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हिन्दुओं की धार्मिक आस्थाओं से खिलवाड़, धधक रहा है साधू-संतों पर लाठीचार्ज का मसला

भव्य पूजा-अर्चना और ‘अगले वर्ष तू जल्दी आ’ की कामना के साथ उत्तर प्रदेश के तमाम शहारों से मनौतियों के भगवान गणपति बाबा की विदाई हो गई। पूरे दस दिनों तक पंडाल सजा कर गणपति बाबा की अराधना हुई। मोदक का भोग लगाया गया। इस दौरान भक्तों की आस्था देखते ही बनती थी, लेकिन गणपति बाबा की मूर्ति का विसर्जन इस बार भी विवादों में रहा। पूरे आयोजन के दौरान ऐसा लगा कि हिन्दुओं के धार्मिक आयोजनों और विवाद का नाता गहराता जा रहा है। कथित सेक्यूलर दलों की सरकारों, नेताओं और अन्य धर्मो के कुछ कट्टरपंथियों को शायद हिन्दुओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने में ही मजा आता है। आगरा में यमुना नदी में भगवान गणेश प्रतिमा के विसर्जन की कोशिश कर रहे भक्तों पर पुलिस ने लाठीचार्ज करके अपनी बहादुरी दिखाई तो आगरा में ही एक अन्य जगह मूर्ति विसर्जन के दौरान दूसरे समुदाय के कुछ शरारती तत्वों द्वारा विसर्जन यात्रा पर मांस का टुकड़ा फेंक कर माहौल खराब किया गया। फिरोजाबाद में विसर्जन यात्रा के दौरान दूसरे समुदाय के युवक पर गुलाल पड़ने को लेकर नौबत मारपीट और बवाल तक पहुंच गया। उपद्रवियो ने पंडाल संयोजक को ही गोली मार दी। गोली चलाने वाले दबंग के हौसले इतने बुलंद थे कि वह इतनी गंभीर वारदात करने के बाद वह थाने में जाकर छिप गया। संभल में विसर्जन यात्रा के दौरान साम्प्रदायिक तनात पैदा हो गया। यहां दूसरे समुदाय की शिकायत पर पुलिस ने यात्रा को रोक दिया था। बाद में किसी तरह यह यात्रा आगे बढ़ी तो कुछ लोगों ने डीसीएम को रोक लिया। गोंडा में प्रतिमा विसर्जन के दौरान हुए विवाद के बाद करीब हफ्ता भर माहौल शांत होने में लगा। यह घटनाएं तो आइना मात्र हैं, वर्ना कोई भी जिला ऐसा नहीं रहा जहां मूर्ति विसर्जन के दौरान विवाद न खड़ा किया गया हो। विवाद खड़ा करने की घटनाओं में कहीं पुलिस वाले आगे थे तो कहीं दूसरे समुदाय के लोग। हद तो तब हो गई जब वाराणसी में साधू-संतों, बटुकों पर पुलिस ने बर्बरता पूर्वक लाठियां बरसाईं। आधी रात में मूर्ति विसर्जन करने जा रहे साधू-संतों को घेर कर ऐसे पीटा गया मानो वह देशद्रोही या फिर आतंकवादी हों। गणेश प्रतिमा को गंगा में विसर्जित करने के मसले को लेकर वाराणसी के गोदौलिया पर दो दिनों से चल रहे धरने का परिदृश्य आगाज के करीब 30 घंटे बाद 22 सितंबर की आधी रात लगभग एक बजे बदल गया। पुलिस ने पहले ध्वनि विस्तारक यंत्र से धरने को गैर कानूनी बताते हुए लोगों को हट जाने की हिदायत दी। इसके बाद भी हजारों लोगों के टस से मस न होने पर पुलिस ने लाठी भांज दी, इससे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद, बटुक समेत धरना दे रहे कई लोग घायल हो गए। पुलिस के बल प्रयोग के चलते लोग गिरते पड़ते वहां से गलियों में भागे। पुलिस ने गली में भी तलाशी अभियान चलाया। देखते ही देखते गोदौलिया चैराहे पर सन्नाटा पसर गया।

