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विजिलेंस ने फ्राड जेई की जगह उसके नाम पर बेकसूर को जेल भेजा, जांच शुरू

लखनऊ : जल संस्थान, लखनऊ, जोन-2, ऐशबाग़ के पूर्व जेई ओ पी सक्सेना के खिलाफ 2003 में सतर्कता अधिष्ठान द्वारा अपने नाबालिक बेटे के नाम से मेसर्स सुमित ट्रेडर्स प्रोप्रेइटर अजय कुमार सक्सेना बना कर अपने अधीन 17 टेंडर स्वीकृत कराने और इसके लिए राजधानी नगर सहकारी बैंक, आलमबाग़ में फर्जी नाम से खाता खुलवा कर रुपये 1,35,409 अपने और पत्नी द्वारा हड़प लेने पर थाना बाज़ारखाला में धारा 420/467/468/471 आईपीसी तथा धारा 13(1) व 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में दर्ज एफआईआर में सही अजय कुमार सक्सेना की जगह एक निर्दोष व्यक्ति को गिरफ्तार कर जेल भेज देने के मामले की जांच शुरू हो गयी है.

<p>लखनऊ : जल संस्थान, लखनऊ, जोन-2, ऐशबाग़ के पूर्व जेई ओ पी सक्सेना के खिलाफ 2003 में सतर्कता अधिष्ठान द्वारा अपने नाबालिक बेटे के नाम से मेसर्स सुमित ट्रेडर्स प्रोप्रेइटर अजय कुमार सक्सेना बना कर अपने अधीन 17 टेंडर स्वीकृत कराने और इसके लिए राजधानी नगर सहकारी बैंक, आलमबाग़ में फर्जी नाम से खाता खुलवा कर रुपये 1,35,409 अपने और पत्नी द्वारा हड़प लेने पर थाना बाज़ारखाला में धारा 420/467/468/471 आईपीसी तथा धारा 13(1) व 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में दर्ज एफआईआर में सही अजय कुमार सक्सेना की जगह एक निर्दोष व्यक्ति को गिरफ्तार कर जेल भेज देने के मामले की जांच शुरू हो गयी है.</p>

लखनऊ : जल संस्थान, लखनऊ, जोन-2, ऐशबाग़ के पूर्व जेई ओ पी सक्सेना के खिलाफ 2003 में सतर्कता अधिष्ठान द्वारा अपने नाबालिक बेटे के नाम से मेसर्स सुमित ट्रेडर्स प्रोप्रेइटर अजय कुमार सक्सेना बना कर अपने अधीन 17 टेंडर स्वीकृत कराने और इसके लिए राजधानी नगर सहकारी बैंक, आलमबाग़ में फर्जी नाम से खाता खुलवा कर रुपये 1,35,409 अपने और पत्नी द्वारा हड़प लेने पर थाना बाज़ारखाला में धारा 420/467/468/471 आईपीसी तथा धारा 13(1) व 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में दर्ज एफआईआर में सही अजय कुमार सक्सेना की जगह एक निर्दोष व्यक्ति को गिरफ्तार कर जेल भेज देने के मामले की जांच शुरू हो गयी है.

 

दरअसल इस मामले में सतर्कता विभाग के विवेचक आर सी यादव ने ओ पी सक्सेना से मिल कर षडयत्र के तहत बलि के बकरे की तरह श्री सक्सेना के सगे भांजे अजय कुमार सक्सेना को ला कर बिना किसी अभिलेख का परीक्षण या हस्तलेख मिलान किये उसी पर सारा इल्जाम लगा दिया और निर्दोष जानते हुए उसे जेल भेज दिया.

सामाजिक कार्यकर्ता डॉ नूतन ठाकुर ने जनवरी 2015 में इस सम्बन्ध में प्रमुख सचिव सतर्कता और सतर्कता निदेशक को पत्र लिख कर इस पूरे मामले की नए सिरे से जांच करने की मांग की थी जिसकी जांच सतर्कता विभाग के इंस्पेक्टर दिनेश पाल सिंह द्वारा की जा रही है. आज अजय सक्सेना आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर के साथ दिनेश पाल सिंह से मिले जिन्होंने प्राथमिक स्तर पर सहमति जताते हुए मामले में पूर्ण न्याय किये जाने का आश्वासन दिया.

सेवा में,
निदेशक,
सतर्कता अधिष्ठान,
उत्तर प्रदेश,
जनपद लखनऊ

विषय- मेरे मुवक्किल श्री अजय कुमार सक्सेना पुत्र श्री राज कुमार सक्सेना निवासी 2/208,  जानकीपुरम, सेक्टर-एच, थाना गुडंबा, जनपद लखनऊ को सतर्कता अधिष्ठान, उत्तर प्रदेश द्वारा मु०अ०स० 333/05 धारा 420/467/468/471 आईपीसी तथा धारा 13(1) व 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में छल, कपट, कूटरचना और साजिश के तहत पूरी तरह फर्जी तरीके से फंसाए जाने विषयक

महोदय,

निवेदन है कि मैं डॉ नूतन ठाकुर एक अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता हूँ. मेरे पास श्री अजय कुमार सक्सेना पुत्र श्री राज कुमार सक्सेना निवासी 2/208,  जानकीपुरम, सेक्टर-एच, थाना गुडंबा, जनपद लखनऊ उपस्थित हुए और उन्होंने सतर्कता अधिष्ठान, उत्तर प्रदेश द्वारा विवेचना किये गए अपना केस मु०अ०स० 333/05 धारा 420/467/468/471 आईपीसी तथा धारा 13(1) व 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम थाना बाज़ार खाला, जनपद लखनऊ मुझे सुपुर्द करते हुए उसके सभी अभिलेख मुझे प्रदान किये.

