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दुख-सुख

मीडिया वाले सवाल पूछते रहे, मोदी मौनी बाबा बने रहे, दो मंत्री हंसते रहे….

: सत्ता कितना बदल देती है… मौन रहे मनमोहन, अब मौन हैं मोदी : यूपीए सरकार के समय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर चुप्प रहने के आरोप लगते थे. तब मनमोहन सिंह ने संसद के अंदर एक शेर पढ़ा था- ”हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरु रखी”. तब इस शेर का विश्लेषण करते हुए कहा गया कि मनमोहन सिंह दस जनपथ यानि सोनिया गांधी का लिहाज करते हैं और कोशिश यही रहती है कि नेहरु गांधी परिवार पर किसी तरह की आंच नहीं आए. बहुत बार उनपर सीधे आरोप लगाए जाते रहे कि सत्ता की असली कमान तो सोनिया के हाथों में है. मनमोहन सिंह सरकार सोनिया के इशारों पर चलती है. यहां तक कि पीएम के सलाहकार रहे संजय बारु ने अपनी किताब एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर (गलती से बने प्रधानमंत्री) में कुछ फाइलें तक दस जनपथ ले जाए जाने की बात रखी. लेकिन मनमोहन सिंह मौन धारण किए रहे. इस मुद्दे पर मुख खोला तो भी यही शेर पढ़ा कि न जाने कितने सवालों की आबरु रखी.

<p>: <strong>सत्ता कितना बदल देती है... मौन रहे मनमोहन, अब मौन हैं मोदी</strong> : यूपीए सरकार के समय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर चुप्प रहने के आरोप लगते थे. तब मनमोहन सिंह ने संसद के अंदर एक शेर पढ़ा था- ''हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरु रखी''. तब इस शेर का विश्लेषण करते हुए कहा गया कि मनमोहन सिंह दस जनपथ यानि सोनिया गांधी का लिहाज करते हैं और कोशिश यही रहती है कि नेहरु गांधी परिवार पर किसी तरह की आंच नहीं आए. बहुत बार उनपर सीधे आरोप लगाए जाते रहे कि सत्ता की असली कमान तो सोनिया के हाथों में है. मनमोहन सिंह सरकार सोनिया के इशारों पर चलती है. यहां तक कि पीएम के सलाहकार रहे संजय बारु ने अपनी किताब एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर (गलती से बने प्रधानमंत्री) में कुछ फाइलें तक दस जनपथ ले जाए जाने की बात रखी. लेकिन मनमोहन सिंह मौन धारण किए रहे. इस मुद्दे पर मुख खोला तो भी यही शेर पढ़ा कि न जाने कितने सवालों की आबरु रखी.</p>

: सत्ता कितना बदल देती है… मौन रहे मनमोहन, अब मौन हैं मोदी : यूपीए सरकार के समय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर चुप्प रहने के आरोप लगते थे. तब मनमोहन सिंह ने संसद के अंदर एक शेर पढ़ा था- ”हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरु रखी”. तब इस शेर का विश्लेषण करते हुए कहा गया कि मनमोहन सिंह दस जनपथ यानि सोनिया गांधी का लिहाज करते हैं और कोशिश यही रहती है कि नेहरु गांधी परिवार पर किसी तरह की आंच नहीं आए. बहुत बार उनपर सीधे आरोप लगाए जाते रहे कि सत्ता की असली कमान तो सोनिया के हाथों में है. मनमोहन सिंह सरकार सोनिया के इशारों पर चलती है. यहां तक कि पीएम के सलाहकार रहे संजय बारु ने अपनी किताब एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर (गलती से बने प्रधानमंत्री) में कुछ फाइलें तक दस जनपथ ले जाए जाने की बात रखी. लेकिन मनमोहन सिंह मौन धारण किए रहे. इस मुद्दे पर मुख खोला तो भी यही शेर पढ़ा कि न जाने कितने सवालों की आबरु रखी.

