आप आस्ट्रेलिया आये और नेड केली की रोचक कहानी सुने बिना चले जाएँ, यह संभव नहीं. अंग्रेजी सत्ता को चुनौती देने के जुर्म में २५ साल के आयरिश नौजवान नेड केली को सन १८८० में अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी पर लटका दिया था. मेलबर्न की ओल्ड जेल (आज म्यूजियम) की कालकोठरी और उस स्थान को देखकर मैं हैरत में पड़ गया, जहां नेड को आनन- फानन में फाँसी दी गयी. आस्ट्रेलिया के मंझे हुए कलाकारों द्वारा एक घंटे के नाटक का मंचन देखकर मैं मंत्रमुग्ध हो गया. यह नाटक नेड की जिन्दगी पर फांसी स्थल पर होता है. मजेदार बात यह है कि नेड की जिन्दगी को जिसने भी जानने की कोशिश की वह बहता ही चला गया.
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आस्ट्रेलिया में हिंदी की अलख जगाए हुए हैं भारत के सपूत
अपने देश में राष्ट्रीय भाषा होते हुए भी हिंदी को अपनी लड़ाई लड़नी पड़ रही है. यह हैरत की बात है लेकिन खुशी की नहीं. पर मेलबर्न में हिंदी की लड़ाई की खबर सुन मुझे हैरत भी हुई और खुशी भी. पैसा, सोहरत और सम्मान की खोज में भारतीय विदेश में बस रहे है. प्रतिभा और लगन इसमें लोगों की मदद कर रही है. विदेश में बसने के 10-15 वर्ष निकलने पर सब को अपनों की याद सताती है. शुरू के साल शानदार जीवन जीने में निकल जाते हैं. लेकिन सब कुछ पाने के बाद अचनक दुनिया सूनी-सूनी सी लगती है और यादें पीछा करती हैं. इस बात का आभाष मुझे मेलबर्न में बसे भारतीयों से बात करने के बाद हुआ. वतन के प्रति निष्ठा एक भले इंसान में जीवन पर्यन्त रहती है. वतन से दूर रहकर यह निष्ठा और मजबूत होती है. धीरे-धीरे यह निष्ठा उसका बल बनती है.