राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस के अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार श्रीपाल जोशी ने कहा कि मीडिया में गरीबों, शोषितों की बात करने वाला नक्सली बन जाता है। मीडिया में तटस्थता और निष्पक्षता का मतलब मीडिया के मालिकों का हित बनकर रह गया है। पूरी पत्रकारिता कारपोरेट हो गई है। अन्याय, पीड़ा और अत्याचार छापने वाले वर्तमान में सबसे ज्यादा पीड़ा का सृजन कर रहे हैं। कुशाभाउ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय रायपुर में आयोजित कार्यक्रम में छात्रों को संबोधित करते हुए वरिष्ठ संचार विशेषज्ञ श्रीपाल जोशी ने कहा कि वर्तमान में प्रभाष जोशी के युग की पत्रकारिता मर गई है। अमेरिकन और यूरोपियन सिद्धांतों पर पत्रकारिता की शिक्षा दी जा रही है। उन्होंने इस पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि यही कारण है कि बड़ा किसान आज मजदूर बन रहा है और शहरों की गंदी बस्तियों में रहने के लिए मजबूर है।
श्री जोशी ने कहा कि आज ऐसे लोग नहीं के बराबर हैं जो अपने मूल्यों के लिए आंदोलन करें और कष्ट सह सकें। पहले जब संचार माध्यम राज्यों के हवाले था और राज्य सरकारों से आम हाथों में आया, उसके बाद हालत और बिगड़ा। इसका नतीजा है कि मीडिया चंद लोगों के हाथों में चला गया है। खोजी पत्रकारिता का मतलब बेड रूम तक पहुंचना हो गया है, वहीं रियलिटी शो का मतलब इस देश की रियलिटी नहीं बल्कि राखी का स्यंबर है। कार्यक्रम में भोपाल से पहुंचे वरिष्ठ पत्रकार कमल दीक्षित ने वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी से अपने संबोधन को शुरू करते हुए कहा कि उनमें सरोकारी और मूल्य भ्रष्ट होती पत्रकारिता को लेकर चिंता थी। पत्रकारिता लगातार गैर जिम्मेदाराना हुई है। निष्पक्षता और सरोकारी पत्रकारिता हाशिए पर चली गई है। इसके लिए उन्होंने उपभोक्तावाद और बाजारवाद को जिम्मेदार बताया।
श्री दीक्षित ने कहा कि कुछ दशक के बाद से मीडिया में नियंत्रण करने वालों में होड़ मची हुई है। सत्ता और पूंजी वालों के अलावा बिल्डरों और ठेकेदारों का मीडिया पर नियंत्रण हो गया है। वे अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए मीडिया को सबसे सस्ता साधन मानते हैं। यही कारण है कि मीडिया आज पिछड़े क्षेत्रों के उत्थान के लिए काम नहीं कर रही है। मीडिया को खुद से आत्म अवलोकन कर नियम बनाना चाहिए। दस वर्षों से पत्रकारिता को कैरियर के रूप में ही देखा जाने लगा है। इसमें कैरियर के अलावा रसूख और ग्लैमर आ गया है। मीडिया सही को गलत और गलत को सही करने का काम कर रहा है। इस पर चिंता करने वालों की संख्या भी काफी कम है। प्रभाष जोशी के निधन पर उन्होंने कहा कि निधन की खबर अखबारों में सिंगल कालमों में सिमट गई। जनसत्ता के लिए उन्होंने पूरी जिंदगी बिताई। वहां भी निधन के बाद उन्हें खबरों में पर्याप्त सम्मान नहीं मिला। ऐसी बेईमानी और वाहियात स्थिति सोचनीय है। इन मीडिया माध्यमों से उन पर अच्छी चर्चा ब्लागों में हुई।
उन्होंने प्रभाष जोशी द्वारा छात्रों के लिए कहे गए एक कथन को दुहराया – ‘मैं ज्योतिषियों के पास नहीं जाता। मेरा भविष्य तो आप हैं। पत्रकारिता का भविष्य बनाएंगे तो वह मेरा भविष्य होगा।’ पत्रकारिता दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुलपति सच्चिदानंद जोशी सहित प्रोफेसर और विश्वविद्यालय से अध्ययन कर निकले मीडियाकर्मी मौजूद थे।