लिया और वो निर्णय है देश की रक्षा के लिए अत्य आधुनिक हथियारों की खरीद को मंजूरी दी जिसमें अमेरिका का सबसे बड़ा हिस्सा है और उसके परिणाम स्वरूप वहां के राष्ट्रपति हमारे राजपथ पर गणतंत्र दिवस पर हाजिर हुए और ५६ इंच के सीने को महान बताया अपने देश के फायदे के सारे काम किये और भारत को जुमला दिया बड़े बड़े देशों में छोटी छोटी बातें होती रहती हैं सोनू रीटा… पर उस दिन से अब तक देश की पश्चिमी सीमा पर गोलियों की बौछार है रोज़ सैनिक और आम जनता शहीद हो रहे हैं,  दालों के दाम दुगने हो गए हैं महंगाई और भ्रष्टाचार चरम पर है और ५६ इंच का सीना मौन है। यह सारे खेल युवाओं को अपने सेल्फी अभियान से निकल कर समझने होंगें की किस का विकास हुआ,  किसका होना है,  किसके लिए पालिसी पैरालिसिस था,  किसके हक़ में निर्णय हो रहे हैं… क्यों आज पूर्व सैनिक भूख हड़ताल पर बैठें हैं और अपने आप को ‘राष्टवादी’ बताने वाले ‘मौन’ हैं।
इन छद्म राष्ट्रवादीयों को उभारने में जनवादियों की निष्क्रियता का भी बहुत बड़ा योगदान है. असल में जनवादी प्रतिरोध में ही खप्प गए। जनवादी आजतक इतनी सरल बात नहीं समझ पाए और दुःख इस बात का है की वो समझने को तैयार नहीं हैं कि प्रतिरोध के साथ ‘अग्रिम नियोजन और नीति’ निर्माण आवश्यक है। प्रतिरोध से ये जनवादी राजनैतिक पक्ष की बजाए समाज सेवा संस्था बन गए और जनता इनको इमानदार,  संघर्षशील,  जन हितैषी,  प्रतिबद्ध,  विचारवान, मानते हुए भी इनको वोट नहीं देती क्योंकि जनवादी वोट की राजनीति नहीं करते और खुद को राजनैतिक कार्यकर्त्ता नहीं मानते और अपने पक्ष को राजनैतिक पक्ष के तौर पर पेश नहीं करते बस क्रांति के इंतज़ार में कंकाल हुए जा रहे हैं पर राजनैतिक पहल क्रान्ति का एजेंडा देश की जनता के सामने मुखर होकर नहीं रखते। आधुनिक भारत के लिए इनके पास कोई विज़न नहीं हैं और है तो उसको जनता के सामने नहीं रखते और इनसे जुड़े तथा कथित बुद्धिजीवी,  साहित्यकार,  संस्कृतिकर्मी,  अपने ही दम्भ,  निष्क्रियता और सूडो सेक्युलरवाद,  प्रतिद्वंद्वता के शिकंजे में स्वयं को जकड़े हुए हैं जो यदा कदा गुर्रा कर चुप हो जाते हैं,  अपने कर्म से किसी को डरा धमका भी नहीं पाते,  प्रेरणा देना तो दूर की बात !
अब इस चक्रव्यहू को ‘युवा’ समग्रता में समझे,  अपने मुद्दों को स्वयं हाथ में ले अगर ऐसा युवा अभी नहीं करेगा तो उसके जायज मुद्दों को गलत दिशा देकर संविधान के खिलाफ युवाओं को ये छद्म राष्ट्रवादी ताकतें विविधता वाले देश के युवाओं को आपस में लड़वायेगी जिसका बिगुल पिछले दिनों एक ‘विकास’ के मॉडल प्रदेश में बज चुका है।
क्या मेरे देश का १९९२ के बाद पैदा हुआ युवा अपनी आँखें खोलेगा?  क्या वो अपने देश के इतिहास और आने वाली चुनौतियों को समझेगा?  और उससे समझने के लिए झूठ और फरेब से भरे विकिपीडिया और इन्टरनेट पर उपलब्ध जानकारियों तक सीमित ना रहकर इस देश के ग्रंथालयों की खाक़ छानेगा?  या भारत भ्रमण करके आधुनिक भारत को खोजेगा? या पूंजीवादी मीडिया के चकाचौंध भरे विज्ञापनों,  स्मार्ट फ़ोन की सेल्फी के सुख में मस्त रहेगा और उस दिन का इंतज़ार करेगा जब सत्ता लोलुप आपको आपस में लड़वाकर सत्ता सुख भोगते रहेगें और आप ‘युवा’ किसान की तरह अपना सब कुछ बेचकर आत्म हत्या को मजबूर हो जायेगें और ५६ इंचवादी सीना जन सभाओं में विकास के नाम जुमलेबाजी अर्पित करने का पुण्य करते रहेगें। एक झूठ सौ बार बोलने पर सच हो जाता है के फरेब को आजमाते रहेगें और ऐसे वैचारिक अँधेरे में आपको रौशनी देने वाला कोई विचारक नहीं बचेगा  क्योंकि तब तक दाभोलकर, पानसरे,  कुलबर्गी शहीद हो चुके होंगें और हिंदी के थोथे लेखक सरकारी अकादमियों के पुरस्कार की बंदर बाँट में अपना हिस्सा लपकने में लगे होंगें और ये लेख लिखने वाला रंगकर्मी मार दिया जाएगा और आप मोमबत्तियां जलाकर विरोध प्रदर्शन कर रहे होंगें या हो सकता है आपको पता ही ना चले की किसी रंगकर्मी की हत्या हो गयी क्योंकि ५६ इंच वादियों का एक ही मन्त्र है की हमारी आलोचना करने वाला हर व्यक्ति विकास और राष्ट्र विरोधी है!

मंजुल भारद्वाज
मोबाइल-09820391859

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