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क्‍या नगद सब्सिडी में भ्रष्‍टाचार की गुंजाइश खतम हो जाएगी?

केन्द्र सरकार अब अगले माह से नगद सब्सिडी की योजना प्रारंभ कर रही है. इसका मकसद सतही तौर पर गरीबों को सस्ता केरोसिन, अनाज और किसानों को खाद, डीजल आदि में मिल रही सब्सिडी में बिचौलियों की भूमिका खत्म कर नगद राशि सीधे उनके बैंक खाते में जमा करवाना है. मसलन मिट्टी का तेल खरीदते वक्त गरीब व्यक्ति उसका बाजार मूल्य चुकाएगा और संबंधित दुकानदार हर तीन माह में उसका विवरण सरकारी विभाग को देगा जहां से सब्सिडी की राशि खरीददार के खाते में जमा कर दी जाएगी. सब्सिडी वाली अन्य चीजों के बारे में भी ऐसी ही व्यवस्था करने का सरकार निर्णय ले चुकी है. इसके लिए ‘आधार कार्ड’ को जरिया बनाया जायेगा. कुछ लोगों को सरकार की इस योजना की सफलता पर आशंका है. उन्हें यह भी संदेह है कि इससे बिचौलियों द्वारा किया जा रहा भ्रष्टाचार कम होने की बजाय और बढ़ जाएगा. लेकिन स्थिति इसके उलट भी हो सकती है. आशंकाएं निराधार हो सकती हैं और योजना के पूर्णतः लागू होने के बाद सुखद परिणाम परिलक्षित हो सकते हैं.

<p>केन्द्र सरकार अब अगले माह से नगद सब्सिडी की योजना प्रारंभ कर रही है. इसका मकसद सतही तौर पर गरीबों को सस्ता केरोसिन, अनाज और किसानों को खाद, डीजल आदि में मिल रही सब्सिडी में बिचौलियों की भूमिका खत्म कर नगद राशि सीधे उनके बैंक खाते में जमा करवाना है. मसलन मिट्टी का तेल खरीदते वक्त गरीब व्यक्ति उसका बाजार मूल्य चुकाएगा और संबंधित दुकानदार हर तीन माह में उसका विवरण सरकारी विभाग को देगा जहां से सब्सिडी की राशि खरीददार के खाते में जमा कर दी जाएगी. सब्सिडी वाली अन्य चीजों के बारे में भी ऐसी ही व्यवस्था करने का सरकार निर्णय ले चुकी है. इसके लिए 'आधार कार्ड' को जरिया बनाया जायेगा. कुछ लोगों को सरकार की इस योजना की सफलता पर आशंका है. उन्हें यह भी संदेह है कि इससे बिचौलियों द्वारा किया जा रहा भ्रष्टाचार कम होने की बजाय और बढ़ जाएगा. लेकिन स्थिति इसके उलट भी हो सकती है. आशंकाएं निराधार हो सकती हैं और योजना के पूर्णतः लागू होने के बाद सुखद परिणाम परिलक्षित हो सकते हैं.

केन्द्र सरकार अब अगले माह से नगद सब्सिडी की योजना प्रारंभ कर रही है. इसका मकसद सतही तौर पर गरीबों को सस्ता केरोसिन, अनाज और किसानों को खाद, डीजल आदि में मिल रही सब्सिडी में बिचौलियों की भूमिका खत्म कर नगद राशि सीधे उनके बैंक खाते में जमा करवाना है. मसलन मिट्टी का तेल खरीदते वक्त गरीब व्यक्ति उसका बाजार मूल्य चुकाएगा और संबंधित दुकानदार हर तीन माह में उसका विवरण सरकारी विभाग को देगा जहां से सब्सिडी की राशि खरीददार के खाते में जमा कर दी जाएगी. सब्सिडी वाली अन्य चीजों के बारे में भी ऐसी ही व्यवस्था करने का सरकार निर्णय ले चुकी है. इसके लिए ‘आधार कार्ड’ को जरिया बनाया जायेगा. कुछ लोगों को सरकार की इस योजना की सफलता पर आशंका है. उन्हें यह भी संदेह है कि इससे बिचौलियों द्वारा किया जा रहा भ्रष्टाचार कम होने की बजाय और बढ़ जाएगा. लेकिन स्थिति इसके उलट भी हो सकती है. आशंकाएं निराधार हो सकती हैं और योजना के पूर्णतः लागू होने के बाद सुखद परिणाम परिलक्षित हो सकते हैं.

