जिन लोगों से न्याय की उम्मीद हो अगर वो ही सत्ता तंत्र के आगे घुटने टेक दें तो व्यवस्थाएं तो चौपट हो ही जाएगी. लोकायुक्त को पता है कि उनकी कुर्सी सरकार के रहमो करम पर ही टिकी है. यही कारण है कि वो सब कुछ देखते हुए भी अंधे बने हुए हैं.
–संजय शर्मा-
लखनऊ। जिस समय लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा ने यूपी के विवादित मंत्री गायत्री प्रजापति को क्लीन चिट दी थी, उसी समय सब समझ गये थे कि आखिर लोकायुक्त की मजबूरी क्या है। देश के ताकतवर बेइमान मंत्री और भ्रष्ट नौकरशाह जानते हैं कि लोकायुक्त की कुर्सी सरकार के रहमो करम पर बची हुई है इसलिए उनका कुछ बिगडऩे वाला नहीं है। यहीं कारण है कि लम्बे समय से किसी भी भ्रष्टï मंत्री के खिलाफ लोकायुक्त कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं कर सके हैं। इन ताकतवर लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने में लोकायुक्त श्री मेहरोत्रा को जिस तरह पसीने आ रहे हैं, उससे साफ है कि प्रदेश में मंत्री आराम से भ्रष्टïाचार का साम्राज्य खड़ा कर सकते हैं। कम से कम उन्हें लोकायुक्त से तो कोई खतरा नहीं है।
श्री मेहरोत्रा के पिछले कार्यकाल पर नजर डालें तो उनके व्यक्तित्व के कई पहलू सामने आते हैं जो बताते हैं कि आखिर श्री मेहरोत्रा ने अपनी नौकरी में किन-किन चीजों का ध्यान रखा। इससे पूर्व हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने 8 सिम्बर 2004 के आदेश द्वारा जस्टिस एनके मेहरोत्रा से अपने आदेशों में सुधार, त्रुटि निवारण जैसे सभी अधिकार वापस ले लिये गये थे, जो हाईकोर्ट के सभी जजों को रूटीन में प्राप्त होते हैं।
16 मार्च 2006 को श्री मेहरोत्रा को लोकायुक्त बनाया गया और बसपा सरकार में उनकी रिपोर्ट पर कई मत्रियों को हटाया गया। यह बात सार्वजनिक चर्चा में थी कि जस्टिस मेहरोत्रा बसपा के उन्हीं मत्रियों के खिलाफ तेजी से कार्रवाई कर रहे हैं जिनसे मायावती नाराज थी। बसपा के कई कद्दावर नेता तो निपट गये मगर नसीमुद्दीन जैसे नेता का कुछ नहीं बिगड़ा। लोकायुक्त का कार्यकाल 6 साल का होता है। अखिलेश सरकार बनने के बाद फैसला करके लोकायुक्त का कार्यकाल 6 से 7 साल कर दिया गया। यहीं नहीं एक अनूठा प्रावधान भी डाल दिया गया कि जब तक नई नियुक्ति न हो जाए पुराने लोकायुक्त पद पर बने रहेंगे। जाहिर है सरकार लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा पर अहसान कर रही थी और अब वक्त आ गया था कि जब जस्टिस मेहरोत्रा इस एहसान का बदला उतारते।
लोकायुक्त मेहरोत्रा ने इस एहसान का बदला उतार भी दिया। प्रापर्टी डीलर से मंत्री बने गायत्री प्रजापति की अरबों की सम्पत्ति लोकायुक्त को दिखाई नहीं दी। इसके बाद सपा के नेताओं पर जस्टिस मेहरोत्रा की कृपा बरसती रही। चाहे वह चन्दौसी की विधायक लक्ष्मी गौतम हो या झांसी के विधायक दीप नारायण यादव हो या फिर गायत्री प्रजापति के अलावा महबूब अली या फिर ब्रह्माशंकर त्रिपाठी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भी प्रदेश में नया लोकायुक्त नहीं बनाया गया। अब राज्यपाल ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को इसकी जानकारी दे दी है। अब देखना यह है कि प्रदेश को नया लोकायुक्त मिलेगा अथवा श्री मेहरोत्रा पर ही मेहरबानी कायम रहेगी।
मेहरोत्रा का दागदार दामन : 9 मई 2003 ये वह तारीख है जिस दिन मधुमिता शुक्ला की हत्या हुई। 29 अप्रैल 2004 इस हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त अमरमणि त्रिपाठी को हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच से जमानत मिली। 26 सितम्बर 2005 वह तारीख है जब सीबीआई के जमानत रद्द करने के अनुरोध पर सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ जमानत रद्द की बल्कि हाईकोर्ट की एकल पीट द्वारा जमानत दिये जाने की गम्भीर आलोचना की। जमानत देने वाले न्यायाधीश थे वर्तमान लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा। जिस समय जमानत दी गई उस समय अमरमणि त्रिपाठी सपा में शामिल हो चुके थे।
कांग्रेस नेता सत्यदेव त्रिपाठी का कहना है- ”राज्यपाल महोदय ने जो कदम उठाया है वो जायज है क्योंकि इनको ज़बरदस्ती एक्सटेंशन दिया गया। इस लोकायुक्त के बारे में भ्रष्ट बातें भी सुनने को मिली थी।” उधर, बीजेपी प्रवक्ता चंद्र मोहन का कहना है- ”सपा सरकार भ्रष्टाचार के मामले में अव्वल है। लोकायुक्त के नियुक्ति को लेकर जो सरकार की मंशा है उसको प्रदेश की जनता समझ चुकी है!”
लेखक संजय शर्मा लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं और सांध्य दैनिक 4पीएम के संपादक हैं.