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छिना आदिवासियों का निवाला : टिन की आठ खदानें निजी कंपनी के हवाले

जगदलपुर :  बस्तर संभाग में मौजूद दुर्लभ खनिज टिन के अवैध उत्खनन और खनिज विकास निगम द्वारा फर्जी समितियों से खरीदी का मामला उजागर होने के बाद एक और खुलासा हुआ है। खनिज विकास निगम के नाम से आबंटित आधे से अधिक टिन की खदानों को एक निजी कम्पनी को हस्तांतरित किया जा चुका है। खनिज विकास निगम की 14 खदानों में से 8 खदानें उसी ज्वाइंट वेंचर कम्पनी को हस्तांतरित की जा चुकी हैं,  जिसने टिन और कोलंबाईट जैसे आण्विक खनिजों के अन्तराष्ट्रीय व्यापार का ब्योरा सीएमडीसी को आज तक नहीं दिया है।

<p>जगदलपुर :  बस्तर संभाग में मौजूद दुर्लभ खनिज टिन के अवैध उत्खनन और खनिज विकास निगम द्वारा फर्जी समितियों से खरीदी का मामला उजागर होने के बाद एक और खुलासा हुआ है। खनिज विकास निगम के नाम से आबंटित आधे से अधिक टिन की खदानों को एक निजी कम्पनी को हस्तांतरित किया जा चुका है। खनिज विकास निगम की 14 खदानों में से 8 खदानें उसी ज्वाइंट वेंचर कम्पनी को हस्तांतरित की जा चुकी हैं,  जिसने टिन और कोलंबाईट जैसे आण्विक खनिजों के अन्तराष्ट्रीय व्यापार का ब्योरा सीएमडीसी को आज तक नहीं दिया है।</p>

जगदलपुर :  बस्तर संभाग में मौजूद दुर्लभ खनिज टिन के अवैध उत्खनन और खनिज विकास निगम द्वारा फर्जी समितियों से खरीदी का मामला उजागर होने के बाद एक और खुलासा हुआ है। खनिज विकास निगम के नाम से आबंटित आधे से अधिक टिन की खदानों को एक निजी कम्पनी को हस्तांतरित किया जा चुका है। खनिज विकास निगम की 14 खदानों में से 8 खदानें उसी ज्वाइंट वेंचर कम्पनी को हस्तांतरित की जा चुकी हैं,  जिसने टिन और कोलंबाईट जैसे आण्विक खनिजों के अन्तराष्ट्रीय व्यापार का ब्योरा सीएमडीसी को आज तक नहीं दिया है।

1996 में खनिज विकास निगम के साथ ज्वाइंट वेंचर में शामिल हुई जगदलपुर की संस्था प्रेशियस मिनरल्स एंड स्मेस्टिंग लिमिटेड ने इन खदानों पर अपना कब्जा जमा लिया है। 18 अक्टूबर 2002 को शासन द्वारा बस्तर के आदिवासियों के आर्थिक उत्थान के लिये उन्हें टिन और कोरंडम के उत्खनन की छूट प्रदान की गयी थी। शासन द्वारा सीएमडीसी के माध्यम से आदिवासियों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के उद्देश्य से निर्धारित दरों पर इन खनिजों की खरीदी की जा रही थी। अब इन खदानों में गरीब आदिवासियों के हथौड़े और फावड़ों की जगह एक निजी कंपनी के पोकलैन और टिप्पर दिन रात उत्खनन कर आदिवासियों के हितों के लिये बने इस नियम का मजाक उड़ाते नजर आ रहे हैं। इन खदानों में बरसों से कार्यरत सैकड़ों आदिवासी परिवार इस काम से बेदखल किये जा चुके है।

दंतेवाड़ा जिले में स्थित परचेली के खसरा नं. 872, बडे बचेली में 70, 71,74 , 981 से 984,  किकिरपाल में 472 से 475, 486, 487, नरेली में 179, 182, 183, लखारास के खसरा नं. 115/1, की खदानों को बड़े ही गोपनीय तरीके से इस निजी कम्पनी के हवाले कर दिया गया है। ग्राम सभा से लेकर पर्यावरण विभाग की जनसुनवाई भी एक बंद कमरे में कर रातों रात देश के 90 प्रतिशत टिन और कालंबाईट का मालिक इस निजी कम्पनी को बना दिया गया है। जनसुनवाई से लेकर हस्तांतरण के पूरे मामले को बहुत ही असंवैधानिक तरीके से निपटाकर बस्तर के आदिवासियों के हितों पर कुठाराघात किया गया है। आज जब सेल और टिन प्लेट कंपनी ऑफ इंडिया लिमिटेड जैसी सरकारी कंपनियां काफी ऊंचे दामों पर इस खनिज का निर्यात कर रही हैं,  ऐसे में एक निजी कंपनी को इन खदानों की बंदरबांट ने शासन की नीतियों पर कई सवाल खड़े कर दिये है। इन सरकारी कंपनियों द्वारा काफी ऊंची कीमत देकर टिन कन्सन्ट्रेट कांगों, कोलंबिया, तन्जानिया केन्या और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों से खरीदा जा रहा है।

भारत में मौजूद कुल पचासी मिलियन टन का टिन भंडार सिर्फ बस्तर संभाग में है और उसका आधा हिस्सा एक मात्र निजी कपंनी के हाथों में सौंप दिया जाना अपने आप में एक बहुत गंभीर मामला है। टिन के उत्खनन से प्राप्त आय से अपने जीवन का निर्वहन करने वाले दक्षिण बस्तर के आदिवासियों से अब यह रोजगार भी छीन लिया गया है। नक्सलवाद की आग में झुलस रहे बस्तर के आदिवासियों के जख्मों पर मरहम लगाने  के दावे लगातार प्रदेश सरकार द्वारा किये जा रहे हैं। इसके बावजूद बस्तर के आदिवासियों के हितों की रक्षा करने का दावा करने वाले बस्तर के सभी जनप्रतिनिधि शोषण के इस जीवंत दृश्‍य को देख कर भी खामोशी की चादर ताने हुए हैं।

31 जनवरी 2007 तथा 8 मई 2008 को आनन-फानन में इस निजी कंपनी को यह सभी खदानें हस्तांतरित की जा चुकी है। अब खनिज निगम के पास नेरली, कुमाकोलेंग और चीतलनार की पांच खदाने ही शेष हैं। इन खदानों का कुल क्षेत्रफल 188.861 हैक्टेयर है जबकि प्रेशियस मिनरल के कब्जे में 112.322 हेक्टेयर की टिन की खदानें आ चुकी है और अब बची हुई खदानों के हस्तांतरण की तैयारी भी खनिज विकास निगम द्वारा की जा रही है। इस तरह बस्तर के जंगलों में बड़ी मुश्किल में जी रहे आदिवासियों के हितों के लिये टिन के उत्खनन की योजना सरकार द्वारा ही बनाई गयी और अब इस व्यवस्था को छीनने के सारे इंतजामात भी सरकार के ही माध्यम से किये जा रहे हैं।

 

लेखक देवशरण तिवारी बस्‍तर में दैनिक देशबंधु के ब्‍यूरो प्रमुख के पद पर कार्यरत हैं.

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