एक जून 2008 की बात है. सुबह-सुबह भोपाल से मेरे मित्र श्री रोहित मेहता का फोन आया. श्री रोहित मेहता भोपाल के जनसंम्पर्क विभाग में संयुक्त संचालक हैं. मोबाइल पर मेरी आवाज सुनते ही उन्होंने कहा ‘बधाई हो, तुम्हें राजबहादुर स्मृति व्याख्यान माला के निर्णायक मंडल ने वर्ष 2008 के प्रतिष्ठित ‘रक्तसूर्य पुरस्कार’ के लिये चुना है. यह सम्मान हर साल सामाजिक सरोकार एव जन मुददों को अपनी कलम के माध्यम से रेखांकित करने वाले प्रदेश के किसी एक पत्रकार को दिया जाता है’. श्री रोहित मेहता ने यह भी कहा कि दूसरी खुशखबरी ये है कि यह सम्मान तुम्हें भारत के प्रख्यात पत्रकार और शब्दों के जादूगर श्री प्रभाष जोशी के हाथों दिया जायेगा. चार जून को भोपाल में एक कार्यक्रम आयोजित होगा, जिसमें तुम्हें आना है.
सच कहूं तो मुझे सम्मान मिलने की इतनी खुशी नहीं हुई जितनी प्रसन्नता इस बात को लेकर हुई कि मुझे यह सम्मान श्री प्रभाष जोशी के हाथों से मिलेगा। प्रभाष जोशी हम जैसे पत्रकारों के लिये एक आदर्श थे. जिन दिनों वे ´जनसत्ता´ में संपादक हुआ करते थे, उस वक्त जनसत्ता में प्रकाशित होने वाले ´खोज खबर´ पृष्ठ के लिये मैं जबलपुर से आलेख भेजा करता था. जनसत्ता में ही प्रकाशित हुये एक आलेख ´अठन्नी फेंको, मौत का तमाशा देखो´ पर मुझे जबलपुर पत्रकार संघ का ´पं0 मुंदर शर्मा स्मृति खोजी पत्रकारिता पुरस्कार´ भी मिला था. प्रभाष जी से मिलने और उनसे बात करने का मेरे लिये यह पहला मौका था.
मैं चार जून को जब भोपाल पहुंचा तो कार्यक्रम के पहले मैं उनसे मिलने वहां जा पहुंचा जहां वे रुके हुये थे. मैंने उन्हें अपना परिचय दिया और चरण छूकर कहा कि यह मेरा सौभाग्य है कि मैं आपके हाथों सम्मानित हो रहा हूं. काफी देर तक श्री प्रभाष जी से चर्चा होती रही. कुछ और लोग भी उनसे मिलने आये थे और वे सबको उतना ही महत्व दे रहे थे. शाम को समन्वय भवन में उनके हाथों जब मुझे सम्मान मिला तो मैंने अपने आप को बेहद गौरवान्वित महसूस किया. जब मुझसे दो शब्द बोलने के लिये कहा गया तो मैंनें कहा- ´सचमुच यह मेरे पत्रकारिता के जीवन का स्वर्णिम दिन है कि एक ऐसे महान पत्रकार और संपादक के हाथों मुझे सम्मानित हाने का सौभाग्य मिल रहा है जिसकी लेखनी का लोहा सारा देश मानता है´. प्रभाष जी ने मुझे आशीर्वाद दिया और करीब एक घंटे तक उन्होंने भारत की पत्रकारिता के साथ साथ महात्मा गांधी द्वारा लिखित पुस्तक ´हिन्द स्वराज्य´ के बारे में भी अपने विचार व्यक्त किये .
श्री प्रभाष जोशी जी के साथ यह मेरी पहली और अंतिम मुलाकात थी. मैं सोच भी नहीं सकता था कि डेढ़ साल के छोटे से अंतराल में श्री प्रभाष जोशी स्व. प्रभाष जोशी हो जायेंगे. उस महान पत्रकार को मेरी विनम्र श्रद्वांजलि.
लेखक चैतन्य भट्ट पीपुल्स समाचार, जबलपुर के स्थानीय संपादक हैं.