Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रदेश

दादरी पर रवीश और अपूर्वानंद की समझ

दादरी हत्या कांड भारतीय समाज में बढ़ते असहिष्णुता का ऐसी घटना है जिसकी मिसाल लम्बे समय तक दी जाती रहेगी। अपने प्राइम टाइम में रवीश जी ने दादरी में हुई अकलाख की हत्या पर अच्छी रिपोर्टिंग की है। लेकिन जिस तरह से इस संवेदनशील मुद्दे को साम्प्रदायिक नजरिया दिया है साथ ही पत्रकारिता के बुनियादी उसूल को नजर अंदाज किया है उससे यही लगता है की उन्हें अपराधियो से नहीं बल्कि देश के हिन्दुओं से समाज को खतरा हो। उधर बी.बी.सी. हिंदी में अपूर्वानंद ने तो अति ही कर दी। उनकी माने तो दादरी से मुसलमानो को यही सन्देश है की वे अपने लिए अलग देश बनाने की सोचे।

<p>दादरी हत्या कांड भारतीय समाज में बढ़ते असहिष्णुता का ऐसी घटना है जिसकी मिसाल लम्बे समय तक दी जाती रहेगी। अपने प्राइम टाइम में रवीश जी ने दादरी में हुई अकलाख की हत्या पर अच्छी रिपोर्टिंग की है। लेकिन जिस तरह से इस संवेदनशील मुद्दे को साम्प्रदायिक नजरिया दिया है साथ ही पत्रकारिता के बुनियादी उसूल को नजर अंदाज किया है उससे यही लगता है की उन्हें अपराधियो से नहीं बल्कि देश के हिन्दुओं से समाज को खतरा हो। उधर बी.बी.सी. हिंदी में अपूर्वानंद ने तो अति ही कर दी। उनकी माने तो दादरी से मुसलमानो को यही सन्देश है की वे अपने लिए अलग देश बनाने की सोचे।</p>

दादरी हत्या कांड भारतीय समाज में बढ़ते असहिष्णुता का ऐसी घटना है जिसकी मिसाल लम्बे समय तक दी जाती रहेगी। अपने प्राइम टाइम में रवीश जी ने दादरी में हुई अकलाख की हत्या पर अच्छी रिपोर्टिंग की है। लेकिन जिस तरह से इस संवेदनशील मुद्दे को साम्प्रदायिक नजरिया दिया है साथ ही पत्रकारिता के बुनियादी उसूल को नजर अंदाज किया है उससे यही लगता है की उन्हें अपराधियो से नहीं बल्कि देश के हिन्दुओं से समाज को खतरा हो। उधर बी.बी.सी. हिंदी में अपूर्वानंद ने तो अति ही कर दी। उनकी माने तो दादरी से मुसलमानो को यही सन्देश है की वे अपने लिए अलग देश बनाने की सोचे।

   रविश ने जिस प्रकार खुल कर हिन्दू और मुस्लमान, मंदिर और मस्जिद शब्द का प्रयोग किया है, वह आपत्तिजनक है। शायद बड़े पत्रकारों को यह छूट हो.. सबसे ज्यादा आपत्तिजनक बात इस सन्दर्भ में रांची को लेकर कही गई उनकी बात गलत और एक तरफ़ा थी। जो भड़काने वाला भी था। ऱविश ने एक से अधिक बार कहा की’ उधर रांची में मस्जिद में सूअर का मांस फेंका गया।’  हमने तो पत्रकारिता में ऐसा नहीं सीखा की किसी संवेदनशील मुद्दे को इस तरह भड़काऊ बनाया जाए। जबकि हकीकत इसके विपरीत थी। रांची ही नहीं आसपास के कई जिलो में सिलसिलेवार तरीके से बहुसंख्यक समुदाय के धार्मिक स्थलों को निशाना बना कर प्रतिबंधित मांस फेंका गया। यह घटना बकरीद की रात से बुधवार तक जारी रही। सरकार ने बहुत सूझबूझ से सारे मामले को निपटाया। रवीश जी को शायद ध्यान न हो झारखण्ड में बीजेपी की सरकार है। रांची के किसी अखबार ने अपनी रिपोर्टिंग में रवीश जैसे शब्दों का खुल कर प्रयोग किया।
उधर अपूर्वानंद ने अपने लेख में घटना को मुस्लमान विरोधी लम्बे समय से दी जा रही ट्रेनिंग को दिया है। जो हिंदुत्वा के नाम पर देश में दी जा रही है। किसी ने यह नहीं बताया की परिवार को बचाने आने वाले पड़ोसी हिन्दू लोग ही थे जिन्होंने हाल में ही गांव की मस्जिद की मरम्मत करवाई थी। इस दुखद घटना में परिवार के अन्य लोगों व सम्बन्धियों को निशाना नहीं बनाया गया जो इसके खास पहलु की ओर संकेत करता है।

आनंद कुमार (स्वतंत्र पत्रकार, रांची)

You May Also Like

Uncategorized

मुंबई : लापरवाही से गाड़ी चलाने के मामले में मुंबई सेशन कोर्ट ने फिल्‍म अभिनेता जॉन अब्राहम को 15 दिनों की जेल की सजा...

ये दुनिया

रामकृष्ण परमहंस को मरने के पहले गले का कैंसर हो गया। तो बड़ा कष्ट था। और बड़ा कष्ट था भोजन करने में, पानी भी...

ये दुनिया

बुद्ध ने कहा है, कि न कोई परमात्मा है, न कोई आकाश में बैठा हुआ नियंता है। तो साधक क्या करें? तो बुद्ध ने...

दुख-सुख

: बस में अश्लीलता के लाइव टेलीकास्ट को एन्जॉय कर रहे यात्रियों को यूं नसीहत दी उस पीड़ित लड़की ने : Sanjna Gupta :...

Advertisement