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दुनिया के दादा की दादागिरी पर संकट… बनने लगे नए समीकरण…

पेरिस हमले के बाद दुनिया के राजनितिक समीकरण में बड़े स्तर पर बदलाव का संकेत स्पष्ट दृष्टिगोचर है। अभी तक खाड़ी के मुल्कों के खिलाफ रणनीति में अमेरिका की निर्णायक भूमिका होती थी परन्तु अब इसमें बदलाव आ रहां है। 2011 से अमेरिका सीरिया के राष्ट्रपति असद को अपदस्थ करने के लिए असद के खिलाफ युद्धरत विद्रोहियों की मदद कर रहा था और दूसरी तरफ सीरिया में फैली अव्यवस्था का फायदा उठाकर आईएस आईएस वहां अपनी स्थिति मजबूत कर रहा था।

<p>पेरिस हमले के बाद दुनिया के राजनितिक समीकरण में बड़े स्तर पर बदलाव का संकेत स्पष्ट दृष्टिगोचर है। अभी तक खाड़ी के मुल्कों के खिलाफ रणनीति में अमेरिका की निर्णायक भूमिका होती थी परन्तु अब इसमें बदलाव आ रहां है। 2011 से अमेरिका सीरिया के राष्ट्रपति असद को अपदस्थ करने के लिए असद के खिलाफ युद्धरत विद्रोहियों की मदद कर रहा था और दूसरी तरफ सीरिया में फैली अव्यवस्था का फायदा उठाकर आईएस आईएस वहां अपनी स्थिति मजबूत कर रहा था।</p>

पेरिस हमले के बाद दुनिया के राजनितिक समीकरण में बड़े स्तर पर बदलाव का संकेत स्पष्ट दृष्टिगोचर है। अभी तक खाड़ी के मुल्कों के खिलाफ रणनीति में अमेरिका की निर्णायक भूमिका होती थी परन्तु अब इसमें बदलाव आ रहां है। 2011 से अमेरिका सीरिया के राष्ट्रपति असद को अपदस्थ करने के लिए असद के खिलाफ युद्धरत विद्रोहियों की मदद कर रहा था और दूसरी तरफ सीरिया में फैली अव्यवस्था का फायदा उठाकर आईएस आईएस वहां अपनी स्थिति मजबूत कर रहा था।

असद को ईरान की मदद मिलती थी लेकिन वह भी खुलकर मदद करने की हिम्मत नहीं पैदा कर पा रहा था जिसके परिणामस्वरूप सीरिया गृहयुद्ध की चपेट में धीरे धीरे बर्बादी की और बढ़ रहां था और ऐसी संभावना नजर आ रही थी कि असद के पदच्युत होते ही सीरिया का विभाजन हो जाएगा, एक हिस्से पर आईएस आईएस की सरकार दूसरे हिस्से पर अमेरिका समर्थक विद्रोहियों की सरकार स्थापित होगी परन्तु रूस द्वारा असद की मदद के लिए आगे आने, आईएस आईएस द्वारा रुसी विमान को गिराने तथा पेरिस पर हमला और हमले के बाद ओबामा के द्वारा जमीनी युद्ध की संभावना से इनकार ने फ्रांस, रूस और ईरान को एक दूसरे के नजदीक लाने में मदद की है।

फ्रांस के लिए असद दुश्मन नहीं है, उसकी प्राथमिकता आईएस आई एस को नेस्ताबुद करना है उधर ईरान ने अपने पुराने मित्र असद की मदद के लिए सीरिया में अपने सैनिको की संख्या बढ़ा दी है यानी अब सीरिया को एक तरफ रूस और ईरान की मदद मिल रही है वही मजबूरीवश अमेरिका भी हवाई हमले के माध्यम से मदद पंहुचा रहा है । असद को हटाने का एजेंटा अब अमेरिका की प्राथमिकता में नहीं है, फिलहाल वह अपने नेतृत्व को बचाये रखने के लिए रूस, ईरान, फ्रांस की रणनीति पर चलने के लिए बाध्य है ।यानी दादा की दादागिरी नहीं चल रही है। अमेरिका के अंदर भी जमीनी युद्ध से इनकार करने के कारण ओबामा के खिलाफ जनाक्रोश पनप रहा है। उधर तुर्की जिसे सीरिया में आई इस आई एस के बढ़ते प्रभाव के कारण सस्ते तेल से फायदा हो रहा था उसके ऊपर भी स्मगलिंग पर नियंत्रण का दबाव बढ़ रहा है।

विगत 30-35 साल में पहली बार पश्चिमी मुल्क, रूस और इस्लामिक शिया मुल्क ईरान एकसाथ सुन्नी आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर नया गठजोड़ बनाने की और अग्रसर है। यह बदलता समीकरण एक नया संकेत दे रहा है और यह भारत के लिए भी सकारात्मक है बशर्ते कांग्रेसी नेतागण पाकिस्तान की यात्रा कम करे और वहां अगर जाए भी तो राष्ट्रहित को दलहित से ऊपर रखकर बयान दे। बदलते समीकरण में कश्मीर समस्या को हल करने और पाक प्रायोजित आतंकवाद पर नियंत्रण रखने में मदद मिलेगी अगर भारत अपना समर्थन फ्रांस और रूस देने की घोषणा कर दे।

लेखक मदन तिवारी बिहार के गया जिले के वरिष्ठ वकील और जन पत्रकार हैं.

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