श्री अजय सक्सेना ने मुझे मौखिक बताया कि इस केस में किस प्रकार से उन्हें असल मुलजिम के सहयोग से सतर्कता अधिष्ठान के अधिकारियों ने मिलीभगत कर पूरी तरह फर्जी तरीके से फंसाया. उन्होंने इसके लिए तमाम कारण बताये.

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मैंने इस सम्बन्ध में सतर्कता अधिष्ठान द्वारा की गयी विवेचना के समस्त केस डायरी और अन्य अभिलेखों का अध्ययन किया और इनमे आधार पर मैं पूर्ण जिम्मेदारी के साथ कह सकती हूँ कि इस मामले में सतर्कता विभाग के सम्बंधित अधिकारियों ने जानबूझ कर एक सोची-समझी साजिश के तहत मुख्य और वास्तविक अभियुक्त श्री ओ पी सक्सेना के साथ मिल कर मेरे मुवक्किल श्री अजय कुमार सक्सेना को फंसाया गया और मुख्य अभियुक्त श्री ओ पी सक्सेना को मामले से बचा लिया गया.

संक्षेप में प्रकरण यह है कि श्री अजय के मामा श्री ओ पी सक्सेना जल संस्थान, लखनऊ, जोन-2, ऐशबाग़ में जेई थे. वर्ष 2003 में सतर्कता विभाग, उत्तर प्रदेश शासन के पत्र दिनांक 24/04/2003 द्वारा उनके खिलाफ सतर्कता अधिष्ठान द्वारा जांच कराये जाने के आदेश दिए गए. खुली जांच में सतर्कता अधिष्ठान ने पाया कि श्री सक्सेना ने वर्ष 1995-96, 96-97 तथा 97-98 में अपने पुत्र सुमित के नाम से मेसर्स सुमित ट्रेडर्स प्रोप्रेइटर श्री अजय कुमार सक्सेना पुत्र अज्ञात पता 9/592, 9/593 इंदिरा नगर लखनऊ बना कर व्यापर कर विभाग का फर्जी पंजीयन यूपी एसबीएलके-0188029 डाल कर गलत तरीके से अपने ही अधीन 17 कार्य सुमित ट्रेडर्स के नाम स्वीकृत करा लिए और इसके लिए राजधानी नगर सहकारी बैंक, आलमबाग़, लखनऊ में खाता संख्या 494 खुलवा कर जल संसथान से रुपये 1,35,409 का भुगतान करवाया जिसमे स्वयं रुपये 1,05,500 तथा अपनी पत्नी सुश्री संगीता के नाम रुपये 29,908 निकाले. अतः श्री ओ पी सक्सेना द्वारा फर्जी अभिलेखों को असल के रूप में प्रयोग करके सुमित ट्रेडर्स के नाम से कार्य करने और लोक सेवक के रूप में सुमित नामक बोगस फार्म के माध्यम से स्वयं और श्री अजय कुमार सक्सेना को लाभ करने/कराने के सम्बन्ध में धारा 420/467/468/471 आईपीसी तथा धारा 13(1) व 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में दिनांक 19/12/2005 को थाना बाज़ारखाला में अपराध पंजीकृत कराया गया.

इस सम्बन्ध में सतर्कता अधिष्ठान द्वारा विवेचना की गयी और अजीबोगरीब ढंग से काम करते हुए ना सिर्फ श्री ओ पी सक्सेना को पूरी तरह निर्दोष करार कर दिया गया बल्कि कहीं आसमान से उनके भांजे श्री अजय कुमार सक्सेना पुत्र श्री राज कुमार सक्सेना को बलि का बकरा बनाते हुए श्री ओ पी सक्सेना के खिलाफ दर्ज मुकदमे में उनके भांजे श्री अजय सक्सेना को अकेला मुलजिम बना कर दिनांक 20/12/2010 को आरोपपत्र संख्या 02/10 अंतर्गत धारा 420/467/468/471 प्रेषित कर दिया गया.