<p>भव्य पूजा-अर्चना और ‘अगले वर्ष तू जल्दी आ’ की कामना के साथ उत्तर प्रदेश के तमाम शहारों से मनौतियों के भगवान गणपति बाबा की विदाई हो गई। पूरे दस दिनों तक पंडाल सजा कर गणपति बाबा की अराधना हुई। मोदक का भोग लगाया गया। इस दौरान भक्तों की आस्था देखते ही बनती थी, लेकिन गणपति बाबा की मूर्ति का विसर्जन इस बार भी विवादों में रहा। पूरे आयोजन के दौरान ऐसा लगा कि हिन्दुओं के धार्मिक आयोजनों और विवाद का नाता गहराता जा रहा है। कथित सेक्यूलर दलों की सरकारों, नेताओं और अन्य धर्मो के कुछ कट्टरपंथियों को शायद हिन्दुओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने में ही मजा आता है। आगरा में यमुना नदी में भगवान गणेश प्रतिमा के विसर्जन की कोशिश कर रहे भक्तों पर पुलिस ने लाठीचार्ज करके अपनी बहादुरी दिखाई तो आगरा में ही एक अन्य जगह मूर्ति विसर्जन के दौरान दूसरे समुदाय के कुछ शरारती तत्वों द्वारा विसर्जन यात्रा पर मांस का टुकड़ा फेंक कर माहौल खराब किया गया। फिरोजाबाद में विसर्जन यात्रा के दौरान दूसरे समुदाय के युवक पर गुलाल पड़ने को लेकर नौबत मारपीट और बवाल तक पहुंच गया। उपद्रवियो ने पंडाल संयोजक को ही गोली मार दी। गोली चलाने वाले दबंग के हौसले इतने बुलंद थे कि वह इतनी गंभीर वारदात करने के बाद वह थाने में जाकर छिप गया। संभल में विसर्जन यात्रा के दौरान साम्प्रदायिक तनात पैदा हो गया। यहां दूसरे समुदाय की शिकायत पर पुलिस ने यात्रा को रोक दिया था। बाद में किसी तरह यह यात्रा आगे बढ़ी तो कुछ लोगों ने डीसीएम को रोक लिया। गोंडा में प्रतिमा विसर्जन के दौरान हुए विवाद के बाद करीब हफ्ता भर माहौल शांत होने में लगा। यह घटनाएं तो आइना मात्र हैं, वर्ना कोई भी जिला ऐसा नहीं रहा जहां मूर्ति विसर्जन के दौरान विवाद न खड़ा किया गया हो। विवाद खड़ा करने की घटनाओं में कहीं पुलिस वाले आगे थे तो कहीं दूसरे समुदाय के लोग। हद तो तब हो गई जब वाराणसी में साधू-संतों, बटुकों पर पुलिस ने बर्बरता पूर्वक लाठियां बरसाईं। आधी रात में मूर्ति विसर्जन करने जा रहे साधू-संतों को घेर कर ऐसे पीटा गया मानो वह देशद्रोही या फिर आतंकवादी हों। गणेश प्रतिमा को गंगा में विसर्जित करने के मसले को लेकर वाराणसी के गोदौलिया पर दो दिनों से चल रहे धरने का परिदृश्य आगाज के करीब 30 घंटे बाद 22 सितंबर की आधी रात लगभग एक बजे बदल गया। पुलिस ने पहले ध्वनि विस्तारक यंत्र से धरने को गैर कानूनी बताते हुए लोगों को हट जाने की हिदायत दी। इसके बाद भी हजारों लोगों के टस से मस न होने पर पुलिस ने लाठी भांज दी, इससे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद, बटुक समेत धरना दे रहे कई लोग घायल हो गए। पुलिस के बल प्रयोग के चलते लोग गिरते पड़ते वहां से गलियों में भागे। पुलिस ने गली में भी तलाशी अभियान चलाया। देखते ही देखते गोदौलिया चैराहे पर सन्नाटा पसर गया।</p>

