जहां चाह वहा राह। अंत में वही हो भी गया। यूपी चुनाव में मायावती की राजनितिक केमिस्ट्री दलित और मुसलमान को खबदित करने के लिए बीजेपी रास्ता तलाश रही थी। बीजेपी को पता था की बिना दलित और मुस्लिम को खंडित किये बिना चुनाव जितना संभव नहीं है। यानि दलितों के वोट बैंक में बीजेपी की भी हिस्सेदारी हो। खोजते खोजते बीजेपी ने अपने बाबा साहब आंबेडकर के ही समकालीन और पकिस्तान के संविधान निर्माता जोगेंद्र नाथ मंडल को निकाल लाई है। मंडल दलित समुदाय से है।
मंडल पाकिस्तान संविधान के निर्माता तो बने लेकिन वहा की मुस्लिम राजनीति से आजिज होकर अंत में भारत आ गए थे। अब बीजेपी , मंडल के यशो गान के जरिये यूपी के दलितों को यह बताने जा रही है की मंडल जैसे दलित विद्वान को पाकिस्तान के मुसलमानो ने देश में नहीं रहने दिया। यानि दलित और मुसलमान कभी एक नहीं हो सकते। बड़ा खेल है। अगर यह खेल निशाने पर लगा तो तय मानिए मायावती के दलित वोट में बीजेपी सेंध लगा देगी। संघ और बीजेपी की इस राजनीति को मानना पडेगा भाई।
यूपी में गठबंधन होगा जरूर
बिहार चुनाव से पहले समाजवादी दलों के बीच एका की राजनीति शुरू हुयी थी , असफल रहा। एका की जगह महागठबंधन सामने आया। जो खेल हुआ , परिणाम सबके सामने है। यूपी चुनाव से पहले गठबंधन की राजनीति से इंकार नहीं किया जा सकता। ८ से ज्यादा मुस्लिम पार्टियों ने मोर्चा बनाया है। यह मोर्चा वोटकटवा सावित हो सकता है। सबको इससे डर है। बेनी प्रसाद चाहते है की कांग्रेस , सपा और रालोद का गठबंधन बने। कांग्रेस के गुलाम नवी आजाद और प्रशांत किशोर इस गठबंधन को बल दे सकते है। बाद में मुलायम सिंह के नेतृत्व में राजद और जदयू भी इसमें आ सकता है। दूसरी ओर कांग्रेस का बसपा के साथ भी समझदारी ठीक है। यह गठबंधन भी हो सकता है। अंत में कांग्रेस और जदयू, राजद का गठबंधन तो हो ही सकता है। देखिये आगे क्या क्या होता है?
लेखक Akhilesh Akhil वरिष्ठ पत्रकार हैं.