बलात्कारी राम रहीम के बाद आज बलात्कारी आसाराम का हश्र देखकर किसी को भी बहुत खुश होने की ज़रुरत नहीं है। ये लोग व्यक्ति नहीं, हम पुरुषों के भीतर की दमित इच्छाओं और यौन विकृतियों की बेशर्म अभिव्यक्ति मात्र हैं। राम रहीम और आसाराम थोड़े-बहुत प्रायः सभी पुरुषों के भीतर मौजूद हैं।
यह और बात है कि पैसों, प्रभुत्व, साधनों और अवसर के अभाव में ज्यादातर लोगों के भीतर ये घुट-घुटकर दम तोड़ देते हैं। संपति, प्रभुत्व और अवसर प्राप्त होने के बाद ढोंगी बाबाओं और संतों की ही नहीं, ज्यादातर नवधनाढ्यों, ग्लैमर उद्योग के लोगों, राजनेताओं और अफसरों की दो ही महत्वाकांक्षाएं होती हैं – ऐश्वर्य के तमाम साधन जुटाना और ज्यादा से ज्यादा स्त्रियों से शारीरिक संबंध बनाना। धन, भय या प्रलोभन के बल पर जिन स्त्रियों का ये शारीरिक और मानसिक शोषण करते हैं, वे स्त्रियां उनके लिए व्यक्ति नहीं, रोमांच, पुरुष अहंकार को सहलाने का ज़रिया और स्टेटस सिंबल भर होती हैं।
ठीक वैसे ही जैसे प्राचीन और मध्यकालीन भारत में राज्य के आकार के अलावा रनिवास और हरम में रानियों और दासियों की संख्या किसी भी किसी राजा, बादशाह या सामंत की सामाजिक प्रतिष्ठा तय किया करती थी। आज इक्कीसवी सदी में भी तमाम प्रतिबंधों के बावजूद दुनिया के ज्यादातर मर्दों की आंतरिक इच्छा कमोबेश ऐसी ही है। जिन लोगों के पास साधन हैं, उनमें से ज्यादातर लोग नैतिकता औऱ कानून को धत्ता बताकर यही कर रहे हैं। उनमें से राम रहीम और आसाराम जैसे जो गिनती के लोग पकडे जाते हैं, समाज द्वारा पापी वही घोषित किए जाते हैं। जिनका भांडा अबतक नहीं फूटा, वे सब पुण्यात्मा हैं।
शायद हम पुरुषों को बनाने में ईश्वर से ही कोई बड़ी तकनीकी त्रुटि हो गई थी जिसकी सज़ा सृष्टि की शुरुआत से आजतक स्त्रियां ही भोग रही हैं !
(पूर्व आईपीएस ध्रुव गुप्त की fb वॉल से.)