बदायूं के दैनिक जागरण कार्यालय की हालत मलिन बस्ती से भी ज्यादा बुरी हो गयी है। पैसे न बढ़ाने के कारण कार्यालय में काम करने वाले चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ने एक माह पहले से आना बंद कर दिया, जिससे कार्यालय में धूल की एक मोटी परत जम गयी है। कार्यालय में चाय के प्याले और कागजों का ढेर लग गया है। छिपकली लिखते समय पत्रकारों व ऑपरेटरों के ऊपर गिरती रहती हैं। हालत इससे भी ज्यादा खराब है।
नब्बे के दशक से शौचालय साफ करने वाले व्यक्ति को डेढ़ सौ रुपये महीने दिये जा रहे थे, उसने भी पैसे बढ़ाने की बात कही तो प्रभारी दो माह तक उसे मूर्ख बनाते रहे, पर जब हद हो गयी तो उसने भी बीस दिन पहले से आना बंद कर दिया, जिससे शौचालय की हालत बयां करने लायक भी नहीं बची है। दुर्गंध के चलते कार्यालय में एक क्षण भी रुकना दुश्वार हो रहा है, पर ऐसे में बेचारे रिपोर्टर आज भी काम कर रहे हैं और काम के साथ परिचित के आ जाने पर या प्रभारी के आदेश पर चाय भी लेने खुद ही जाते हैं। बंधुआ मजदूर भी आंखों से घूर लेता है, लेकिन जागरण के इन रिपोर्टर्स को अपनी बात कहने तक का हक नहीं है।
असलियत में बदायूं में जागरण कार्यालय अवैध बिल्डिंग में वर्षों से चल रहा है। यह बिल्डिंग नाले के ऊपर बनी हुई है, जिसमें नीचे कई दुकानें हैं, जिनका मोटा किराया आता है और ऊपर का हिस्सा जागरण को दे दिया है। अतिक्रमण अभियान शहर में चलता है तो हमेशा इस बिल्डिंग के पास आकर ही रुक जाता है। इसलिए मालिक किराया भी नहीं लेता है, पर जागरण को बिल दिया जाता है। जागरण के पास आज तक बिजली का कनेक्शन भी नहीं है, लेकिन कुछ खराब हो जाये तो एक मिनट में विभाग का कर्मचारी आता है और सही कर के जाता है। इसी एलटी ग्रेड करने वाले संपादकीय प्रभारी भी अखबार से वेतन नहीं लेते हैं तथा जागरण पर एहसान कर रहे हैं। अब कार्यालय में सफाई हो या ना हो इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता।
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.