भव्य पूजा-अर्चना और ‘अगले वर्ष तू जल्दी आ’ की कामना के साथ उत्तर प्रदेश के तमाम शहारों से मनौतियों के भगवान गणपति बाबा की विदाई हो गई। पूरे दस दिनों तक पंडाल सजा कर गणपति बाबा की अराधना हुई। मोदक का भोग लगाया गया। इस दौरान भक्तों की आस्था देखते ही बनती थी, लेकिन गणपति बाबा की मूर्ति का विसर्जन इस बार भी विवादों में रहा। पूरे आयोजन के दौरान ऐसा लगा कि हिन्दुओं के धार्मिक आयोजनों और विवाद का नाता गहराता जा रहा है। कथित सेक्यूलर दलों की सरकारों, नेताओं और अन्य धर्मो के कुछ कट्टरपंथियों को शायद हिन्दुओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने में ही मजा आता है। आगरा में यमुना नदी में भगवान गणेश प्रतिमा के विसर्जन की कोशिश कर रहे भक्तों पर पुलिस ने लाठीचार्ज करके अपनी बहादुरी दिखाई तो आगरा में ही एक अन्य जगह मूर्ति विसर्जन के दौरान दूसरे समुदाय के कुछ शरारती तत्वों द्वारा विसर्जन यात्रा पर मांस का टुकड़ा फेंक कर माहौल खराब किया गया। फिरोजाबाद में विसर्जन यात्रा के दौरान दूसरे समुदाय के युवक पर गुलाल पड़ने को लेकर नौबत मारपीट और बवाल तक पहुंच गया। उपद्रवियो ने पंडाल संयोजक को ही गोली मार दी। गोली चलाने वाले दबंग के हौसले इतने बुलंद थे कि वह इतनी गंभीर वारदात करने के बाद वह थाने में जाकर छिप गया। संभल में विसर्जन यात्रा के दौरान साम्प्रदायिक तनात पैदा हो गया। यहां दूसरे समुदाय की शिकायत पर पुलिस ने यात्रा को रोक दिया था। बाद में किसी तरह यह यात्रा आगे बढ़ी तो कुछ लोगों ने डीसीएम को रोक लिया। गोंडा में प्रतिमा विसर्जन के दौरान हुए विवाद के बाद करीब हफ्ता भर माहौल शांत होने में लगा। यह घटनाएं तो आइना मात्र हैं, वर्ना कोई भी जिला ऐसा नहीं रहा जहां मूर्ति विसर्जन के दौरान विवाद न खड़ा किया गया हो। विवाद खड़ा करने की घटनाओं में कहीं पुलिस वाले आगे थे तो कहीं दूसरे समुदाय के लोग। हद तो तब हो गई जब वाराणसी में साधू-संतों, बटुकों पर पुलिस ने बर्बरता पूर्वक लाठियां बरसाईं। आधी रात में मूर्ति विसर्जन करने जा रहे साधू-संतों को घेर कर ऐसे पीटा गया मानो वह देशद्रोही या फिर आतंकवादी हों। गणेश प्रतिमा को गंगा में विसर्जित करने के मसले को लेकर वाराणसी के गोदौलिया पर दो दिनों से चल रहे धरने का परिदृश्य आगाज के करीब 30 घंटे बाद 22 सितंबर की आधी रात लगभग एक बजे बदल गया। पुलिस ने पहले ध्वनि विस्तारक यंत्र से धरने को गैर कानूनी बताते हुए लोगों को हट जाने की हिदायत दी। इसके बाद भी हजारों लोगों के टस से मस न होने पर पुलिस ने लाठी भांज दी, इससे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद, बटुक समेत धरना दे रहे कई लोग घायल हो गए। पुलिस के बल प्रयोग के चलते लोग गिरते पड़ते वहां से गलियों में भागे। पुलिस ने गली में भी तलाशी अभियान चलाया। देखते ही देखते गोदौलिया चैराहे पर सन्नाटा पसर गया।

 वाराणसी में साधू-संतों,बटुकों पर इस लिये लाठीजार्च किया गया क्योंकि वह अदालत के आदेश (गंगा में मूर्ति विसर्जन नहीं होगा) की अनदेखी करके गंगा जी में मूर्ति विसर्जन करने जा रहे थे। सरकार,शासन और स्थानीय प्रशासन ने इस बात का तो ध्यान रखा कि अदालत के आदेश की अवहेलना न हो, परंतु वह अदालत के उस आदेश को भूल गये जिसमें उसने कहा था कि मूर्ति विजर्सन के लिये प्रशासन वैकल्पिक व्यवस्था करेगा। अगर मूर्ति विसर्जन के लिये वैकल्पिक व्यवस्था कर दी गई होती तो साधू-संतों को गंगा नदी में विसर्जन के लिये कूच नहीं करना पड़ता। इसके विपरीत सरकारी पक्ष