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गद्दाफी के बहाने : कभी क्रांति का नायक था, अब जनता उसे खलनायक कहती है

कर्नल गद्दाफी भाग गया. तानाशाहों का अंत जिन दो-तीन तरीकों से होता है उसमें एक तरीका यह भी होता है, पीठ दिखाकर भाग जाना यानि भगोड़ा बन जाना. हिटलर ने खुद को गोली मार ली थी. छिपकर बैठे सद्दाम हुसैन को पकड़ लिया गया था और मुकदमा चलाकर फांसी पर चढ़ा दिया गया. यह साल सच में दुनिया और भारत के लिए अमन का पैगाम लेकर आया है. तानाशाहों का खात्मा हो रहा है. जनता लगातार जीत हासिल कर रही है. कई देशों के तानाशाह जनांदोलनों के दबाव में भाग खड़े हुए. भारत में जनता ने संसद को ऐसा कानून लाने के लिए मजबूर किया है जिससे भ्रष्टाचारियों और देश के लुटेरों को दंडित किया जा सके, उनकी संपत्ति जब्त कर कालेधन को देश में लाया जा सके. यह सब कुछ मैं दुनिया की राजनीति पर भाषण देने के इरादे से नहीं लिख रहा. पिछले कई दिनों से कर्नल गद्दाफी को पढ़ने-सुनने के बाद आ रही कुछ बातों को शेयर करने के उद्देश्य से लिख रहा.

<p>कर्नल गद्दाफी भाग गया. तानाशाहों का अंत जिन दो-तीन तरीकों से होता है उसमें एक तरीका यह भी होता है, पीठ दिखाकर भाग जाना यानि भगोड़ा बन जाना. हिटलर ने खुद को गोली मार ली थी. छिपकर बैठे सद्दाम हुसैन को पकड़ लिया गया था और मुकदमा चलाकर फांसी पर चढ़ा दिया गया. यह साल सच में दुनिया और भारत के लिए अमन का पैगाम लेकर आया है. तानाशाहों का खात्मा हो रहा है. जनता लगातार जीत हासिल कर रही है. कई देशों के तानाशाह जनांदोलनों के दबाव में भाग खड़े हुए. भारत में जनता ने संसद को ऐसा कानून लाने के लिए मजबूर किया है जिससे भ्रष्टाचारियों और देश के लुटेरों को दंडित किया जा सके, उनकी संपत्ति जब्त कर कालेधन को देश में लाया जा सके. यह सब कुछ मैं दुनिया की राजनीति पर भाषण देने के इरादे से नहीं लिख रहा. पिछले कई दिनों से कर्नल गद्दाफी को पढ़ने-सुनने के बाद आ रही कुछ बातों को शेयर करने के उद्देश्य से लिख रहा.</p>

कर्नल गद्दाफी भाग गया. तानाशाहों का अंत जिन दो-तीन तरीकों से होता है उसमें एक तरीका यह भी होता है, पीठ दिखाकर भाग जाना यानि भगोड़ा बन जाना. हिटलर ने खुद को गोली मार ली थी. छिपकर बैठे सद्दाम हुसैन को पकड़ लिया गया था और मुकदमा चलाकर फांसी पर चढ़ा दिया गया. यह साल सच में दुनिया और भारत के लिए अमन का पैगाम लेकर आया है. तानाशाहों का खात्मा हो रहा है. जनता लगातार जीत हासिल कर रही है. कई देशों के तानाशाह जनांदोलनों के दबाव में भाग खड़े हुए. भारत में जनता ने संसद को ऐसा कानून लाने के लिए मजबूर किया है जिससे भ्रष्टाचारियों और देश के लुटेरों को दंडित किया जा सके, उनकी संपत्ति जब्त कर कालेधन को देश में लाया जा सके. यह सब कुछ मैं दुनिया की राजनीति पर भाषण देने के इरादे से नहीं लिख रहा. पिछले कई दिनों से कर्नल गद्दाफी को पढ़ने-सुनने के बाद आ रही कुछ बातों को शेयर करने के उद्देश्य से लिख रहा.

 

चैनल, अखबार और वेबसाइटें बता रही हैं कि लीबिया पर 42 साल से राज कर रहे कर्नल गद्दाफी की तानाशाही का अंत हो गया. सोचिए, 42 साल कितना होता है. हम लोगों के देश में 42 साल की उम्र का व्यक्ति खुद को बूढ़ा होता हुआ मान लेता है. कई लोग 42 साल तक पहुंचते पहुंचते हार्ट अटैक के शिकार होकर दुनिया से कूच कर जाते हैं. कुछ लोग 42 साल की उम्र से पहले ही फौज या किन्हीं और नौकरियों से रिटायरमेंट लेकर घर बैठ जाते हैं. पर एक आदमी लगातार 42 साल से एक देश पर शासन कर रहा था और अब भी वह जीना चाहता है. वह विद्रोहियों से निपटते हुए मर जाने की बजाय बच जाना ज्यादा बेहतर मानता है. इसी कारण वह पड़ोसी देश अल्जीरिया भाग गया. अपने बचे खुचे कुनबे के साथ. इससे ठीक पहले, कुछ दिनों पहले वह ललकार रहा था कि विद्रोहियों को धूल चटा देंगे. पर विद्रोही जब उसके शहर, उसके घर तक पहुंच गए तब उसे लगा कि 42 साल में उसने क्या क्या खो दिया है.