इस मामले में सतर्कता अधिष्ठान के विवेचकों ने कुल 21 पर्चे काटे और इसके अलावा एससीडी संख्या I तथा II के साथ दिनांक 09/10/2012 को विवेचना समाप्त की. कुल मिला कर कहानी यह बनायी गयी कि श्री अजय कुमार सक्सेना श्री ओ पी सक्सेना के भांजे हैं जो नौकरी की तलाश में श्री ओ पी सक्सेना के पास आये. श्री सक्सेना उन्हें नौकरी नहीं दिला पाए पर उनकी पत्नी सुश्री संगीता ने पसीज कर श्री अजय को ठेकेदारी करने में मदद की. इसके लिए श्री अजय और सुश्री संगीता में दिनांक दिनांक 14/06/1994 को एक लिखित करार हुआ जिसमे तय हुआ कि सुश्री संगीता श्री अजय को आवश्यकता पड़ने पर प्रत्येक ठेके पर रुपये 5,000 उधार देंगी जिसे वे अपना काम हो जाने और भुगतान के बाद वापस कर देंगे. इस तरह सुश्री संगीता ने 20 किश्तों में कुल 1 लाख रुपये दिए. इसके बदले श्री अजय ने पैसा मिलने पर समय-समय पर सुश्री संगीता का पैसा श्री ओ पी सक्सेना और सुश्री संगीता को चेक के माध्यम से वापस कर दिया. उन्होंने एक लाख से कुछ अधिक रुपये 5050 इसीलिए दिए क्योंकि उन्हें पैसा लौटने में कुछ देर हो गयी थी जिसके कारण उन्होंने ब्याज के रूप में इतने रुपये अधिक दे दिए. इस कहानी के साथ यह जोड़ दिया गया कि जो भी अपराध हुआ उससे श्री ओ पी सक्सेना का दूर-दूर तक कोई मतलब नहीं था, वह सब श्री अजय सक्सेना की करतूत थी. यह कहानी बनायी गयी कि दरअसल सुमित श्री अजय सक्सेना का उपनाम है. अतः श्री ओ पी सक्सेना के मामले में एक पूर्त्नाया अनजान आदमी को सामने ला कर उसे बिना किसी कारण और बिना किसी गलती के फंसा दिया गया और असली दोषी को पूरी तरह बचा दिया गया.

मैं ऊपर जो आरोप लगा रही हूँ, वह पूरी तरह तथ्यों पर आधारित है जिसे मैं नीचे प्रस्तुत कर रही हूँ-

1. यह केस पूरी तरह अभिलेखों पर आधारित था पर इसमें सतर्कता विभाग के विवेचक ने किसी भी स्तर पर आवश्यक अभिलेखों का परिक्षण नहीं किया और न ही सतर्कता अधिष्ठान के उच्चाधिकारियों ने इस ओर कोई ध्यान दिया अथवा किसी प्रकार के कोई निर्देश दिए

2. इसी प्रकार इस केस में किसी भी वांछित स्थान पर किसी भी अभिलेख का हस्तलेख परीक्षण नहीं कराया गया जबकि अभिलेखों से जुड़े इस प्रकरण में हस्तलेख मिलान की नितांत आवश्यकता थी

3. इस केस की विवेचना इतने सरसरी तरीके से की गयी है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है. वर्ष 1995-96, 96-97 तथा 97-98 में मेसर्स सुमित ट्रेडर्स ने जल संस्थान में 17 कार्य किये लेकिन पूरी विवेचना में कहीं यह नहीं दिखता कि इन कार्यों के लिए टेंडर देने वाला व्यक्ति कौन था, मौके पर काम कराने वाला व्यक्ति कौन था, भुगतान प्राप्त करने वाला व्यक्ति कौन था आदि के सम्बन्ध में कोई भी पूछताछ की गयी हो.

4. इसी प्रकार इन 17 कार्यों के लिए टेंडर पेपर, कार्य के बाद दिए गए बिल और कार्य के बाद प्राप्त धन/चेक की प्राप्ति आदि से जुड़े अगणित अभिलेख होंगे पर विवेचक तथा पूरे सतर्कता विभाग ने एक बार भी इन अभिलेखों का हस्तलेख परिक्षण कराये जाने की जरुरत नहीं समझी

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5. जब मूल एफआईआर में श्री अजय कुमार सक्सेना की वास्तविक आइडेंटिटी ज्ञात नहीं थी और मात्र यह मालूम था कि श्री अजय कुमार सक्सेना इस कथित सुमित ट्रेडर्स के प्रोप्रेइटर हैं तो यह तो न्यूनतम अपेक्षित था कि इस अजय कुमार सक्सेना को अंत में मुलजिम बना दिए गए श्री अजय कुमार सक्सेना ही होने के सम्बन्ध में कोई भी निश्चित निष्कर्ष निकालने के पूर्व भांजे श्री अजय कुमार सक्सेना की आइडेंटिटी सत्यापित करने के समुचित प्रयास किये जाएँ पर किसी भी स्तर पर इसके लिए कोई भी प्रयास नहीं किया गया

6. पूरे केस डायरी में मात्र तीन लोग यह कह रहे हैं कि एफआईआर के श्री अजय श्री ओ पी सक्सेन के भांजे हैं- एक तो स्वयं श्री ओ पी सक्सेना, दूसरे उनकी पत्नी सुश्री संगीता और तीसरे एक अधिवक्ता श्री राजेंद्र प्रसाद जिनका कहना है कि वे भांजे श्री अजय और सुश्री संगीता के मध्य हुए उपरोक्त कथित करार के कथित गवाह हैं.

