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पंचकूला में तीन दिवसीय माटी के रंग कार्यक्रम का शुभारंभ

पंचकूला। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लोक कलाओं के संरक्षण और उन्हें और अधिक समृद्घ बनाने के साथ-साथ लुप्त हो रही लोक विधाओं को बचाने का आहवान किया। आज पंचकुला में जोनल कल्चरल सेन्टर्स की 25वीं सालगिरह के समारोह को संबोधित कर रहे थे। समारोह का शुभारंभ प्रधानमंत्री व यूपीए अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने उड़ीसा के प्रसिद्घ नगाड़े एक साथ बजाकर किया। मनमोहन सिंह ने कहा कि पिछले 25 वर्षों में, मनोरंजन के बहुत से नए साधन और तकनीकें विकसित हुई हैं। इनके मद्देनजर जोनल कल्चरल सेन्टर्स को भी अपने कार्यक्रमों और काम-काज के तरीकों में जरूर बदलाव लाना होगा। हमारी सरकार ने जोनल कल्चरल सेन्टर्स के काम-काज की समीक्षा करने के लिए श्री मणिशंकर अय्यर की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था, जिसने अपनी रिपोर्ट दे दी है और मिनिस्ट्री ऑफ कल्चर द्वारा इसकी जांच की जा रही है और कमेटी की सिफारिशों पर जल्दी ही कार्रवाई की जाएगी।

<p>पंचकूला। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लोक कलाओं के संरक्षण और उन्हें और अधिक समृद्घ बनाने के साथ-साथ लुप्त हो रही लोक विधाओं को बचाने का आहवान किया। आज पंचकुला में जोनल कल्चरल सेन्टर्स की 25वीं सालगिरह के समारोह को संबोधित कर रहे थे। समारोह का शुभारंभ प्रधानमंत्री व यूपीए अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने उड़ीसा के प्रसिद्घ नगाड़े एक साथ बजाकर किया। मनमोहन सिंह ने कहा कि पिछले 25 वर्षों में, मनोरंजन के बहुत से नए साधन और तकनीकें विकसित हुई हैं। इनके मद्देनजर जोनल कल्चरल सेन्टर्स को भी अपने कार्यक्रमों और काम-काज के तरीकों में जरूर बदलाव लाना होगा। हमारी सरकार ने जोनल कल्चरल सेन्टर्स के काम-काज की समीक्षा करने के लिए श्री मणिशंकर अय्यर की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था, जिसने अपनी रिपोर्ट दे दी है और मिनिस्ट्री ऑफ कल्चर द्वारा इसकी जांच की जा रही है और कमेटी की सिफारिशों पर जल्दी ही कार्रवाई की जाएगी।

पंचकूला। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लोक कलाओं के संरक्षण और उन्हें और अधिक समृद्घ बनाने के साथ-साथ लुप्त हो रही लोक विधाओं को बचाने का आहवान किया। आज पंचकुला में जोनल कल्चरल सेन्टर्स की 25वीं सालगिरह के समारोह को संबोधित कर रहे थे। समारोह का शुभारंभ प्रधानमंत्री व यूपीए अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने उड़ीसा के प्रसिद्घ नगाड़े एक साथ बजाकर किया। मनमोहन सिंह ने कहा कि पिछले 25 वर्षों में, मनोरंजन के बहुत से नए साधन और तकनीकें विकसित हुई हैं। इनके मद्देनजर जोनल कल्चरल सेन्टर्स को भी अपने कार्यक्रमों और काम-काज के तरीकों में जरूर बदलाव लाना होगा। हमारी सरकार ने जोनल कल्चरल सेन्टर्स के काम-काज की समीक्षा करने के लिए श्री मणिशंकर अय्यर की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था, जिसने अपनी रिपोर्ट दे दी है और मिनिस्ट्री ऑफ कल्चर द्वारा इसकी जांच की जा रही है और कमेटी की सिफारिशों पर जल्दी ही कार्रवाई की जाएगी।

