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गुंडाराज में फिर बेनकाब हुई पुलिसिया गुंडई

उत्तर प्रदेश: जी हां, गुंडाराज यानी यूपी की अखिलेश सरकार। इस सरकार में पुलिसिया गुंडागर्दी, पुलिस माफिया सांठगांठ व कोतवाल संजयनाथ तिवारी जैसे घटिया पुलिसकर्मियों द्वारा वर्दी में लूट-हत्या की घटनाओं को अंजाम देने की खबरें तो आएं दिन सामने आती रही है। लेकिन जिस तरह राजधानी के जीपीओं के पास टाइपिस्ट कृष्ण कुमार नामक 80 वर्षीय बुजुर्ग को अखिलेश यादव के हुकूमत के पैरों तले बूटों से रौंदा गया तो उससे न सिर्फ गरीब की पीठ पर लात मारी गयी बल्कि लोहिया का समाजवाद भी सुबक-सुबक कर रोने लगा। चौंकाने वाली बात तो यह है कि प्रदीप यादव नामक दरोगा ने इस बुजुर्ग की मात्र 50 रुपये हफता न देने पर न सिर्फ लात-घुसो से पिटाई की बल्कि टाइपराइटर को चकनाचूर कर दिया।

<p><strong><img src="images/0abc/up.police1_144269277.jpg" alt="" /></strong></p> <p><strong>उत्तर प्रदेश:</strong> जी हां, गुंडाराज यानी यूपी की अखिलेश सरकार। इस सरकार में पुलिसिया गुंडागर्दी, पुलिस माफिया सांठगांठ व कोतवाल संजयनाथ तिवारी जैसे घटिया पुलिसकर्मियों द्वारा वर्दी में लूट-हत्या की घटनाओं को अंजाम देने की खबरें तो आएं दिन सामने आती रही है। लेकिन जिस तरह राजधानी के जीपीओं के पास टाइपिस्ट कृष्ण कुमार नामक 80 वर्षीय बुजुर्ग को अखिलेश यादव के हुकूमत के पैरों तले बूटों से रौंदा गया तो उससे न सिर्फ गरीब की पीठ पर लात मारी गयी बल्कि लोहिया का समाजवाद भी सुबक-सुबक कर रोने लगा। चौंकाने वाली बात तो यह है कि प्रदीप यादव नामक दरोगा ने इस बुजुर्ग की मात्र 50 रुपये हफता न देने पर न सिर्फ लात-घुसो से पिटाई की बल्कि टाइपराइटर को चकनाचूर कर दिया।</p>

उत्तर प्रदेश: जी हां, गुंडाराज यानी यूपी की अखिलेश सरकार। इस सरकार में पुलिसिया गुंडागर्दी, पुलिस माफिया सांठगांठ व कोतवाल संजयनाथ तिवारी जैसे घटिया पुलिसकर्मियों द्वारा वर्दी में लूट-हत्या की घटनाओं को अंजाम देने की खबरें तो आएं दिन सामने आती रही है। लेकिन जिस तरह राजधानी के जीपीओं के पास टाइपिस्ट कृष्ण कुमार नामक 80 वर्षीय बुजुर्ग को अखिलेश यादव के हुकूमत के पैरों तले बूटों से रौंदा गया तो उससे न सिर्फ गरीब की पीठ पर लात मारी गयी बल्कि लोहिया का समाजवाद भी सुबक-सुबक कर रोने लगा। चौंकाने वाली बात तो यह है कि प्रदीप यादव नामक दरोगा ने इस बुजुर्ग की मात्र 50 रुपये हफता न देने पर न सिर्फ लात-घुसो से पिटाई की बल्कि टाइपराइटर को चकनाचूर कर दिया।

