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आदिम एवं अनुसूचित जाति कल्याण विभाग के अधिकारी पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के बाद भी सरकार मेहरबान

आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति कल्याण विभाग के अधिकारी संजय वार्ष्णेय के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप के बाद भी सरकार की और से कोई कार्यवाही नहीं हुई। माना जा रहा है अपने रसूख और रुतबे के चलते संजय वार्ष्णेय ने आला अधिकारियों को सेट कर रखा है। जिस कारण से प्रशासन की उन पर मेहरबान बनी हुई है।

<p>आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति कल्याण विभाग के अधिकारी संजय वार्ष्णेय के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप के बाद भी सरकार की और से कोई कार्यवाही नहीं हुई। माना जा रहा है अपने रसूख और रुतबे के चलते संजय वार्ष्णेय ने आला अधिकारियों को सेट कर रखा है। जिस कारण से प्रशासन की उन पर मेहरबान बनी हुई है।</p>

आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति कल्याण विभाग के अधिकारी संजय वार्ष्णेय के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप के बाद भी सरकार की और से कोई कार्यवाही नहीं हुई। माना जा रहा है अपने रसूख और रुतबे के चलते संजय वार्ष्णेय ने आला अधिकारियों को सेट कर रखा है। जिस कारण से प्रशासन की उन पर मेहरबान बनी हुई है।