7. इन तीनों के अलावा किसी भी और व्यक्ति से इस बात की कोई तस्दीक नहीं की गयी है कि जिस भांजे श्री अजय को मुलजिम बनाया जा रहा है वह वास्तव में वही व्यक्ति है जो जल संस्थान में टेंडर भरने आता था अथवा वह वही व्यक्ति है जो ठेके के काम करवाने मौके पर जाता था या यह वही है जिसने पेमेंट के लिए आवेदन किया था अथवा जिसे वास्तव में पेमेंट दिया गया था

8. जबकि उपरोक्त सभी कदम वास्तविक श्री अजय को तस्दीक करने को नितांत आवश्यक और अनिवार्य थे, सतर्कता अधिष्ठान के विवेचक ने इनके बिना मात्र अभियुक्त श्री ओ पी सक्सेना और उनकी पत्नी के अभिकथन पर ही स्वतः भांजे श्री अजय को एफआईआर में लिखा श्री अजय मान लिया और उनका चालन करते हुए उन्हें गिरफ्तार करके जेल भी भेज दिया

9. विवेचना में जल संस्थान के अलावा राजधानी सहकारी बैंक में भी केस से जुड़े तमाम अभिलेख रहे होंगे क्योंकि इसी बैंक में सुमित ट्रेडर्स का अकाउंट था, इसी बैंक में जल संस्थान से चेक आये और इसी बैंक में चेक के माध्यम से श्री ओ पी सक्सेना, उनकी पत्नी सुश्री संगीता और कथित श्री अजय कुमार सक्सेना को भुगतान हुआ. इसके अलावा इस बैंक में खाता होने के नाते श्री अजय कुमार भी यहाँ अवश्य ही आते होंगे

10. लेकिन पूरी विवेचना में कहीं भी इस बात को बैंक के किसी व्यक्ति द्वारा सत्यापित नहीं कराया गया कि जो व्यक्ति बैंक में आता था वह क्या भांजा श्री अजय ही था या कोई अन्य

11. इसी प्रकार पूरी विवेचना में किसी भी समय बैंक के अभिलेखों का कोई भी मिलान नहीं किया हया

12. पूरी विवेचना में बैंक अकाउंट के खुलने समय के किसी भी अभिलेख का परीक्षण नहीं किया गया, ना तो उन्हें विवेचना में सम्मिलित किया गया और न ही उसके सम्बन्ध में कोई भी हस्तलेख परीक्षण किये गए कि वे वास्तव में भांजे श्री अजय के थे अथवा श्री ओ पी सक्सेना के अथवा किसी अन्य व्यक्ति के

13. इस प्रकार न तो जल संस्थान और न ही राजधानी बैंक में किसी भी स्तर पर भांजे श्री अजय की आइडेंटिटी के सम्बन्ध में कोई प्रयास किया गया और स्वतः मान लिया गया कि जैसा श्री ओ पी सक्सेना और सुश्री संगीता कह रही हैं, उसी तरह यह श्री अजय सक्सेना उनके भांजे श्री अजय ही है

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14. भौतिक आइडेंटिटी जानने के अलावा अभिलेखों पर भी वास्तविक श्री अजय को सत्यापित करने का कोई प्रयास नहीं हुआ और इसके लिए किसी भी प्रकार के हस्तलेख मिलान नहीं किये गए

15. इतना ही नहीं राजधानी सहकारी बैंक में सुमीत ट्रेडर्स के बैंक अकाउंट में जो फोटो लगा है उससे भी साफ़-साफ़ दिख जाता था कि वह भांजे श्री अजय का नहीं है पर सतर्कता अधिष्ठान के विवेचक ने नंगी आँखों से दिखने वाली इस बात को भी पूरी तरह नज़रंदाज़ कर दिया जिससे बड़ी आसानी से समझा जा सकता था कि अकाउंट के अभिलेखों में श्री अजय सतर्कता अधिष्ठान द्वारा चार्जशीट किये गए भांजे श्री अजय से पूरी तरह अलग हैं.

16. आश्चर्य की बात है कि इस पूरी विवेचना में कहीं भी श्री अजय के भांजे अजय होने की पुष्टि के बारे में लगभग कोई भी कार्य नहीं किया गया और स्वतः ही मान लिया गया कि एफआईआर में नामित श्री अजय श्री ओ पी सक्सेना का भांजा श्री अजय है

17. इस प्रकार एफआईआर के श्री अजय पुत्र अज्ञात को विवेचना में श्री अजय पुत्र श्री राज कुमार सक्सेना (श्री ओ पी सक्सेना का भांजा) बना दिया गया और इस सारे मामले को उसके माथे डालते हुए असल अभियुक्त श्री ओ पी सक्सेना को साफ़ बचा दिया गया

