नई दिल्ली : योजना आयोग के उस रिपोर्ट को वामपंथी पार्टियों ने फ्राड कहा है जिसके तहत केंद्र सरकार ने देश में गरीबों की संख्या को घटा दिया है. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्यसभा नेता सीताराम येचुरी ने बताया कि गरीबों की संख्या घटाने के चक्कर में सरकार ने इस देश की गरीब जनता का मजाक उड़ाया है और आंकड़ों की बाजीगरी के चलते देश को भुखमरी की तरफ धकेलने की साज़िश रची है. सीताराम येचुरी ने कहा कि अब तक यह माना जाता था कि शहरों में जिसके पास अपने ऊपर खर्च करने के लिए ३२ रुपये प्रतिदिन के लिए उपलब्ध हो वह गरीब नहीं होता, जबकि ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों के पास अगर २६ रुपये हों तो वह गरीबी रेखा के ऊपर माने जायेंगे. सरकार ने अब गरीब आदमी की परिभाषा बदल दी है. नए फार्मूले के हिसाब से शहरों में जिसके पास अपने ऊपर खर्च करने के लिए २८ रुपये होगा वह गरीब नहीं रह जाएगा जबकि गाँवों में जिसके पास रोज़ के 22 रुपये होंगे, वह गरीबी रेखा के ऊपर माना जाएगा.
सीताराम येचुरी का दावा है कि यह सरकार की तरफ से की जा रही आंकड़ों की हेराफेरी है. इस हेराफेरी के ज़रिये खाने की चीज़ों पर दी जाने वाली सब्सिडी को कम करने की कोशिश की जा रही है. बीजेपी ने भी आंकड़ों के ज़रिये गरीबों की संख्या घटाने की सरकार की कोशिश को गलत बताया. उसका कहना है सरकार को एक कमेटी बनाकर गरीबी रेखा के बारे में फैसला करना चाहिए. वामपंथी पार्टियों ने आज सरकार पर जम कर हमला बोला. उनका आरोप है कि गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों की संख्या कम करके सरकार उन सरकारी स्कीमों से सब्सिडी हटाना चाहती है जो गरीबों के लिए चलाई जा रही हैं. इसमें अन्त्योदय और ग्रामीण रोज़गार जैसी स्कीमें शामिल हैं. सीपीएम का कहना है कि केंद्र सरकार गरीबों की रोटी छीनकर धन्ना सेठों को संपन्न बनाना चाहती है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के बहुत सारे ऐसे फैसले हैं जिनमें सरकार को हिदायत दे गयी है कि लोगों के लिए अच्छा जीवन स्तर सुनिश्चित करना सरकार की ज़िम्मेदारी है. लेकिन क्या गरीबी की परिभाषा बदल कर गरीबी हटाई जा सकती है या केंद्र सरकार ने मन बना लिया है कि गरीबों का मजाक उड़ाया जायेगा.
सीताराम येचुरी ने आरोप लगाया कि सरकारी खजाने को लूट कर केंद्र सरकार धन्नासेठों को और दौलत देने की कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा कि बजट में सरकार ने कहा है कि वित्तीय घाटा जीडीपी का ५.९ प्रतिशत हो गया है. यह घाटा पांच लाख २२ हज़ार करोड़ रुपये के बराबर है, जबकि बजट में ही बताया गया है कि केंद्र सरकार ने उसी साल में पांच लाख २८ हज़ार करोड़ रुपये के टैक्स की छूट दी है. टैक्स छूट का मतलब यह है कि सरकार ने यह ऐलान किया है वह जान बूझकर इतना टैक्स नहीं वसूलेगी. अगर यह टैक्स वसूले गए होते तो बजट में वित्तीय घाटा बिल्कुल नहीं होता. बल्कि ८ हज़ार करोड़ रुपये का फ़ायदा हुआ होता. वामपंथी पार्टियों का आरोप है कि अब सरकार रासायनिक खाद से ६ हज़ार करोड़ की सब्सिडी हटा रही है, ३० हज़ार करोड़ रुपये का बंदोबस्त सरकारी कम्पनियों को बेचकर किया जाएगा. यह सब वित्तीय घाटे को दुरुस्त करने के लिए किया जा रहा है. सच्ची बात यह है कि अगर सरकार ने धन्नासेठों को टैक्स में ५ लाख २८ हजार करोड़ से ज़्यादा की छूट न दी होती तो इसकी कोई ज़रुरत नहीं पड़ती.
जब उनको याद दिलाया गया कि कारपोरेट घरानों को सरकार टैक्स में भारी छूट इसलिए देती है कि उनसे रोज़गार बढ़ता है और वे उत्पादन बढ़ाकर सरकारी खजाने में धन देते हैं. सीताराम येचुरी ने इस बात को बिकुल गलत बताया. उन्होंने कहा कि जब से इस तरह की भारी छूट की बात शुरू हो गयी है तब से इस देश के ५५ घरानों के बीच देश की जीडीपी का एक तिहाई हिस्सा केंद्रित हो गया है. देश की १२० करोड़ आबादी के हिस्से केवल दो तिहाई संपत्ति ही बचती है. इस तरह की सोच पर आधारित यह अर्थव्यस्था बहुत बड़ी मुसीबतों को दावत देने जा रही है, जहां पूंजीपतियों को दिया जाने वाली टैक्स में छूट विकास के लिए प्रोत्साहन माना जाता है, जबकि गरीब आदमी को मिलने वाली सब्सिडी को बोझ माना जाता है. लोकसभा में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता बासुदेव आचार्य ने कहा कि पूंजीपतियों को टैक्स में छूट देकर सरकार रोज़गार नहीं बढ़ा रही है. पिछले एक साल में ३५ लाख नौकारियाँ कम हो गयी हैं जबकि गरीबों को दी जाने वाली २ लाख १६ हज़ार करोड़ की सब्सिडी बचाकर सरकार वित्तीय घाटा कम कर रही है. इसी बीच एक लाख सात हज़ार करोड़ का आर्थिक पैकेज कुछ निजी कंपनियों को दिया गया है. वामपंथी पार्टियों का आरोप है कि सरकार गरीब आदमी को लूट कर धन्नासेठों को और दौलतमंद बना रही है.
लेखक शेष नारायण सिंह वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं. वे कई संस्थानों में काम कर चुके हैं. इन दिनों जनसंदेश टाइम्स में रोविंग एडिटर के रूप में कार्यरत हैं.