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विंस्टन चर्चिल को गलत साबित करने में नाकाम रहे हम

पिछली सदी के चौथे दशक में भारतीय राजनीति से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं, जैसे विभिन्न संप्रदायों को प्रतिनिधित्व देने वाली चुनाव प्रणाली यानी कम्युनल अवॉर्ड, ब्रिटिश संसद द्वारा पारित गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट और 1937 के चुनावों में अनेक प्रांतों में कांग्रेस को मिली सफलता। दुर्भाग्यवश नेताओं की अदूरदर्शिता, पारस्परिक प्रतिद्वंद्विता और ईर्ष्या के कारण इन्हीं वर्षो में कांग्रेस और मुस्लिम लीग का आपसी विरोध भी अधिक बढ़ा। इसी दौरान 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध आरंभ हो गया। इस युद्ध से संसार की बड़ी साम्राज्यवादी शक्तियों की उपनिवेशवादी नीति में परिवर्तन आना प्रारंभ हुआ। भीषण नर-संहार तथा व्यापक धनहानि के साथ समाप्त हुए उस महायुद्ध के बाद ब्रिटेन की संसद के आम चुनाव में चर्चिल की कंजर्वेटिव पार्टी पराजित हो गई और क्लीमेंट एटली के नेतृत्व में लेबर पार्टी सत्ता में आई, जिसके फलस्वरूप प्रधानमंत्री लॉर्ड क्लीमेंट एटली बने।

<p>पिछली सदी के चौथे दशक में भारतीय राजनीति से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं, जैसे विभिन्न संप्रदायों को प्रतिनिधित्व देने वाली चुनाव प्रणाली यानी कम्युनल अवॉर्ड, ब्रिटिश संसद द्वारा पारित गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट और 1937 के चुनावों में अनेक प्रांतों में कांग्रेस को मिली सफलता। दुर्भाग्यवश नेताओं की अदूरदर्शिता, पारस्परिक प्रतिद्वंद्विता और ईर्ष्या के कारण इन्हीं वर्षो में कांग्रेस और मुस्लिम लीग का आपसी विरोध भी अधिक बढ़ा। इसी दौरान 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध आरंभ हो गया। इस युद्ध से संसार की बड़ी साम्राज्यवादी शक्तियों की उपनिवेशवादी नीति में परिवर्तन आना प्रारंभ हुआ। भीषण नर-संहार तथा व्यापक धनहानि के साथ समाप्त हुए उस महायुद्ध के बाद ब्रिटेन की संसद के आम चुनाव में चर्चिल की कंजर्वेटिव पार्टी पराजित हो गई और क्लीमेंट एटली के नेतृत्व में लेबर पार्टी सत्ता में आई, जिसके फलस्वरूप प्रधानमंत्री लॉर्ड क्लीमेंट एटली बने।</p>

पिछली सदी के चौथे दशक में भारतीय राजनीति से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं, जैसे विभिन्न संप्रदायों को प्रतिनिधित्व देने वाली चुनाव प्रणाली यानी कम्युनल अवॉर्ड, ब्रिटिश संसद द्वारा पारित गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट और 1937 के चुनावों में अनेक प्रांतों में कांग्रेस को मिली सफलता। दुर्भाग्यवश नेताओं की अदूरदर्शिता, पारस्परिक प्रतिद्वंद्विता और ईर्ष्या के कारण इन्हीं वर्षो में कांग्रेस और मुस्लिम लीग का आपसी विरोध भी अधिक बढ़ा। इसी दौरान 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध आरंभ हो गया। इस युद्ध से संसार की बड़ी साम्राज्यवादी शक्तियों की उपनिवेशवादी नीति में परिवर्तन आना प्रारंभ हुआ। भीषण नर-संहार तथा व्यापक धनहानि के साथ समाप्त हुए उस महायुद्ध के बाद ब्रिटेन की संसद के आम चुनाव में चर्चिल की कंजर्वेटिव पार्टी पराजित हो गई और क्लीमेंट एटली के नेतृत्व में लेबर पार्टी सत्ता में आई, जिसके फलस्वरूप प्रधानमंत्री लॉर्ड क्लीमेंट एटली बने।

