नई दिल्ली। “इस देश में सम्पूर्ण क्रान्ति की कोख से पैदा लेने वाले क्राति की भ्रूण हत्या का दोष उन्हीं राजनीतिक पार्टियों और लोगों पर है जो कभी उनके साथ थे।“ यह बात वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग ने कही। वे गांधी शान्ति प्रतिष्ठान में अमलेश राजू की पुस्तक ’जे. पी. जैसा मैंने देखा’ के लोर्कापण समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने कहा की क्या आज हम यह सोचेंगे कि जे. पी. आन्दोलन के असफल होने का क्या कारण रहे और वर्तमान परिस्थिति में आन्दोलन का हथियार क्या हो सकता है? यह चिंता की बात है कि आज जेपी. नहीं है और उन जैसा दूसरा भी कोई नहीं है। ऐसी स्थिति में जब आन्दोलन की जरूरत महसूस हो रही है तो क्या विकल्प रहता है।
“पर्यावरणविद् व गांधी मार्ग के सम्पादक अनुपम मिश्र ने कहा “जब तक जेपी थे सभी जगह उपस्थित रहे। हर तरफ उनका ध्यान जाता था। यह दुख की बात है कि जेपी के सर्म्पक में आने वाले कई लोग उनके स्पर्श मात्र से सोना हो गये, पर उनके जाने के बाद लोहा बनकर रह गए और ऐसा काम किया जो नहीं करना चाहिए था। वरिष्ठ पत्रकार और जेपी आन्दोलन अगुवा रहे रामबहादुर राय ने कहा, “जेपी आज कितने प्रासंगिक हैं यह ज्यादा महत्वपूर्ण सवाल नहीं है, बल्कि जेपी ने अपने जीवन में जो बातें उठायी वह आज कई ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। मैं समक्षता हूं कि जेपी कि लिखी पुस्तक ’राज व्यवस्था की पुनर्रचना’ हिन्द-स्वाराज की अगली कड़ी है। इस पुस्तक के बाद अब ’जेपी के साथ जैसा बरता गया इस पर भी एक किताब आनी चाहिए।
वरिष्ठ पत्रकार अरविन्द मोहन ने कहा की अमलेश उस पीढ़ी के पत्रकार हैं जिन्होंने जे. पी. को नहीं देखा है, बल्कि पढ़-सुनकर उनके बारे में अपनी समझ बनायी है। ऐसे पत्रकार द्वारा इस किताब को तैयार करना मुझे चौंकाता है। शायद यह संगत का प्रभाव है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पी. एम. त्रिपाठी ने कहा की आज हम जिस विषम परिस्थिति में रह रहे हैं उसमें जेपी की कमी लगातार महसूस हो रही है। वहीं दिल्ली विश्वविधालय के प्राध्यापक प्रेम सिंह ने कहा की जेपी के चिंतन व कामों को कई विचारधारात्मक नजरों से देखा-परखा जाना अभी बाकी है। कार्यक्रम का संचालन गांधीवादी बाबूलाल शर्मा कर रहे थे, जबकि स्वागत गांधी शान्ति प्रतिष्ठान के सचिव सुरेन्द्र कुमार ने किया। इस दौरान दिल्ली पुलिस के अतिरिक्त आयुक्त केसी द्विवेदी सहित कई पत्रकार मौजूद थे।