केन्द्रों द्वारा ज्यादातर कार्यक्रम शहरी क्षेत्रों में किए जा रहे थे। इसलिए, अय्यर जी की कमेटी ने सिफारिश की है कि केन्द्रों द्वारा खर्च की जाने वाली राशि का कम-से-कम 70 प्रतिशत गांवों, कस्बों और शहरी झुग्गियों में आयोजित कार्यक्रमों में  खर्च होना चाहिए। उन्होंने कहा कि कमेटी की एक सिफारिश यह भी है कि इन केन्द्रों को उन कलाओं पर विशेष ध्यान देना चाहिए जिनका वजूद कुछ खतरे में है। हमें देश के ग्रामीण इलाकों की परंपरागत कलाओं को बचाना चाहिए और उन्हें आगे बढ़ाना चाहिए। टीवी और इंटरनेट के सहारे उन कलाओं को नया मंच दिया जा सकता है। इसके लिए जोनल कल्चरल सेन्टर्स को अपने कार्यक्रमों के प्रोडक्शन और प्रजेंटेसन को बेहतर बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘भारत की सबसे बड़ी ताकत उसकी अनेकता में एकता है। यदि हम सब अपनी सांस्कृतिक विरासत पर गर्व करें तो हमारे लोगों के बीच एकता बढ़ेगी। हम एक-दूसरे के कल्चर्स का आदर तभी कर पाएंगे जब हमें इसके बारे में जानकारी प्राप्त करने का मौका मिले। जोनल कल्चरल सेन्टर्स को इस काम में अहम भूमिका निभानी होगी।

हमारी सरकार देश में सांस्कृतिक विकास को प्राथमिकता देती है। पिछले कुछ वर्षों से हमने अपने पुराने मॉनुमेंट्स को आधुनिक तरीके से बचाकर रखने का प्रयास किया है। हमने अपने  यूजियम और लायब्रेरिज की स्थिति में सुधार लाने के लिए भी नई तकनीक अपनाई है। हमने कला के विद्वानों और कलाकारों की मदद के लिए आर्थिक सहायता में भी बढ़ोत्तरी की है। हम इस दिशा में भविष्य में भी काम करते रहेंगे।’ उन्होंने कहा कि हमारे देश के बहुत से महान नेताओं ने हमारी सांस्कृतिक विरासत कायम रखने के लिए काफी योगदान दिया। पंडित जवाहरलाल नेहरू और मौलाना अबुल कलाम आजाद ने 1950 में इंडियन काउंसिल ऑफ कल्चरल रिलेसन्स की शुरुआत की थी ताकि दूसरे देशों के साथ कल्चर के क्षेत्र में हमारे ताल्लुकात बढ़ाए जा सकें। कल्चर और संस्कृति को बढ़ाने में श्रीमती इंदिरा गॉंधी जी ने भरपुर योगदान दिया और इंदिरा जी ने 1971 में कल्चर के लिए एक अलग डिपार्टमेंट बनाने का भी एलान किया।

उन्होंने कहा कि जोनल कल्चरल सेन्टर्स की स्थापना हमारे प्रिय नेता स्वर्गीय श्री राजीव गांधी जी की पहल पर की गई थी। राजीव जी के मन में भारत की संस्कृति के प्रति बेहद ही लगाव था। उनकी इच्छा थी कि भारत की जनता अपनी सांस्कृतिक विरासत को और अच्छी तरह समझे और जाने, और उस पर गर्व महसूस करे। उनका मानना था कि देश के आम नागरिक को भी हमारी सांस्कृतिक परंपराओं जैसे कि डांस, नाटक, संगीत और ललित कलाओं की खूबियों को समझने और सराहने का मौका मिलना चाहिए। यही वजह थी कि वह इन केन्द्रों में गहरी रुचि लेते थे और मुझे बताया गया है कि वे डायरेक्टर्स से मिलकर काम-काज का जायका लेते रहते थे। प्रधानमंत्री ने कहा कि जोनल कल्चरल सेन्टर्स ने देश के पर परागत लोक कलाकारों के हुनर को निखारने में बहुत ही मदद की है। भारत के दूरदराज इलाकों के उन कलाकारों को देश के अलग-अलग हिस्सों में अपनी कला का प्रचार-प्रसार करने का जो मौका मिला है उसके लिए उन्हें बधाई देता हूँ। इन केन्द्रों ने नए लोकप्रिय प्रोग्राम भी आम लोगों तक पहुंचाने का भी योगदान दिया है। इनमें गुरु-शिष्य परंपरा, द नेशनल कल्चरल एक्सचेंज प्रोग्राम और देश के विभिन्न भागों में आयोजित किया जाने वाला लोकप्रिय सांस्कृतिक कार्यक्रम ऑक्टेव शामिल हैं।