                                    फिलहाल उत्तर प्रदेश में पत्रकारों को जिंदा जलाना, थाने में शिकायत करने गयी महिला की समस्या सुनने के बजाय सामूहिक बलात्कार और पोल न खुले इसके लिए जिंदा जलाकर मार डालना, सच लिखने पर पत्रकार को गुंडाएक्ट में निरुद्ध कर घर-गृहस्थी लूटना, वर्दी में ज्वैलरी व्यापारी को लूटना, डकैती डालना, फरियादियों को सरेराह पीटने की पुलिसिया करतूत तो अखिलेशराज में आम बात हो गयी थी। लेकिन जिस तरह एक 80 वर्षीय बुजुर्ग कृष्णकुमार को सिर्फ इसलिए बूटों से कुचला गया, उसकी रोजी-रोटी का साधन बना टाइपराइटर को तोड़ा गया। उससे एक बार फिर गुंडाराज की पुलिसिया गुंडागर्दी बेनकाब हो गयी। समाजवाद चित्कार उठा। कानून बिकता दिखा। कहा जा सकता है इस वाकये में टाइपराइटर का टूकड़ा नहीं बल्कि गरीबी का भद्दा मजाक उड़ाया गया, उसके अरमानों के टुकड़ा-टुकड़ा हो गये। पुलिसिया गुंडई से लेकर माफियाओं व गुंडो से पीड़ित न जाने कितने फरियादियों की शिकायतों का शासन-प्रशासन तक पहुंचाने का जरिया बना कृष्ण कुमार का टाइपराइटर जिस तरह पुलिस के पैरों तले कुचला गया उससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। कृष्ण कुमार 35 साल से जीपीओं पर टाइप करने का काम करता चला आ रहा है, लेकिन कभी किसी ने उसे नहीं छेड़ा। लेकिन अखिलेश के गुंडो ने उसकी टाइपराइटर को कुचलकर उसकी कमाई का जरिया छीन लिया।
पुलिसिया गुंडागर्दी की यह वाकया पहला नहीं हुआ है। इसके पहले भी लुटेरा, डकैत, हत्यारा कोतवाल संजयनाथ तिवारी, श्रीप्रकाश राय जैसे भ्रष्ट पुलिस वालों ने कई बार माफियाओं से मिलकर बेगुनाहों को सरेराह पीटा है। ताज्जुब तो इस बात का है कि यह भ्रष्ट पुलिस वाले न सिर्फ अखिलेश से मेडल लेते हैं बल्कि उनके लिए कमाऊ पुत्र भी साबित हो रहे हैं। अकूत अवैध वसूली से अपने घर की तिजोरी तो भर ही रहे है मुख्यमंत्री को भी हिस्सा तय तिथि पर पहुंचा रहे हैं और राजधानी जैसे कमाऊ थानों में पोस्टिंग लेकर जनता को लूट रहे है। यह अलग बात है जब सोशल मीडिया से मुख्यमंत्री की किरकिरी होती है तो दरोगा प्रदीप कुमार को सस्पेंड कर रात में डीएम और एसएसपी से पीड़ित बुजुर्ग से माफी मंगवाते है।  ताबड़तोड़ डकैती व लूट की घटनाओं को एसएसपी की ‘खाकी सेना’ भले ही न रोक पा रही हो, लेकिन अतिक्रमण हटाने के नाम पर दरोगा प्रदीप कुमार ने एक बुजुर्ग पर ‘बहादुरी’ दिखा दी। शनिवार को सचिवालय के फुटपाथ पर अतिक्रमण हटाने गया यह दरोगा कानूनी शिष्टाचार और मानवता की परिभाषा भूल गया। सचिवालय चौकी प्रभारी ने खाकी के गुमान में मामूली आमदनी पर बसर करने वाले कई लोगों की रोजी पैरों तले कुचल डाली। हिन्दी टाइपिंग करने वाले 80 वर्षीय कृष्ण कुमार का टाइपराइटर लात मारकर तोड़ डाला। 35 वर्षो से टाइपिंग करके परिवार का भरण-पोषण करने वाले बुजुर्ग कृष्ण कुमार ने हाथ जोड़े, लेकिन बेअंदाज दरोगा ने उन्हें धक्का देकर गिरा दिया।