18. इस प्रक्रिया में सुमित ट्रेडर्स (प्रोप्रेइटर श्री अजय कुमार सक्सेना) के राजधानी सहकारी बैंक में खुले खाते के परिचयकर्ता श्री संजय नैयर से सत्यापित या परीक्षित तक नहीं कराया गया कि यह श्री अजय सक्सेना क्या वास्तव में भांजा श्री अजय है था अथवा नहीं

19. इस प्रक्रिया में तत्कालीन बैंक मेनेजर सुश्री मीना बोस से भी सत्यापित नहीं कराया गया कि खातेदार श्री अजय सक्सेना क्या वास्तव में अभियुक्त श्री अजय सक्सेना ही था या कोई और

20. इस प्रक्रिया में इस बात को भी पूरी तरह नज़रंदाज़ किया गया कि सहकारी बैंक में यह खाता खुलवाने भी स्वयं श्री ओ पी सक्सेना ही गए थे

21. इस प्रक्रिया में यह बात भी नज़रंदाज़ की गयी कि खाता खुलवाने के लिए श्री संजय नैयर को परिचयकर्ता बनने को भी श्री ओ पी सक्सेना ने ही कहा था और श्री नैयर ने श्री ओ पी सक्सेना के कहने पर ही परिचयकर्ता का काम किया था

22.   इस विवेचना की सबसे मजेदार और गंभीर बातों में एक यह है कि विवेचना के केस डायरी में कहीं भी अभियुक्त श्री अजय कुमार सक्सेना का नाम नहीं आया और एक दिन सीधे ही दिनांक 25/05/2006 के IX पर्चे में अभियुक्त श्री अजय कुमार सक्सेना के बयान हो गए.

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23.   इससे भी अजीब बात यह है कि इस बयान में श्री अजय कुमार सक्सेना का उपनाम अपने-आप सुमित बता दिया गया जिससे सुमित ट्रेडर्स की गुत्थी भी हल हो जाए जबकि सत्यता यह है कि भांजे श्री अजय का उपनाम बबलू है

24.   यह भी अजीब है कि केस डायरी के अनुसार इस पूछताछ में श्री अजय कुमार सक्सेना ने किसी रट्टू तोते की तरह अपना सारा गुनाह सिरे से कबूल कर लिया और उन्होंने अपने-आप पूरी कहानी बता दी कि कैसे वे लखनऊ आये, कैसे उन्हें नौकरी नहीं मिली, कैसे इसके बाद उन्होंने ठेकेदारी शुरू की, कैसे उन्हें इसमें उनकी मामी सुश्री संगीता की आर्थिक मदद मिली, कैसे उन्होंने उधार लिया और आगे उसे सूद सहित चुकाया आदि-आदि

25.   इस प्रकार केस डायरी की कहानी के अनुसार श्री अजय कुमार सक्सेना सारा जुर्म कबूलते हैं जो निश्चित रूप से पूर्णतया अविश्वसनीय है

26.   इससे भी मजेदार बात यह कि केस डायरी में पहले श्री अजय सक्सेना का बयान होता है और उसके बाद श्री ओ पी सक्सेना और उनकी पत्नी सुश्री संगीता का

27.   अतः केस डायरी से यह स्पष्ट हो जाता है कि श्री अजय सक्सेना को इस मामले में अचानक हवा से लाया जाता है, एक अजीब सी कहानी बनायी जाती है, इसमें भांजे श्री अजय को फिट किया जाता है और सारा मामला उनके ठीकरे डालने का खले शुरू हो जाता है

28.   इससे भी गंभीर बात यह है कि जिस तिथि 25/05/2006 को श्री अजय सक्सेना को सतर्कता अधिष्ठान के सामने बयान देते दिखाया गया है उस तिथि को वे शाहजहाँपुर में थे. अतः बिना उनके सतर्कता विभाग के सामने आये, अपनी मर्जी से फर्जी ढंग से श्री अजय कुमार सक्सेना का बयान लिख दिया गया, पूरी कहानी बना दी गयी और इस तरह एक पूरी तरह निरपराध व्यक्ति को फंसाने का ताना-बाना बुन दिया गया

29.   गंभीर बात यह भी है कि सुश्री संगीता ने कहानी के अलावा मात्र एक ठोस अभिलेख का उल्लेख किया जो दिनांक 14/06/1994 का उनका और अभियुक्त श्री अजय के बीच का लिखित इकरारनामा था. विवेचक ने इस अभिलेख को केस डायरी में तो लिया पर उन्होंने इस अभिलेख का हस्तलेख मिलान करने की कोई जरुरत नहीं समझी

30.   इस प्रकार विवेचक ने मुल्जिम श्री ओ पी सक्सेना की पत्नी सुश्री संगीता द्वारा प्रस्तुत कथित करारनामे को जस का तस स्वीकार कर लिया और उसके सम्बन्ध में किसी से पूछताछ करने अथवा उसका हस्तलेख मिलान करने तक का काम नहीं किया जबकि यह बुनियादी जरुरत थी

31.   विवेचक ने इस करारनामा को कथित तौर पर बनाने वाले श्री नवाब मिर्जा एडवोकेट तक से पूछताछ नहीं की और यह सत्यापित नहीं किया कि वास्तव में उन्होंने ऐसा कोई करारनामा/सहमतिपत्र बनाया था अथवा नहीं

