: लखनऊ : फिलहाल कोर्ट के सोटे से बसपा सरकार है बैकफुट पर : एक जमाना था जब कहा जाता था कि दिल्ली की गद्दी का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है। मगर यूपी में कांग्रेस के पराभव के बाद यह मिथक टूट गया और कम से कम यूपीए-1 और वर्तमान यूपीए-2 की सरकार में तो यह प्रदेश पूरी तरह उपेक्षित ही रहा। कभी देश को लगातार प्रधानमंत्री और शीर्ष नौकरशाह व न्यायाधीश देनेवाला यह प्रदेश माया-राज में भ्रष्टाचार व कदाचार, घपले व घोटाले और हत्या, बलात्कार, अपहरण, हिरासत में मौत व फर्जी मुठभेड़ की घटनाओं के कीर्तिमान गढ़ रहा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के सोटे से फिलवक्त बसपा सरकार बैकफुट पर है।
परिवार कल्याण विभाग के हजारों करोड़ के घोटाले, इस संबंध में पहले दो सीएमओ की हत्याएं, फिर जेल में निरुद्ध एक डिप्टी सीएमओ की संदिग्ध परिस्थितियों में हत्या के मामले में काफी हीलाहवाली व जद्दोजहद के बाद सीबीआई जांच के लिए सरकार राजी हुई है। मगर सवाल यह है कि क्या पिछले चार सालों से अधिक के कार्यकाल में बसपा सरकार में हुए अरबों-खरबों रुपए के आबकारी घोटाले, खनन घोटाले, खाद्यान्न घोटाले, शौचालय घोटाले, मिड डे मील घोटाले, आंगनबाडिय़ों के माध्यम से बंटने वाले पुष्टहार घोटाले, मनरेगा में लूट, जवाहर लाल नेहरू राष्टरीय शहरी विकास मिशन में लूट की भी सीबीआई जांच होगी? यदि इन सब घोटालों की भी सीबीआई जांच हो जाए तो इतना तय है कि मामला टेलीकाम घोटाले से लेकर कामनवेल्थ घोटाले के बीच बैठेगा और जिस तरह उनमें बड़े-बड़े राजनेता, नौकरशाह और निजी क्षेत्र के लोग तिहाड़ जेल की हवा खा रहे हैं, उसी तरह इन घोटालों में उत्तर प्रदेश के बड़े-बड़े नौकरशाह, कई हैवीवेट मंत्रियों और सरकार के चहेते ‘लूट माफिया’ लाल हवेली में नजर आएंगे। तब प्रदेश की मुखिया भी इन घपले-घोटालों और लूट की जांच की तपिश से बच नहीं पाएंगी।
आम चर्चा है कि बिना ऊपर पैसा पहुंचाए किसी काम का फंड रिलीज नहीं होता। थाने और जिले बिक रहे हैं। उत्तर प्रदेश में शिक्षा का हाल बेहाल है। माध्यमिक शिक्षकों की नियुक्ति के लिए माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड और उच्च शिक्षा में नियुक्ति के लिए उच्च शिक्षा सेवा चयन आयोग है, मगर मौजूदा सरकार में माध्यमिक शिक्षकों की नियुक्ति के लिए दो से चार लाख और उच्च शिक्षा में नियुक्ति के लिए 8-10 लाख रुपए की बोली लग रही है। उच्च शिक्षा में प्राचार्यों के पद की बोली 12-40 लाख रुपए के बीच चल रही है। माध्यमिक शिक्षा में प्रधानाचार्य के पद के लिए 3-4 लाख वसूले जा रहे हैं।
आरोप तो यहां तक है कि माध्यमिक शिक्षकों के पद के लिए होनेवाली लिखित परीक्षा में उत्तीर्ण करके चयन कराने तक का ठेका 8-10 लाख तक में चल रहा है। अब ऐसे शिक्षक माध्यमिक विद्यालयों में क्या पढ़ाएंगे, इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। क्या इन घपलों-घोटालों की भी सीबीआई जांच होगी? माध्यमिक शिक्षा महकमे में भ्रष्टाचार के हाल को इस तथ्य से भी समझा जा सकता है कि हाईकोर्ट द्वारा बार-बार मांगने पर भी माध्यमिक शिक्षा विभाग पूरे प्रदेश के शासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों व शिक्षणेतर कर्मचारियों के कुल स्वीकृत पदों और उन्हें राजकीय खजाने से मिलने वाले कुल वेतन का विद्यालयवार ब्यौरा नहीं उपलब्ध करा सका है। आखिर सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षक व शिक्षणेतर कर्मचारियों को किस आधार पर सरकारी खजाने से वेतन निर्गत किया जाता है?
