Yashwant Singh : जमाना भूल गया जो एक बच्चे से दोस्ती कर ली… डेढ़ साल का ये बालक आजकल संयोग से मेरे साथ है. इन्हीं से दोस्ती यारी चल रही है. ये जो करना चाहते हैं, उसे मैं करने देता हूं, बल्कि आग में थोड़ा घी डाल देता हूं. ये महोदय इशारों में ही एं गें हें करके बोलते बतियाते हैं पर क्या हुआ, मैंने भी इनकी भाषा बोली समझ ली है. जब ये पानी भरा गिलास गिरा कर फिर से गिलास में पानी भरने के लिए एं गें हें करते हैं तो तुरंत आदेश दे देता हूं कि भरा गिलास पानी लेकर साहब को पेश किया जाए.
कुछ ऐसे ही एक दोपहर ये साहब बड़े आराम से कुछ करते रहे और मैं मोबाइल से वीडियो बनाता रहा. इनके एक ‘बेहद गंभीर कार्य’ को वीडियो में कैद करना अपने आप में बेहद सुखद रहा. आप भी देखिए, लेकिन जरा बच्चा बन के. सोच रहा हूं कि दिल्ली छोड़ना और इस बच्चे के मिलने में कोई मेल तो है. दिन हो या शाम या रात, इन महोदय से ऐसी दोस्ती हो गई है कि ये मुझको रिझाते रहते हैं और मैं इन्हें. बहुत दिन बाद बच्चा बनकर जीने में आनंद आ रहा है. कहीं ऐसा तो नहीं कि आनंद सारे वयस्की चोंचलेबाजियों को उतार फेंकने के बाद बच्चा स्वरूप सरल सहज होने बनने में ही निहित है? न आगे की चिंता, न अतीत की फिक्र, जो है बस ये पल है. वीडियो लिंक ये है: https://goo.gl/MgZZaa
भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह के फेसबुक वॉल से.