       मध्यप्रदेश शासन के अधिकारीगण आपस में मिलजुल कर शासकीय राशि का किस प्रकार गबन करते हैं और शासन की निष्पक्ष एवं पारदर्शी प्रशासन उपलब्ध कराने की मंशा को जमकर पतीला लगा रहे हैं, इसकी बानगी आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति कल्याण विभाग के अधिकारी श्री संजय वार्ष्णेय के उदाहरण से समझा जा सकता है। इन पर आरोप है कि इनके द्वारा संभागीय उपसंचालक कार्यालय जबलपुर में पदस्थापना अवधि में निजी प्रिन्टरों के साथ मिलकर लगभग 25 लाख रुपये की राशि के देयकों पर नियंत्रक के फर्जी हस्ताक्षर एवं सील आदि लगाकर राशि का आहरण कर बंटवारा कर लिया गया। महालेखाकार कार्यालय ग्वालियर की ऑडिट टीम ने इस घोटाले का खुलासा किया और जिसके बाद इस प्रकरण की जांच शासन द्वारा तत्कालीन जबलपुर संभागायुक्त, श्री दीपक खान्डेकर के पर्यवेक्षण में संचालित की गई, जिसमें संजय वार्ष्णेय को स्पष्ट रूप से इस घोटाले में लिप्त पाया गया और इस कारण ही सरकारी उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर जबलपुर ओमती थाने में उनके विरुद्ध गवर्नमेंट प्रेस भोपाल के निर्देश पर थाने में धारा 420,467,468,471,120बी एवं 34 अन्तर्गत एफआईआर दर्ज कराई गई। आरोप है संजय वार्ष्णेय न केवल भ्रष्टाचार में अव्वल है बल्कि ये शासकीय प्रक्रिया को बाधित करने में महारथ रखने के साथ ही साथ अपनी दागी गोपनीय चरित्रावलियों को अवैध तरीके से बदलवाने और उस आधार पर पदोन्नति पाने के लिए भी कुख्यात रहे हैं।
  मध्यप्रदेश विधानसभा में भी इस अधिकारी के कारनामों की चर्चा अक्सर होती ही रहती है। ऐसे ही विधानसभा के एक प्रश्न क्रमांक 3665 दिनांक 18.07.2014 को भी सरकार द्वारा लिखित रूप से यह अभिलेख सदन में प्रस्तुत किये गये कि इनके द्वारा दागी गोपनीय चरित्रावलियों के आधार पर पदोन्नति पाने के प्रयास लगातार किये जाते रहे और सरकारी मशीनरी की लचरता का लाभ हमेशा ही अपने फायदे के लिए उठाते हुए अपर संचालक के पद पर पदोन्नति प्राप्त कर ली गई है जोकि वास्तव में अवैध है।
   गोपनीय चरित्रावलियों में इनके द्वारा जिस प्रकार छेड़छाड़ की गई या किये जाने के प्रयास किये गये तथा अन्य अवैध रूप से किये गये कार्यों का विवरण इस प्रकार हैः-
1.  सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा वर्ष 2002 में शासकीय अधिकारियों/कर्मचारियों के लिए जारी किये गये पदोन्नति नियमों के विरूद्ध आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा वर्ष 2002 में सहायक आयुक्त से उपायुक्त के पद पर पदोन्नति हेतु आयोजित विभागीय पदोन्नति की बैठक में कार्यालय, आयुक्त आदिवासी विकास में पदस्थ अपर संचालक को नियमों के तहत निर्धारित मापदण्ड प्राप्त न हो पाने के कारण अपात्र घोषित किया गया था। अर्थात् पदोन्नति समिति द्वारा उन्हें सहायक आयुक्त से उपायुक्त के पद पर पदोन्नति हेतु उपयुक्त नहीं पाया गया। क्योंकि डी.पी.सी. में पांच वर्षों के गोपनीय प्रतिवेदन के कुल योग में से 14 अंक आवश्यक थे जबकि इनके मात्र 11 ही अंक थे।
2.  इस डी.पी.सी. 2001 में इनके एक वर्ष के गोपनीय प्रतिवेदन के न होने से निर्धारित वर्षों से एक पिछले वर्ष 1996 का गोपनीय प्रतिवेदन का आंकलन भी किया गया था, फिर भी वे पदोन्नति हेतु उपयुक्त नहीं पाये गये थे। इसका अर्थ यह है कि ये ‘ख‘ श्रेणी के अधिकारी भी नहीं थे। जबकि पदोन्नति हेतु सभी वर्षों में क श्रेणी का अधिकारी होना आवश्यक है।
3.  इनके अभ्यावेदन देने तथा अनुपलब्ध वर्ष की गोपनीय प्रतिवेदन प्राप्त होने के उपरान्त वर्ष 2004 में इनके आई.ए.एस. भाई श्री मुकेश वार्ष्णेय के प्रभाव में पुनः इनकी रिव्यू डी.पी.सी. सहायक आयुक्त से उपायुक्त के पद के लिए की गई थी उसमें भी नियमित पदोन्नति समिति द्वारा इन्हें निर्धारित मापदण्डों के अनुसार वर्ष 2002 से पदोन्नति के योग्य नहीं पाया गया था। जबकि इस डी.पी.सी. में इनकी 5 वर्षों में से डी.पी.सी. के समय अनुपलब्ध गोपनीय प्रतिवेदन प्राप्त हो गया था। उसमें भी इनके मात्र 12 अंक ही प्राप्त हैं जबकि पदोन्नति के लिए 14 अंक जरूरी थे।