अब आते हैं 21 जुलाई, 2015 पर. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी संसद का नया सत्र शुरु होने पर मीडिया के सामने आते हैं. उनके साथ है मंत्री जितेन्द्र सिंह, राजीव प्रताप रूडी और मुख्तार अब्बास नकवी. सामने टीवी कैमरों के ढेरों माइक लगे हैं. मीडिया का काम है सवाल पूछना और वह सवाल दागने शुरु करता है.

सर, करप्शन की बात पर आपको क्या कहना है?
मोदी चुप्प रहते हैं.
सर, आपको सत्र चलने की उम्मीद है क्या?
मोदी खामोश रहते हैं.
सर, कांग्रेस ने स्थगन प्रस्ताव रखा है. क्या आप बहस के लिए तैयार हैं?
मोदी कुछ नहीं बोलते. (राजीव प्रताप रूडी और मुख्तार अब्बास नकवी हंसने लगते हैं. न जाने क्यों?!)
सर, विपक्ष लगातार कह रहा है कि प्रधानमंत्री चुप्पी कब तोड़ेंगे?
मोदी मुंह नहीं खोलते. (दोनों मंत्रियों की हंसी तेज हो जाती है!)
सर, इस बार क्या उम्मीद करते हैं विपक्ष को क्या जवाब देंगे?
मोदी इधर-उधर देखते हैं लेकिन बोलते नहीं हैं.
सर, लैंड बिल पर क्या?
दोनों मंत्री फिर हंसते हैं. मोदी पलटते हैं. मीडिया को पीठ दिखा कर चले जाते हैं.

सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री ने किसी भी सवाल का जवाब क्यों नहीं दिया? सवाल उन्हें सुनाई दे रहे थे यह तय है क्योंकि उनके पीछे खड़े मंत्रियों को जब सवाल सुनाई दे रहे थे तो जाहिर है कि मोदीजी को भी सुनाई दिये होंगे. क्या मीडिया के सवाल इतने बचकाने थे कि मोदी को जवाब देने लायक नहीं लगे….क्या मीडिया ने जो सवाल पूछे वो सवाल क्या पूरे देश भर के लोगों के मन में नहीं हैं….क्या मीडिया जो सवाल पूछ रहा था कि उनके जवाब प्रधानमंत्री के पास नहीं थे…मोदी जानते ही थे कि मीडिया के माइकों के पास जा रहे हैं तो सवाल भी होंगे ही. अगर जवाब नहीं देने थे तो उस तरफ जाना ही नहीं चाहिए था? रही बात शक्ल की तो वो तो दूर से भी कैमरा पकड़ लेता है. हकीकत तो यही है कि एक भी सवाल तीखा नहीं था. एक भी सवाल ऐसा नहीं था जो चुभता हुआ हो. एक भी सवाल ऐसा नहीं था जो आज की तारीख में प्रासंगिक न हो. एक भी सवाल ऐसा नहीं था जिसकी चर्चा इन दिनों हो नहीं हो रही. सबसे बड़ा सवाल यही है कि मोदी सवालों से बचने क्यों लगे हैं? मनमोहन सिंह के शेर से जोड़ कर पूछा जा सकता है कि मोदी आखिर किसकी आबरु रख रहे हैं.

एक सवाल दोनों हंसोड़ मंत्रियों से…दोनों हंस क्यों रहे थे? क्या उनको सवाल कोई चुटकुला लग रहे थे? क्या मीडिया अपने सवालों में चुटकुले सुना रहा था? क्यो दोनों मंत्रियों को मोदी की सवालों का जवाब नहीं देने की अदा बहुत पसंद आ रही थी? क्या दोनों मंत्री यह बात सोच कर हंस रहे थे कि मीडिया का चुप्पी से उपहास उड़ाया जा रहा है?

सत्ता कितना बदल देती है- मौन रहे मनमोहन, मौन हैं मोदी

लेखक विजय विद्रोही एबीपी न्यूज में कार्यकारी संपादक हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है. विजय विद्रोही का लिखा उनके ब्लाग से साभार लेकर भड़ास पर प्रकाशित किया गया है.

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