अपनी दलील देते हुए कह रहा है कि कोर्ट ने प्रदेश के 27 जिलों में वैकल्पिक व्यवस्था करने का निर्देश दिये थे। इस पर 26 जिलों में वैकल्पिक व्यवस्था कर ली गई थी। सिर्फ वाराणसी में घाटों के पास खाली स्थान न होने के कारण तालाब की खुदाई नहीं हो पाई। वहीं गंगा के दूसरी ओर संरक्षित क्षेत्र है जहां तालाब की खुदाई नहीं की जा सकती। स्थानीय प्रशासन का यह दावा अधूरा और सच्चाई से परे है। ऐसा नहीं है कि भक्त प्रशासन के साथ सहयोग नहीं कर रहे हैं, परंतु वह अपनी आस्था से खिलवाड़ करने को भी तैयार नहीं है। इसका नजारा मूर्ति विसर्जन के अंतिम दिन देखने को मिला। खोजवां के सरायनंदन में श्रीशिवांग गौरीनंदन श्री गणेश पूजानोत्सव समिति की ओर से गणेश प्रतिमा की स्थापना की गई थी। अदालत के आदेश का सम्मान करते हुए समिति ने विसर्जन शंकुल धारा पोखरे में करने का निर्णय लिया। विसर्जन के लिये शोभायात्रा निकली। सभी भक्त संतों पर लाठीचार्ज के विरोध में बांह पर काली पट्टी बांधे और हाथ में नारे लिखी तख्तियां लिये हुए थे। पुलिस ने इनके हाथों से तख्तियां छीन लीं। भक्त इस बात से तो नाराज  थे ही, परंतु जब उन्होंने पोखर में मरी हुई मछलियां, गंदगी और काई देखी तो भक्त भड़क गये। यह हाल कमोवेश कई जगह देखने को मिला।
 बात साधू-संतों पर लाठीचार्ज की ही कि जाये तो इसमें जरा भी संदेह नहीं था कि पुलिस और स्थानीय प्रशासन के अधिकारी साधू-संतों के साथ ऐसा व्यवहार कर रहे थे, मानों उन्हें सरकार की नजरों में अपने नंबर बढ़ाने हो। पुलिस का रवैया पूरी तरह वहशीयाना था। उसकी तरफ से साधू-संतों को तितर-बितर करने के लिये न तो कोई चेतावनी दी गई? न ही लाठीचार्ज से पूर्व पानी की बौछार, आंसू गैस के गोले छोड़ने या फिर हवा में फायरिंग जैसे कदम उठाये गये। सीधे लाठीचार्ज कर दिया गया। ऐसा तब ही होता जब अधिकारियों को सरकार की मंशा की जानकारी रहती है, जिस तरह से समाजवादी सरकार एक वर्ग को दबाने और दूसरे को डराने के रवैये पर चल रही है, उसी का अंजाम है, ऐसी घटनाएं। आश्चर्य होता है कि एक तरफ पुलिस कांवड़ यात्रा, नवरात्र, गणेश उत्सव जैसे आयोजनों पर तो सख्त रवैया अपनाती है, लेकिन जब एक वर्ग विशेष के अपराधियों के विरूद्ध कार्रवाई करने की बात आती है तो उसके हाथ-पांव फूल जाते हैं। उसे न तो अपने ऊपर बैठे अधिकारियों से सहयोग मिलता है न सरकार का भरोसा। अगर ऐसा न होता तो लखनऊ से सटे जिला बाराबंकी में सामूहिक दुष्कर्म के आरोपी को पकड़ने में गई पुलिस इन लोगों के हाथों पिटकर नहीं आती। जिस अपराधी को पुलिस पकड़ने गई थी वह एक धार्मिक स्थल में छिपा हुआ था, लेकिन पुलिस इतना साहस नहीं दिखा पाई कि उसे बाहर निकाल पाती।  ऐसे लोगों से पिटने के बाद वैसे तो खाकी वर्दी वाले बड़े-बड़े दावे करते है, लेकिन इस तरह का अपराध करने वालों के खिलाफ पुनः कार्रवाई करने का साहस वह नहीं जुटा पाते है। यह भी एक सच्चाई है। खासकर चुनाव के समय तो साम्प्रदायिक हिंसा-तनाव, नेताओं की बदजुबानी आदि की खबरें कुछ ज्यादा ही आने लगती हैं।