वस्तुतः 1940-47 के दौर में भारतीयों को स्व-शासन देकर यहाँ से बाइज्जत स्वदेश लौटने की दिशा में अंग्रेजों की सक्रियता बहुत स्पष्ट दिखाई देती हैय परन्तु इसके साथ ही यह भी स्पष्ट था कि वे मानसिक रूप से यह स्वीकार करने को कतई तैयार नहीं थे कि उन्हें यहाँ से किसी प्रकार के आंदोलन (अहिंसात्मक या हिंसात्मक) के कारण उखाड़ फेंका गया है। इसी कारण अंग्रेजों ने 1942 में कांग्रेस के ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ आंदोलन को कठोरतापूर्वक दबा दिया। वे समय की दीवार पर लिखा साफ पढ़ सकते थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में गठित आजाद हिंद फौज का उदाहरण उनके सामने था। 1940 के बाद भारत में उत्पन्न हुई सांप्रदायिक समस्या, पाकिस्तान के रूप में एक पृथक मुस्लिम राज्य बनाये जाने की माँग और विभिन्न पक्षों की आपसी असहमति को लेकर अंग्रेजों की यह चिंता स्वाभाविक थी कि यदि उन्हें हिन्दुस्तान से अपनी सत्ता समेटनी है तो वे किस पक्ष को यह दायित्व सौंपें?

द्वितीय विश्व युद्ध में विंस्टन चर्चिल के नेतृत्व में ब्रिटेन व मित्र देशों की जीत अवश्य हुई थी, किंतु मित्र राष्ट्रों के मुखिया अमेरिका का ब्रिटेन पर भारत को अति शीघ्र स्वतंत्र कर देने का दबाव बढ़ गया था। अतः एटली ने भारत को स्वाधीनता कैसे हस्तांतरित की जा सकती है, इसका स्वरूप तय करने के लिए 1946 में एक कैबिनेट मिशन भारत भेजा। जिसने भारत को तीन भागों का एक महासंघ बनाने की योजना दी। भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल और वॉयसरॉय लॉर्ड वावेल ने अपनी लंदन यात्रा में एटली से कहा था कि भारत में ब्रिटिश शासन के सम्मुख दो ही रास्ते हैं–या तो भारत पर पूरी कठोरता से शासन किया जाये या जनता के प्रतिनिधियों को सत्ता सौंप दी जाये।

प्रधानमंत्री एटली का यह दृढ़ मत था कि हमें भारतीयों के हाथों में सत्ता सौंप देनी चाहिए। अतः 20 फरवरी, 1947 को एटली ने ब्रिटिश संसद में जो प्रस्ताव रखा उसकी दो महत्वपूर्ण विशेषताएं थींकृ
(1) ब्रिटिश सरकार जून 1948 तक ब्रिटिश भारत को पूर्ण सेल्फ-गवर्नेमेंट प्रदान करेगी।
(2) रियासती राज्यों का भविष्य अंतिम स्थानांतरण की तिथि के बाद तय किया जायेगा।

एटली द्वारा घोषित इस नीति वक्तव्य के पश्चात् 3 जून, 1947 को ‘माउंटबेटन प्लान’ के नाम से मशहूर योजना घोषित की गई जिसमें निम्नलिखित विशेषताएं समाहित थींकृ
(1) ब्रिटिश सरकार ने विभाजन का सिद्धांत स्वीकार कर लिया।
(2) परवर्ती सरकारों को स्वतंत्र-उपनिवेश का दर्जा दिया जायेगा।
(3) उन्हें ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल से पृथक होने का अंतर्निहित अधिकार होगा।

इस प्लान के आधार पर ही ब्रिटेन की संसद ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 पारित किया, परन्तु भारत को सत्ता सौंपे जाने का नेता प्रतिपक्ष विंस्टन चर्चिल ने भारत और भारतीयों के प्रति विष उगलते हुए इन शब्दों के साथ घोर विरोध किया–

“Power will go to the hands of rascals, rogues, freebooters; all Indian leaders will be of low caliber & men of straw. They will have sweet tongues & silly hearts. They will fight amongst themselves for power & India will be lost in political squabbles. A day would come when even air & water would be taxed in India”.

