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आजम खान को क्या से क्या बना दिया बाबा ने!

संजय सक्सेना, लखनऊ

आजम खान को सियासी रसूख से सलाखों के पीछे तक के सफर में राहत की उम्मीद कम

एक समय जिस समाजवादी नेता की भैंस को तलाशने के लिए सैकड़ों पुलिस वाले जमीन-आसमान एक कर देते थे.जिसके गुस्से से नेताजी मुलायम सिंह यादव तक परेशान हो जाते थे,जो शख्स अपने गृह जनपद रामपुर की चुनावी सभाओं में उनकी पार्टी की सरकार बनने पर तनखईयों (तनख्वाह पाने वाले आईएएस/पीसीएस अफरस)से अपने जूते साफ कराने का सपना पाला करता था. सेना में विद्वेष पैदा करना, महिलाओं के अंडर गावर्मेंट का कलर बता देने की हिमाकत करना,हिन्दुओं को गाली देना,गरीबों की जमीन हड़प लेना आदि कृत्य करना अपना जन्म सिद्व अधिकार समझता था, जिसने ताउम्र दोस्त कम दुश्मन ज्यादा बनाये आज वह अपने कर्मो की वजह से एक बार फिर जेल की सलाखों के पीछे पहंुच गया है. बात समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव आजम खां की गुस्ताखियों की हो रही है,वैसे तो सत्ता के नशें में आजम ने कई बार कानून को ठंेगा दिखाया होगा,लेकिन उसमें से एक गुस्ताखी ने न केवल उनका सियासी करियर तबाह दिया बल्कि जेल की सलाखों के पीछे भी पहुंचा दिया.आजम को तो जेल जाना ही पड़ा,उनकी बीवी तजीन फात्मा और बेटा अब्दुल्ला भी उनके साथ ‘सरकारी हवेली’ में पहुंच गया.

दशकों पूर्व वकालत छोड़कर राजनीति में उतरे आजम खान को अपनी ताकत का इतना गुमान था कि वह बेटे को कम उम्र में चुनाव लड़ा बैठे. जिसके सबूत उनके विरोधियों को मिल गए और फिर आजम खान कोर्ट-कचहरी में फंसते चले गए.उन पर और उनसे परिवार पर एक के बाद एक मुकदमे दर्ज होते गए। इसी क्रम में बेटे अब्दुल्ला के दो जन्म प्रमाण पत्र मामले में आजम खां के साथ ही उनकी पत्नी और बेटे को भी रामपुर के एमपी/एमएलए कोर्ट से सात साल की सजा मिलने के बाद जेल भेज दिया गया.आज भले ही समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव अपनी पार्टी के धोखाधड़ी करने वाले नेता आजम खान और उनके परिवार को मिली सजा में मुस्लिम एंगिल तलाश रहे हों,लेकिन सच्चाई यही है कि आजम के परिवार को उनके कर्मो की सजा मिली है.यह सजा इसलिए नहीं मिली क्योंकि वह मुसलमान थे,बल्कि अदालत में साक्ष्यों के आधार पर तीनों गुनाहागार साबित हुए हैं. अखिलेश यादव को यदि लगता है कि कभी आतंकवादियों तो अब गुनाहागार आजम खान के बचाव में खड़े होकर वह मुस्लिम वोटों के रहनुमा बने रहेंगे तो यह मुसलमानों के सोचने का विषय है कि क्या वह ऐसे नेता अखिलेश यादव के साथ खड़ा रहना पसंद करेंगे जो आतंकवादियों/गुनाहागरों को मुलसमानों के साथ जोड़कर उनके समाज की छवि को लम्बे समय से दागदार और धूमिल करते रहे हैं. कोर्ट ने आजम पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा ’जब लोकसेवक ही जनता से धोखाधड़ी कर गलत तथ्यों के आधार पर अपना प्रतिनिधित्व दर्शाता है तो ऐसे में लोकसेवक से जनता के हिम की अपेक्षा करना संभव नहीं है.’