 भाजपा के स्थानीय विधायक रविन्द्र जायसवाल ने आरोप लगाया कि साधू-संतों पर लाठीचार्ज सुनियोजित था। पुलिस ने निहत्थे बटुकों, साधू-संतो और भक्तों को धारा 307 लगा कर जेल के भीतर डाल दिया। सबसे दुखद बात यह है कि लाठीचार्ज जैसी घटना हो गई, परंतु घटना स्थल से एसएसपी साहब गायब रहे। ऐसे मामलों में अमूमन जैसा होता है कि एक जांच बैठाकर मामला रफा-दफा कर दिया जाता है। अब की भी ऐसा ही देखने को मिला, लेकिन वाराणसी में गणपति प्रतिमा विसर्जन को लेकर साधु-संतों पर हुए लाठीचार्ज को हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया। कोर्ट ने प्रमुख सचिव नगर विकास के साथ ही वाराणसी के डीएम और एसएसपी को नोटिस जारी कर पूछा है कि उनके खिलाफ क्यों न कोर्ट की अवमानना की कार्रवाई की जाए। कोर्ट ने इसके साथ ही अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वाराणसी में हर हाल में शांति व्यवस्था बहाल की जाए। वाराणसी के डा. धर्मेन्द्र कुमार पांडेय की अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश जस्टिस रणविजय सिंह ने दिया है। वहीं कांग्रेस विधायक अजय राय का कहना था कि सपा और भाजपा की मिलीभगत के कारण ही शहर का माहौल बिगड़ रहा है। दोनों दलों के नेता साम्प्रदायिक धु्रवीकरण की कोशिश में हैं। अजय राय सहित कई कांग्रेसी नेताओं ने कमिश्नर नितिन रमेश गोकर्ण से मिलकर लाठीचार्ज की न्यायिक जांच के साथ दोषी अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। प्रधानमंत्री के संसदीय दफ्तर पर सैकड़ों कांग्रेसियों के साथ बटुकों ने प्रदर्शन किया। जिला प्रशासन के विरोध में हिंदू युवा वाहिनी ने ‘बनारस बंद’ का आह्वान किया। वाहिनी के कार्यकर्ताओं ने मैदागिन से जुलूस निकाला और प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की। चैक पहुंचने पर पुलिस ने कार्यकर्ताओं को तितर-बितर किया।
 लब्बोलुआब यह है कि जिले के बड़े सरकारी अधिकारी न्यायपालिका का हवाला देकर एक तरफ तो गंगा में प्रतिमा विसर्जन से प्रदूषण की बात कह रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ असली कारणों से मुंह फेरे हुए हैं। वैज्ञानिकों का दावा है कि गंगा में प्रदूषण की बड़ी वजह उसमें गिर रहे नाले हैं। ‘नमामि गंगे परियोजना’ से जुड़े वैज्ञानिकों का कहना है कि गंगा प्रदूषण में प्रतिमा विसर्जन का योगदान सिर्फ 15 फीसदी है। सबसे ज्यादा 85 प्रतिशत प्रदूषण नदी में गिर रहे सीवेज है।वाराणसी में ही 350 एमएलडी सीवेज गंगा में गिर रहा है। सवाल उठता है कि गंगा में नालों व सीवर के गंदे पानी की धार से क्या प्रदूषण नहीं हो रहा है। यह सिलसिला आज से नहीं कई दशकों से चला आ रहा है। वर्तमान में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से करीब 34 नाले गंगा में मिलते हैं। इसमें नगवां व कोनिया का नाला सबसे अधिक गंदगी प्रवाहित कर रहा है। बताते हैं कि इन स्रोतों से अनुमानित 300 एमएलडी से अधिक मलजल गंगा में जाता है जबकि विभागीय अधिकारी 260 एमएलडी मलजल गंगा में प्रवाहित होने की बात कहते हैं। इसके सापेक्ष वर्तमान में 100 एमएलडी मलजल का ट्रीटमेंट हो रहा है।
