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यहाँ कांग्रेस और भाजपा को पूछने वाला कोई नहीं है

ऐतिहासिक रूप से जातिवाद की राजनीति के सहारे लोकशाही को चलाने वाले जौनपुर जिले की राजनीति पड़ोसी सुलतानपुर से बिलकुल अलग है. यहाँ पिछड़ी जातियों, खासकर यादवों का इतना दबदबा था कि चौधरी चरण सिंह ने आज से करीब ४२ साल पहले जब भारतीय क्रान्ति दल की स्थापना की तो उनकी पहली जनसभा यहाँ के टाउन हाल मैदान में हुई थी. बाद के चुनावों में भी जौनपुर की राजनीति में यादवों का दबदबा बना रहा. पिछले कुछ वर्षों से यादव आधिपत्य को चुनौती दे रहे बसपा के निलंबित सांसद धनञ्जय सिंह जिले की ठाकुर राजनीति के केंद्र बन कर उभरे हैं. बसपा से सस्पेंड हैं. जिले की चुनावी राजनीति पर उनकी अगली चाल की चर्चाएँ चारों तरफ हो रही हैं. हालांकि जिले में जिन पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से बात हुई सब का यही कहना है कि अगले विधान सभा चुनावों में लड़ाई बसपा और सपा के बीच ही होगी. जिले में ९ विधान सभा सीटें हैं और एकाध पर बीजेपी मज़बूत है लेकिन लड़ाई में कहीं नहीं है. कांग्रेस की हालत खस्ता है. सत्ता से कोसों दूर हैं लेकिन जिले का हर बड़ा नेता अपना अपना गुट चला रहा है.

<p>ऐतिहासिक रूप से जातिवाद की राजनीति के सहारे लोकशाही को चलाने वाले जौनपुर जिले की राजनीति पड़ोसी सुलतानपुर से बिलकुल अलग है. यहाँ पिछड़ी जातियों, खासकर यादवों का इतना दबदबा था कि चौधरी चरण सिंह ने आज से करीब ४२ साल पहले जब भारतीय क्रान्ति दल की स्थापना की तो उनकी पहली जनसभा यहाँ के टाउन हाल मैदान में हुई थी. बाद के चुनावों में भी जौनपुर की राजनीति में यादवों का दबदबा बना रहा. पिछले कुछ वर्षों से यादव आधिपत्य को चुनौती दे रहे बसपा के निलंबित सांसद धनञ्जय सिंह जिले की ठाकुर राजनीति के केंद्र बन कर उभरे हैं. बसपा से सस्पेंड हैं. जिले की चुनावी राजनीति पर उनकी अगली चाल की चर्चाएँ चारों तरफ हो रही हैं. हालांकि जिले में जिन पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से बात हुई सब का यही कहना है कि अगले विधान सभा चुनावों में लड़ाई बसपा और सपा के बीच ही होगी. जिले में ९ विधान सभा सीटें हैं और एकाध पर बीजेपी मज़बूत है लेकिन लड़ाई में कहीं नहीं है. कांग्रेस की हालत खस्ता है. सत्ता से कोसों दूर हैं लेकिन जिले का हर बड़ा नेता अपना अपना गुट चला रहा है.