अर्थात–“सत्ता धूर्तों, दुष्टों और बदमाशों के हाथों में जाएगीय भारत के सभी नेता कम क्षमता और सूखी घास जैसे लोग हैं। इनके पास मीठी जुबान और मूर्खता भरे दिल हैं। ये सत्ता के लिए आपस में लड़ेंगे और भारत राजनैतिक झगड़ों में फँस जायेगा। एक दिन ऐसा भी आ सकता है जब भारत में हवा और पानी पर भी टैक्स लगाया जायेगा।”

क्या चर्चिल गलती पर था? शायद नहीं। हालांकि चर्चिल भारत का कोई शुभचिंतक कतई भी नहीं था, उल्टे भारत जैसे गुलाम देशों से लूटी गई दौलत पर ऐश करने के बावजूद उसके हृदय में भारत तथा भारतीयों के प्रति घनघोर घृणा भरी हुई थी। उसके विचार और भाषा का देहरादून में रोग-शैय्या पर पड़े वल्लभ भाई पटेल ने विद्वतापूर्ण और करारा प्रत्युत्तर एक पत्र में दिया। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के उस अहंकारी विजेता को ”एक संकोचहीन साम्राज्यवादी जो साम्राज्यवाद के अंतिम दौर पर खड़ा है” निरूपित किया। पटेल ने और भी कहा वह (चर्चिल) ”नीचे से उठी हस्ती है जिसके लिए कारण, कल्पना या बुद्धिमता से ज्यादा जिद और मूर्खता अधिक महत्व रखती है।”

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देखा जाये तो चर्चिल की वह बात तो तभी सच होनी शुरू हो गई थी जब माउंटबेटन द्वारा सत्ता-हस्तांतरण के लिए कांग्रेस नेतृत्व से एक नाम देने को कहा गया था। उसके बाद कांग्रेस की 15 सदस्यीय कार्यसमिति के मतदान में सरदार पटेल से जवाहरलाल नेहरू 11 के मुकाबले 3 वोट से हार गये थे (एक सदस्य अनुपस्थित थे)। इस पर नेहरू ने इरविना माउंटबेटन से अपने अंतरंग सम्बंधों के बल पर एक षड्यंत्र रचा और महात्मा गांधी को कांग्रेस का विभाजन कराने की धमकी से ब्लैकमेल कर भारत की सत्ता पर अवैध कब्जा कर लिया, जिसे सारा हिन्दुस्तान मूक-दर्शक बन कर देखता रहा। यह भारत की बर्बादी की एक लंबी दास्तान है जो इतिहास के पन्नों में दर्ज है और कांग्रेसी शासकों द्वारा लाख छिपाये जाने के बावजूद आज अपने पूरे विद्रूप के साथ सबके सामने बेपर्दा हो कर अपने ही पहरेदारों को नंगा कर रही है–खुलेआम। इसमें सोशल मीडिया का सबसे बड़ा हाथ है।
 
नेहरू की उस दबंगई के बाद देश में जैसा वातावरण बना उसी के फलस्वरूप अब तक देश में नेता-पूँजीपति-अफसर-माफिया का घिनौना गठजोड़ न केवल बना, बल्कि वह दिन-प्रतिदिन मजबूत होता चला गया। उसी का परिणाम आज हम सब भोग रहे हैं और आगे भी न जाने कब तक भावी पीढ़ियों को इस गठजोड़ के दुष्परिणाम भोगने पड़ेंगे।

काश देश के कर्णधार विंस्टन चर्चिल को गलत साबित कर पाते और 190 वर्ष के लंबे संघर्ष तथा बहुत महंगे मोल मिली आजादी का महत्व कुछ भी समझ पाते!

श्यामसिंह रावत
[email protected]

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