4.  संजय वार्ष्णेय ने अपनी फितरत से वर्ष 2007 में पुनः मंत्रालय के अधिकारियों/कर्मचारियों से मिलकर वर्ष 2002 एवं वर्ष 2004 के पदोन्नति हेतु प्रस्तुत गोपनीय प्रतिवेदनों में हेराफेरी कराई गई तथा जिन गोपनीय प्रतिवेदनों (वर्ष 1997 से 2001 तक) जिसमें वर्ष 2002 एवं 2004 में पदोन्नति के लिए योग्य नहीं पाये गये थे। उन्हें जालसाजी से बदलकर भी इनके 13 अंक ही हो सके।
5.  जाली गोपनीय प्रतिवेदनों के आधार पर इन्हें सहायक आयुक्त से उपायुक्त के पद पर पदोन्नति देते हुए वर्ष 2002 में सहायक आयुक्त से उपायुक्त पद के लिए आयोजित डी.पी.सी. में इन्हें पदोन्नति देते हुए उनसे कनिष्ठ किये गये पदोन्नति अधिकारियों के ऊपर वरिष्ठता दी गई। जबकि नियमानुसार एक बार आयोजित डी.पी.सी. में वही नियम प्रभावशील रहते हैं जो प्राथमिक डी.पी.सी. (वर्ष 2002 की डीपीसी) में तय किये गये जबकि इनके द्वारा भ्रष्टाचार का सहारा लेकर गोपनीय प्रतिवेदनों में हेराफेरी कर वर्ष 2007 में पदोन्नति ले ली गई।
6.  यही नहीं जालसाजी से इनके द्वारा वर्ष 2009 में पुनः उपायुक्त से अपर संचालक के पद पर भी वरिष्ठता ले ली। जबकि उस समय भी इनके गोपनीय प्रतिवेदन पदोन्नति योग्य नहीं थे।
7.  इसके बावजूद भी इस अधिकारी द्वारा म.प्र. मंत्रालय के अधिकारियों/कर्मचारियों से मिलकर भ्रष्टाचार के सहारे उनसे जानबूझकर इनके इस प्रकरण को डी.पी.सी. के सामने नहीं रखा गया जबकि इस प्रकरण में एन्टीकरप्शन ब्यूरो जगदलपुर द्वारा न्यायालय में चालान पेश कर दिया गया था परन्तु आदिमजाति कल्याण विभाग मध्यप्रदेश शासन द्वारा आज भी भ्रष्ट अधिकारियों पर मेहरबानी बनी हुई है।
8.   इनके विरूद्ध एन्टीकरप्शन ब्यूरो छत्तीसगढ़ अतिरिक्त महानिदेशक श्री डी.एम. अवस्थी द्वारा अपने पत्र क्रमांक/अति.प्र.म.मि/ए.सी.बी./रीडर/227/2012 दिनांक 18/5/2012 से छत्तीसगढ़ आदिमजाति कल्याण विभाग से निलंबित करने का निवेदन किया गया था। छत्तीसगढ़ राज्य के संयुक्त सचिव आदिमजाति कल्याण विभाग द्वारा पत्र क्रमांक एफ-16-11/25-बी/2004 दिनांक 13.06.2012 म.प्र. के प्रमुख सचिव, आदिमजाति कल्याण विभाग को कार्यवाही करने हेतु भेजा गया था परन्तु आज दिनांक तक विभाग इस भ्रष्टाचारी अधिकारी को निलंबित नहीं कर सका है। पता नहीं शासन की ऐसी क्या विवशता है।
9.  जबकि इनके विरूद्ध उक्त समय में जगदलपुर जिला बस्तर वर्तमान छत्तीसगढ़ में शिक्षाकर्मियों की फर्जी नियुक्तियों के संबंध में ई.ओ.डब्ल्यू. द्वारा एफ.आई.आर. भी दर्ज की गई थी।
10.  मंत्रालय के अधिकारियों/कर्मचारियों द्वारा जानबूझकर इनके इस प्रकरण को डी.पी.सी के सामने नहीं रखा गया। जबकि इस प्रकरण में एन्टीकरप्शन ब्यूरो जगदलपुर द्वारा माननीय न्यायालय में चालान पेश कर दिया गया है, परन्तु इस भ्रष्ट अधिकारी पर आदिम जाति कल्याण विभाग मध्यप्रदेश की मेहरबानी पता नहीं क्यों बनी हुई है।
11.  यहां तक कि जबलपुर में संभागीय उपायुक्त के पद पर पदस्थी के दौरान भी श्री संजय वार्ष्णेय द्वारा अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजातियों के विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति के फॉर्म छपाई की राशि रुपये 25 लाख के फर्जी देयकों को आहरण कर राशि का घोटाला भी किया गया है। जिसमें शासकीय मुद्रणालय द्वारा स्पष्ट किया गया है कि तदाशय संबंधी देयक उनके कार्यालय द्वारा प्रमाणित नहीं हैं। विगत कई वर्षों से इस प्रकरण को भी विभाग द्वारा दबाया गया है। जबकि इनके विरूद्ध ई.ओ.डब्ल्यू में भी शिकायत दर्ज हो गई है तथा ऐसी स्थिति में इनके विरुद्ध विभाग द्वारा एफ.आई.आर दर्ज होनी चाहिए थी परन्तु विभाग स्तर से इसमें पता नहीं किस कारण से कार्यवाही नहीं की जा रही है। विभाग इसमें क्या कर रहा है।
12.  श्री वाष्णेय द्वारा एन्टीकरप्शन ब्यूरो छत्तीसगढ़ के विरूद्ध माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर में याचिका क्रमांक 10402/10 भी दायर की गई थी जिसे माननीय उच्च न्यायालय द्वारा दिनांक 13/08/2010 को खारिज कर दिया गया फिर भी उनके विरुद्ध कार्यवाही न किया जाना अनेक संदेहों को जन्म देता है।
13. इनके द्वारा डबल बैंच में भी याचिका क्रमांक 577/2010 से अनुरोध किया गया जिसे माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर द्वारा दिनांक 28/8/2012 को अमान्य किया गया। इस बार फिर विभाग द्वारा इनके विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की गई बल्कि अवैध रुप से पद पर बने रहने का इन्हें पूरा मौका दिया गया।