ऐतिहासिक रूप से जातिवाद की राजनीति के सहारे लोकशाही को चलाने वाले जौनपुर जिले की राजनीति पड़ोसी सुलतानपुर से बिलकुल अलग है. यहाँ पिछड़ी जातियों, खासकर यादवों का इतना दबदबा था कि चौधरी चरण सिंह ने आज से करीब ४२ साल पहले जब भारतीय क्रान्ति दल की स्थापना की तो उनकी पहली जनसभा यहाँ के टाउन हाल मैदान में हुई थी. बाद के चुनावों में भी जौनपुर की राजनीति में यादवों का दबदबा बना रहा. पिछले कुछ वर्षों से यादव आधिपत्य को चुनौती दे रहे बसपा के निलंबित सांसद धनञ्जय सिंह जिले की ठाकुर राजनीति के केंद्र बन कर उभरे हैं. बसपा से सस्पेंड हैं. जिले की चुनावी राजनीति पर उनकी अगली चाल की चर्चाएँ चारों तरफ हो रही हैं. हालांकि जिले में जिन पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से बात हुई सब का यही कहना है कि अगले विधान सभा चुनावों में लड़ाई बसपा और सपा के बीच ही होगी. जिले में ९ विधान सभा सीटें हैं और एकाध पर बीजेपी मज़बूत है लेकिन लड़ाई में कहीं नहीं है. कांग्रेस की हालत खस्ता है. सत्ता से कोसों दूर हैं लेकिन जिले का हर बड़ा नेता अपना अपना गुट चला रहा है.
जौनपुर शहर में प्रवेश के साथ ही तिलकधारी पोस्ट ग्रेजुएट कालेज छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष शिवेंद्र सिंह से मुलाक़ात हो गयी. कहते हैं कि वे खुद किसी पार्टी में नहीं हैं लेकिन जिले की राजनीति में पूरी रूचि रखते हैं. उन्होंने बताया कि जिले की नौ सीटों में सपा और बसपा बराबरी की लड़ाई लड़ेंगे. हो सकता है कि एकाध सीट बीजेपी को भी नसीब हो जाए. उनकी नज़र में मुसलमानों के वोट बसपा, सपा और कांग्रेस में बँट रहे हैं. हालांकि कांग्रेस का कोई मज़बूत दावेदार किसी सीट पर नहीं है लेकिन शहर की सीट से नदीम जावेद नाम का दिल्ली विश्वविद्यालय का एक पूर्व छात्र नेता मजबूती से लड़ सकता है. अभी नदीम जावेद को टिकट नहीं मिला है लेकिन अगर मिल गया तो उनकी हालत ठीक रह सकती है. पत्रकार शशि मोहन क्षेम के अनुसार नदीम जावेद कांग्रेस में सबसे प्रभावी उम्मीद्वार बनने का माद्दा रखते हैं. हालांकि जीत की कोई उम्मीद नहीं है. अगर वे अच्छे तरीके से लड़े तो सपा की हार की संभावना बढ़ जायेगी. कांग्रेस का कोई प्रभावी संगठन जिले में नहीं है.

कुछ लोग कहते हैं कि कांग्रेस में दो गुट हैं जबकि एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि चार गुट प्रभावी तरीके से काम कर रहे हैं. वर्तमान अध्यक्ष इंद्र भुवन सिंह को पुराने बड़े नेताओं कमला सिंह, तेज़ बहादुर सिंह और माता प्रसाद का समर्थन प्राप्त है. पूर्व अध्यक्ष शेर बहादुर सिंह के साथ भी कई मज़बूत नेता हैं. कई लोगों से बात हुई और सबने यही कहा कि कांग्रेस की गुटबाजी अगर ख़त्म की जा सके तो वह चुनाव लड़ने लायक पार्टी बन सकती है. सब की यह भी राय है कि जिले के किसी नेता के बूते की बात नहीं है कि सब को एक मंच पर खड़ा कर सके. कांग्रेस की एकजुटता के बारे में एक अजीब बात कई लोगों ने बतायी. उनका कहना है कि इसी जिले के मूल निवासी और मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष कृपा शंकर सिंह अगर चाहें तो सभी गुटों को एक जगह कर सकते हैं और कांग्रेस को एक फाइटिंग फ़ोर्स के रूप में तैयार किया जा सकता है. ज़ाहिर है कांग्रेस का कोई भविष्य नहीं है क्योंकि मुंबई से आकर कोई क्यों आपसी झगडे़ की शिकार इस पार्टी को संभालेगा.