बहरहाल, कुल मिलाकर लगता है कि रामपुर की सियासत में आजम का सितारा डूब चुका है.अब उनको रामपुर से चुनाव जीतने में लाले पड़ जाते हैं,किसी और को चुनाव जिताने की बात तो दूर की कौड़ी हो गई है। अतीत के पन्नों को पलटा जाये तो यह साफ हो जाता है कि एक समय आजम खान समाजवादी पार्टी के फायर ब्रांड नेता और मुस्लिम चेहरा हुआ करते थे। अपने करीब 40 वर्षो के सियासी कैरियर के दौरान आजम रामपुर शहर से 10 बार विधायक रहे. साल 2019 में लोकसभा सदस्य भी बने. इससे पहले वह राज्यसभा सदस्य और प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष भी रहे. प्रदेश में जब भी सपा की सरकार बनी, तब वह कई-कई विभागों के मंत्री रहे. सपा सरकार में उनकी तूती बोलती थी.पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलामय सिंह यादव के बाद पश्चात नंबर दो पर आजम खान का नाम आता था,यहां तक की आजम के रूतबे के चलते शिवपाल यादव तक पार्टी में तीसरे नंबर पर रहते थे,आजम के आगे पीछे अफसरों की लाइन लगी रहती थी. दर्जनों पुलिस वाले उनकी सुरक्षा में मुस्तैद रहते थे.वह जिधर से गुजरते थे,सड़के अतिक्रमण मुक्त होकर चमचमाने लगती थी. बड़े-बड़े अधिकारियों की उनके सामने बोलने की हिम्मत नहीं थी.

अफसरों पर गुर्राना और उन्हें जनता के बीच जलील करना आजम की आदत में शामिल था. साल 2005 में नगर विकास मंत्री रहते तत्कालीन नगर मजिस्ट्रेट नवाब अली खां को इतनी बुरी तरह हड़काया कि वह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े थे.आजम सबसे अधिक भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ही नहीं उनके कार्यकर्ताओं और वोटरों तक से अदावत रखते थे.बसपा सुप्रीमों मायावती के लिए भी आजम उलटा-सीधा बोलते समय मर्यादा की सीमा लांघ जाया करते थे.साम्प्रदयिकता उनके खून में रची बसी थी.मुजफ्फरनगर दंगों के समय सरकार में रहते आजम ने खुलकर एक मुस्लिम पक्ष के दंगाइयों का साथ दिया और पुलिस को भी ऐसा करने के लिए मजबूर कर दिया. अगर आजम खान के खिलाफ स्टिंग नहीं होता तो कभी सच्चाई सामने ही नहीं आती. स्टिंग से यह साफ हो गया था कि मुजफ्फरनगर के दंगे बिल्कुल सरकार की स्क्रिप्ट के मुताबिक चल रहे थे. बीजेपी के विधायक पहले से ही कटघरे में थे और कुछ ही दिन की बात थी कि वे सलाखों के पीछे भी पहंुच जाते, लेकिन, कहानी में तब अप्रत्याशित मोड़ आ गया जब एक टीवी चौनल के गुप्त ऑपरेशन में पुलिस ने दावा किया कि दंगाइयों पर धीमी गति से कार्रवाई करने का राजनीतिक दबाव था.स्टिंग में पुलिस वाले दावा करते दिखे कि मुजफ्फरनगर के प्रभारी मंत्री आजम खान दंगों के दौरान पुलिस को निर्देश दे रहे थे. इसके पश्चात निष्पक्ष जांच के सरकारी दावों पर और संदेह जताते हुए स्टिंग में शामिल दो पुलिसकर्मियों का तबादला कर दिया गया था।

आजम खान उस सियासी ताकत के गुमान में थे,जो कभी स्थायी नहीं रहा है.सत्ता के नशे में चूर आजम मनमाने फैसले लेते रहे.धोखाधड़ी करके बेटे को भी उन्होंने कम उम्र में ही चुनाव लड़ा दिया. उनके छोटे बेटे अब्दुल्ला आजम साल 2017 में पहली बार स्वार टांडा से सपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़े. तब उनके मुकाबले चुनाव लड़ रहे पूर्व मंत्री नवाब काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां ने नामांकन के दौरान ही आपत्ति दाखिल की थी कि अब्दुल्ला की उम्र चुनाव लड़ने की योग्य नहीं है.इसलिए उनका पर्चा खारिज कर दिया जाए, लेकिन उनके पास उम्र कम होने का कोई सबूत नहीं था. इस करण अब्दुल्ला का पर्चा खारिज नहीं हो सका.