शुरुआती तौर पर भले ही इससे भ्रष्टाचार कम न हो अथवा कि और भी बढ़े लेकिन आधार कार्ड के देश भर में प्रचलित हो जाने के बाद भ्रष्टाचार की गुंजाइश नहीं रहेगी. इसीलिए सरकार इसे बहुत छोटे रूप में लागू कर रही है. लगभग ५१ जिलों में – विभिन्न प्रदेशों में, जहां कम्प्यूटरीकरण हो चुका है और इंटरनेट सुविधा उपलब्ध है. प्रारंभिक दौर में यह खर्चीली भी बहुत होगी क्योंकि इस योजना में लगाया जा रहा ”मेन पावर” उतना उत्पादक नहीं रहेगा जितना कि काम के विस्तार के बाद अपेक्षित होगा. यानि काफी कुछ राशि सिर्फ वेतन पर खर्च होगी जबकि क्षमता के अनुरूप काम अभी उपलब्ध नहीं होगा. आधार का आधार जब ज़मीनी हकीक़त में देखने मिलेगा तभी इसकी उपयोगिता का आभास हो सकेगा. फिलहाल इसमें नुक्स ढूँढने से हम गलत निर्णय पर पहुंच सकते हैं. आधार की परिकल्पना इन्फोसिस के पूर्व सह-अध्यक्ष नंदन नीलकेनी ने की है जिनकी नीयत पर शक या भ्रष्टाचार को खोजना ठीक नहीं है. देश को टेक्नालाजी का लाभ दिलाना ही उनका एकमात्र उद्देश्य था वरना इन्फोसिस छोड़कर सरकार को ज्वाइन करने की उन्हें कोई जरूरत नहीं थी.

जिन गरीबों को आज़ादी के पैंसठ साल बाद भी सरकार नहीं पहचान पाई वे आधार के धारक बनने के बाद बिलकुल साफ़ और अलग दिखाई देंगे और उन्हें ही सब्सिडी का सीधा लाभ मिल सकेगा. सब्सिडी के सीधे खाते में जमा किये जाने से भ्रष्टाचार कम से कम गरीबी के सन्दर्भ में खत्म होगा. अभी जिस तरह पेंशन सीधे खाते में जमा होती है और किसी को इस पर संदेह नहीं रहता उसी तरह सब्सिडी भी जब जमा होने लगेगी तो बात कुछ और ही होगी. नया प्रयोग और नई विधा को पनपने का मौका दीजिए, पोल होगी तो अपने आप सामने आ जायेगी. यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि राशन कार्ड बनवाना ही टेढ़ी खीर है तो आधार कार कहाँ से बिना कष्ट प्राप्त हो जाएगा. कुछ का मानना है कि साक्षरता के अभाव में, इंटरनेट अनुपलब्धता की स्थिति में सब्सिडी का सीधा ट्रांसफर ढकोसला सिद्ध होगा. कुछ सोचते हैं सरकार इस योजना के माध्यम से ग़रीबों के वोट खरीदने की कोशिश कर रही है. लेकिन इस सारी आशंकाओं के निराकरण भी उपलब्ध है.

कुछ टीकाकार इसे महत्वपूर्ण योजना मान रहे हैं और इसकी सफलता को रेलवे रिजर्वेशन की कम्प्यूटरीकृत व्यवस्था से भी बेहतर आंक रहे हैं. पेंशन का सीधे खाते में जमा हो जाना भी सब्सिडी के सीधे जमा होने से जोड़ कर देखा जा रहा है. एक मित्र को इस बात पर आपत्ति है जो सही भी है कि जब व्यवस्था परिवर्तन के प्रयास चल रहे हों – तब आलोचनाओं का सिलसिला अनावश्यक ही बढ़ गया है. समग्र रूप में देखा जाए तो आलोचनाओं के बरक्स गरीबों को लाभ इस योजना से अधिक मिलेंगे. सारे परिदृश्य को समझने भर की बात है. इतने बड़े देश में एक साथ आधार कार्ड बन जाएँ, बंट जाएँ और उनका लाभ आमजन को मिलने लगे ऐसा होना संभव नहीं है, इसीलिए इस योजना को क्रमशः लागू किया जा रहा है. जहां तक राशन कार्ड की जरूरत की बात है, हममें से अधिकतर उसे पाने के हक़दार नहीं हैं और बाक़ी काम चलाने के लिए राशन कार्ड न सही, आधार न सही लेकिन दूसरे तमाम प्रमाण हमारे पास हैं जिनसे जरूरत पड़ने पर काम चलाया जा सकता है. आधार प्राप्ति के बाद ही हमारे दूसरे प्रमाणों की उपयोगिता संभवतः खत्म हो जायेगी.