इसी तरह प्रदेश में आबकारी राजस्व की लूट मची हुई है। आबकारी से संबंधित करोबार न केवल एक शराब माफिया को पूरी तरह सौंप दिया गया है, बल्कि शराब की बोतलों पर लगने वाले स्टिकर छापने की जिम्मेदारी भी उसी को दे दी गई है। यही नहीं, उस शराब माफिया की अपनी डिस्टिलरी भी है, जबकि जिसकी डिस्टिलरी होती है, उसे बोतलों पर लगने वाले सरकारी स्टिकर छापने पर कानूनी प्रतिबंध है। दूसरी ओर, पूरे प्रदेश में खनन माफिया ने इस कदर जाल फैला रखा है कि जितना खनन जरूरी पट्टे पर नहीं हो रहा, उससे ज्यादा अवैध खनन सरकार में बैठे लोगों की मिलीभगत से किया जा रहा है। केंद्रीय टीम ने अधिकतर जिलों में मशीनों से अवैध खनन की रिपोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के समक्ष दाखिल कर रखी है, मगर हाईकोर्ट में भी यह मामला देश के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन की न्यायिक अ-सक्रियता का शिकार होकर धूल फांक रही है।
प्रदेश सरकार ने अपने स्तर से अवैध खनन कभी रोकने की कोशिश नहीं की, क्योंकि इसमें भी ऊपर तक के लोगों का खजाना भर रहा है। जिन्हें खनन पट्टे दिए भी गए हैं, उनसे भारी धनउगाही की गई है। नतीजतन उनकी ओर देखने की हिम्मत प्रशासनिक मशीनरी में नहीं है। पूरे प्रदेश की नौकरशाही, पुलिस व अधीनस्थ कार्यपालिका में सुविधा शुल्क की आय को देखते हुए ट्रांसफर-पोस्टिंग का परोक्ष तौर पर ही सही, चार साल से भारी उद्योग चलाया जा रहा है। नए मलाईदार पद पर तैनाती का शुल्क तो वसूला ही जा रहा है, पद पर बने रहने की कीमत भी वसूली जा रही है। यह सब बड़े ही संस्थागत ढंग से किया जा रहा है और सभी सरकारी महकमों में इसके लिए कारिंदे चुनकर उनके माध्यम से वसूली हो रही है।
दरअसल, प्रदेश में हर काम में रेट निर्धारित है। हर जगह वसूलने वाले तैनात हैं। मनरेगा और जेएनएनयूआरएम में तो खुली लूट ही मची हुई है। प्रदेश भर में बिना सडक़ें बनाए पैसा डकार लिया जा रहा है। घटिया काम का अंदाजा केवल इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि बांदा में यमुना पुल की फर्श यातायात शुरू होने के महीने भर के भीतर बैठ गई। पूरे लखनऊ को कंक्रीट के जंगल में बदलने और हाथियों की फौज खड़ा करने के मामले में न केवल न्यायपालिका के आदेशों की अवहेलना की गयी बल्कि न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग तक किया गया। अनेक बार अदालती आदेशों के बाद भी निर्माण कार्य बंद नहीं किया गया। भूमि अधिग्रहण से लेकर विभिन्न मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट लगातार फटकार लगाता रहा है, मगर उत्तर प्रदेश सरकार चिकने घड़े की तरह है, जिस पर कोर्ट की फटकार का भी असर नहीं है। साभार : डेली न्यूज एक्टिविस्ट
लेखक जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और डेली न्यूज एक्टिविस्ट, इलाहाबाद के संपादक हैं.