काशी और गंगा यहां की संस्क़ति की मूल आत्मा हैं। यह अल्हण और अक्खड संस्क़ति और संस्कारों का शहर है। यह भगवान शंकर के त्रिशूल पर अडिग है। इसकी प्राचीनता में ही इसकी नवीनता है। काशी क्या क्वेटो बनेगा। यहां के बदलाव को क्या हम आत्मसात कर पाएंगे। हमारे लिए यह सबसे बडा सवाल है। काशी और गंगा के कायाकल्प के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अधिक चाहत लगाकर लोग बैठे हैं। पीएम को लोग गंगा पुत्र के नाम से भी पुकारने लगे हैं। वे काशी को क्वाटो बनाएंगे। प्रधानमंत्री का 28 जून को वाराणसी आना तय था लेकिन मौसम के कारण उनका कार्यक्रम स्थगित हो चला। लेकिन सरकार के 13 माह के कार्यकाल में धार्मिक और संस्कारों की नगरी काशी में कुछ परिवर्तन नहीं दिखता है। यह काशी के लोगों के लिए सबसे चिंता का सवाल है।
लोग काशी का मूल विकास चाहते हैं लेकिन उसकी आत्मा से छेड़छाड़ हो यह संभव नहीं है। जबकि हमारे पीएम काशी को क्वाटो बनाना चाहते हैं विकास और काशीवासियों के बीच यह सबसे बड़ा विषय है। स्मार्टसिटी और गंगा की निर्मलता काशी वासियों के लिए यक्ष प्रश्न है। पीएम के वाराणसी आगमन से काशी वासियों को अधिक उम्मीदें रही लेकिन प्रकृति ने उनका साथ नहीं दिया दौरा आखिरकार रद्द हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी चुनावों के बाद जब गंगा आरती में शामिल होने आए थे तो उन्होंने कहा था कि मां गंगा ने मुझे यहां बुलाया है। इससे काशी के लोगों को आस बंधी थी कि अब गंगा का मैला आंचल जल्द ही निर्मल हो जाएगा। इसके लिए सरकार ने नमामि गंगे योजना की शुरुवात किया और गंगा पर अलग से मंत्रालय भी गठित किया गया है। लेकिन अभी उम्मीद के मुताबित कुछ अधिक नहीं हुआ है।
इस आंचल के विशाल छांव में 40 करोड़ लोगों के सरोकार सीधे जुड़े हैं। गंगा का महत्व मानव जीवन के इतर जलीय जंतुओं के लिए भी वरदान है। इसका जल जहां अमृत हैं। वहीं जड़ी बूटिया मानव जीवन को संरक्षित करती हैं। बढ़ती आबादी और वैज्ञानिक विकास ने गंगा के अस्तित्व पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। गंगा सिमट रही हैं। गंगा गोमुख यानी उत्तराखंड से निकल कर बंग्लादेश तक का सफर तय करती हैं। भौगोलिक आंकड़ों में समझे ंतो गंगा की लंबाई 2510 किमी है। 2071 किमी भारत की सीममा में और बाकि हिस्सा बंग्लादेश में आता है। यह 100 मीटर गहरी हैं। 3,50196 वर्ग मिल के विस्तृत भू-भग पर गंगा फैली हैं। गंगा के उद्गम स्थल की ऊंचाई 3140 मीटर है। इसकी गोद मंें सुंदरवन जैसा डेल्टा है। कृषि के लिए लंबा भूभाग उपलब्ध कराया है। लेकिन बढ़ती आबादी और पदूषण के चलते पर्यावरण का असंतुलन भी खड़ा को गया है। जिससे गंगा का पानी अब आचमन करने योग्य भी नहीं रहा। वैज्ञानिक भविष्यवाणियों को माने तो गंगा का अस्तित्व खतरे में है। पर्यावरण असंतुलन और तापमान में वृद्धि के चलते ग्लेशियर अधिक तेजी से पिघल रहे हैं।
