Shashi Bhooshan Dwivedi : मुश्किल यह है कि पुराने बूढ़े कवि लेखक अपनी पुरानी दुनिया से बाहर नहीं आना चाहते. मैंने उनकी कुंठाओं से बजबजाती वह दुनिया भी देखी है. बहुत बुरी थी. नाम नहीं लूंगा लेकिन जानते सब हैं. इस बार भारत भूषण पुरस्कार के लिए जब कहा गया तो बूढ़े निर्णायक ने मेरे एक मित्र से कहा कि ये सब फेसबुक और ब्लॉग के कवि हैं. जाहिर है कि उनका फेसबुक और ब्लॉग से कोई संबंध नहीं है और इसे वे हिकारत से देखते हैं. उनके लिए सौ दो सौ पांच सौ कॉपी छपने वाली लघु पत्रिकाएँ महत्वपूर्ण हैं जो अब लगभग कुटीर उद्योग बन चुकी हैं. जाहिर है कि फेसबुक और ब्लॉग पर भी सब कुछ अच्छा नहीं है लेकिन सब कुछ अच्छा कहां था? क्या उन लघु पत्रिकाओं में जो भ्रष्ट अफसरों के घूस के पैसे से छपती रहीं?
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शराब पार्टियों में अक्सर वाद विवाद में उत्तेजना हो ही जाती है इसलिए मैंने आमतौर ऐसी पार्टियों में जाना बंद कर रखा है. Om Thanvi जी के साथ जो घटना हुई वह एक अफवाह है और शायद यही साजिश भी. इधर दो चार दिनों में जो हुआ वह संघियों के लिए बकवास करने के लिए काफी था और इसका सारा संसाधन तथाकथित वामपंथियों ने दिया. पुराने जमाने में रात में युद्ध नहीं होते थे Neelabh Ashk और कल्बे कबीर साहब. युद्ध का भी एक नियम होता है. “हम न खेलब. बेईमानी होत अहै. बल्ला लै कै भाग जाब”
युवा साहित्यकार और आलोचक शशि भूषण द्विवेदी के फेसबुक वॉल से.