समारोह को सम्‍बोधित करते हुए राष्ट्रीय सलाहकार समिति की चेयरमैन तथा यूपीए अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी ने कहा कि देश के पहले क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्र की स्थापना 1985 में पटियाला में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने की थी और आज यह रजत जयंती मना रहा है। ऐसा लगता है कि कल की ही बात है। सांस्कृतिक केन्द्रों के माध्यम से कलाकारों को अपनी कला उजागर करने का अवसर मिलता है, वहीं उन्हें आजीविका का साधन भी उपलब्ध होता है। युवा पीढी को देश की सांस्कृतिक धरोहर को समझने का अवसर मिलता है। मुझे अफसोस भी होता है कि इन केन्द्रों का रखरखाव व संरक्षण बीच में ठीक ढंग से नहीं हो पाया था, अब इस दिशा में कार्य किया जा रहा है। लोक कलाकारों की आर्थिक स्थिति को सुधारने पर भी सोचना होगा। आज के नये युग में इन सांस्कृतिक केन्द्रों को नई चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। कलाकार किसी एक राज्य के नहीं होते, बल्कि उस क्षेत्र की सांस्कृति व लोक महत्व को संजोए रखकर उसका प्रतिनिधित्व करते हैं।

उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक क्षेत्रों को अपने कार्यक्रम शहरों की बजाए दूरदराज के गांवों में आयोजित करने चाहिए, जहां उन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को भी अपने देश की सांस्कृतिक धरोहर को समझने का अवसर मिले। देश में स्थित सात क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्र अपने कार्यक्रमों के माध्यम से देश की एकता को बनाए रखने का कार्य कर रहे हैं, वहीं उन्हें नई प्रतिभाओं की पहचान करने के लिए कार्य करना होगा और युवाओं को लोक कलाओं और सांस्कृतिक कौशल में तल्लीन करना होगा। सांस्कृतिक केन्द्रों को राजनीतिक सीमा में नहीं बांधा जाना चाहिए। हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने कहा कि हमारे लोकगीत, लोक संगीत, लोक-नृत्य और लोक-कलाएं हमारी संस्कृति के वाहक हैं। इनके माध्यम से हमारी युवा पीढ़ी अपने आप को अपने अतीत से जोड़ पाती है और एक स्वर्णिम भविष्य की परिकल्पना करती है। नौजवान ही देश के कर्णधार हैं। इसलिए यह जरूरी है कि नवयुवक हमारी लोक-कलाओं तथा हमारी विरासत से जुड़े और इस देश की महानता को पहचानें। मेरा ऐसा विश्वास है कि क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्र यह काम बखूबी कर सकते हैं।

केन्द्रीय संस्कृति, शहरी आवस एवं गरीबी उन्नमूलन मंत्री कुमारी सैलजा ने सभी अतिथियों का स्वागत किया और कहा कि क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्रों की स्थापना में राजीव गांधी का महत्वपूर्ण योगदान है और आज इनकी स्थापना की रजत जयंती पर मैं उनको नमन करती हूं कि 25 वर्ष पहले उन्होंने इसका एक बीज बोया था और अब वह विशालकाया पेड़ का रूप ले चुका है। उन्होंने कहा कि राजीव गांधी की सोच थी कि अगर हम भारतीय संस्कृति को नहीं संजाए रखेंगे तो हम विश्व में अपनी विशेष पहचान को खो बैठेंगे। उनकी सोच को आगे बढ़ाना हमारा कर्तव्य है। इस अवसर पर पंजाब एवं राजस्थान के राज्यपाल शिव राज पाटिल, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बीएल जोशी, बिहार के राज्यपाल देवानन्द कुमार, संसदीय कार्यमंत्री पवन कुमार बंसल, केन्द्रीय संस्कृति सचिव श्रीमती संगीता गारोला के अलावा उत्तरी क्षेत्रीय राज्यों के मंत्री, विधायक तथा अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे।

जयश्री राठौड़ की रिपोर्ट.

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