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32.   इस प्रकार विवेचक ने उस सबसे महत्वपूर्ण अभिलेख तक के सम्बन्ध में पूछताछ अथवा हस्तलेख मिलान जैसी बुनियादी कार्यवाही नहीं की और मात्र अभियुक्त की पत्नी की बात को सही मानते हुए उस सहमतिपत्र को स्वीकार कर लिया और उसके आधार पर एक बेगुनाह आदमी को बिना किसी जुर्म के अपराधी बना दिया

33.   पूरी विवेचना में इस सहमतिपत्र के सत्यापन के सम्बन्ध में कोई भी प्रयास नहीं मिलता, सिवाय पर्चा XI में एक श्री राजेंद्र प्रसाद, एडवोकेट पुत्र स्व० श्री जगन्नाथ का, जो कथित रूप से इस सहमतिपत्र के बनाए जाने के गवाह थे, लेकिन न तो श्री राजेंद्र प्रसाद और न ही किसी भी अन्य व्यक्ति के हस्तलेख का मिलान कराया गया और न ही अन्य बचे हुए गवाह तथा/अथवा सहमतिपत्र बनाने वाले अधिवक्ता से इसके विषय में पूछताछ की गयी जबकि ये नितांत अनिवार्य था क्योंकि श्री अजय सक्सेना की आपराधिक संलिप्तता और श्री ओ पी सक्सेना और सुश्री संगीता की बेगुनाही के लिए यह सबसे जरुरी अभिलेख था

34.   इस पूरे तफ्तीश को श्री राकेश शर्मा नामक एक ठेकेदार से पूर्व में श्री अविनाश नारायण श्रीवास्तव, तत्कालीन अधिशाषी अभियंता के साथ मारपीट करने का विरोध कर श्री राकेश शर्मा द्वारा गिरफ्तार कराने और दो महीने जेल में रखवाने में श्री ओ पी सक्सेना की अग्रणी भूमिका होने का कारण श्री राकेश शर्मा का उनसे बदला लेने के लिए फर्जी नाम से आवेदनपत्र दिलवाने का रूप दे दिया गया और इस तरह श्री ओ पी सक्सेना द्वारा अपने नाबालिक लड़के सुमित के नाम पर फार्म खोल, अपने ही अधीन 17 ठेके अपने ही हस्ताक्षर से ले लेने, अपने ही जा कर श्री अजय कुमार सक्सेना के नाम से राजधानी सहकारी बैंक में खाता खुलवा कर अपने और अपनी पत्नी के नाम से उसमे ज्यादा हिस्सा निकाल लेने के आपराधिक गुनाहों को श्री राकेश शर्मा की आपराधिक गतिविधि का विरोध के नाम पर नज़रंदाज़ कर दिया गया और बचत के लिए एक बेगुनाह अनजान आदमी को बलि का बकरा बनाते हुए उस पर ही सभी अपराध का दायित्व सतही विवेचना कर डाल दिया गया

35.   इस मामले में विवेचक ने एक नहीं, दो-दो बार भांजे श्री अजय के फर्जी बयान पूरी तरह मनगढ़ंत तरीके से लिख दिया. इनमे पहला बयान दिनांक को लिखा गया और दूसरा दिनांक 07/06/2008 को. दोनों में कथित रूप से श्री अजय ने अपना पूरा गुनाह स्वयं ही कबूल लिया और इसके आधार पर उनके खिलाफ चार्जशीट भेज दिया गया और श्री ओ पी सक्सेना को क्लीनचिट दे दी गयी

36.   भांजे श्री अजय की गिरफ़्तारी की असल कहानी यह है कि श्री लोकनाथ वर्मा, सतर्कता इंस्पेक्टर/ विवेचक अक्टूबर 2012 में संभवतः 09 तारीख को 620, तुलसी कॉलोनी, बाडूजई प्रथम, शाहजहांपुर स्थित श्री अजय के घर पर गए. वहां उनके भाई श्री नर्मन सक्सेना से बात हुई, कहा कि मैं अजय का पुराना मित्र हूँ, मिलना चाहता हूँ. श्री नर्मन ने उस समय के अपने रिलायंस फोन नंबर से श्री अजय के मोबाइल पर बात कराई. उस समय श्री अजय के पास मोबाइल नंबर 8005166137 और 084232-99998 था जो आज भी उनके पास है. श्री वर्मा ने कहा कि मिलना चाहता हूँ, कहा मैं तुम्हारा बहुत पुराना मित्र हूँ, इरिगेशन में नौकरी कर रहा हूँ, मुलाकात करना चाहता हूँ, लखनऊ में जवाहर भवन आ सकते हो. श्री अजय को लगा कोई मित्र होगा. अगले दिन सुबह दस बजे का समय तय हुआ कि जवाहर भवन, लखनऊ में मुलाकात होगी.

