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ये उत्‍तर प्रदेश के गुंडों की सहयोगी पुलिस है!

: थाने में खड़ी कराई जाती हैं किश्‍त अदा न करने वाली गाडि़यां : बड़ी और छोटी गाड़ियों को फाइनेंस से खरीदना कोई जुर्म है क्या?? देश भर में आसान किस्तों पर ऋण देने और दिलाने वाले सक्रिय हैं. सरकारी और गैर-सरकारी सभी प्रकार के बैंक इस काम में लगे हैं. अपने देश में इसके बाद भी माइक्रो फाइनेंसिंग की बहुत कमजोर स्थिति है. सरकार बनाने के लिए विभिन्न राजनीतिक दल अक्सर ऋण माफी का वायदा करते हैं. उत्तर प्रदेश को पुत्तर प्रदेश बनाने के लिए इस बार मुलायम सिंह यादव ने भी पचास हज़ार से कम के सभी कृषि ऋण माफ करने का वायदा किया था. जनता ने बेरोजगारी भत्ता की ही तरह इस वायदे को भी हाथों-हाथ लिया और समाजवादी पार्टी के गुंडा पार्टी के इतिहास होने के बावजूद पूर्ण बहुमत दिलाने में कोई गुरेज नहीं की.

<p>: <strong>थाने में खड़ी कराई जाती हैं किश्‍त अदा न करने वाली गाडि़यां</strong> : बड़ी और छोटी गाड़ियों को फाइनेंस से खरीदना कोई जुर्म है क्या?? देश भर में आसान किस्तों पर ऋण देने और दिलाने वाले सक्रिय हैं. सरकारी और गैर-सरकारी सभी प्रकार के बैंक इस काम में लगे हैं. अपने देश में इसके बाद भी माइक्रो फाइनेंसिंग की बहुत कमजोर स्थिति है. सरकार बनाने के लिए विभिन्न राजनीतिक दल अक्सर ऋण माफी का वायदा करते हैं. उत्तर प्रदेश को पुत्तर प्रदेश बनाने के लिए इस बार मुलायम सिंह यादव ने भी पचास हज़ार से कम के सभी कृषि ऋण माफ करने का वायदा किया था. जनता ने बेरोजगारी भत्ता की ही तरह इस वायदे को भी हाथों-हाथ लिया और समाजवादी पार्टी के गुंडा पार्टी के इतिहास होने के बावजूद पूर्ण बहुमत दिलाने में कोई गुरेज नहीं की.

: थाने में खड़ी कराई जाती हैं किश्‍त अदा न करने वाली गाडि़यां : बड़ी और छोटी गाड़ियों को फाइनेंस से खरीदना कोई जुर्म है क्या?? देश भर में आसान किस्तों पर ऋण देने और दिलाने वाले सक्रिय हैं. सरकारी और गैर-सरकारी सभी प्रकार के बैंक इस काम में लगे हैं. अपने देश में इसके बाद भी माइक्रो फाइनेंसिंग की बहुत कमजोर स्थिति है. सरकार बनाने के लिए विभिन्न राजनीतिक दल अक्सर ऋण माफी का वायदा करते हैं. उत्तर प्रदेश को पुत्तर प्रदेश बनाने के लिए इस बार मुलायम सिंह यादव ने भी पचास हज़ार से कम के सभी कृषि ऋण माफ करने का वायदा किया था. जनता ने बेरोजगारी भत्ता की ही तरह इस वायदे को भी हाथों-हाथ लिया और समाजवादी पार्टी के गुंडा पार्टी के इतिहास होने के बावजूद पूर्ण बहुमत दिलाने में कोई गुरेज नहीं की.

पर बैंकों में घटती भीड़ और सेवायोजन कार्यालयों में बढ़ती भीड़ में सह-सम्बन्ध खोजने की जरूरत है. इसके विपरीत बैंकों ने वसूली के नाम पर “वसूली गुरुओं” को सक्रिय कर दिया है, जो बिना किसी नियम-क़ानून और अधिकार के सड़क पर चलती गाड़ियों को खींचने का काम पुलिस और मीडिया में बड़े बैनर के नाम पर काम करने वाले दलाल टाइप के चिंटुओं की रहनुमाई में कर रहे हैं. तमाम हिस्ट्रीशीटर इस चोखे धंधे में लगे हैं. ऎसी ही एक घटना पर आप सब की ध्यानाकर्षित करवाना चाहता हूँ.