आधार कार्ड निरक्षरों के लिए अधिक उपयोगी होगा जब उन्हें सब्सिडी के भुगतान के लिए बेवकूफ नहीं बनाया जा सकेगा. नरेगा/मनरेगा के श्रमिकों का भी भुगतान खाते में क्रेडिट किया जाता है और वे मजदूर कोई साक्षर नहीं होते. पोस्ट आफिस/ बैंक की पहुंच गावों तक और गाँव वालों की पहुंच इन संस्थानों तक नहीं है यह निराधार है और ऐसा कयास कोई ड्राइंगरूम मे बैठकर ही लगा सकता है. सरकार स्वयं हितग्राहियों के बैंक / पोस्ट आफिस खाते खुलवाती है यह शायद बहुतों को नहीं मालूम. मनरेगा को असफल मानने के अपने अपने मानदंड हो सकते हैं लेकिन सरकारी आंकड़ों को माने तो इससे मजदूरों की क्रय शक्ति बढ़ी है और स्थिति यह आ गई है कि खेतिहर मजदूर मिलना मुश्किल होता जा रहा है. यही मनरेगा की सफलता को आंकने का एकमात्र पैमाना आज की तारीख में है. सरकारें आती जाती रहती हैं लेकिन योजनाएं चलती रहती हैं इसलिए यह मानना कि यह कांग्रेसनीत सरकार की योजना है और जब तक यूपीए सरकार है तब तक ही यह चलेगी सिर्फ कपोल कल्पना है. काम के बदले अनाज, शालाओं में दोपहर का भोजन जैसी योजनाएं भ्रष्टाचार को समर्पित होने के बाद भी अधिकांशतः सफल योजनाएं हैं. इसलिए आधार को नकारना कुछ जल्दीबाजी होगी.

इसमें शक नहीं कि सरकारी पैसे से वोट का व्यापार किया जा रहा है लेकिन यह व्यापार किसी भी सरकार को एक बार ही करने मिल सकता है, हमेशा के लिए नहीं. ऐसे व्यापार पहले से होते आये हैं लेकिन इनके प्रचलन में खोट होकर भी अगली सरकारें ऐसी योजनाओं को बंद करने का साहस अब तक नहीं जुटा सकीं हैं. अतः मानना चाहिए कि अंततः इनका लाभ गरीबों को मिलता है – मिलता रहेगा. आधार कार्ड बन भी जाएं, तो सही व्‍यक्ति तक नहीं पहुंच पाते। आज भी डाकघरों में लाखों आधार कार्ड पड़े हैं, जिन्‍हें बांटा नहीं गया है। ऐसे में आधार कार्ड का औचित्‍य ही क्‍या है? यह एक उचित सवाल किसी सजग सज्जन द्वारा उठाया गया है. सच पूछा जाए तो आधार कार्ड वास्तविक व्यक्ति तक पहुंचाने का निर्धारित समय संभवतः ३ माह है. इस बीच इन्हें वितरित करने की जवाबदारी डाक विभाग की है. इन दिनों डाक विभाग के पास कोई विशेष काम नहीं है. चिठ्ठी पत्री का चलन कम होने और कोरियर कम्पनियों के बढ़ते वर्चस्व के कारण पोस्टमैन लगभग अनुत्पादक / अनुपयोगी  हो गए हैं, लिहाजा विभाग इनसे द्वार – द्वार सेविंग अकाउंट की जानकारी देने, बीमा प्रचार और स्वर्ण मोहरें बिकवाने के अलावा विदेशी मुद्रा परिवर्तन और स्थानांतरण करने तक के प्रयास कर रहा / चुका है. ऐसे में आधार कार्ड न बांटने का इनके पास कोई आधार नहीं है, फिर भी यदि आपका कथन सही माने तो संबंधित विभाग को इस समस्या पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए.

एक प्रश्न जरूर मंहगाई बढ़ने का लगाया जा रहा है, जो अपनी जगह ठीक है. सब्सिडी चाहे व्यक्ति के हाथो में आये अथवा खाते में सीधे जमा हो , बाज़ार में मुद्रा प्रसार बढेगा और जरूर बध्गाए . लोगों की क्रय शक्ति बढ़ेगी तो घर के खर्च बढ़ेंगे और बचत कं होगी इस पर संदेह नही है. इसका कोई कारगर उपाय फिलहाल उपलब्ध है या नहीं मुझे मालूम नहीं लेकिन सरकार ने इसे सुलझा लिया तो उसकी लोकप्रियता में चार चाँद जरूर लग जायेंगे.

लेखक देवेंद्र सुरजन पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं.

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