Vishnu Nagar : अपवादों को छोड़ दें तो ज्यादातर टीवी चैनलों पर आनेवाले अधिकतर कार्यक्रम फूहड़ होते हैं। फूहड़पन और टीवी का बहुत हद तक चोलीदामन का साथ है। लेकिन अभी मैं बात हास्य सीरियलों की ही करना चाहता हूँ, जो फूहड़ होने के अलावा मूर्खता और दिमागी विकलांगता को हास्य समझते हैं।
ऊपर से उनमें रिकार्डेड हंसी हरदम पेश की जाती है, जो उन्हें और ज्यादा असहनीय और हास्यास्पद बना देती है। रिकार्डेड हंसी सुनाकर ये दर्शक को हंसाना चाहते हैं कि ये इतना हंस रहे हैं तो तुम क्यों नहीं हंस सकते? अरे कुछ बनाओ ऐसा कि मैं अपने आप हँसूं, बनाओ कुछ ऐसा कि तुम मुझे जबर्दस्ती रुलाओ नहीं, मैं खुद रो पड़ूं।
वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार विष्णु नागर के फेसबुक वॉल से.