चुनाव के बाद नवेद मियां ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की. उन्होंने अब्दुल्ला की हाई स्कूल की मार्कशीट की कापी भी ले ली, जिसमें उनकी उम्र एक जनवरी 1993 दर्ज थी. इसके हिसाब से साल 2017 में चुनाव के समय अब्दुल्ला की उम्र 25 साल पूरी नहीं थी, बल्कि 11 महीने कम थी। फिर भी वह चुनाव लड़ गए. उन्होंने 30 सितंबर 1990 को लखनऊ के अस्पताल में पैदा होना दर्शाते हुए दूसरा जन्म प्रमाण पत्र बनवा लिया. इस तरह उन्होंने एक जन्म प्रमाण पत्र रामपुर नगर पालिका से बनवाया तो दूसरा लखनऊ से. तमाम शैक्षिक प्रमाण पत्रों में अब्दुल्ला की जन्म तिथि एक जनवरी 1993 लिखी गई थी. हाई कोर्ट ने कम उम्र में चुनाव लड़ने के आरोप में उनकी विधायकी भी रद्द कर दी। इसे लेकर वह सुप्रीम कोर्ट गए, लेकिन वहां से भी राहत नहीं मिल सकी.

खैर,आजम खान के दुश्मनों की लिस्ट में एक नाम रामपुर के बीजेपी नेता शिव बहादुर सक्सेना उर्फ शिब्बू का भी था,जिनका आजम से छत्तीस का आकड़ा रहता था,अब शिबू इस दुनिया में नहीं हैं,लेकिन उनका बेटा भी आजम की नाक में दम किये हुए है. आजम खां के धुर-विरोधी शहर विधायक आकाश सक्सेना हनी ने अब्दुल्ला के दो जन्म प्रमाण पत्र को लेकर आजम खां, उनकी पत्नी डा. तजीन फात्मा और बेटे अब्दुल्ला के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया. इसी मामले में कोर्ट ने तीनों को सात साल की सजा सुनाई. दरअसल अब्दुल्ला का जन्म प्रमाण पत्र बनवाने के लिए आजम खां और उनकी पत्नी ने ही शपथ पत्र दिया था.बीजेपी नेता और विधायक आकाश सक्सेना ने दो जन्म प्रमाण पत्र के अलावा अब्दुल्ला के दो पासपोर्ट और दो पैन कार्ड के मामले में भी रिपोर्ट दर्ज कराई. ये दोनों मुकदमे भी कोर्ट में विचाराधीन हैं।

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अब्दुल्ला ने अपने पैन कार्ड और पासपोर्ट में पहले एक जनवरी 1993 जन्म तिथि दर्ज कराई थी, लेकिन बाद में संशोधित कराकर दूसरा पैन कार्ड और पासपोर्ट बनवाया, जिसमें जन्मतिथि 30 सितंबर 1990 दर्ज कराई. आजम के परिवार के खिलाफ मुकदमों की शुरुआत यहीं से हुई. आकाश ने पहला मुकदमा तीन जनवरी 2019 में दर्ज कराया. बाद में तमाम लोग शिकायत लेकर आते रहे. किसी ने घर तोड़ने का तो किसी ने जमीन कब्जाने का मुकदमा दर्ज कराया. इस तरह उनके खिलाफ जीवनभर में 108 मुकदमे दर्ज हो गए. इनमें 84 मुकदमे अब भी विचाराधीन है. अब तक उन्हें चार मुकदमों में सजा हो चुकी है. इनमें एक मामला मुरादाबाद की अदालत से जुड़ा है तो दो मामले रामपुर में ही चुनाव आचार संहिता और भड़काऊ भाषण देने से संबंधित हैं.सजा के कारण पिछले साल ही उनकी विधायकी चली गई थी और फिर विधानसभा चुनाव में भाजपा के आकाश सक्सेना विधायक बन गए. रामपुर शहर में भाजपा पहली बार चुनाव जीती. पहली बार ही यहां हिंदू विधायक चुना गया.

लब्बोलुआब यह है कि आजम खान, बीवी और बेटे के साथ जेल पहुंच गये हैं और अब उन्हें ऊपरी अदालतों से राहत की उम्मीद है,लेकिन जिस तरह के पुख्ता सबूत आजम परिवार के खिलाफ कोर्ट में आये हैं,उसके आधार पर लगता नहीं है कि आजम को कोई बड़ी राहत मिल पायेगी.

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