14. विभागीय अधिकारियों की भलमनसाहत अथवा अनिर्णय करने की स्थिति से इनके द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय में एस.एल.पी. क्रमांक 1980-81/2012 एवं क्रमांक 5862-5863/2013 भी प्रस्तुत की गई फिर भी इन्हें माननीय न्यायालय से कोई राहत नहीं दी गई।
15. नियमानुसार इन्हें माननीय न्यायालय में अभियोजन स्वीकृति उपरान्त तत्काल निलंबन किया जाना चाहिए था परन्तु विभाग द्वारा अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की गई है जोकि कई प्रश्न पैदा करने वाली है।
16. मुझे यह भी पता चला है कि प्रिन्टिंग भ्रष्टाचार के प्रकरण में शासकीय प्रेस के जांच अधिकारी श्री ए.के. खंडूरी के साथ मिलकर संजय वार्ष्णेय ने खंडूरी को भी अवैध पारितोषिक देकर जांच अधिकारी से मिलकर कथनों के आधार पर खात्मा रिपोर्ट की कार्यवाही करा ली है। अब यह खात्मा रिपोर्ट न्यायिक दण्डाधिकारी जबलपुर के न्यायालय में स्वीकृति हेतु प्रचलित है। जांच को बराबर सिद्ध करने अधिकारी के साक्ष्य हो चुके हैं। इस संबंध में मेरा प्रश्न यह है कि चूंकि आरोपीगण द्वारा विशेषकर आरोपी क्रमांक 4 श्री संजय वार्ष्णेय ने श्री खंडूरी को अपने पक्ष में प्रलोभन के आधार पर कर लिया है, अतः शासन को इस कृत्य से बड़ा नुकसान होना है वह भी तब जबकि इस प्रकरण में दस्तावेजी साक्ष्य उपलब्ध हैं। किन्तु तमाम दस्तावेजी साक्ष्य होने के बाद भी जांच अधिकारी को कोई साक्ष्य मिलता नहीं है यह आश्चर्यजनक है। नियंत्रक, मुद्रण तथा लेखन सामग्री भोपाल भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं उन्होंने प्राथमिक जांच में पाया कि उनके कार्यालय की पदमुद्रा एवं हस्ताक्षर फर्जी किये जाकर कुटिलता से भुगतान प्राप्त किया है जोकि गंभीर अपराध है और इसी आधार पर श्री संजय वार्ष्णेय आरोपी क्रमांक 4 ने भुगतान प्रदान किया है। अतः इनके विरुद्ध कठोर कार्यवाही होना ही चाहिए जोकि होती हुई दिखाई नहीं दे रही।
    संजय वार्ष्णेय द्वारा किया गया कोई पहला अवैध कार्य नहीं है इनकी पदस्थापना से लेकर अब तक के सेवाकाल में कारनामे ही कारनामे हुए हैं। इनके द्वारा अविभाजित मध्यप्रदेश में जगदलपुर पदस्थापना के दौरान लगभग 721 शिक्षाकर्मियों की नियुक्ति में किये गये भ्रष्टाचार के लिये छत्तीसगढ़ राज्य के एन्टी करप्शन ब्यूरो द्वारा प्रमुख सचिव आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति कल्याण विभाग मध्यप्रदेश शासन को पत्र क्रमांक 227 दिनांक 18.05.2012 द्वारा प्रकरण चलाने की अनुमति एवं निलंबन आदेश जारी करने का अनुरोध किया गया। किन्तु मध्यप्रदेश शासन स्तर पर इस आदेश को अनदेखा किये जाने के कारण ये आज दिनांक तक अपने पद पर पदस्थ हैं जोकि पूरी तरह से अवैध है। यही नहीं छत्तीसगढ़ सरकार आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विकास विभाग द्वारा पत्र क्रमांक एफ 16-11/25-3/2004 दिनांक 13.06.2012 द्वारा भी श्री संजय वार्ष्णेय आदि के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए अनुरोध किया गया है किन्तु इस पर भी शासन द्वारा सजगता से कार्यवाही नहीं की गई।

ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों को सरकार एक दशक से भी अधिक समय से क्यों ढो रही है, यह समझ से परे है। किसी अधिकारी से एकाध त्रुटि हो जाये तो उसे क्षम्य माना जा सकता है लेकिन सरकार की छाती पर भ्रष्टाचार की मूंग दलने वाले अधिकारियों का बोझ ढोने में सरकार किस प्रकार विवश है यह भी समझ से परे है।
भ्रष्ट अधिकारियों के विरुद्ध सालों से चलने वाले प्रकरणों में कोई स्पष्ट कार्यवाही न होना नैष्ठिक रुप से कार्य करने वाले अधिकारियों/कर्मचारियों व जनता में रोष का कारण बनते हैं। अतः मेरी माननीय मुख्यमंत्री जी से विनती है कि आदिम जाति कल्याण विभाग के महाभ्रष्ट अधिकारी संजय वार्ष्णेय जो कि आदतन शासन के अपराधी हैं के विरूद्ध तत्काल दण्डात्मक कार्यवाही करने तथा चालानी कार्यवाही प्रारंभ करने विभाग को निर्देशित करने का अनुरोध है।

 

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