37.   उसी दिन श्री वर्मा बीएसए ऑफिस, शाहजहाँपुर गए, वहां से वर्मा जी ने अपने फोन नंबर 099193-33406 से पुनः श्री अजय से बात किया. कहा वही एल एन वर्मा बोल रहा हूँ जिससे तुम्हारी बात हुई, पूछा क्या करता हूँ. फिर उस दफ्तर के किसी बाबू से बात कराई, बाबू ने डिटेल पूछे, श्री अजय ने बताया कि संविदा पर अध्यापक हूँ, बहराइच विकास खंड पयागपुर में. इसके बाद वर्मा जी ने फोन लिया, कहा बहुत समय हो गया, कल मुलाकात होगी, देखते ही पहचान जाओगे.

38.   उस समय श्री अजय बहराइच में पयागपुर में थे जहां उन्होंने एक श्री प्रदीप के घर में कमरा लिया हुआ था. श्री वर्मा को वास्तव में अपना पुराना मित्र समझ कर वे उसी शाम को नौ बजे लखनऊ चल दिए, डेढ़-दो बजे रात लखनऊ आ गए. सुबह दस बजे वे जवाहर भवन पहुँच गए. उनके पास श्री वर्मा का नंबर सेव था, श्री वर्मा तब तक नहीं आये थे, अतः श्री अजय ने उन्हें फोन किया, कहा कि 15 मिनट में आ रहे हैं, देर होने पर दुबारा फोन किया. विवेचक श्री वर्मा 11 बजे जवाहर भवन आ गए. वे श्री अजय को ऊपर ऑफिस में ले गए, वहां कहा यह जगह पहचानते हो, यह विजिलेंस डिपार्टमेंट है, आपके नाम तीन-तीन वारंट इशू हो चुके हैं, बैठाया और फिर पूछा ओ पी सक्सेना कौन है, संगीता कौन है, जिस पर श्री अजय ने बताया वे मामा और मामी हैं. पूछा ठेकेदारी की, लखनऊ में रहे हो, श्री ओ पी सक्सेना से पैसा लिया है जिन पर श्री अजय ने कहा कि ना तो कभी ठेकेदारी की, ना श्री ओ पी सक्सेना से पैसा लिया है. इस पर श्री वर्मा ने कहा कि कप्तान साहब आयेंगे तो बात करेंगे. करीब 1-2 के बीच एसपी, सतर्कता आये. उन्होंने पूछा नाम क्या है, पूछा ओ पी सक्सेना को जानते हो, कभी ठेकेदारी की है आदि. श्री अजय ने तथ्य बताया और कहा कि लखनऊ में 2009 में आया हूँ. एसपी ने श्री अजय को मामा से बात करने को कहा और उन्होंने अपने पास श्री ओ पी सक्सेना का उपलब्ध नंबर मिलाया जो नहीं मिला. इसके बाद एसपी सतर्कता ने किसी पुलिसवाले के नंबर से से फोन मिलाया और कहा स्पीकर ऑन कर बात करो. श्री अजय सक्सेना ने श्री ओ पी सक्सेना से पूछा कि अजय सक्सेना का क्या मैटर हैं, कोई जांच चल रही है. श्री ओ पी सक्सेना ने कहा कि बबलू बताऊंगा कभी फुर्सत में. इस पर एसपी ने कहा कि फोन काट दो, फिर कहा कि या तो तुम मामा को बचा रहे हो या मामा तुनको बचा रहा है. फिर कमरे से निकाल ले बगल के कमरे में बैठा दिया गया शाम 5 बजे कहा गया जेल जाना है, श्री अजय ने अपने नंबर से मामा को फोन किया, पूछा क्या मामला है, मामा ने कहा मैं आता हूँ, श्री अजय को कोतवाली हजरतगंज ले आये, वहीँ मामा भी आ गए. मामा ने विवेचक से कहा कि किसे पकड़ लिया, इस पर श्री वर्मा ने कहा मुझे समझाओ नहीं इसे तुमने ही इसे फंसाया है. श्री वर्मा के साथ भोला नाम के एक व्यक्ति थे जिन्होंने श्री ओ पी सक्सेना के साथ मौजूद उनके छोटे लड़के श्री अजिताभ उर्फ़ हीरो को देखते कहा यही लड़का तो आता था अजय बन कर बयान देने. इसके बाद श्री अजय को कोतवाली में बंद कर दिया

39.   अतः केस डायरी के विपरीत सच्चाई यह है कि श्री अजय ने पहली बार इस मामले के बारे में गिरफ़्तारी वाले दिन जाना और इस प्रकार छल से पूछताछ के लिए बुलाये गए एक अनजान, बेगुनाह आदमी को सतर्कता विभाग ने अपने लालच में जानबूझ कर मुलजिम बनाने और उसे गिरफ्तार करने का भारी गुनाह किया

