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Poetry on Vyapam scam and Journalist Akshay death by Atul kushwah

मध्य प्रदेश में व्यापमं घोटाले पर स्टिंग करने गए आज तक चैनल के पत्रकार अक्षय सिंह की मौत पर, पत्रकारिता पर और मध्य प्रदेश सरकार से सुलगते हुए सवाल करती वरिष्ठ पत्रकार और कवि अतुल कुशवाह की ये कविता…।

<p>मध्य प्रदेश में व्यापमं घोटाले पर स्टिंग करने गए आज तक चैनल के पत्रकार अक्षय सिंह की मौत पर, पत्रकारिता पर और मध्य प्रदेश सरकार से सुलगते हुए सवाल करती वरिष्ठ पत्रकार और कवि अतुल कुशवाह की ये कविता...।</p>

मध्य प्रदेश में व्यापमं घोटाले पर स्टिंग करने गए आज तक चैनल के पत्रकार अक्षय सिंह की मौत पर, पत्रकारिता पर और मध्य प्रदेश सरकार से सुलगते हुए सवाल करती वरिष्ठ पत्रकार और कवि अतुल कुशवाह की ये कविता…।

 क्यों चुप हो कुछ तो बोलो रबीश कुमार की पाती पर
व्यापम की कैसे आग जली शिवराज तुम्हारी छाती पर,

सिसक रही है वो ममता जिसने अक्षय को पाला है
हर सीने में धधक रही आक्रोश—दर्द की ज्वाला है,

पत्रकारिता के दामन को ”गंगा” करने आया था
घोटाले करने वालों को नंगा करने आया था,

घोटाले की खामोशी में नमक घोलने आया था
अक्षय तो ‘सरकार’ आपकी पोल खोलने आया था,

सोच रहा है हर दिल, उसकी कैसे मौत हुई होगी
हैरत है, दिन वाकी था, फिर कैसे रात हुई होगी ?

मध्य प्रदेश से अक्षय का जब मृत शरीर घर आया था
मत पूछो क्या गुजरी, सारे शहर में मातम छाया था,

बोल उठे सब, उठो बंधु, तुमसे बस इतना कहना है
लकवा से पीडित पिता और घर में अविवाहित बहना है,

वह शैय्या भी रोयी होगी, जिस शैय्या पर वह लेटा था
एक नहीं है मां उसकी, अक्षय हर मां का बेटा था,

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इत्यारे का नाम बता दो इतना तो एहसान करो
खुद कानून बनाने वालो संविधान का मान करो,

पत्रकारिता पर संकट है सावधान होकर निकलो
दिल में साहस और जहन में श्मशान लेकर निकलो,

निष्पक्ष, सत्य और साहस की कीमत अक्सर वो चुकाता है
वह समाज की खातिर इतना सिस्टम से टकराता है,

किसने किया घोटाला यह सत्ता ही जान नहीं पाई
हत्या है या मौत हुई, यह भी पहचान नहीं पाई,

न्याय नहीं कर सकते तो धिक्कार तुम्हारे शासन पर
कदम कभी शिवराज तुम्हारे, फिर न पडें सिंहासन पर,

हो हिम्मत तो कलम की नीली स्याही को बिखरा देना
पत्रकार हूं मैं भी तुम मुझको भी कत्ल करा देना,

जांच हुई, परिणाम शून्य है, मौन न्याय की घंटी है
सीबीआई सच बोलेगी, इसकी क्या गारंटी है ?

छप्पन इंची सीना वाले तुमको क्या मालूम नहीं
कहीं हवेली—बंगला है, तो कहीं एक भी रूम नहीं,

तुमको क्या दिखता होगा आकाश मार्ग से जाने में
जिनके दिल टूट चुके हैं, वो भर्ती हैं पागलखाने में,

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करना चुनाव में ​बहिष्कार, वोटों से प्यासा मर जाए
इस ‘पापी’ के सर पे सवार सत्ता का नशा उतर जाए,

अच्छे दिन गुजर चुके तेरे, अब बहुत बुरे दिन आएंगे
गर पडी जरूरत तो लाखों अक्षय पैदा हो जाएंगे ,

पत्रकार हूं नाम अतुल है, जो करना हो कर लेना
ऐ व्यापमं घोटाले वालों दिल में साहस भर लेना,

करो तसल्ली थोडी सी, तुम सबका राजफाश होगा
मिल जाओगे सब मिट्टी में, देखो! ऐसा विनाश होगा,

सत्ता तेरे गलियारे में, बंदूकें बोएगी कविता
सर से लेकर पांव तलक, बारूदें ढोएगी कविता,

तेरे आगे हाथ जोडकर कभी न रोएगी कविता
बिस्तर पर तुझसे पांव फंसाकर, कभी न सोएगी कविता..!!

रचनाकार- कवि : अतुल कुशवाह
वरिष्ठ उप संपादक
नई दुनिया
ग्वालियर, (मप्र)
मोबाइल- 07489007662 ,      
07691989704

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