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मीडिया मंथन

मीडिया इंस्टीट्यूटों की इंटर्नशिप दिलाने भर की औकात नहीं

[caption id="attachment_2262" align="alignleft" width="102"]धर्मेंद्र केशरीधर्मेंद्र केशरी[/caption]मीडिया यानी दोधारी तलवार : पिछले दिनों भड़ास4मीडिया पर एक खबर पढ़ने को मिली कि दो नवोदित पत्रकारों ने इस इंडस्ट्री से आजिज आकर पत्रकारिता छोड़कर कुछ और करने का फैसला लिया है। पढ़कर दुख भी हुआ और क्षोभ भी। वैसे पत्रकारिता की डगर आसान नहीं रह गई है। कारण साफ है कि ये अब मिशन नहीं रह गया, बल्कि पूंजीवादी बेड़ियों में जकड़ा हुआ है। जो जड़ें पहले समाज में मजबूत हुआ करती थीं, वो जड़ें अब व्यवसायियों के घरों में जज्ब होती जा रही हैं। ये कहानी सिर्फ उन दो पत्रकारों की नहीं है, बल्कि अधिकतर नवोदितों के मन में ये ख्याल आने लगा है। इस खबर से मुझे मेरे पत्रकारिता संस्थान के दोस्तों की याद आ गई। हम सभी ने आइबीएन7 में इंटर्न के रूप में सफर शुरू किया था। एक महीने की मियाद खत्म होने के बाद सभी अपना रिज्यूम लेकर अखबारों और चैनलों के चक्कर काटने लगे। एक महीना बीता, दो महीने बीते, तीन बीत गया, पर कहीं से कुछ हो ही नहीं पा रहा था। रोजगार न मिलता देख कइयों ने पीआर की ओर रुख किया। कइयों ने एमबीए या अन्य प्रोफेशनल कोर्स करने के बाद भविष्य बनाना बेहतर समझा।

धर्मेंद्र केशरी

धर्मेंद्र केशरी

धर्मेंद्र केशरी

मीडिया यानी दोधारी तलवार : पिछले दिनों भड़ास4मीडिया पर एक खबर पढ़ने को मिली कि दो नवोदित पत्रकारों ने इस इंडस्ट्री से आजिज आकर पत्रकारिता छोड़कर कुछ और करने का फैसला लिया है। पढ़कर दुख भी हुआ और क्षोभ भी। वैसे पत्रकारिता की डगर आसान नहीं रह गई है। कारण साफ है कि ये अब मिशन नहीं रह गया, बल्कि पूंजीवादी बेड़ियों में जकड़ा हुआ है। जो जड़ें पहले समाज में मजबूत हुआ करती थीं, वो जड़ें अब व्यवसायियों के घरों में जज्ब होती जा रही हैं। ये कहानी सिर्फ उन दो पत्रकारों की नहीं है, बल्कि अधिकतर नवोदितों के मन में ये ख्याल आने लगा है। इस खबर से मुझे मेरे पत्रकारिता संस्थान के दोस्तों की याद आ गई। हम सभी ने आइबीएन7 में इंटर्न के रूप में सफर शुरू किया था। एक महीने की मियाद खत्म होने के बाद सभी अपना रिज्यूम लेकर अखबारों और चैनलों के चक्कर काटने लगे। एक महीना बीता, दो महीने बीते, तीन बीत गया, पर कहीं से कुछ हो ही नहीं पा रहा था। रोजगार न मिलता देख कइयों ने पीआर की ओर रुख किया। कइयों ने एमबीए या अन्य प्रोफेशनल कोर्स करने के बाद भविष्य बनाना बेहतर समझा।

शायद लोग मेरी बातों का विरोध करें, लेकिन जब तक पत्रकारिता में भाई-भतीजावाद और ‘एप्रोच, रिफरेंश व जुगाड़ जैसे शब्द रहेंगे, पत्रकारिता से मोहभंग के शिकार पत्रकारों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जाएगी, क्योंकि आजकल बिना जुगाड़ के पत्रकारिता में शुरुआत भी मुश्किल है। ये दलील हो सकती है कि अगर आपके अंदर प्रतिभा होगी तो लोग उसकी कद्र जरूर करेंगे, पर प्रतिभा का मौका तो तभी मिलेगा, जब एक शुरुआत मिले। जब शुरुआत मुश्किल हो जाती है तो प्रतिभा का आंकलन नामुमकिन है। मंदी के साए में मीडिया इंडस्ट्री इस कदर प्रभावित हुई है कि आज भी कोई अपनी नौकरी को स्थाई रूप से नहीं देखता है। जब कई साल से काम कर रहे मीडियाकर्मियों का हाल बुरा है तो नवोदितों की और भी हालत खराब हो जाती है। यही वजह है कि पत्रकारिता में कदम रखने के बाद वो अपने पैर वापस खींच लेते हैं। ये बहुत बड़ा सच है कि अधिकतर युवा ग्लैमर की चाह में इस ओर निकल तो पड़ते हैं, लेकिन जब संघर्ष की बात आती है तो पसीने छूट जाते हैं। इसलिए इस क्षेत्र को ग्लैमर मानकर आने वाले यहां घुसने की भूल न करें तो ही बेहतर है। भले ही पत्रकारिता को ग्लैमर की हवा लग गई हो, लेकिन इसकी राह न पहले आसान थी और न अब है। जब से पूंजी ने पत्रकारिता में सेंध मारी है, तब से हालत और भी खराब हो गई है।

वैसे कुकुरमुत्ते की तरह उग रहे मीडिया इंस्टीट्यूट भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। कुछ संस्थानों को छोड़ दिया जाए तो अधिकतर की औकात अखबार या चैनल में इंटर्नशिप दिलाने भर की नहीं है, लेकिन छात्रों को ऐसा भरमाएंगे कि वो बस फंस जाएगा। लाखों रुपए ऐंठने के बाद भविष्य के कलमवीरों को भाग्य के हवाले कर दिया जाता है। अब आप ही सोचिए, इंटर्नशिप के लिए ये संस्थान कुछ कर नहीं पाते, तो नौकरी क्या खाक दिलाएंगे। कई संस्थान तो ऐसे हैं, जो कहते हैं फलां चैनल हमारा है, लेकिन बात नौकरी की आती है तो एडिटोरियल में अपने टॉपरों का इंटरव्यू तक नहीं करा पाते हैं। इंस्टीट्यूट में वही छात्र, जब प्रोफेशनल लाइफ में घुसता है तो संस्थान के झूठ से उसका मोहभंग हो जाता है और वो पत्रकारिता छोड़ किसी और राह पर निकल पड़ता है। हम सब भी उस मोड़ से गुजर चुके हैं और गुजर रहे हैं, इसलिए उनकी तकलीफ को समझ सकते हैं। पत्रकारिता में करियर शुरू करने वाले हर मित्र से मेरा यही कहना है कि धैर्य की पराकाष्ठा तक धैर्य रखने की क्षमता हो और पत्रकारिता और खबरों के प्रति जुनून के अलावा इस पेशे को लेकर मन में सम्मान हो, तभी उतरें तो कुछ कर पाएंगे।

धर्मेंद्र केशरी

कॉपी एडिटर, दैनिक ‘आज समाज’

नई दिल्ली

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