जौनपुर के किसी पत्रकार, बुद्धिजीवी या नेता से बात करने पर लगभग निश्चित रूप से बसपा सांसद धनञ्जय सिंह का नाम आ जाता है. धनञ्जय सिंह बसपा से सस्पेंड हैं. कुछ लोगों ने बताया कि अगर वे बीजेपी की तरफ चले गए तो बीजेपी मज़बूत हो सकती है. हालांकि जिले की ब्राह्मण बिरादरी उनसे नाराज़ मानी जाती है. सवाल उठता है कि क्या बीजेपी अपने कोर समर्थकों को नाराज़ करके उन्हें साथ लेने का जोखिम उठायेगी? उनका सपा में जाने का तो कोई सवाल नहीं उठता लेकिन कांग्रेस का विकल्प संभावना की सीमा में बना हुआ है. जब इस रिपोर्टर ने धनञ्जय सिंह से बात की तो एकदम अलग तस्वीर सामने आई. उन्होंने कहा कि किसी और पार्टी में वे नहीं जा रहे हैं. साफ़ कहा कि ‘बीएसपी का सांसद हूँ. पार्टी ने सस्पेंड कर दिया है. राज्य की राजधानी लखनऊ में कुछ अफसरों और नेताओं के एक गुट ने मेरी राष्ट्रीय अध्यक्ष को मेरे खिलाफ समझाने में सफलता हासिल कर ली. शायद इसका कारण यह था कि कई बार राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बृजलाल और शशांक शेखर जैसे ताक़तवर अफसरों को ओवर रूल करके मेरी बात को तरजीह दी थी.’ 

धनञ्जय सिंह कहते हैं कि मैं अपनी पार्टी के संविधान की सीमा में रहकर आतंरिक लोकतंत्र की स्थापना की कोशिश कर रहा हूँ. पत्रकार शशि मोहन क्षेम की राय है कि इस जिले में बीएसपी के कई बड़े नेता पहले से ही मौजूद हैं. पूर्व मंत्री लक्ष्मी नारायण राय और विधानसभा के स्पीकर सुखदेव राजभर की वजह से जिले में बीएसपी एक मज़बूत राजनीतिक संगठन है.  हाँ, अगर धनञ्जय सिंह बहुजन समाज पार्टी में बने रह गए तो लोगों का मानना है कि जिले में बसपा को चुनौती दे पाना किसी पार्टी के लिए मुश्किल होगा.

इसी जिले से राज्य सरकार के मंत्री सुभाष पाण्डेय भी विधायक चुने गए थे. खबर है कि उनका टिकट कट गया है. जब वे मुंबई से आकर बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़े थे तो उन्होंने इलाके के विकास की बड़ी-बड़ी बातें की थीं लेकिन कहीं कुछ नहीं किया. उलटे ज़मीन आदि के कुछ विवादों में फंस गए. जिस से भी पूछा कोई भी उनको राजनीति में कोई फैक्टर मानने को तैयार नहीं था. जौनपुर में पीस पार्टी की फिलहाल कोई हैसियत नहीं है लेकिन पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और मुख्य प्रवक्ता युसूफ अंसारी ने फोन पर बताया कि ऐसा नहीं है. अभी तो जिले की ताक़तवर पार्टियां कोई न कोई बेवकूफी करेंगी और उनसे नाराज़ मज़बूत लोगों को हम साथ मिला लेंगे. आखिर जिले के एक बहुत ताक़तवर नेता के आशीर्वाद से ही सुलतानपुर में केडी सिंह चुनाव लड़ रहे हैं. केडी सिंह जौनपुर के चन्दवक ब्लाक के प्रमुख हैं. कुल मिलाकर जौनपुर की राजनीतिक स्थिति अभी कुछ पार्टियों और कुछ नेताओं के अगले क़दम पर निर्भर कर रही है.

लेखक शेष नारायण सिंह वरिष्‍ठ पत्रकार तथा कॉलमिस्‍ट हैं. वे इन दिनों दैनिक अखबार जनसंदेश टाइम्‍स के नेशनल ब्‍यूरोचीफ हैं.

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