कानपुर से इटावा मार्ग पर कानपुर ग्रामीण क्षेत्र में एक थाना है – सचेंडी. इस थाने में ऐसे ही बैंकों की वसूली का काम करने वाले एक नामी हिस्ट्रीशीटर संदीप ठाकुर का यार्ड है, जहां वो बैंक की किश्तें ना अदा करने वाले लोगों की गाडियां खड़ी करवाता है. स्थानीय सचेंडी थाना उसके इस काम में पूरी मदद करता है. कल की घटना है, कानपुर के एक नामी और सम्मानित व्यक्ति का ट्रक इस हाइवे से गुजर रहा था. तभी इस संदीप ठाकुर के एक गुर्गे ने बिना नंबर की बोलेरो से उसे रोककर खड़ा करा किया और ड्राइवर से चाभी छीनकर गाली-गलौज शुरू कर दी. ड्राइवर के फोन से ही गाड़ी मालिक को भी उल्‍टा-सीधा कहा. गाड़ी मालिक ने किश्तें जमा होने की बात कही तो भी उसने कहा कि वो गाड़ी नहीं छोडे़गा. संदीप ठाकुर का आदमी होने की कई बार पुष्टि करी.

गाड़ी मालिक के घटनास्थल पर पहुँचने पर वो मार-पीट आर गाली-गलौज पर उतारू हो गया. सचेंडी थानाध्यक्ष से गुहार लगाने पर उसने भी इस गुंडे का पक्ष लेते हुए उन्हें डपटने का प्रयास किया. तभी उस गुर्गे ने अपने को सोनू सिंह नामक हिन्दुस्तान के किसी क्राइम रिपोर्टर का जिक्र किया. थानाध्यक्ष भी सोनू सिंह से बहुत भयाक्रांत था. उसने बात को अधाने से रोकते हुए हुए कहा कि गाड़ी छोड़ दी जाए. तब तक प्रदेश के आला पुलिस अधिकारियों के फोन आने शुरू हो गए और थानाध्यक्ष सकते में पड़ गया. गाड़ी मालिक ने लिखित शिकायत करने का दबाव बनाया तो मामला गम्भीर हो गया. बिना नंबर की बोलेरो और गुंडे को थाने में बिठा लिया गया पर शिकायत ना लिखने पर जोर दिया जाने लगा. उधर उस गुंडे ने देश-भर में अपने हित-रक्षकों को संपर्क करना शुरू कर दिया. सभी किश्तें जमा होने की दशा में गाड़ी को बैंक की किसी भी नियमावली की जद में न आने के कारण गाड़ी मालिक का मनोबल ऊंचा था और दूसरी तरफ बिना किसी अधिकार-पत्र के गाड़ी पकड़ने वाले अपराधी और मामले के प्रदेश के आला पुलिस-अधिकारियों के संज्ञान में होने के कारण थानाध्यक्ष की हालत पतली थी.

दिन-भर चले इस ड्रामे में आखिर गाड़ी मालिक ने लिखित-शिकायतपत्र ना देने का निर्णय लिया. और पुलिस ने उस गुंडे को देर रात छोड़ दिया. उसके सारे खैरख्वाह गाड़ी मालिक के घर और परिवार के लोगों को दिनभर सिफारिश करते रहे. जिनमें संदीप ठाकुर का फोन भी था. अवगत कराता चलूँ कि संदीप ठाकुर को कुछ समय पहले अवैध तरीके से केंद्र सरकार से “लाल-बत्ती” प्राप्त हुयी थी, जो मीडिया में सुर्खियाँ बटोरने के बाद छीन ली गयी थी. प्रश्न ये है कि अगर ये गाड़ी किसी सामान्य व्यक्ति की होती तो किश्तें जमा होने के बावजूद भी पुलिसिया संरक्षण में हुयी इस गुंडई से उसकी मनोदशा क्या होती ??? पुलिस के जिस अधिकारी की सांठ-गाँठ से ये गुंडा काम कर रहा है, उसकी सज़ा अभी तक क्यों नहीं निर्धारित की गयी जबकि आला अधिकारियों को इस मामले की पूरी जानकारी है.

लेखक अरविंद त्रिपाठी कानपुर में पत्रकार हैं तथा चौथी दुनिया से जुड़े हुए हैं.

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