यहां जिक्र करना जरुरी है कि यूपी की पुलिस का यह काला चेहरा पहली बार सामने नहीं आया है इसके पहले भी खाकी एक-दो बार नहीं सैकड़ों बार शर्मसार हुई है। दिन के उजाले में खाकी रौब झाड़ती है। बेवजह लोगों को लात मारती है और जब जनता पलटवार करे तो रात में घर पहुंचकर पुचकारती है। ऐसा ही बुजुर्ग के मामले में भी हुआ। सरकार भले ही मित्र पुलिस का नाम दे पर अच्छे कामों से तो इसकी दोस्ती ही नहीं। कृष्ण कुमार को देर रात राहत पहुंचाने के लिए उनके घर पहुंचे एसएसपी राजेश कुमार पांडे को भी अपने दरोगा की पुलिस की यह हरकत ऐसी ही लगी मानो अंग्रेजों के जमाने की पुलिसिया क्रूरता को भी उन्होंने मात दे दी है। इस तरह की घटनाएं अंग्रेजों के जमाने की पुलिस की याद दिलाती है। सवाल यह है कि क्या सिर्फ प्रदीप कुमार की ट्रेनिंग में ही गड़बड़ है?  या खामी पूरे सिस्टम में है?  क्या यह पहला मौका है, जब खाकी पर दाग लगा है?  कब तक गलती और माफी का खेल चलेगा?  क्या अब पुलिस की ट्रेनिंग में कुछ बदलाव किया जाएगा या दारोगा को सस्पेंड करने से सबकुछ ठीक हो गया। यूपी पुलिस आम लोगों के साथ कैसा बर्ताव करती है, इसकी यह एक बानगी है।  महज 50 रुपए रोजाना कमाने वाले 65 साल के बुजुर्ग इंस्पेक्टर के सामने हाथ जोड़ते रहे। लेकिन इंस्पेक्टर ने उनका टाइपराइटर तक बेरहमी से तोड़ दिया। बताते चलें कि जीपीओ के किनारे लगे दुकानों को सिर्फ मायावती का काफिला जाते समय ही हटाया जाता था। सपा सरकार में यह पहला मौका है, जब इंस्पेक्टर ने सड़क किनारे रोजी-रोटी कमाने वाले गरीब लोगों को हटाने की कोशिश की। पुलिस मैनुअल के मुताबिक, किसी भी तरह की प्रॉपर्टी को पुलिस नुकसान नहीं पहुंचा सकती, लेकिन इंस्पेक्टर प्रदीप कुमार ने नियमों को तोड़ा। कृष्ण कुमार कहता है पुलिसवाले यहां हर टाइपिस्ट से रोज 20 से 50 रुपये वसूलते हैं। कभी बोहनी ही नहीं होती तो रुपये कहां से दूं।
बता दें, बात 50 रुपये की नहीं, डेढ़ लाख की वसूली की है! हजरतगंज के जीपीओ चौकी प्रभारी ने महज 50 रुपये न मिलने पर 85 साल के बुजुर्ग की 35 साल से चल रही रोजी पर लात मार दी। चार साल पहले खरीदे टाइप राइटर को तोड़ डाला। दरोगा के लिए यह कमाई का जरिया था। रोज की वसूली से ऊपर के खर्चे चल जाते थे। लेकिन यह टाइप राइटर बुजुर्ग के परिवार का पेट पालने का साधन था। इस पूरे घटनाक्रम की मीडिया में खबर आई, पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े हुए, तो अधिकारियों ने तत्परता दिखाते हुए दरोगा को सस्पेंड कर दिया। लेकिन ऐसे हजारों बुजुर्ग और गरीब दुकानदारों से रोज हो रही वसूली पर लगाम कब लगेगी इस पर अफसर खामोश हैं। नगर निगम ने हाल ही में वेंडिंग जोन तय करने और पटरी दुकानदारों का पंजीकरण करने के लिए सभी इलाकों का सर्वे कराया। सर्वे के मुताबिक केवल हजरतगंज में तीन हजार दुकानदार फुटपाथ पर बैठकर जीविका चला रहे हैं। निगम ने यातायात विभाग की आपत्ति पर हजरतंगज के लगभग सभी रोड को नो वेंडिंग जोन घोषित कर दिया है। बावजूद इसके दुकानें लग रही हैं। जिसकी वजह गरीब दुकानदारों की मजबूरी और पुलिस की अवैध वसूली है। दुकानदारों को नो वेंडिंग जोन में व्यवसाय करने के लिए पुलिस प्रति दुकान 50 रुपये वसूली कर रही है। यानी केवल हजरतगंज का जोड़ लगाया जाए तो करीब 1 लाख 50 हजार रुपये हर रोज पुलिस वसूल रही है। बाजार में बनी चौकियां तो वसूली के एजेंट के तौर पर काम कर रही हैं। दरोगा डंडा फटकार कर पैसे लेता है, जो सीधे थाने तक जा रहा है।

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