जब गद्दाफी लीबिया का शासक बना उस वक्त उसकी उम्र 27 साल थी. 1960 के दशक में लीबिया के राजा के खिलाफ क्रांति हुई. सेना ने राजा का तख्ता पलट कर दिया. क्रांति का नायक सैन्य अधिकारी कर्नल मुअम्मर गद्दाफी को देश की सत्ता मिल गई. एक सितंबर 1969 को गद्दाफी लीबिया का शासक बना. गद्दाफी ने जनता को लोकतंत्र के सपने दिखाए. पूरी दुनिया के युवा गद्दाफी को रोल माडल मानने लगे. उन्हें क्रांति का महानायक, क्रांति का प्रेरणास्रोत कहा गया. पर धीरे धीरे गद्दाफी भी राजा की तरह खुद को लीबिया का सर्वेसर्वा मानने लगा. गद्दाफी ने अपने करीबियों और बेटों को देश की हर अहम संस्था के प्रमुख पदों पर बिठा दिया. गद्दाफी और उनके लोगों ने भ्रष्टाचार के जरिए अकूत अकूत संपत्ति बनाई और विदेशी बैंकों में जमा किया. दिसंबर 2010 में ट्यूनीशिया में जो राजनीतिक क्रांति हुई, उसका असर गद्दाफी के शासन पर पड़ने लगा. ट्यूनीशिया के बाद मिस्र की बारी आई. वहां भी प्रदर्शन हुए और हुस्नी मुबारक को जाना पड़ा. मोरक्को के राजा ने जनता के गुस्से को भांपते हुए जनमत संग्रह कराया. पर गद्दाफी जिद पर अड़ा रहा और अपनी जनता का मूड न भांप सका. इसका नतीजा हुआ कि उसे जनता के गुस्से को भुगतना पड़ा और लंबे खूनखराबे के बीच एक दिन देश छोड़कर भागना पड़ा. गद्दाफी के अय्याश बेटे और अफसरों को भी मारा जाना पड़ा या भागना पड़ा है.

कम लोगों को पता होगा कि लीबिया के हालात इसी फरवरी 2011 से बिगड़ने शुरू हुए. एक मानवाधिकार कार्यकर्ता को गिरफ्तार कर लिया गया था. इसी के बाद लीबिया के एक शहर में हिंसा भड़क उठी. देखते ही देखते इसकी चपेट में लीबिया के दूसरे शहर भी आने लगे. सरकारी सेना-पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर हवाई हमले शुरू किए तो लोग और ज्यादा भड़क गए. जनता के आंदोलन-प्रदर्शन के दमन का दौर शुरू हुआ तो भारत समेत कई देशों ने लीबिया में अपने दूतावास बंद कर दिए. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने लीबिया को नो फ्लाई जोन घोषित कर दिया ताकि प्रदर्शनकारियों पर हवाई हमले न किए जा सकें. फ्रांस की अगुवाई में अंतरराष्ट्रीय गठबंधन नाटो के हवाई हमले शुरू होते ही गद्दाफी के अंत की शुरुआत हो गई. कभी विद्रोही भारी पड़ते तो कभी गद्दाफी की सेना. पश्चिम देशों के समर्थन से विद्रोहियों ने सरकार पर धावा बोल दिया और त्रिपोली के बड़े भाग पर कब्जा जमा लिया. इससे बाजी पलट गई.

विद्रोही लोग गद्दाफी को ढूंढने में लग गए पर पता चला कि गद्दाफी अल्जीरिया भाग गए हैं. यह दावा अल्जीरिया और मिस्र, दोनों देशों ने किया. मिस्र की सरकारी समाचार एजेंसी मीना के मुताबिक शुक्रवार को छह मर्सिडीज कारों वाला एक काफिला लीबिया से अल्जीरिया में घुसा. काफिले में गद्दाफी और उनके बेटे भी थे. 69 साल का गद्दाफी 42 साल तक लीबिया पर शासन करने के बाद भगोड़ा बन चुका है. विद्रोहियों के संगठन नेशनल ट्रांजिशनल काउंसिल (एनटीसी) का कहना है कि गद्दाफी को पकड़े बिना संघर्ष खत्म नहीं होगा.

गद्दाफी के अल्जीरिया पहुंचे ही अल्जीरिया की भी मुश्किलें बढ़ने लगी है. ताजी सूचना है कि अल्जीरिया ने लीबिया के साथवाले सीमावर्ती क्षेत्रों में चेतावनी की घोषणा कर दी है और लगभग एक हज़ार किलोमीटर विस्तार वाली दक्षिणी सीमा को बंद कर दिया है. अल्जीरिया के विदेश मंत्री ने घोषणा की कि मुअम्मर गद्दाफी की पत्नी साफ़िया, उनकी बेटी आयशा, बेटे मुहम्मद व हैनिबल अपने बच्चों के साथ लीबिया से यहाँ आ गए हैं. मंत्रालय ने यह स्पष्ट किया था कि संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव, संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद और लीबिया की अंतरिम राष्ट्रीय परिषद तक यह सूचना पहुँचा दी गई है. अल्जीरिया ने लीबिया की अंतरिम राष्ट्रीय परिषद को अभी तक वैध सरकार के रूप में मान्यता नहीं दी है.  संयुक्त राष्ट्र में अल्जीरिया के दूत मोराद बेनमेहदी ने कहा है कि उन्हें मानवीय आधार पर शरण दी गई है. लीबिया की राष्ट्रीय अस्थाई परिषद ने कहा है कि वो इनके प्रत्यर्पण की माँग करेगा. विद्रोहियों ने कहा है, ये लीबिया के लोगों के ख़िलाफ़ आक्रामक क़दम की तरह होगा और ये लोगों की इच्छा के ख़िलाफ़ है. हम पर क़ानूनी रास्ते का सहारा लेंगे ताकि इन अपराधियों को वापस लाया जा सके.

लेखक यशवंत मीडिया केंद्रित चर्चित पोर्टल भड़ास4मीडिया के संपादक हैं.

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