 संकट मोचन फाउंडेशन के महंत प्रफेसर विश्वंभरनाथ मिश्र का कहना है कि प्रतिमा बनाने से लेकर विसर्जन तक को अगर वैज्ञानिक धरातल पर रखकर योजना बनाई जाए तो मूर्ति विसर्जन से होने वाले 15 प्रतिशत जल प्रदूषण को भी कम किया जा सकता है। ईको.फ्रेंडली प्रतिमाओं का निर्माण इसका बेहतर रास्ता है। उधर,गंगा में गणेश प्रतिमा विसर्जन पर अड़े साधु-संतों का गुस्सा थमता नहीं दिख रहा। वाराणसी में माहौल में तनाव है। काशी मराठा गणेशोत्सव समिति के पदाधिकारियों को जेल में डालने के बाद शहर की दूसरी समितियों ने भी विसर्जन से इंकार कर दिया। लाठीचार्ज के विरोध में प्रधानमंत्री के संसदीय दफ्तर से लेकर सड़कों पर प्रदर्शन के साथ पीएम-सीएम का पुतला जलाया गया। नाराज होकर करीब तीन सौ भाजपाइयों ने तो भाजपा की सदस्यता ही छोड़ दी। इस बीच विरोध के चलते चार दिन तक अन्न-जल त्याग चुके स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद 24 सितंबर को अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद शंकराचार्य घाट पहुंचकर प्रतीकात्मक रूप से गंगा की मिट्टी से मूर्ति बनाकर गंगा में प्रवाहित कर संकल्प तोड़ने के साथ अन्न ग्रहण किया। साधू संतों पर लाठीचार्ज का मसला ठंडा होने का नाम नहीं ले रहा है। अखिलेश सरकार के खिलाफ वाराणसी सहित तमाम जगाहों पर प्रदर्शन हो रहा है।
 इस मसले पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद,(शिष्य प्रतिनिधि शंकराचार्य) का कहना है कि सनातनधर्मियों के लिए गंगा, मां हैं। मां के प्रति हर मन में श्रद्धा का भाव है और उनके हित का ख्याल रखते हुए प्राकृतिक सामग्रियों से ही प्रतिमाओं को आकार देने की परंपरा भी है। इनके विसर्जन से यदि गंगा प्रदूषित होती हैं तो तालाब-कुंडों को भला कैसे अलग रखा जा सकता है। गंगा की अविरलता के लिए टिहरी के बंधन से उन्हें मुक्त करने की बजाय लोगों का ध्यान हटाने की साजिश की जा रही है। कोर्ट के फैसले का सम्मान है लेकिन इसकी आड़ में प्रशासन बरगलाने से बाज आए। वहीं प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र, (महंत-संकट मोचन मंदिर) का कहना है कि  प्रशासन को विसर्जन-निस्तारण का अंतर समझना होगा। गंगा में 350 एमएलडी सीवेज का निस्तारण किया जा रहा है। वहीं पवित्र प्रतिमाओं के गंगा में विसर्जन से रोका जा रहा है। वह भी तब जबकि मिट्टी पानी में घुल जाती है और पुआल-बांस, मल्लाह निकाल ले जाते हैं। इसमें रंग भी प्राकृतिक ही होते हैं फिर भला आपत्ति कहां और क्यों है। सनातनधर्मियों की भावना से जुड़े इस मामले में कोर्ट को वस्तु स्थिति बतानी चाहिए। महामंडलेश्वर संतोषदास, पीठाधीश्वर सतुआ बाबा आश्रम ने प्रतिमा विसर्जन को सनातन परंपरा बताते हुए कहा कि देव आवाहन, पूजन और गंगा में विसर्जन की हमारी परंपरा रही है। सदियों से सनातन धर्मी यही करते आ रहे हैं। उद्देश्य यह की प्रकृति से जो लिया, उसमें ही मिल जाए। उच्च न्यायालय की मंशा गंगा में प्रदूषण रोकने की है। हम सब भी इसकी ही लंबे समय से मांग कर रहे हैं। अब देव प्रतिमाओं के विसर्जन को लेकर प्रशासन द्वारा बतंगड़ खड़ा करना ठीक नहीं। उसे जनभावनाओं का ख्याल रखते हुए ही कोई निर्णय लेना चाहिए जिससे किसी की आस्था न आहत हो।

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