एक वक्त ऐसा भी आएगा जब ग्लेशिर खत्म हो जाएंगे और हमारी गंगा का आंचल सूखा हो जाएगा। गंगा में प्रतिदिन 2 लाख 90 हजार लीटर कचरा गिरता है। जिससे एक दर्जन बीमारियां पैदा होती हैं। सबसे अधिक कैंसर जैसा खतरनाक रोग भी पैदा होता है। कैंसर के सबसे अधिक मरीज गंगा के बेल्ट से संबंधित हैं। इसके अलावा दूसरी जल जनित बीमारियां हैं। सर्वेक्षणों के अनुसार गंगा में हर रोज 260 मिलियन लीटर रसायनिक कचरा गिराया जाता है। जिसका सीधा संबंध औद्यौगिक इकाईयों और रसायनिक कंपनियों से है। गंगा के किनारे परमाणु संयत्र, रसायनिक कारखने और सुगर मिलों के साथ-साथ छोटे बड़े कुटीर और दूसरे उद्योग शामिल है। कानपुर का चमड़ा उद्योग गंगा का आंचल मैला करने में सबसे अधिक भूमिका निभाता है। वहीं सुगर मिलों का स्क्रैप इसके लिए और अधिक खतना बनता जा रहा है। गंगा गिराए जाने वाले शहरी कचरे का हिस्सा 80 फीसदी होता है। जबकि 15 प्रतिशत औद्यौगिक कचरे की भागीदारी होती है। गंगा के किनारे 150 से अधिक बड़े औद्यौगिक ईकाइयां स्थापित हैं। लेकिन गंगा पर राजनीति से बात नहीं बनेगी। गंगा के लिए अच्छे दिन लाने के लिए हमें सरकार के साथ कदम में कदम बढ़ा कर आगे आना होगा। गंगा राष्टीय नदी है। चुनावों के दौरान प्रधानतंत्री गंगा आरती में शामिल नहीं हो पाए थे। लेकिन जीत के बाद यहां पहुंच कर गंगा आरती में शामिल हुए और सतत प्रवाहीनी मां गंगा से आशीर्वाद भी लिया। गंगा और काशी को लेकर यहां की लोगों की अपेक्षाएं अधिक हैं।
मोदी एक और इच्छाएं अनंत हैं। यह यह देखना होगा कि प्रधानमंत्री मोदी अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी की जनता की उम्मीदों और अपेक्षाओं पर कितने खरे उतरते हैं। लेकिन काशी की मोक्षता में यहां की अल्हणता का अपना अलग स्थान है। वाराणसी क्वेटो बने लेकिन इसकी गलियां, गंगा के घाट और गोदलिया की भांग की ठंडई की संस्क़ति बरकरार रहनी चाहिए। हमें इस तरह कोई बदलाव नहीं चाहिए जो हमारी पुरातन संस्कारों और अस्तित्व को ही मिटा दे। अब देखना है कि हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी काशी को क्वेटो का आवरण पहना काशी की आत्मा और उसकी जीवंतता को कैसे संरक्षित रखते हैं। यह हमारे लिए आधुनिक भारत निर्माण और प्राचीन भारत की आत्मा और गौरव के बीच एक खाई है। पीएम के वाराणसी यात्रा से काफी कुछ अपेक्षाएं थी। मीडिया में गंगा और क्वेटो पर बहुत आशंकाएं दर्ज की गयी हैं।
हालांकि यह सच है कि लोग काशी को बदलता हुआ देखना चाहते है। अब उसका स्वरुप कैसा होगा यह आने वाले दिनों में ही पता चलेगा। लोगों को भय है कि मेक इन इंडिया और स्मार्टसिटी की हवा में कहीं काशी और उसकी मूल आत्मा का चेहरा ही विगड् न जाय। काशी के विकास को लेकर युवा और बुर्जुग पीढी में मतांतर हो सकता है। इस स्थिति में काशी को क्वेटो बनाने के पहले इस मसले पर व्यापक बहस होनी चाहिए कि काशी का मूल स्वरुप और उसकी आत्मा यथावत रहे या फिर उसमें बदलाव होना चाहिए। इस पर गंभीरता से विचार करना होगा। जिससे काशी क्वेटो बनकर भी काशी बनी रहे। इस स्थिति में हर कोई यही चाहेगा बना रहे बनारसिया का रंग।
लेखक प्रभुनाथ शुक्ला स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.