40.   यहाँ एक बहुत महत्वपूर्ण बात यह है कि श्री ओ पी सक्सेना के सगे छोटे भाई का नाम भी श्री अजय कुमार सक्सेना है और भांजे श्री अजय कुमार सक्सेना ने इस मामले में बेगुनाह फांस दिए जाने के बाद इस पर जो अनुसन्धान किया उसके अनुसार जांच में सामने आया हुआ सुमित ट्रेडर्स का प्रोप्रेइटर श्री अजय कुमार सक्सेना वास्तव में श्री ओ पी सक्सेना का छोटा भाई श्री अजय कुमार सक्सेना है, न कि भांजा पर बड़ी चालाकी से श्री ओ पी सक्सेना के साथ मिलीभगत कर सतर्कता विभाग ने पूरी तरह सतही और गैरजिम्मेदार विवेचना कर श्री ओ पी सक्सेना और उनके भाई श्री अजय कुमार सक्सेना, जो वास्तविक मुलजिम थे, को बड़े ही घटिया ढंग से बचाते हुए यह गुनाह भांजे श्री अजय पर डाल दिया

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41.   अभियुक्त श्री अजय ने अपने प्रयास से बैंक में जा कर अकाउंट का जो अभिलेख प्राप्त किया है उसमे लगे फोटो से साफ़ दिख जाता है कि यह फोटो उनकी नहीं श्री ओ पी सक्सेना के भाई श्री अजय की है पर सतर्कता विभाग ने इतनी छोटी बात को भी नज़रंदाज़ कर दिया क्योंकि उन्हें किसी भी तरीके से श्री ओ पी सक्सेना और असली श्री अजय को बचाना था

42.   इस प्रकार इस केस में सच्चाई यह थी कि श्री ओ पी सक्सेना ने अपने छोटे भाई के साथ मिल कर यह सुमित ट्रेडर्स अपने नाबालिक बेटे सुमित के नाम से बनाया था जिसमे अपने भाई को प्रोप्रेइटर बना कर स्वयं उसे ले जा कर राजधानी सहकारी बैंक में सुमित ट्रेडर्स का खाता खुलवाया, अपने अधीन सत्रह टेंडर स्वयं सारे कोटेशन अपने स्तर से तैयार किये और उनको अपने हाथ से खोल कर उसमे सुमित ट्रेडर्स को सबसे कम रेट का बता कर उसे ठेका दिया, सारा पैसा सुमित ट्रेडर्स के अकाउंट में आने पर उसमे बड़ा हिस्सा स्वयं और अपनी पत्नी के नाम निकाल लिया और कुछ हिस्सा अपने भाई को दे दिया लेकिन इस मामले में स्वयं को

43.   ये सारी बातें श्री लोकनाथ वर्मा, पूर्व निरीक्षक, सतर्कता जिनके द्वारा श्री अजय कुमार सक्सेना को गिरफ्तार किया गया था, द्वारा भी अभी हाल में श्री अजय सक्सेना से फोन पर की गयी बातचीत में स्वीकारा गया था जिसे श्री अजय सक्सेना ने अपने फोन पर रिकॉर्ड कर लिया. इस बातचीत के अनुसार श्री लोकनाथ वर्मा नहीं चाहते थे कि भांजे श्री अजय को गिरफ्तार किया जाए पर उनके अनुसार वे मजबूर थे क्योंकि इस मामले के पूर्व विवेचक श्री आर सी यादव ने श्री ओ पी सक्सेना से पहले ही काफी पैसा पा लिया था और श्री ओ पी सक्सेना और श्री आर सी यादव ने पहले ही आपराधिक दुरभिसंधि कर भांजे श्री अजय सक्सेना को फंसाने का पूरा प्लान बना लिया था और इसी हिसाब से केस डायरी लिख दी गयी थी जिसके कारण श्री लोकनाथ वर्मा नहीं चाहते हुए और सच्चाई जानने के बाद भी भांजे श्री अजय सक्सेना को गिरफ्तार करने को मजबूर हुए थे. बातचीत में श्री वर्मा ने साफ़ कहा है- “तुम्हारा मामा तो कंस है बिलकुल, मैंने तो तुम्हे बहुत बचाने का प्रयास किया, मेरे पहले के आर सी यादव ने खूब लिया-दिया, और तुमको फंसाया है”

मैं ये सारे तथ्य आपके सामने मात्र इस उद्देश्य से रख रही हूँ कि जैसा ऊपर लिखी बातों से पूर्णतया स्पष्ट हो जाता है इस मामले में श्री अजय सक्सेना को जानबूझ कर विवेचक श्री आर सी यादव तथा/अथवा अन्य लोगों द्वारा श्री ओ पी सक्सेना से दुरभिसंधि कर फंसाया गया है. यह एक घोरतम अन्याय और अपराध है जिसमे श्री अजय के साथ न्याय होना चाहिए. अतः आपसे निवेदन है कि इस मामले में आप तत्काल उपरोक्त तथ्यों को संज्ञान में लेते हुए मामले की पुनार्विवेचना सहित समस्त आवश्यक विधिक कार्यवाही कराये जाने की कृपा करें.

पत्र संख्या-NT/Complaint/48                               
दिनांक- 08/01/2015

(डॉ नूतन ठाकुर)
5/426, विराम खंड,
गोमती नगर, लखनऊ

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